हनीमून से लौटते समय टैक्सी में बैठी जूही के मन में कई तरह
के विचार आ जा रहे थे. अजय ने उसे खयालों में डूबा देख
उस की आंखों के आगे हाथ लहरा कर पूछा, ‘‘कहां खोई हो? घर जाने का मन नहीं कर रहा है?’’
जूही मुसकरा दी, लेकिन ससुराल में आने वाले समय को ले कर उस के मन में कुछ घबराहट सी थी. दोनों शादी के 1 हफ्ते बाद ही सिक्किम घूमने चले गए थे. उन का प्रेमविवाह था. दोनों सीए थे और नरीमन में एक ही कंपनी में काम करते थे.
अजय ब्राह्मण परिवार का बड़ा बेटा था. पिता शिवमोहन एक प्राइवेट कंपनी में अच्छे पद पर थे. मम्मी शैलजा हाउसवाइफ थीं और छोटी बहन नेहा अभी कालेज में थी. अजय का घर मुलुंड में था.
पंजाबी परिवार की इकलौती बेटी जूही कांजुरमार्ग में रहती थी. जूही के पिता विकास डाक्टर थे और मां अंजना हाउसवाइफ थीं. दोनों परिवारों को इस विवाह पर कोई एतराज नहीं था. विवाह हंसीखुशी हो गया. जूही को जो बात परेशान कर रही थी वह यह थी कि उस के ऑफिस जानेआने का कोई टाइम नहीं था. अब तक तो घर की कोई जिम्मेदारी उस पर नहीं थी, नरीमन से आतेआते कभी 10 बजते, तो कभी 11. जिस क्लाइंट बेसिस पर काम करती, पूरी टीम के हिसाब से उठना पड़ता. मायके में तो घर पहुंचते ही कपड़े बदल हाथमुंह धो कर
डिनर करती और फिर सीधे बैड पर.
शनिवार और रविवार पूरा आराम करती थी. मन होता तो दोस्तों
के साथ मूवी देखती, डिनर करती. वैसे भी मुंबई में औफिस जाने
वाली ज्यादातर कुंआरी अविवाहित लड़कियों का यही रूटीन
रहता है, हफ्ते के 5 दिन काम में खूब बिजी और छुट्टी के दिन
आराम. जूही के 2-3 घंटे तो रोज सफर में कट जाते थे.
वह हमेशा वीकेंड के लिए उत्साहित रहती.
जैसे ही अंजना दरवाजा खोलतीं, जूही एक लंबी सांस लेते हुए कहती थी, ‘‘ओह मम्मी, आखिर वीकेंड आ ही गया.’’ अंजना को उस पर बहुत स्नेह आता कि बेचारी बच्ची, कितनी थकान होती है पूरा हफ्ता.
जूही को याद आ रहा था कि जब बिदाई के समय उस की मम्मी रोए जा रही थीं तब उस की सासू माँ ने उस की मम्मी के कंधे पर हाथ रख कर कहा था, ‘‘आप परेशान न हों. बेटी की तरह रहेगी हमारे घर.
मैं बेटी बहू में कोई फर्क नहीं रखूंगी.’’
तब वहीं खड़ी जूही की चाची ने व्यंग्यपूर्वक धीरे से उस के कान में कहा, ‘‘सब कहने की बातें हैं. आसान नहीं होता बहू को बेटी समझना. शुरू शुरू में हर लड़के वाले ऐसी ही बड़ी बड़ी बातें करते हैं.’’
बहते आंसुओं के बीच में जूही को चाची की यह बात साफसाफ सुनाई दी थी. पहला हफ्ता तो बहुत मसरूफियत भर निकला. अब वे घूम
कर लौट रहे थे, देखते हैं क्या होता है. परसों से औफिस भी जाना है. टैक्सी घर के पास रुकी तो जूही अजय के साथ घर की तरफ चल दी.
