नींद टूटी और स्वर्णिम स्वप्न टूटे
थम नहीं पाई अभी तक
टूटने की यह कहानी!
सोचते जब चल पड़ें
परछाइयों का साथ छोड़ें
सामने अवरोध, उनकी
उठ रही बाहें मरोड़ें,
समय की घातक व्यवस्था
हौसलों को तोड़ देती
और गतिकामी चरण को
आँधियों में छोड़ देती,
किंतु अचरज, नहीं अब तक
जिन्दगी में हार मानी।
झेलती प्रतिरोध सारे
अस्मिता फिर भी बनी है
फिसल जाती, फिर संभालती
आस्था कितनी घनी है,
हर कदम रण-भूमि में है
और प्रतिपल का समर है
घात पर आघात सहकर
हौसला होता प्रखर है,
आग का दरिया, कमी है
राह पर घातक हिमानी!
थम नहीं पाई अभी तक
टूटने की यह कहानी!
थम नहीं पाई अभी तक
टूटने की यह कहानी!
सोचते जब चल पड़ें
परछाइयों का साथ छोड़ें
सामने अवरोध, उनकी
उठ रही बाहें मरोड़ें,
समय की घातक व्यवस्था
हौसलों को तोड़ देती
और गतिकामी चरण को
आँधियों में छोड़ देती,
किंतु अचरज, नहीं अब तक
जिन्दगी में हार मानी।
झेलती प्रतिरोध सारे
अस्मिता फिर भी बनी है
फिसल जाती, फिर संभालती
आस्था कितनी घनी है,
हर कदम रण-भूमि में है
और प्रतिपल का समर है
घात पर आघात सहकर
हौसला होता प्रखर है,
आग का दरिया, कमी है
राह पर घातक हिमानी!
थम नहीं पाई अभी तक
टूटने की यह कहानी!
-विद्यानंदन राजीव
सौजन्यः वेब दुनिया
सौजन्यः वेब दुनिया
ओज से परिपूर्ण तेजोमय रचना ! शुभकामनायें ! अति सुन्दर !
जवाब देंहटाएंबहुत खूब ... भावपूर्ण रचना ..
जवाब देंहटाएं