रविवार, 5 जनवरी 2014

आत्मशक्ति पर निर्भर हो.............अनुपमा पाठक

मान-अभिमान से परे
रूठने-मनाने के सिलसिले-सा
कुछ तो भावुक आकर्षण हो !




किनारे पर रेत से घर बनाता
और अगले पल उसे तोड़-छोड़
आगे बढ़ता -सा
भोला-भाला जीवन दर्शन हो !





नमी सुखाती हुई
रूखी हवा के विरुद्ध
नयनों से बहता निर्झर हो !



परिस्थितियों की दुहाई न देकर
अन्तःस्थिति की बात हो
शाश्वत संघर्ष
आत्मशक्ति पर निर्भर हो !




भीतर बाहर
एक से...
कोई दुराव-छिपाव नहीं
व्यवहारगत सच्चाइयां
मन प्राण का दर्पण हो !




सच के लिये
लड़ाई में
निजी स्वार्थों के हाथों
कभी न आत्मसमर्पण हो !



-अनुपमा पाठक

बुधवार 1,जनवरी 2014 की मधुरिमा में प्रकाशित रचना

1 टिप्पणी:

  1. होगा कभी जरूर होगा
    जब हर कोई कह रहा होगा
    नहीं होगी जरूरत
    कहने की कि कुछ हो
    क्योंकि सबकुछ अपने आप
    हो रहा होगा :)

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