शिवमोहन, शैलजा और नेहा उन का इंतजार ही कर रहे थे. जूही ने सास-ससुर के पैर छू कर उन का आशीर्वाद लिया. नेहा को उस ने गले लगा लिया, सब एकदूसरे के हालचाल पूछते रहे.
शैलजा ने कहा, ‘‘तुम लोग फ्रैश हो जाओ, मैं चाय लाती हूं.’’
जूही को थकान तो बहुत महसूस हो रही थी, फिर भी उस ने कहा, ‘‘नहीं मम्मीजी मैं बना लूंगी.’’
‘‘अरे थकी होगी बेटा, आराम करो और हां, यह मम्मीजी नहीं, अजय और नेहा मुझे मां ही कहते हैं, तुम भी बस मां ही कहो.’’
जूही ने झिझकते हुए सिर हिला दिया. अजय और जूही ने फ्रैश हो कर सब के साथ चाय पी. थोड़ी देर बाद शैलजा ने पूछा, ‘‘जूही, डिनर में क्या खाओगी?’’ ‘‘मां, जो बनाना है, बता दें, मैं हैल्प करती हूं.’’
‘‘मैं बना लूंगी.’’ ‘‘लेकिन मां, मेरे होते हुए…’’
हंस पड़ीं शैलजा, ‘‘तुम्हारे होते हुए क्या? अभी तक मैं ही बना रही हूँ और मुझे कोई परेशानी भी नहीं है,’’ कह कर शैलजा किचन में आ गई
तो जूही भी मना करने के बावजूद उन का हाथ बंटाती रही.
अगले दिन की छुट्टी बाकी थी. शिवमोहन ऑफिस और नेहा कालेज चली गई. जूही अलमारी में अपना सामान लगाती रही. सब अपनेअपने काम में व्यस्त रहे. अगले दिन साथ ऑफिस जाने के लिए अजय और जूही उत्साहित थे. दोनों लोकल ट्रेन से ही जाते थे. हलकेफुलके माहौल में सब ने डिनर साथ किया.
रात को सोने के समय शिवमोहन ने कहा ‘‘कल से जूही भी लंच ले जाएगी न?’’ ‘‘हां, क्यों नहीं?’’
‘‘इस का मतलब कल से उस की किचन की ड्यूटी शुरू?’’
‘‘ड्यूटी कैसी? जहां मैं अब तक 3 टिफिन पैक करती थी,
अब 4 कर दूंगी, क्या फर्क पड़ता है?’’ शिवमोहन ने प्यार
भरी नजरों से शैलजा को देखते हुए कहा, ‘‘ममतामयी सास
बनोगी इस का कुछ अंदाजा तो था मुझे.’’
‘‘आप से कहा था न कि जूही बहू नहीं बेटी बन कर रहेगी इस घर में.’’
शिवमोहन ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘लेकिन तुम्हें तो
बहुत कड़क सास मिली थीं.’’
शैलजा ने फीकी हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘इसीलिए तो जूही को उन तकलीफों से बचाना है जो मैं ने खुद झेली हैं. छोड़ो, वह अम्मां का पुराना जमाना था, उन की सोच अलग थी, अब तो वे नहीं रहीं. अब उन बातों का क्या फायदा? अजय ने बताया था जूही को पनीर बहुत पसंद है. कल उस का पहला टिफिन तैयार करूंगी,
पनीर ही बनाऊंगी, खुश हो जाएगी बच्ची.’’
शिवमोहन की आंखों में शैलजा के लिए तारीफ के भाव उभर आए. सुबह अलार्म बजा. जूही जब तक तैयार हो कर किचन में आई
तो वहां 4 टिफिन पैक किए रखे थे. शैलजा डाइनिंग
टेबल पर नाश्ता रख रही थीं.
जूही शर्मिंदा सी बोली. ‘‘मां, आप ने तो सब कर लिया.’’
