यही ज़िद है तो फिर हिस्सा सभी अपना उठाते हैं
अगर शबनम तुम्हारी है तो हम शोला उठाते हैं
जो हक़ के वास्ते सर अपने कटवाना ही गैरत है
तो ले दुनिया सर अपना और हम ऊंचा उठाते हैं
मुसलसल आँधियों को वरगलाना तुम रखो जारी
चिरागों की धधकती लौ का हम ज़िम्मा उठाते हैं
कई सुथरे घरानों की हक़ीक़त जानते होंगे
ये बच्चे रोज़ चौराहों से जो कूड़ा उठाते हैं
मुनासिब हो तो कितने हैं अना पर ज़ख्म गिन लेना
ये लो हम आज अपने आप से परदा उठाते हैं
किसी रिश्ते की जानिब फिर झुके जाते हैं ज़ेहन ओ दिल
चलो मुट्ठी में फिर एक रेत का दरिया उठाते हैं
चलो कुछ भूखे प्यासे बच्चों के चेहरे ग़ज़ल कर दें
चलो फुटपाथ पर चलकर कोई मिसरा उठाते हैं
('नये मरासिम' में प्रकाशित हो चुकी है)
सचिन अग्रवाल
अगर शबनम तुम्हारी है तो हम शोला उठाते हैं
जो हक़ के वास्ते सर अपने कटवाना ही गैरत है
तो ले दुनिया सर अपना और हम ऊंचा उठाते हैं
मुसलसल आँधियों को वरगलाना तुम रखो जारी
चिरागों की धधकती लौ का हम ज़िम्मा उठाते हैं
कई सुथरे घरानों की हक़ीक़त जानते होंगे
ये बच्चे रोज़ चौराहों से जो कूड़ा उठाते हैं
मुनासिब हो तो कितने हैं अना पर ज़ख्म गिन लेना
ये लो हम आज अपने आप से परदा उठाते हैं
किसी रिश्ते की जानिब फिर झुके जाते हैं ज़ेहन ओ दिल
चलो मुट्ठी में फिर एक रेत का दरिया उठाते हैं
चलो कुछ भूखे प्यासे बच्चों के चेहरे ग़ज़ल कर दें
चलो फुटपाथ पर चलकर कोई मिसरा उठाते हैं
('नये मरासिम' में प्रकाशित हो चुकी है)
सचिन अग्रवाल
वाह बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंमुसलसल आँधियों को वरगलाना तुम रखो जारी
जवाब देंहटाएंचिरागों की धधकती लौ का हम ज़िम्मा उठाते हैं
वाह ! बहुत ही सुंदर ! हर शेर दिल की गहराई से निकलता हुआ और प्रेरित करता हुआ ! बहुत खूब !
कल 25/01/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
कई सुथरे घरानों की हक़ीक़त जानते होंगे
जवाब देंहटाएंये बच्चे रोज़ चौराहों से जो कूड़ा उठाते हैं ....वाह..लाजवाब...बेजुबां कर दिया...
क्या नये मरासिम की और भी रचनायें पढ़ने को मिल सकती है सचिन जी
Ji facebook pe judkar aap mujhe padh sakte hain..... Aap sabhi ka bahut shukriya.......
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिखा है |
जवाब देंहटाएंआशा
वाह बहुत सुंदर ......
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ग़ज़ल
जवाब देंहटाएं