किसी मजार पर एक फ़क़ीर रहते थे। सैकड़ों भक्त उस मजार पर आकर दान-दक्षिणा चढ़ाते थे। उन भक्तों में एक बंजारा भी था। वह बहुत गरीब था फिर भी नियमानुसार आकर माथा टेकता, फ़क़ीर की सेवा करता और फिर अपने काम पर जाता। उसके कपडे का व्यवसाय था, कपड़ों की भारी पोटली कन्धों पर लिए सुबह से लेकर शाम तक गलियों में फेरी लगाता। एक दिन उस फ़क़ीर को उस पर दया आ गयी, उसने अपना गधा उसे भेंट कर दिया। अब तो बंजारे की आधी समस्याएं हल हो गयी।
वह सारे कपडे गधे पर लादता और जब थक जाता तो खुद भी गधे पर बैठ जाता। यूँ ही कुछ महीने बीत गए और फिर एक दिन गधे की मौत हो गयी। बंजारा बहुत दुखी हुई, उसने उसे उचित स्थान पर दफनाया, उसकी कब्र बनायीं और फूट-फूट के रोने लगा। समीप से जा रहे किसी व्यक्ति ने जब ये देखा तो सोचा जरूर ये किसी संत की मजार होगी। तभी ये आदमी यहाँ बैठकर अपना दुःख रो रहा है।
यह सोचकर उस व्यक्ति ने कब्र पर माथा टेका और अपनी मन्नत हेतु वहां प्रार्थना की और कुछ पैसे चढ़ाकर वहां से चला गया। कुछ दिनों के उपरांत ही उस व्यक्ति की कामना पूर्ण हो गयी। उसने खुशी के मारे सारे गावं में डंका बजाया कि अमुक स्थान पर एक बहुत बड़े फ़क़ीर की मजार हैं। वहां जाकर जो अरदास करो वो पूरी होती है। मन चाही मुरादें बख्शी जाती हैं वहां।
उस दिन से उस कब्र पर भक्तो का ताँता लगना शुरू हो गया। दूर-दराज से भक्त अपनी मुरादें बख्शाने वहां आने लगें। बंजारे की तो चांदी हो गयी, बैठे-बैठे उसे कमाई का साधन मिल गया था।
एक दिन वही फ़क़ीर, जिन्होंने बंजारे को अपना गधा भेंट स्वरुप दिया था वहां से गुजर रहे थे। उन्हें देखते ही बंजारे ने उनके चरण पकड़ लिए,”आपके गधे ने तो मेरी ज़िन्दगी बना दी। जब तक जीवित था तब तक मेरे रोजगार में मेरी मदद करता था और मरने के बाद मेरी जीविका का साधन बन गया है।”
फ़क़ीर हँसते हुए बोले,”बच्चा! जिस मजार पर तू नित्य माथा टेकने आता था वह मज़ार इस गधे के माँ की थी।”
Thanks for sharing this nice story, waise blog ka naam "हिन्दी एरा" है।
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंWill correct it,
Regards
Thanks
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