मंगलवार, 31 जनवरी 2017

चार मित्र .......




बहुत समय पहले की बात है। एक छोटा सा नगर था जहां चार बहुत ही घनिष्ठ मित्र रहते थे। उनमें एक था राजकुमार, दूसरा मंत्री का पुत्र, तीसरा सहूकार का लड़का और चौथा एक किसान का बेटा। चारों साथ साथ खाते पीते और खेलते घूमते थे।
एक दिन किसान ने अपने पुत्र से कहा "देखो बेटा तुम्हारे तीनों साथी धनवान हैं और हम गरीब हैं। भला धरती और आसमान का क्या मेल।
लड़का बोला " नहीं पिताजी मैं उनका साथ नहीं छोड़ सकता। बेशक यह घर छोड़ सकता हूं।”
बाप यह सुनकर आगबबूला हो गया और लड़के को तुरंत घर से निकल जाने की आज्ञा दे दी। लड़के ने भी राम की भांति अपने पिता की आज्ञा शिरोधार्य कर ली और सीधा अपने मित्रो के पास जा पहुंचा। उन्हें सारी बात बताई। सबने तय किया कि हम भी अपना अपना घर छोड़कर मित्र के साथ जायंगे। इसके बाद सबने अपने घर और गांव से विदा ले ली और वन की ओर चल पड़े।धीरे धीरे सूरज पश्चिम के समुन्दर में डूबता गया और धरती पर अंधेरा छाने लगा। चारों वन से गुजर रहे थे। काली रात थी। वन में तरह तरह की आवाजें सुनकर सब डरने लगे। उनके पेट में भूख के मारे चूहे दौड़ रहे थे। किसान के पुत्र ने देखा एक पेड़ के नीचे बहुत से जुगनू चमक रहे हैं।वह अपने साथियों को वहां ले गया और उन्हें पेड़ के नीचे सोने के लिए कहा। तीनों को थका मांदा देखकर उसका दिल भर गया। बोला "तुम लोगों ने मेरी खातिर नाहक यह मुसीबत मोल ली।”
सबने उसे धीरज बंधाया और कहा "नहीं नहीं यह कैसे हो सकता है कि हमारा एक साथी भूखा प्यासा भटकता रहे और हम अपने अपने घरों में मौज उड़ायें। जीयेंगे तो साथ मरेंगे तो साथ साथ।” थोड़ी देर बाद वे तीनों सो गये पर किसान के लड़के की आंख में नींद कहां उसने भगवान से प्रार्थना की "अगर तू सचमुच कहीं है तो मेरी पुकार सुनकर आ जा और मेरी मदद कर।”
उसकी पुकार सुनकर भगवान एक साधु के रूप में वहां आ गये। लड़के से कहा "मांग ले जो कुछ मांगना है। यह देख इस थैली में हीरे जवाहरात भरे हैं।”
लड़के ने कहा "नहीं मुझे हीरे नहीं चाहिए। मेरे मित्र भूखे हैं। उन्हें कुछ खाने को दे दो।”
साधु ने कहा "मैं तुम्हें राज की एक बात बताता हूं। वह जो सामने पेड़ है न आम का उस पर चार आम लगे हैं एक पूरा पका हुआ, दूसरा उससे कुछ कम पका हुआ, तीसरा उससे कम पका हुआ और चौथा कच्चा।”
"इसमें राज की कौन सी बात है" लड़के ने पूछा।
साधु ने कहा "ये चारों आम तुम लोग खाओ। तुममें से जो पहला आम खायगा वह राजा बन जायगा। दूसरा आम खाने वाला राजा का मंत्री बन जायगा। जो तीसरा आम खायगा उसके मुंह से हीरे निकलेंगे और चौथा आम खानेवाले को उमर कैद की सजा भोगनी पड़ेगी।”
इतना कहकर बूढ़ा आंख से ओझल हो गया।तड़के सब उठे तो किसान के पुत्र ने कहा "सब मुंह धो लो।” फिर उसने कच्चा आम अपने लिए रख लिया और बाकी आम उनको खाने के लिए दे दिये। सबने आम खा लिये। पेट को कुछ आराम पहुंचा तो सब वहां से चल पड़े। काफी देर तक चलते रहने से सबको फिर से भूख प्यास लग आई।रास्ते में एक कुआं दिखाई दिया। वहां राजकुमार ने मुंह धोने के इरादे से पानी पिया और फिर थूक दिया तो उसके मुंह से तीन हीरे निकल आये। उसे हीरे की परख थी। उसने चुपचाप हीरे अपनी जेब में रख लिए। दूसरे दिन सुबह एक राजधानी में पहुंचने के बाद उसने एक हीरा निकालकर मंत्री के पुत्र को दिया और खाने के लिए कुछ ले आने को कहा। वह हीरा लेकर बाजार पहुंचा ता देखता क्या है कि रास्ते में बहुत से लोग जमा हो गये हैं। गाजे बाजे के साथ एक हाथी आ रहा है।
उसने एक आदमी से पूछा "यह शोर कैसा है"
"अरे तुम्हें नहीं मालूम!" उस आदमी ने विस्मय से कहा।
" नहीं तो।”
"यहां का राजा बिना संतान के मर गया है। अब शासन चलाने के लिए कोई तो राजा चाहिए। इसलिए इस हाथी को रास्ते में छोड़ा गया है। वही राजा चुनेगा।”
"सो कैसे"
"हाथी की सूंड में वह माला देख रहे हो न, हाथी जिसके गले में यह माला डालेगा वही हमारा राजा बन जायगा। देखो वह हाथी इसी ओर आ रहा है। एक तरफ हट जाओ।”
