यहाँ कुछ लोग तो खुद को, खुदा ही मान बैठे हैं
कराते अपनी' ही पूजा बने भगवान बैठे हैं।
मगर है जुर्म औ दहशत, ही' कारोबार बस इनका
के हिन्दुस्तान में कैसे, ये' तालेबान बैठे हैं।
जिन्हें तो खुद भुगतनी है, सजा अपने ही' कर्मों की
न जाने और कितनों को दिये वरदान बैठे हैं।
हो' रहबर और रहजन की, भला पहचान कैसे अब
ये मुजरिम ही समस्या का लिए संज्ञान बैठे है।
लगाकर राम का आता, मुखौटा अब तो' रावण भी
न जाने औ छुपे कितने यहाँ शैतान बैठे हैं।
कोई किस्सा नहीं बस दर्ज ये तो इक हकीकत है
ये सब "होरी" यहाँ दिल में लिए "गोदान" बैठे हैं।
- राहुल कुमार (नयानगर, समस्तीपुर)
9776660562
रहजन= डाकू ; रहबर =मार्गदर्शक
सुन्दर!
जवाब देंहटाएंबहुत खूब।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंबहुत ही सटीक, सुन्दर,और सार्थक प्रस्तुति..।
जवाब देंहटाएंखूब कहा है !
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंकाम है शैतान का कहलाते भगवान् हैं
जवाब देंहटाएंसुन्दर ,बिना किसी लाग -लपेट के साफ़-साफ़ लिखना जनोन्मुखी रचना बन जाती है। वाह ! बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत सही। सामयिक रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार
हटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंमेरी रचना को पसंद करने के लिए आप सबका सहृदय धन्यवाद। facebook page पर मेरी रचना को पढ़ने के लिए rahul_kumar12aug@rediffmail.com पर आपका स्वागत है
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