एक हिप्पी कट भक्त ने
भगवान की बड़ी सेवा की।
चाँदी के चकमक सिक्के चढ़ाए
और भोग लगाई, दूध,मलाई मेवा की।
मौन तपस्या में लीन थे प्रभु
कि नारद कानों में बोल गया
आखिर कबतक टिके रहते प्रभु
नारद की बातें आँखे खोल गया।
भक्त के घनघोर तप से
सिंहासन उनका डोल गया।
या चढ़ावे की चकमक से
मन उनका हो डांवाडोल गया।
हम गदगद हुए तेरी भक्ति से
प्रसन्न हो प्रभु भक्त से बोले।
माँग, तुझे कैसा वर चाहिये
यथासंभव, शब्दों में शक्कर घोले।
भक्त हुआ हैरान,परेशान
देख प्रभु का स्वरूप महान
संयमित हो फिर कहा,
प्रभु,मेरे हिप्पी कट बालों को देख
कुछ यूँ न भरमाइये।
वर तो मैं खुद ही हूँ
कहीं से एक कन्या दिलवाइये।
©नवल किशोर सिंह
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंबढ़िया
सादर
कमाल का लेखन
जवाब देंहटाएंबहुत खुबसुरत रचनाए है आपकी
जवाब देंहटाएंहाल ही में मैंने ब्लॉगर ज्वाइन किया है आपसे निवेदन है कि आप मेरे ब्लॉग पोस्ट में आए और मुझे सही दिशा निर्देश दे
https://shrikrishna444.blogspot.com/?m=1
धन्यवाद