लड़का रास्ते के एक ओर हटकर खड़ा हो गया। हाथी ने उसके पास आकर अचानक उसी के गले में माला डाल दी। इसी प्रकार मंत्री का पुत्र राजा बन गया। उसने पूरा पका हुआ आम जो खाया था। वह राजवैभव में अपने सभी मित्रों को भूल गया। बहुत समय बीतने पर भी जब वह नहीं लौटा तो यह देखकर राजकुमार ने दूसरा हीरा निकाला और साहूकार के पुत्र को देकर कुछ लाने को कहा। वह हीरा लेकर बाजार पहुंचा। राज को राजा मिल गया था पर मंत्री के अभाव की पूर्ति करनी थी इसलिए हाथी को माला देकर दुबारा भेजा गया। किस्मत की बात कि अब हाथी ने एक दुकान के पास खड़े साहूकार के पुत्र को ही माला पहनाई। वह भी मंत्री बन गया और दोस्तों को भूल गया। इधर राजकुमार और किसान के लड़के का भूख के मारे बुरा हाल हो रहा था।
फिर किसान के पुत्र ने कहा "अब मैं ही खाने की कोई चीज ले आता हूं।”
राजकुमार ने बचा हुआ तीसरा हीरा उसे सौंप दिया। वह एक दुकान में गया। खाने की चीजें लेकर उसने अपने पास वाला हीरा दुकानदार की हथेली पर रख दिया। फटेहाल लड़के के पास कीमती हीरा देखकर दुकानदार को शक हुआ कि हो न हो इस लड़के ने जरूर ही यह हीरा राजमहल से चुराया होगा। उसने तुरंत पुलिस के सिपाहियों को बुलाया। जिन्होने किसान के लड़के की एक न सुनी और उसे गिरफ्तार कर लिया। दूसरे दिन उसे उमर कैद की सजा सुना दी गई। यह प्रताप था उस कच्चे आम का।
उधर बेचारा राजकुमार मारे चिंता के परेशान था। वह सोचने लगा यह बड़ा विचित्र नगर है। मेरा एक भी मित्र वापस नहीं आया। ऐसे नगर में न रहना ही अच्छा। वह दौड़ता हुआ वहां से निकला और दूसरे गांव के पास पहुंचा। रास्ते में उसे एक किसान मिला जो सिर पर रोटी की पोटली रखे अपने घर लौट रहा था। किसानने उसे अपने साथ ले लिया और भोजन के लिए अपने घर ले गया। किसान के घर पहुंचने के बाद राजकुमार ने देखा कि किसान की हालत बड़ी खराब है। किसान ने उसे अच्छी तरह नहलाया और कहा "किसी समय मैं गांव का मुखिया हुआ करता था। रोज तीस लोगों को दान देता था, पर अब कौड़ी कौड़ी के लिए मोहताज हूं।"
राजकुमार बड़ा भूखा था उसे जो रूखीसूखी रोटी मिली उसे खा पीकर सो गया। दूसरे दिन सुबह उठने के बाद जब उसने मुंह धोया तो फिर मुंह से तीन हीरे निकले। वे हीरे उसने किसान को दे दिये। किसान फिर धनवान बन गया। राजकुमार वहीं उनके रहने लगा और किसान भी उससे पुत्रवत् प्रेम करने लगा। किसान के खेत में काम करने वाली एक औरत से यह सब देखा नहीं गया। उसने एक वेश्या को सारी बात सुनाकर कहा "उस लड़के को भगाकर ले आओ तो तुम्हें इतना धन मिलेगा कि जिन्दगी भर चैन की बंसी बजाती रहोगी।”
अब वेश्या जा पहुंची किसान के घर और कहने लगी "मैं इसकी मां हूं। यह दुलारा मेरी आंखों का तारा है। मैं इसके बिना कैसे जी सकूंगी इसे मेरे साथ भेज दो।” किसान को उसकी बात जंच गई। राजकुमार भी भुलावे में आकर उसके पीछे पीछे चल दिया। घर आने पर वेश्या ने राजकुमार को खूब शराब पिलाई। उसने सोचा लड़का उल्टी करेगा तो बहुत से हीरे एक साथ निकल आयंगे। उसकी इच्छा के अनुसार लड़के को उल्टी तो हो गई, लेकिन हीरा एक भी नहीं निकला। क्रोधित होकर उसने राजकुमार को बहुत पीटा और उसे किसान के मकान के पीछे एक गडढे में डाल दिया। राजकुमार बेहोश हो गया था। होश में आने पर उसने सोचा अब किसान के घर जाना ठीक नहीं होगा इसलिए उसने बदन पर राख मल ली और संन्यासी बनकर वहां से चल दिया। रास्ते में उसे एक रस्सी पड़ी हुई दिखाई दी। जैसे ही उसने रस्सी उठाई वह अचानक सुनहरे रंग का तोता बन गया।
तभी आकाशवाणी हुई "एक राजकुमारी ने प्रण किया है कि वह सुनहरे तोते के साथ ही ब्याह करेगी।”अब तोता मुक्त रूप से आसमान में उड़ता हुआ देश विदेश की सैर करने लगा। होते होते एक दिन वह उसी राजमहल के पास पहुंचा जहां की राजकुमारी दिन रात सुनहरे तोते की राह देख रही थी और दिनों दिन दुबली होती जा रही थी। उसने राजा से कहा "मैं इस सुनहरे तोते के साथ ही ब्याह करूंगी।”
राजा को बड़ा दुख हुआ कि ऐसी सुन्दर राजकुमारी एक तोते के साथ ब्याह करेगी पर उसकी एक न चली। आखिर सुनहरे तोते के साथ राजकुमारी का ब्याह हो गया। ब्याह होते ही तोता पुन: अपने राजकुमार वाले रूप में बदल गया। यह देखकर राजा तो खुशी से झूम उठा। उसने अपनी पुत्री को अपार सम्पत्ति नौकर चाकर घोड़े-हाथी औरआधा राज्य भी भेंट स्वरूप दे दिया। नये राजा रानी अपने घर जाने निकले। 

