मान-अभिमान से परे
रूठने-मनाने के सिलसिले-सा
कुछ तो भावुक आकर्षण हो !
किनारे पर रेत से घर बनाता
और अगले पल उसे तोड़-छोड़
आगे बढ़ता -सा
भोला-भाला जीवन दर्शन हो !
नमी सुखाती हुई
रूखी हवा के विरुद्ध
नयनों से बहता निर्झर हो !
परिस्थितियों की दुहाई न देकर
अन्तःस्थिति की बात हो
शाश्वत संघर्ष
आत्मशक्ति पर निर्भर हो !
भीतर बाहर
एक से...
कोई दुराव-छिपाव नहीं
व्यवहारगत सच्चाइयां
मन प्राण का दर्पण हो !
सच के लिये
लड़ाई में
निजी स्वार्थों के हाथों
कभी न आत्मसमर्पण हो !
-अनुपमा पाठक
बुधवार 1,जनवरी 2014 की मधुरिमा में प्रकाशित रचना
रूठने-मनाने के सिलसिले-सा
कुछ तो भावुक आकर्षण हो !
किनारे पर रेत से घर बनाता
और अगले पल उसे तोड़-छोड़
आगे बढ़ता -सा
भोला-भाला जीवन दर्शन हो !
नमी सुखाती हुई
रूखी हवा के विरुद्ध
नयनों से बहता निर्झर हो !
परिस्थितियों की दुहाई न देकर
अन्तःस्थिति की बात हो
शाश्वत संघर्ष
आत्मशक्ति पर निर्भर हो !
भीतर बाहर
एक से...
कोई दुराव-छिपाव नहीं
व्यवहारगत सच्चाइयां
मन प्राण का दर्पण हो !
सच के लिये
लड़ाई में
निजी स्वार्थों के हाथों
कभी न आत्मसमर्पण हो !
-अनुपमा पाठक
बुधवार 1,जनवरी 2014 की मधुरिमा में प्रकाशित रचना
होगा कभी जरूर होगा
जवाब देंहटाएंजब हर कोई कह रहा होगा
नहीं होगी जरूरत
कहने की कि कुछ हो
क्योंकि सबकुछ अपने आप
हो रहा होगा :)