‘‘हां बेटा, नेहा जल्दी निकलती है. सब काम साथ ही हो जाता है. आओ, नाश्ता कर लो.’’
‘‘कल से मैं और जल्दी उठ जाऊंगी.’’
‘‘सब हो जाएगा बेटा, इतना मत सोचो. अभी तो मैं कर ही लेती हूं. तबीयत कभी बिगड़ेगी तो करना ही होगा और आगेआगे तो
जिम्मेदारी संभालनी ही है, अभी ये दिन आराम से बिताओ, खुश रहो.’’
अजय भी तैयार हो कर आ गया था. बोला,
‘‘मां, लंच में क्या है?’’ ‘‘पनीर.’’
जूही तुरंत बोली, ‘‘मां यह मेरी पसंदीदा डिश है.’’
अजय ने कहा, ‘‘मैं ने ही बताया है मां को. मां, अब क्या अपनी बहू की पसंद का ही खाना बनाओगी?’’
जूही तुनकी, ‘‘मां ने कहा है न उन के लिए बहू नहीं, बेटी हूं.’’
नेहा ने घर से निकलते-निकलते हंसते हुए कहा, ‘‘मां, भाभी के
सामने मुझे भूल मत जाना.’’
शिवमोहन ने भी बातों में हिस्सा लिया, ‘‘अरे भई, थोड़ा तो सास वाला रूप दिखाओ, थोड़ा टोको, थोड़ा गुस्सा हो, पता तो चले घर में
सास-बहू हैं.’’ सब जोर से हंस पड़े.
शैलजा ने कहा, ‘‘सॉरी, यह तो किसी को पता नहीं चलेगा कि घर में सास-बहू हैं.’’ सब हंसतेबोलते घर से निकल गए.
थोड़ी देर बाद ही मेड श्यामाबाई आ गई. शैलजा घर की सफाई करवाने लगी. अजय के कमरे में जा कर श्यामा ने आवाज दी, ‘‘मैडम, देखो आप की बहू कैसे सामान फैला कर गई हैं.’’
शैलजा ने जा कर देखा, हर तरफ सामान बिखरा था,
उन्हें हंसी आ गई.
श्यामा ने पूछा, ‘‘मैडम, आप हंस रही हैं?’’
शैलजा ने कहा, ‘‘आओ, मेरे साथ,’’ शैलजा उसे नेहा के कमरे में ले गई. वहां और भी बुरा हाल था.
शैलजा ने कहा, ‘‘यहां भी वही हाल है न? तो चलो अब हर
जगह सफाई कर लो जल्दी.’’
श्यामा 8 सालों से यहां काम कर रही थी. अच्छी तरह समझती थी अपनी शांति-पसंद मैडम को, अत: मुसकराते हुए अपने
काम में लग गई.
जूही फोन पर अपने मम्मीपापा से संपर्क में रहती ही थी. शादी के बाद आज ऑफिस का पहला दिन था. रास्ते में ही अंजना का फोन आ गया. हालचाल के बाद पूछा, ‘‘आज तो सुबह कुछ काम भी किए होंगे?’’
शैलजा की तारीफ के पुल बांध दिए जूही ने. तभी अचानक जूही को कुछ याद आया. बोली, ‘‘मम्मी, मैं बाद में फोन करती हूं,’’ फिर तुरंत सासू माँ को फोन मिलाया.
शैलजा के हैलो कहते ही तुरंत बोली, ‘‘सॉरी मां, मैं अपना रूम बहुत बुरी हालत में छोड़ आई हूं… याद ही नहीं रहा.’’
‘‘श्यामा ने ठीक कर दिया है.’’
‘‘सॉरी मां, कल से…’’
‘‘सब आ जाता है धीरे-धीरे. परेशान मत हो.’’