अब राजकुमार को अपने मित्रों की याद आई। उसने पड़ोस के राज्य की राजधानी पर हमला करने की घोषणा की पर लड़ाई आरंभ होने से पहले ही उस राज्य का राजा अपने सरदारों सहित राजकुमार से मिलने आया। उसने अपना राज्य राजकुमार के हवाले करने की तैयारी बताई। राजा की आवाज से राजकुमार ने उसे पहचान लिया और उससे कहा "क्यों मित्र तुमने मुझे पहचाना नहीं"
दोनों ने एक दूसरे को पहचाना तो दोनों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। अब दोनों ने मिलकर अपने साथी किसान के पुत्र को खोजना आरम्भ किया तो पता चला कि वो तो कारावास में बंद उम्रकैद की सजा भुगत रहा है। राजकुमार को यह बात खलने लगी कि उसकी खातिर मित्र को इतना कष्ट भुगतना पड़ा।किसान के पुत्र को कारागार से मुक्त कराया गया । सब फिर से इकट्ठे हो गए।इसके बाद सबने अपनी अपनी सम्पत्ति एकत्र की और उसके चार बराबर हिस्से किए। सबको एक एक हिस्सा दे दिया गया। सब अपने गांव वापस आ गये और सपरिवार सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगे।

सोमवार, 30 जनवरी 2017

मूर्ख कौन? ....रचनाकार अज्ञात


किसी गांव में एक सेठ रहता था. उसका एक ही बेटा था, जो व्यापार के काम से परदेस गया हुआ था. सेठ की बहू एक दिन कुएँ पर पानी भरने गई. घड़ा जब भर गया तो उसे उठाकर कुएँ के मुंडेर पर रख दिया और अपना हाथ-मुँह धोने लगी. तभी कहीं से चार राहगीर वहाँ आ पहुँचे. एक राहगीर बोला, “बहन, मैं बहुत प्यासा हूँ. क्या मुझे पानी पिला दोगी?”

सेठ की बहू को पानी पिलाने में थोड़ी झिझक महसूस हुई, क्योंकि वह उस समय कम कपड़े पहने हुए थी. उसके पास लोटा या गिलास भी नहीं था जिससे वह पानी पिला देती. इसी कारण वहाँ उन राहगीरों को पानी पिलाना उसे ठीक नहीं लगा.

बहू ने उससे पूछा, “आप कौन हैं?”

राहगीर ने कहा, “मैं एक यात्री हूँ”

बहू बोली, “यात्री तो संसार में केवल दो ही होते हैं, आप उन दोनों में से कौन हैं? अगर आपने मेरे इस सवाल का सही जवाब दे दिया तो मैं आपको पानी पिला दूंगी. नहीं तो मैं पानी नहीं पिलाऊंगी.”

बेचारा राहगीर उसकी बात का कोई जवाब नहीं दे पाया.

तभी दूसरे राहगीर ने पानी पिलाने की विनती की.

बहू ने दूसरे राहगीर से पूछा, “अच्छा तो आप बताइए कि आप कौन हैं?”

दूसरा राहगीर तुरंत बोल उठा, “मैं तो एक गरीब आदमी हूँ.”

सेठ की बहू बोली, “भइया, गरीब तो केवल दो ही होते हैं. आप उनमें से कौन हैं?”

प्रश्न सुनकर दूसरा राहगीर चकरा गया. उसको कोई जवाब नहीं सूझा तो वह चुपचाप हट गया.

तीसरा राहगीर बोला, “बहन, मुझे बहुत प्यास लगी है. ईश्वर के लिए तुम मुझे पानी पिला दो”

बहू ने पूछा, “अब आप कौन हैं?”

