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अगर मेरे दिल पे हुकूमत न होती ।
तो फिर आपकी भी रियासत न होती ।।
पलट जाती कश्ती भी तूफां में मेरी ।
मेरे पास उनकी नसीहत न होती ।।
बहुत कुछ बदलते फ़िजा के नज़ारे ।
अगर आपकी कुछ सियासत न होती ।।
जरा सा भी वो थाम लेते जो दामन ।
यहां आसुओं की इज़ाफ़त न होती ।।
वो मेरा सुकूँ भी मेरे साथ रहता ।
अदाओं में थोड़ी शरारत न होती ।।
वो इंसाफ करता न अब तक जहां में ।
कहीं भी खुदा की इबादत न होती ।।
बरसते न बादल भी प्यासी जमीं पर ।
अगर आपकी कुछ इज़ाज़त न होती।।
मुहब्बत के रिश्ते न होते सलामत ।
तो फिर ताज जैसी इमारत न होती ।।
यूँ लहरा के जुल्फ़े न करतीं नुमाइश ।
तो अहले चमन में कयामत न होती ।।
तुम्हें बेवफा मान लेते जो पहले ।
कसम से वफ़ा की फ़जीहत न होती ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी
अच्छी रचना देशप्रेम पर आधारित बधाई नवीन मणि त्रिपाठी जी
जवाब देंहटाएंतुम्हें बेवफा मान लेते जो पहले ।
जवाब देंहटाएंकसम से वफ़ा की फ़जीहत न होती ।। सुन्दर!
नाज़ुक एहसासों को शब्द मिल गए। वाह !
जवाब देंहटाएंआदरणीया मेरी ग़ज़ल को इस महत्वपूर्ण पटल पर प्रकाशित करने हेतु हार्दिक आभार के साथ नमन ।
जवाब देंहटाएंआप यहाँ आए
हटाएंदिल बाग बाग हो गया
आभार...
सादर....