रविवार, 31 दिसंबर 2017

दही का इन्तजाम


गुप्ता जी जब लगभग पैंतालीस वर्ष के थे तब उनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया था। लोगों ने दूसरी शादी की सलाह दी परन्तु गुप्ता जी ने यह कहकर मना कर दिया कि पुत्र के रूप में पत्नी की दी हुई भेंट मेरे पास हैं, इसी के साथ पूरी जिन्दगी अच्छे से कट जाएगी।

पुत्र जब वयस्क हुआ तो गुप्ता जी ने पूरा कारोबार पुत्र के हवाले कर दिया। स्वयं कभी मंदिर और आॅफिस में बैठकर समय व्यतीत करने लगे। 

पुत्र की शादी के बाद गुप्ता जी और अधिक निश्चित हो गये। पूरा घर बहू को सुपुर्द कर दिया।

पुत्र की शादी के लगभग एक वर्ष बाद दुपहरी में गुप्ता जी खाना खा रहे थे, पुत्र भी ऑफिस से आ गया था और हाथ–मुँह धोकर खाना खाने की तैयारी कर रहा था। 

उसने सुना कि पिता जी ने बहू से खाने के साथ दही माँगा और बहू ने जवाब दिया कि आज घर में दही उपलब्ध नहीं है। खाना खाकर पिताजी ऑफिस चले गये। 

पुत्र अपनी पत्नी के साथ खाना खाने बैठा। खाने में प्याला भरा हुआ दही भी था। पुत्र ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी और खाना खाकर स्वयं भी ऑफिस चला गया।

लगभग दस दिन बाद पुत्र ने गुप्ता जी से कहा- ‘‘ पापा आज आपको कोर्ट चलना है,आज आपका विवाह होने जा रहा है।’’ 

पिता ने आश्चर्य से पुत्र की तरफ देखा और कहा-‘‘बेटा मुझे पत्नी की आवश्यकता नही है और मैं तुझे इतना स्नेह देता हूँ कि शायद तुझे भी माँ की जरूरत नहीं है, फिर दूसरा विवाह क्यों?’’

पुत्र ने कहा ‘‘ पिता जी, न तो मै अपने लिए माँ ला रहा हूँ न आपके लिए पत्नी,
मैं तो केवल आपके लिये दही का इन्तजाम कर रहा हूँ। 

कल से मै किराए के मकान मे आपकी बहू के साथ रहूँगा तथा ऑफिस मे एक कर्मचारी की तरह वेतन लूँगा ताकि आपकी बहू को दही की कीमत का पता चले।’’
संकलित....पर महत्वपूर्ण...

रविवार, 17 दिसंबर 2017

आजादी.....मीना पाण्डेय

पहली रोटी मैंने अभी तवे पर डाली ही थी।

‘माँ, मैं कैसी लग रही हूँ ?‘ रोहिणी ने आते ही पूछा।  मैं कुछ कहती इससे पहले उसका फोन बजने लगा। वह जल्दी से बालकनी की तरफ चली गयी बात करने। पर आधे मिनट बाद ही लौट भी आई, थोड़े उखड़े मूड में।

‘ मां, ये आदमी भी कितना अजीब है न ? ‘

‘ कौन? ‘

‘अरे वही जो पीछे वाले फ्लैट में रहता है। ‘

‘क्यों क्या हुआ ? ‘

‘ मैं फोन पर बात कर रही थी बालकनी में,और देखो सिर्फ गंजी और चड्डे में आ कर वह अपनी बालकनी में खड़ा हो गया सामने। बदतमीज!! इतना भी नहीं पता की लड़कियों और औरतों के सामने कैसे कपड़े पहन कर आते हैं। ‘

‘ बात तो तुम्हारी सही है,उसे बाहर वालों के सामने ढंग के कपड़े पहनने चाहिए।’

‘बिलकुल, और नहीं तो क्‍या ! ‘

‘ लेकिन इसका एक और पहलू भी है। ‘

‘वो क्या माँ ? ‘

‘ उसे या किसी को भी पूरा हक़ है अपने घर में अपने तरीके से कपड़े पहनने और रहने का। और घर ही क्यों, बाहर भी। नहीं क्या ? ‘

‘हाँ माँ ,पर…..।  ‘

‘ पर क्या ? ये आजादी तो तुम भी चाहती हो न। ‘

बात तो सही थी, यह आजादी तो वह भी चाहती थी। पर क्‍या सचमुच यह आजादी का मामला है…?  रोहिणी सोच रही थी।


-मीना पाण्डेय

रविवार, 10 दिसंबर 2017

इज़्ज़त का सवाल....गोवर्धन यादव


                              शादी से पूर्व सरला ने अपना निर्णय कह सुनाया था कि अभी वह और आगे पढ़ना चाहती है। जब उसके होने वाले भावी पति ने अपनी सहमती जतलाते हुए उससे वादा किया था कि शादी के बाद वह आगे पढ़ सकती है और समय आने पर कोई अच्छी सी नौकरी भी कर सकती है। इसी आश्वासन के बाद वह शादी करने के लिए राज़ी हो पायी थी।

                  ससुराल में रहते हुए वह घर के सारे काम निपटाती और समय बचाकर अपनी पढ़ाई में जुट जाती। बीए तो वह पहले ही कर चुकी थी। उसने अब एम.ए. करने के फ़ार्म आदि भर दिए थे। एक समय आया कि उसने पूरे संभाग में प्रथम स्थान बनाया था। घर का हर सदस्य उसकी तारीफ़ करते नहीं अघाता था।

                   एम.ए. में प्रथम स्थान बना चुकने के बाद उसने पी.एस.सी. की परीक्षाएँ देने का मानस बनाया। कड़ी मेहनत और लगन ने वह सब कर दिखाया जिसकी उसने कभी कल्पना की थी। उसे तो अब पूरा विश्वास हो चला था कि यदि वह यू.पी.पी.एस.सी. की परीक्षा दे दे तो उसमे में सफलता हासिल कर सकती है।

                   पी.एस.सी. का रिज़ल्ट आने के कुछ समय बाद पर्सनल इंटरव्यू दिया और वह उसमें भी उत्तीर्ण हो गई। कुछ समय पश्चात उसकी पोस्टिंग तहसीलदार के पद पर हो गई। एक ओर उसे अपनी सफलता पर नाज़ हो रहा था तो दूसरी तरफ़ घर में हंगामा मचा हुआ था। घर के सारे लोग इस बात पर ख़ुश हो रहे थे जबकि उसका पति अवसाद में घिरा बैठा था। वह नहीं चाहता था कि जिस तहसील कार्यालय में वह एक मामूली बाबू की हैसियत से काम कर रहा है, उसकी बीवी उसी आफ़िस में उसकी बॉस बनकर काम करे।
...........गोवर्धन यादव