तीसरा राहगीर बोला, “बहन, मैं तो एक अनपढ़ गंवार हूँ.”

यह सुनकर बहू बोली, “अरे भई, अनपढ़ गंवार तो इस संसार में बस दो ही होते हैं. आप उनमें से कौन हैं?”

बेचारा तीसरा राहगीर भी कुछ बोल नहीं पाया.

अंत में चौथा राहगीह आगे आया और बोला, “बहन, मेहरबानी करके मुझे पानी पिला दें. प्यासे को पानी पिलाना तो बड़े पुण्य का काम होता है.”

सेठ की बहू बड़ी ही चतुर और होशियार थी, उसने चौथे राहगीर से पूछा, “आप कौन हैं?”

वह राहगीर अपनी खीज छिपाते हुए बोला, “मैं तो..बहन बड़ा ही मूर्ख हूँ.”

बहू ने कहा, “मूर्ख तो संसार में केवल दो ही होते हैं. आप उनमें से कौन हैं?”

वह बेचारा भी उसके प्रश्न का उत्तर नहीं दे सका. चारों पानी पिए बगैर ही वहाँ से जाने लगे तो बहू बोली, “यहाँ से थोड़ी ही दूर पर मेरा घर है. आप लोग कृपया वहीं चलिए. मैं आप लोगों को पानी पिला दूंगी”

चारों राहगीर उसके घर की तरफ चल पड़े. बहू ने इसी बीच पानी का घड़ा उठाया और छोटे रास्ते से अपने घर पहुँच गई. उसने घड़ा रख दिया और अपने कपड़े ठीक तरह से पहन लिए.

इतने में वे चारों राहगीर उसके घर पहुँच गए. बहू ने उन सभी को गुड़ दिया और पानी पिलाया. पानी पीने के बाद वे राहगीर अपनी राह पर चल पड़े.

सेठ उस समय घर में एक तरफ बैठा यह सब देख रहा था. उसे बड़ा दुःख हुआ. वह सोचने लगा, इसका पति तो व्यापार करने के लिए परदेस गया है, और यह उसकी गैर हाजिरी में पराए मर्दों को घर बुलाती है. उनके साध हँसती बोलती है. इसे तो मेरा भी लिहाज नहीं है. यह सब देख अगर मैं चुप रह गया तो आगे से इसकी हिम्मत और बढ़ जाएगी. मेरे सामने इसे किसी से बोलते बतियाते शर्म नहीं आती तो मेरे पीछे न जाने क्या-क्या करती होगी. फिर एक बात यह भी है कि बीमारी कोई अपने आप ठीक नहीं होती. उसके लिए वैद्य के पास जाना पड़ता है. क्यों न इसका फैसला राजा पर ही छोड़ दूं. यही सोचता वह सीधा राजा के पास जा पहुँचा और अपनी परेशानी बताई. सेठ की सारी बातें सुनकर राजा ने उसी वक्त बहू को बुलाने के लिए सिपाही बुलवा भेजे और उनसे कहा, “तुरंत सेठ की बहू को राज सभा में उपस्थित किया जाए.”

राजा के सिपाहियों को अपने घर पर आया देख उस सेठ की पत्नी ने अपनी बहू से पूछा, “क्या बात है बहू रानी? क्या तुम्हारी किसी से कहा-सुनी हो गई थी जो उसकी शिकायत पर राजा ने तुम्हें बुलाने के लिए सिपाही भेज दिए?”

बहू ने सास की चिंता को दूर करते हुए कहा, “नहीं सासू मां, मेरी किसी से कोई कहा-सुनी नहीं हुई है. आप जरा भी फिक्र न करें.”

सास को आश्वस्त कर वह सिपाहियों से बोली, “तुम पहले अपने राजा से यह पूछकर आओ कि उन्होंने मुझे किस रूप में बुलाया है. बहन, बेटी या फिर बहू के रुप में? किस रूप में में उनकी राजसभा में मैं आऊँ?”

बहू की बात सुन सिपाही वापस चले गए. उन्होंने राजा को सारी बातें बताई. राजा ने तुरंत आदेश दिया कि पालकी लेकर जाओ और कहना कि उसे बहू के रूप में बुलाया गया है.

सिपाहियों ने राजा की आज्ञा के अनुसार जाकर सेठ की बहू से कहा, “राजा ने आपको बहू के रूप में आने के ले पालकी भेजी है.”

बहू उसी समय पालकी में बैठकर राज सभा में जा पहुँची.

राजा ने बहू से पूछा, “तुम दूसरे पुरूषों को घर क्यों बुला लाईं, जबकि तुम्हारा पति घर पर नहीं है?”

