शनिवार, 11 जनवरी 2014

मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आएंगे.........दुष्यंत कुमार

 
मेरे स्वप्न तुम्हारे पास सहारा पाने आएंगे
इस बूढ़े पीपल की छाया में सुस्ताने आएंगे

हौले-हौले पांव हिलाओ जल सोया है छेड़ो मत
हम सब अपने-अपने दीपक यहीं सिराने आएंगे

थोड़ी आँच बची रहने दो थोड़ा धुआं निकलने दो
तुम देखोगी इसी बहाने कई मुसाफिर आएंगे

उनको क्या मालूम निरूपित इस सिकता पर क्या बीती
वे आये तो यहां शंख सीपियां उठाने आएंगे

फिर अतीत के चक्रवात में दृष्टि न उलझा लेना तुम
अनगिन झोंके उन घटनाओं को दोहराने आएंगे

रह-रह आँखो में चुभती है पथ की निर्जन दोपहरी
आगे और बढ़े तो शायद दृष्य सुहानें आएंगे

मेले में भटके तो कोई घर पहुंचा जाता
हम घर में भटके हैं कैसे ठौर-ठिकाने आएंगे

हम क्यों बोलें कि इस आंधी में कई घरौंदे टूट गये
इन असफल निर्मितियों के शव कल पहचाने जाएंगे

हम इतिहास नहीं रच पाए इस पीड़ा में दहते हैं
अब जो धारायें पकड़ेंगे इसी मुहाने आएंगे

-दुष्यंत कुमार
मधुरिमा, बुधवार, 8 जनवरी 2014

2 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर रचना....
    शुभकामनाएं!!

    अनु

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  2. बरसों बाद इस कविता को यहाँ पढ़ा, कॉलज की यादें ताजा हो गई...बहुत शुक्रिया

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