शैलजा के स्नेह भरे स्वर पर जूही का दिल भर आया. अजय और जूही दिन भर व्यस्त रहे. सहकर्मी बीचबीच में दोनों को छेड़ कर मजा लेते रहे. दोनों रात 8 बजे ऑफिस से निकले तो थकान हो चुकी थी. जूही का तो मन कर रहा था, सीधा जा कर बैड पर लेटे. लेकिन
वह मायका था अब ससुराल है.
10 बजे तक दोनों घर पहुंचे. शिवमोहन, शैलजा और नेहा डिनर कर चुके थे. उन दोनों का टेबल पर रखा था. हाथ धो कर जूही खाने पर टूट पड़ी. खाने के बाद उस ने सारे बरतन समेट दिए.
शैलजा ने कहा, ‘‘तुम लोग अब आराम करो. हम भी सोने जा रहे हैं.’’
शैलजा लेटीं तो शिवमोहन ने कहा, ‘‘तुम भी थक गई होगी न?’’
‘‘हां, बस अब सोना ही है.’’
‘‘काम भी तो बढ़ गया होगा?’’
‘‘कौन सा काम?’’
‘‘अरे, एक और टिफिन…’’
‘‘6 की जगह 8 रोटियां बन गईं तो क्या फर्क पड़ा? सब की तो बनती ही हैं और आज तो मैं ने इन दोनों का टिफिन अलगअलग बना दिया. कल से एकसाथ ही पैक कर दूंगी. खाना बच्चे साथ ही तो खाएंगे,
जूही का खाना बनाने से मुझ पर कोई अतिरिक्त काम
आने वाली बात है ही नहीं.’’
‘‘तुम हर बात को इतनी आसानी से कैसे ले लेती हो, शैल?’’
‘‘शांति से जीना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है, बस हम औरतें ही अपने अहं, अपनी जिद में आ कर अकसर घर में अशांति का कारण बन जाती हैं. जैसे नेहा को भी अभी कोई काम करने की ज्यादा आदत नहीं है वैसे ही वह बच्ची भी तो अभी आई है. आजकल की लड़कियां पहले पढ़ाई, फिर कैरियर में व्यस्त रहती हैं. इतना तो मैं समझती हूं आसान नहीं है कामकाजी लड़कियों का जीवन. अरे मैं तो घर में रहती हूँ, थक भी गई तो दिन में थोड़ा आराम कर लूंगी. कभी नहीं कर पाऊंगी तो श्यामा है ही, किचन में हैल्प कर दिया करेगी, जूही पर घर के भी कामों का क्या दबाव डालना. नेहा को ही देख लो, कालेज और कोचिंग के बाद कहां हिम्मत होती है कुछ करने की, ये लड़कियां घर के काम तो समय के साथसाथ खुद ही सीखती चली जाती हैं.
बस, थोड़ा सा समय लगता है.’’
शैलजा अपने दिल की बातें शेयर कर रही थीं, ‘‘अभी नई-नई आई है, आते ही किसी बात पर मन दुखी हो गया तो वह बात दिल में एक कांटा बन कर रह जाएगी जो हमेशा चुभती रहेगी. मैं नहीं चाहती उसे किसी बात की चुभन हो,’’ कह कर वे सोने की तैयारी करने लगीं, बोलीं, ‘‘चलो, अब सो जाते हैं.’’
उधर अजय की बांहों का तकिया बना कर लेटी जूही मन ही मन सोच रही थी, आज शादी के बाद ऑफिस का पहला दिन था. मां के व्यवहार और स्वभाव में कितना स्नेह है. अगर उन्होंने मुझे बेटी माना है तो मैं भी उन्हें मां की तरह ही प्यार और सम्मान दूंगी. पिछले 15 दिनों से चाची की बात दिल पर बोझ की तरह रखी थी, लेकिन इस समय उसे अपना दिल फूल सा हलका लगा, बेफिक्री से आंखें मूंद कर उस ने अपना सिर अजय के सीने पर रख दिया
-नीतू ठाकुर