बहू बोली, “महाराज, मैंने तो केवल कर्तव्य का पालन किया. प्यासे पथिकों को पानी पिलाना कोई अपराध नहीं है. यह हर गृहिणी का कर्तव्य है. जब मैं कुएँ पर पानी भरने गई थी, तब तन पर मेरे कपड़े अजनबियों के सम्मुख उपस्थित होने के अनुरूप नहीं थे. इसी कारण उन राहगीरों को कुएँ पर पानी नहीं पिलाया. उन्हें बड़ी प्यास लगी थी और मैं उन्हें पानी पिलाना चाहती थी. इसीलिए उनसे मैंने मुश्किल प्रश्न पूछे और जब वे उनका उत्तर नहीं दे पाए तो उन्हें घर बुला लाई. घर पहुँचकर ही उन्हें पानी पिलाना उचित था.”

राजा को बहू की बात ठीक लगी. राजा को उन प्रश्नों के बारे में जानने की बड़ी उत्सुकता हुई जो बहू ने चारों राहगीरों से पूछे थे.

राजा ने सेठ की बहू से कहा, “भला मैं भी तो सुनूं कि वे कौन से प्रश्न थे जिनका उत्तर वे लोग नहीं दे पाए?”

बहू ने तब वे सभी प्रश्न दुहरा दिए. बहू के प्रश्न सुन राजा और सभासद चकित रह गए. फिर राजा ने उससे कहा, “तुम खुद ही इन प्रश्नों के उत्तर दो. हम अब तुमसे यह जानना चाहते हैं.”

बहू बोली, “महाराज, मेरी दृष्टि में पहले प्रश्न का उत्तर है कि संसार में सिर्फ दो ही यात्री हैं – सूर्य और चंद्रमा. मेरे दूसरे प्रश्न का उत्तर है कि बहू और गाय इस पृथ्वी पर ऐसे दो प्राणी हैं जो गरीब हैं. अब मैं तीसरे प्रश्न का उत्तर सुनाती हूं. महाराज, हर इंसान के साथ हमेशा अनपढ़ गंवारों की तरह जो हमेशा चलते रहते हैं वे हैं – भोजन और पानी. चौथे आदमी ने कहा था कि वह मूर्ख है, और जब मैंने उससे पूछा कि मूर्ख तो दो ही होते हैं, तुम उनमें से कौन से मूर्ख हो तो वह उत्तर नहीं दे पाया.” इतना कहकर वह चुप हो गई.

राजा ने बड़े आश्चर्य से पूछा, “क्या तुम्हारी नजर में इस संसार में सिर्फ दो ही मूर्ख हैं?”

“हाँ, महाराज, इस घड़ी, इस समय मेरी नजर में सिर्फ दो ही मूर्ख हैं.”

राजा ने कहा, “तुरंत बतलाओ कि वे दो मूर्ख कौन हैं.”

इस पर बहू बोली, “महाराज, मेरी जान बख्श दी जाए तो मैं इसका उत्तर दूं.”

राजा को बड़ी उत्सुकता थी यह जानने की कि वे दो मूर्ख कौन हैं. सो, उसने तुरंत बहू से कह दिया, “तुम निःसंकोच होकर कहो. हम वचन देते हैं तुम्हें कोई सज़ा नहीं दी जाएगी.”

बहू बोली, “महाराज, मेरे सामने इस वक्त बस दो ही मूर्ख हैं.” फिर अपने ससुर की ओर हाथ जोड़कर कहने लगी, “पहले मूर्ख तो मेरे ससुर जी हैं जो पूरी बात जाने बिना ही अपनी बहू की शिकायत राजदरबार में की. अगर इन्हें शक हुआ ही था तो यह पहले मुझसे पूछ तो लेते, मैं खुद ही इन्हें सारी बातें बता देती. इस तरह घर-परिवार की बेइज्जती तो नहीं होती.”

ससुर को अपनी गलती का अहसास हुआ. उसने बहू से माफ़ी मांगी. बहू चुप रही.

राजा ने तब पूछा, “और दूसरा मूर्ख कौन है?”

बहू ने कहा, “दूसरा मूर्ख खुद इस राज्य का राजा है जिसने अपनी बहू की मान-मर्यादा का जरा भी खयाल नहीं किया और सोचे-समझे बिना ही बहू को भरी राजसभा में बुलवा लिया.”

बहू की बात सुनकर राजा पहले तो क्रोध से आग बबूला हो गया, परंतु तभी सारी बातें उसकी समझ में आ गईं. समझ में आने पर राजा ने बहू को उसकी समझदारी और चतुराई की सराहना करते हुए उसे ढेर सारे पुरस्कार देकर सम्मान सहित विदा किया.

