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रविवार, 27 अगस्त 2017

तुम्हें बेवफा मान लेते जो पहले...नवीन मणि त्रिपाठी

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अगर मेरे दिल पे हुकूमत न होती ।
तो फिर आपकी भी रियासत न होती ।।

पलट जाती कश्ती भी तूफां में मेरी ।
मेरे पास उनकी नसीहत न होती ।।

बहुत कुछ बदलते फ़िजा के नज़ारे ।
अगर आपकी कुछ सियासत न होती ।।

जरा सा भी वो थाम लेते जो दामन ।
यहां आसुओं की इज़ाफ़त न होती ।।

वो मेरा सुकूँ भी मेरे साथ रहता ।
अदाओं में थोड़ी शरारत न होती ।।

वो इंसाफ करता न अब तक जहां में ।
कहीं भी खुदा की इबादत न होती ।।

बरसते न बादल भी प्यासी जमीं पर ।
अगर आपकी कुछ इज़ाज़त न होती।।

मुहब्बत के रिश्ते न होते सलामत ।
तो फिर ताज जैसी इमारत न होती ।।

यूँ लहरा के जुल्फ़े न करतीं नुमाइश ।
तो अहले चमन में कयामत न होती ।।

तुम्हें बेवफा मान लेते जो पहले ।
कसम से वफ़ा की फ़जीहत न होती ।।
-- नवीन मणि त्रिपाठी