मैंने देखा उसे ,वो शीशे में खुद को निहार रहा था ,होठों पर लिपस्टिक धीरे धीरे लगाकर काफी खुश दिख रहा था मानो उसे कोई खजाना मिल गया हो । बेहया एक लड़का होकर लडकियों जैसी हरकतें!
हां, इसके आलावा मैं और क्या सोच सकता था? आखिर मै ठहरा पुरुषप्रधान समाज का एक पुरुष ही न, जिसके सोचने की सीमा बड़ी संकरी है ।
उसके कमरे का दरवाजा खुला हुआ था बेहया के साथ ढीठ और बेशर्म भी ,जब लड़कियों जैसी हरकतें करनी ही थी तो बंद कमरे में करता। सबके सामने नुमाइश करने की क्या जरुरत है उसे?
‘दीप ये तुम क्या कर रहे हो? मैंने उससे पूछा। मेरे शब्दों में प्रश्न भी था और क्रोध भी । प्रश्न इसलिए क्योंकि मै जानना चाहता था कि वो होंठो पर लाली क्यों लगा रहा है और क्रोध इसलिए कि एक पुरुष होकर सजना संवरना!
‘अरे अर्जित, तुम कब आये? उसने खुश होकर पूछा। ऐसी हरकत के बाद ख़ुशी! ये तो बड़ा बेशर्म है मैंने मन ही मन सोचा । मैं उत्तर देने ही वाला था कि उसने एक और प्रश्न पूछ लिया, ‘मैं कैसा दिख रहा हूँ अर्जित?
‘एक नंबर के नचनिया लग रहे हो । ऐसा लग रहा मानो पूरी दुनिया दर्शक बन बैठी है और तुम्हें उनके सामने नाचकर उनका दिल हिलाना है।’ मैंने झुंझलाकर उत्तर दिया, ‘तुम स्त्रियों की भांति सज संवरकर कहा जा रहे हो हो?’
‘मैं डेट पर जा रहा हूं मित्र’ उसने थोड़ा शरमाकर कहा । उसका शरमाना मुझे जलाने के लिए काफी था।
‘यानि किसी पुरुष के साथ जा रहे हो डेट पर?’
‘हा हा हा, तुम पुरुष प्रधान समाज के लोग भी न? क्यों एक लड़का सज संवरकर किसी लड़की के साथ डेट पर चला जायेगा तो पाप हो जायेगा। ओह, तो मेरे प्यारे दोस्त को मेरा सजना संवरना अच्छा नहीं लगा।’ दीप ने मुझपर व्यंग्य कसा।
‘नहीं, मुझे मेरे दोस्त का लड़की बनना अच्छा नहीं लगा’ मैंने झट से उत्तर दिया।
‘क्यों? अगर मै होठों पर लाली लगा रहा ,सज सवर रहा तो क्या इससे मेरी मर्दानगी पर सवाल खड़ा हो जाता है? क्या मै मर्द नही दीखता?’
मै कुछ बोलने वाला ही था की दीप ने मुझे बीच में रोकर कहना शुरू किया, ‘आज जमाना कह रहा लड़के लडकियां बराबर है। अगर एक लड़की लडकों के रहन सहन को स्वीकार कर लेती है तो ज़माने को कोई दिक्कत नहीं पर अगर एक लड़का लड़की के रहन सहन को स्वीकारता है तो लोग उसे नचनिया ,बेशर्म ,बेहया कहना शुरू कर देते हैं। उसकी मर्दानगी पर सवाल खड़ा करते है। क्या एक पुरुष को सजने का अधिकार नहीं? क्या एक पुरुष को अच्छा दिखने का अधिकार नहीं? क्या होठों पर लिपस्टिक लगाने से मर्द ,मर्द नही रह जाता?
हां, इसके आलावा मैं और क्या सोच सकता था? आखिर मै ठहरा पुरुषप्रधान समाज का एक पुरुष ही न, जिसके सोचने की सीमा बड़ी संकरी है ।
उसके कमरे का दरवाजा खुला हुआ था बेहया के साथ ढीठ और बेशर्म भी ,जब लड़कियों जैसी हरकतें करनी ही थी तो बंद कमरे में करता। सबके सामने नुमाइश करने की क्या जरुरत है उसे?
‘दीप ये तुम क्या कर रहे हो? मैंने उससे पूछा। मेरे शब्दों में प्रश्न भी था और क्रोध भी । प्रश्न इसलिए क्योंकि मै जानना चाहता था कि वो होंठो पर लाली क्यों लगा रहा है और क्रोध इसलिए कि एक पुरुष होकर सजना संवरना!
‘अरे अर्जित, तुम कब आये? उसने खुश होकर पूछा। ऐसी हरकत के बाद ख़ुशी! ये तो बड़ा बेशर्म है मैंने मन ही मन सोचा । मैं उत्तर देने ही वाला था कि उसने एक और प्रश्न पूछ लिया, ‘मैं कैसा दिख रहा हूँ अर्जित?
‘एक नंबर के नचनिया लग रहे हो । ऐसा लग रहा मानो पूरी दुनिया दर्शक बन बैठी है और तुम्हें उनके सामने नाचकर उनका दिल हिलाना है।’ मैंने झुंझलाकर उत्तर दिया, ‘तुम स्त्रियों की भांति सज संवरकर कहा जा रहे हो हो?’
‘मैं डेट पर जा रहा हूं मित्र’ उसने थोड़ा शरमाकर कहा । उसका शरमाना मुझे जलाने के लिए काफी था।
‘यानि किसी पुरुष के साथ जा रहे हो डेट पर?’
‘हा हा हा, तुम पुरुष प्रधान समाज के लोग भी न? क्यों एक लड़का सज संवरकर किसी लड़की के साथ डेट पर चला जायेगा तो पाप हो जायेगा। ओह, तो मेरे प्यारे दोस्त को मेरा सजना संवरना अच्छा नहीं लगा।’ दीप ने मुझपर व्यंग्य कसा।
‘नहीं, मुझे मेरे दोस्त का लड़की बनना अच्छा नहीं लगा’ मैंने झट से उत्तर दिया।
‘क्यों? अगर मै होठों पर लाली लगा रहा ,सज सवर रहा तो क्या इससे मेरी मर्दानगी पर सवाल खड़ा हो जाता है? क्या मै मर्द नही दीखता?’
मै कुछ बोलने वाला ही था की दीप ने मुझे बीच में रोकर कहना शुरू किया, ‘आज जमाना कह रहा लड़के लडकियां बराबर है। अगर एक लड़की लडकों के रहन सहन को स्वीकार कर लेती है तो ज़माने को कोई दिक्कत नहीं पर अगर एक लड़का लड़की के रहन सहन को स्वीकारता है तो लोग उसे नचनिया ,बेशर्म ,बेहया कहना शुरू कर देते हैं। उसकी मर्दानगी पर सवाल खड़ा करते है। क्या एक पुरुष को सजने का अधिकार नहीं? क्या एक पुरुष को अच्छा दिखने का अधिकार नहीं? क्या होठों पर लिपस्टिक लगाने से मर्द ,मर्द नही रह जाता?
दीप के इन सवालों का जवाब मैं दे नहीं पाया।
मैं आज भी इन सवालों के जवाब ढूँढ़ ही रहा हूँ
-अर्जित पांडेय
छात्र, एम. टेक,आईआईटी,
दिल्ली
मोबाइल--7408918861
विचारणीय पोस्ट।
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