शनिवार, 21 जनवरी 2017

विश्व बैंक की रिपोर्ट व एक भिखारी से संवाद....सुदर्शन कुमार सोनी

एक लम्बी लघु कथा.......
भोपाल के बोर्ड ऑफ़िस चौराहे पर स्थित, "मोटल सिराज" से एक कार्यक्रम अटेंड कर मैं अपने ग़रीबखाने में वापिसी के लिये अपनी कार उठाने पैदल मुख्य सड़क के नीचे की सड़क पर जा रहा था कि थोड़ा आगे जाने पर मुझे मुख्य सड़क से लगी एक संकरी सीमेंट रोड पर दो शख़्स थोड़ी दूरी पर आमने-सामने बैठे दिखे। मैं रिश्तेदारी में एक जन्मदिन कार्यक्रम के लज़ीज़ खाने को उदरस्थ करने के उपरांत-की स्थिति में था। अतः मेरी नज़र दोनों भिखारियों पर चली गयी वह पालथी मारकर आमने-सामने बैठे थे और उनके सामने कई टिन फ़ॉयल रखी थी, कुछ खुल गयी थी कुछ बंद थी। बाजू में एक बाटली भी रखी दिख रही थी जिसमे पीले भूरे रंग का कोई द्रव भरा था। मेरी नज़रों ने तुरन्त पहचान लिया कि ये भाई दिनभर की कमाई के बाद अपना डिनर कर रहे हैं। साथ में बाटली से पैग भी मार लेते होंगे। क्योंकि बाटली कुछ खाली लग रही थी।
चूँकि हमारा पेट भरा हुआ था और आप तो जानते ही हैं कि जब पेट भरा हो तो समाजसेवा के लिये दिल बल्लियों उछलने लगता है। हम ठिठक गये भिखारी देखने नहीं उसके ठाठ का आकलन करने! और इसलिये भी हमें ज़्यादा कौतुक हो रहा था क्योंकि विश्व बैंक की ग़रीबी पर हालिया आयी रिपोर्ट हमें यहाँ प्रथम सही लग रही थी! ये भिखारी "हाथ कंगन को आरसी क्या" की उक्ति चरितार्थ कर रहे थे। "विश्व बैंक" ने अभी हाल में ही अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पूरे विश्व में ग़रीबी कम हो रही है, और इसकी कम होने की सबसे ज़्यादा दर भारत में रही है। बीस सौ पन्द्रह में भारत में ग़रीब कुल जनसंख्या का दस प्रतिशत से भी कम रहे थे। यह भारत जैसे देश के लिये एक अच्छी स्थिति कही जा सकती है, अब ये बात अलग है कि बहुत से लोग ग़रीबों की संख्या कम होने से दुखी हो रहे होंगे यह आप बेहतर जानते हो कि इसमें कौन-कौन हैं? और इसी का प्रत्यक्ष आकलन का मौक़ा सड़क किनारे बैठे भिखारियों के रूप में आ खड़ा होने से हमारे क़दम अपने आप ही रुक गये थे।
हम भिखारी से सवाल-जबाब के मूड में आ गये थे। इन दो भिखारियों को पहले वैसे हम कोई मज़दूर समझ रहे थे जो कि सड़क के किसी गड्ढे को पूरने का काम कर रहे होंगे या कि नये गड्ढे करने का काम कर रहे होंगे! और हम आप सब जानते ही हैं कि हमारे यहाँ नयी सड़क नगरनिगम या लोक-निर्माण विभाग के बनाने के बाद ही बीएसएनल या अन्य किसी मोबाईल कंपनी को केबल के लिये सड़क खोदने की याद आती है तो या तो हमने सोचा कि गड्ढा करने या गड्ढा पूरने के काम में लगे मज़दूर होंगे ये।
लेकिन हमारे इस सवाल पर भिखारी ने अजीब सा मुँह बनाया! बोला साहब मज़दूरी-वज़दूरी के काम में कुछ नहीं रखा ये सब हम कर के छोड़ चुके हैं घाटे का धंधा है?
मैंने आश्चर्य से कहा, कुछ नहीं रखा, आजकल तो भोपाल में मज़दूर को चार सौ रुपये से अधिक हर दिन मिलता है?
वह बोला तो इसमें कौन सी ख़ास बात है इससे अधिक ही हम रोज़ अपने इस नये काम में कमा लेते हैं! और उसने सामने बैठे अपने साथी भिखारी की ओर पुकार कर कहा क्यों भीखू ग़लत कह रहा हूँ क्या?
भीखू ने पहले तो एक घूँट हलक़ के अंदर किया फिर बोला लालू आज तो छैः सौ रही कमाई मेरी! तुम्हारी कितनी तो वह बोला छैः सौ तो नहीं पाँच सौ के लगभग रही।
मुझे यह सुन लगा कि जो कहते हैं कि अच्छे दिन नहीं आये हैं वे ग़लत हैं सबसे पहले तो इन्हीं के आये हैं! मैंने आगे कहा कि यह खाना वग़ैरह टिन फ़ॉयल में कहाँ से लाये हैं आप दोनों? ये पार्टी वाले दे गये होंगे? इस पर वह नाराज़ हो गया बोला साहब हम माँग कर नहीं खाते मेहनत की कमाई का खाते हैं! भीख माँगने का यह मतलब नहीं है कि हम खाना भी माँगें लोगों से! हमारे उसूल के ख़िलाफ़ है यह।
वह आगे बोला साहब लगता है अभी आपके पास टाईम ही टाईम है पेट भरा है न, ठीक है हम भी मस्ती में हैं तो बात कर लेते हैं! लेकिन धंधे के टाईम पर इस एमपीनगर में हमारे पास एक मिनट का भी समय नहीं रहता है! पूरे टाईम चौराहे में एक ओर की बत्ती लाल रहती है और हम बस यहीं पर कार वालों को लाचारी व विवशता की बत्ती देकर अपना काम करते हैं।
यह एमपीनगर है सामने देखो वो "अमित शुक्ला क्लासेस" फिर वो बोर्ड देखो "रिजवी सर" और न जाने कितने कोचिंग संस्थान है यहाँ अपने पूरे एमपी से आये कई हज़ार बच्चे फ़ास्ट फ़ूड खाकर ही ज़िंदा रहते हैं। इसमें कम से कम साफ़-सफ़ाई तो रहती है वैसे भी स्वच्छ भारत अभियान चल रहा है और सब हाथ में झाड़ू उठाकर फोटो खिंचवा चुके हैं! तो हमारा भी तो इस दिशा में कोई फ़र्ज़ बनता है!
मैं आश्चर्य चकित कि यह तो "उन्नत कृषक" की तरह "उन्नत भिखारी" है! वो आगे बोला कि साहब बनाने-खाने के लफड़े में कौन पड़े सौ रुपये से कम में खाना बढ़िया पैक आ जाता है। जो बुलाना है बुला लेते हैं और साथ एक बाटली ले आते हैं, तो दिन भर की थकान व ग़म दूर हो जाते हैं और उसने एक घूँट तुरन्त मार ली बाटली से, मैं देखता रह गया कि यह नये ज़माने के भिखारी हैं जो कि पैकड खाना खाते हैं। हम और आप बाहर का अवाईड करते हैं कि कौन पैसे ख़र्च करे लेकिन ये दिलेरी से ख़र्च करते हैं।
मेरे चुप रहने पर वह पिज़्ज़ा का एक टुकड़ा मुँह में अंदर ठूँसते हुये बोला, क्या सोच रहे हो साहब कि हम भिखारी होकर मिले खाने की जगह यह क्यों खा रहे है?
साहब ऐसा है अपने भी कुछ सिंद्धांत हैं हम कोई राजनैतिक दल या नेता नहीं हैं कि चाहे जब रंग बदल लें। हम भिक्षा में खाना नहीं लेते केवल नगदी लेते हैं।
मैंने कहा कि क्या रोज़ ही आप लोग "रेडी टू ईट" खाना खाते हो?" वह थोड़ा तल्ख़ होकर बोला क्या आप रोज़ खाना नहीं खाते हो जो ऐसा सवाल कर रहे हो? आज के ज़माने में कौन चिक-चिक करे हर चीज़ पैकड मिलती है और आप देख ही रहे हो कि कितना मोटर कारों का प्रदूषण है यहाँ यदि हम चूल्हा जला कर पकायेंगे तो एक बीमार हो जायेंगे दो कितना समय बरबाद होगा इतने में तो हम न जाने कितना कमा लेंगे भीख से? मैंने सोचा समय प्रबंधन की क्या सीख दी है इसने।
मैंने उत्सुकता से पूछा पानी कहाँ से लाते हो?
तो उसने मुस्कुराकर अपनी दाँयी ओर दबी एक दूसरी बाटली निकाल ली हम हैरान रह गये। यह मिनरल वाटर की बॉटल थी एक उसके बाँये ओर बाटली दूसरी दाँये ओर बाटली।
दूसरा भिखारी बोला, साहब बाहर का पानी पीना भी ख़तरे से खाली नहीं है? हम आश्चर्यचकित रह गये इनके यह ठाठ देखकर हम यहाँ से आगे ही नहीं बढ़ पा रहे थे। हमें लगा कि विश्व बैंक की रिपोर्ट कितनी सटीक रहती है! हम हमेशा से ही इसके पक्षधर रहे हैं! आज देखो इस देश का भिखारी भी मज़े कर रहा है! ग़रीबी कम हो रही है तभी तो यह स्थिति बनी है!
हम यह सोच ही रहे थे कि मोबाईल की रिंगटोन बजने की आवाज़ आयी हमें लगा कि हमारा मोबाईल बजा है। घर से बाहर हुये घंटा भर हो गया है अतः यह बीवी ने फोन पर घंटी का घंटा बजा दिया। जेब में हाथ डाला तो हमारा मोबाईल शांत था हमने पत्नी को मन ही मन धन्यवाद दिया। लेकिन साथ ही यह सोचा कि ज़रूर वह चैनल में कोई सास-बहु का अच्छा सीरियल देखने में व्यस्त हो गयी होगी नहीं तो ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि हर घंटे वह फोन पर हमारी क्लास न लें? हमने देखा कि भिखारी का मोबाईल बज रहा था जेब से उसने उसे निकाल कर बाहर कर दिया था।
मैंने कहा बात तो कर लो? कोई ख़ास बात होगी तो वह बोल उठा अरे साहब अपन रात को डिनर के समय फोन नहीं उठाते। और हमें मालूम है यह किसका होगा। इस समय हमारा अगले चौराहे पर बैठा दोस्त खा-पीकर मस्त हो गया होगा तो अब वह हमें इसी समय फोन करता है दिनभर की एक्सपीरिंयस शेयरिंग होती है। या बीट का सिपाही होगा स्साला आये दिन भीख माँगता है।
हम आश्चर्य-चकित थे कि ये तो पढ़ा-लिखा भिखारी जान पड़ता है! हमारी नज़र सामने हंटर बीयर के चमकते विज्ञापन पर गयी हमें लगा कि आज हमें इस भिखारी से साक्षात्कार होकर अंदर से हंटर की मार जैसा लग रहा है?
वह फिर बोल उठा साहब आपको कष्ट हो रहा है न कि हम जैसा भिखारी मिनरल वाटर व पैकड खाना व महँगी शराब पी रहा है? साहब सबकी अपनी-अपनी क़िस्मत है!
मैंने कहा लेकिन इस माँगने के काम में तुम्हे अपनी आत्मा कचोटती महसूस नहीं होती?
वह बोला इस देश में किसी की आत्मा किसी भी बात से कचोटती नहीं है। सब पहले की भाँति चलता रहता है चाहे विस्फोट में सौ लोग मर जायें, मिनी बस में गैंग रेप हो जाये, पुल टूटने पर दो लोग मर जायें, मंदिर में भगदड़ मचने से लोग मर जायएं बस उस पर थोड़ी सी तात्कालिक चर्चा होती है फिर सब पहले की ही तरह शांत हो जाता है! सब लोग फिर अपने अपने गुंताड़े (अपने अपने काम) में लग जाते हैं। यहाँ के नीच प्रकृति के लोग तो सर्जीकल स्ट्राईक पर भी सवाल उठाते हैं। वो जो चीन है वाल वाला वह भी कहता है सीमा पार कोई वाल या फेंसिग भारत लगायेगा तो गड़बड़ हो जायेगा!
मैंने सोचा कि इसे इतनी सब जानकारी कैसे है, तो वह भाँप गया बोला साहब यह भोपाल है। यहाँ अख़बारों की कमी नहीं है यहाँ हर हफ़्ते एक नया अख़बार निकलता है! जो बाल श्रम क़ानून के पालन की बात करते हैं वही अख़बार शाम तीन बजे से बच्चों के माध्यम से चौराहों पर बिकवाते हैं और हमारी यह स्थायी गद्दी है। हमें दो-तीन अख़बार मुफ़्त में मिलते हैं और फिर मुफ़्त के अख़बार को पढ़ने का अलग मज़ा है!
मैंने अब यहाँ से खिसक लेना ही उचित समझा। मैंने जाते-जाते देखा कि आखिरी घूँट लेने के बाद वे दोनों मस्ती में वही लुढ़क गये थे। मैंने सोचा कि दिलजले मानें या न मानें इस देश ने प्रगति न की होती तो क्या आज ये भिखारी पैकड खाना, मिनरल वाटर के साथ अच्छी शराब पी रहे होते और उसके बाद चैन की नींद!









-सुदर्शन कुमार सोनी

मंगलवार, 17 जनवरी 2017

आसरा,,,,,,,विरेंदर 'वीर' मेहता




"लाखों आशियाने पर एक रात का आसरा नहीं।" गली में किसी की पुकार सुन विश्वा ने कोठरी से बाहर देखा। उसका 'मोती' (कुत्ता) एक अजनबी फ़कीर पर भौंक रहा था। सहसा विश्वा को मजाक सूझा और वह अपनी 'बोतल' संभालकर हंस पड़ा। "चल जोगिया, आज की रात मैं बनता हूँ तेरा आसरा। पर एक शर्त है कि तुझे 'मदिरा' पीनी होगी मेरे साथ, क्योंकि मैं तो बिन पिये सोया नहीं आज तक।" 
"जैसी रब की मर्ज़ी।" फ़कीर भी हंसने लगा। "लेकिन बच्चा, अगर हम पियेंगे तो आज तू नहीं पियेगा। बोल क्या बोलता है?"
विश्वा सोच में पड़ गया लेकिन फिर मुस्कराने लगा। "ठीक है जोगिया आज यही सही।"
रात तो ग़ुज़रनी ही थी आख़िर गहरी होते-होते ग़ुज़र गयी। .........
"इतनी सुन्दर सुबह।" खो सा गया विश्वा।
"अच्छा बच्चा चलता हूँ अपने धर्म-कर्म की राह पर।" फ़कीर की आवाज़ से विश्वा सूर्योदय के जादू से बाहर आ गया। "बाबा। मैंने तो रात एक मज़ाक किया था और तुमने एक रात के आसरे के लिये अपना धर्म-कर्म सब खो दिया।"
"नहीं मेरे बच्चे, सिर्फ़ एक आसरे के लिये नही!" मुस्कराता हुआ फ़कीर चल दिया।
'पक्षियो की चहचहाट, नदी की हिलोरे लेती लहरें और चमत्कारी सूर्योदय' और भी कितना कुछ उसको देकर जा रहा था वह अलमस्त फ़कीर, मानो कह रहा हो। "मेरी एक रात ने तो तेरे सारे अंधेरे को समेट लिया बच्चा।"
पीछे-पीछे चल पड़ा था उसका प्यारा 'मोती' और विश्वा उन्हें जाते दूर तक देखता रहा, सिर्फ़ देखता रहा।
-विरेंदर 'वीर' मेहता