साहित्य कुंज से लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
साहित्य कुंज से लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

सोमवार, 26 मार्च 2018

लक्ष्मी...अपनी मर्जी की मालिक है.....विजय विक्रान्त


सेठ करोड़ी मल का जैसा नाम था वैसे ही उसकी किस्मत थी। 
लक्ष्मी की कृपा से धन दौलत की कोई कमी नहीं थी। व्यापार में 
खूब कमाई हो रही थी और जीवन बहुत सुखी था। करोड़ी सेठ को पैसे से  बहुत ही अधिक प्यार था और वो इस की पूरी देख भाल करता था। एक रात सपने में सेठ को लक्ष्मी ने दर्शन दिए और कहने लगी कि अब मेरा तुम से रिश्ता नाता समाप्त हो गया है और मैं तुम्हें छोड़ कर गंगा पार फ़कीरा हलवाई के यहाँ जा रही हूँ।

इस डर से कि कहीं सपना सच्चा न हो, करोड़ी मल ने अपनी सारी 
दौलत अपने महल की छत की कड़ियों में छुपा दी। " देखता हूँ कि 
अब तू मुझे छोड़ कर कहाँ जाती है" , ऐसा वो सोचने लगा। कुछ ऐसा 
हुआ कि अगले ही दिन बादल घिर आए और बहुत ज़ोर की वर्षा होने 
लगी। इतना पानी बरसा कि सेठ का महल गिर गया और छत की कड़ियाँ गंगा के पानी में बह गयीं और दूसरे किनारे जा कर लगीं। वहाँ 
बुलाकी मल्लाह ने जब ये सब देखा तो सोचा कि क्यों न इन्हें इकट्ठी 
कर के बेच कर आज की दिहाड़ी बना लूँ। बाढ़ के कारण आज कोई भी 
उस पार जाने वाला यात्री नहीं मिला है। मल्लाह ने सारी कड़ियाँ एक 
रस्सी में बान्धी और जा कर फ़कीरा हलवाई को एक रुपये में बेच दी। 
लकड़ीयों को चीरने की ख़ातिर जब फ़कीरा ने कुल्हाड़ी चलाई तो छन्न 
छन्न करती अशर्फ़ीयों से सारी दुकान गूँज गई।

उधर सेठ का बुरा हाल था। घर में खाने तक के लाले पड़ गए। 
सोचा कि जाकर फ़कीरा से मिलूँ और विनती करूँ। शायद मेरी 
हालत देख कर उसे कुछ तरस ही आजाए। यह सोच कर उसने 
अपनी बीवी से दो रोटियाँ बाँधने को कहा और उस पार जाने के लिए गंगा की ओर चल दिया। पार ले जाने के लिये जब मल्लाह ने 
किराया माँगा तो करोड़ी ने बताया कि उसके पास केवल दो 
रोटी हैं। मल्लाह एक रोटी लेकर उसे पार उतारने पर राज़ी हो गया 
और एक रोटी लेकर उसे गंगा पार छोड़ दिया।

करोड़ी मल फ़कीरा हलवाई से मिला और अपनी सारी कथा 
सुाई। सारी बात सुनकर फ़कीरा चुप रहा और कुछ नहीं बोला। थोड़ी 
देर बाद उसने अन्दर जाकर दो बड़े बड़े अशर्फ़ियों के लड्डू बनाए 
और करोड़ी को मल देते हुए कहा कि वो इनको बच्चों के लिये ले जाए। सेठ को इस बात का बहुत मलाल रहा कि फ़कीरा ने कोई हमदर्दी नहीं 
दिखाई और केवल दो लड्डू देकर टाल दिया। भरे मन से वो गंगा की 
ओर बढ़ा और घर वापिस जाने के लिए मल्लाह से विनती करने लगा। 
" वापिस जाने के लिए किराए के पैसे हैं क्या?" जब मल्लाह ने       
ये सवाल किया तो सेठ ने कहा कि उस के पास दो लड्डू हैं। एक लड्डू 
वो किराए का दे देगा और एक लड्डू से अपने बच्चों का पेट भरेगा। 
क्योंकि रात हो रही थी और मल्लाह को वापिसी सवारी की कोई उम्मीद नहीं थी, उस ने सेठ से कहा कि अगर पार जाना है 
तो दोनों लड्डू देने होंगे। 

कोई और चारा न देख कर सेठ ने दोनों लड्डू बुलाकी मल्लाह 
को दे दिए और नाव में गंगा पार कर अपने घर आगया। वापिस आकर 
मल्लाह ने सोचा कि वो इन लड्डूओं का क्या करेगा। उसने फ़कीरा के 
यहाँ जाकर दोनों लड्डू दो रुपये में बेच दिये। 
लक्ष्मी का कहना सच्चा था, जहाँ रहना है वहीं जाना है
यह बारिश, मल्लाह, कड़ियों का बस केवल एक बहाना है।
-विजय विक्रान्त


रविवार, 4 मार्च 2018

च.तुर राज ज्योतिषी.......विजय विक्रान्त

महाराजा करमवीर सिंह के दरबार में राज ज्योतिषी पण्डित
श्याम मुरारी की बहुत चर्चा थी और बड़ा मान था। राजा कोई भी
काम ज्योतिषी की सलाह के बिना नहीं करता था। समय बीतता
गया और राजा को अपनी सीमाओं को बढ़ाने की इच्छा दिन प्रति
दिन प्रबल होती चली गई।

एक दिन राजा ने ज्योतिषी को बुलाकर अपने दिल की बात     
कही और पूछा कि क्या साथ वाले राजा पर आक्रमण करना ठीक
रहेगा और यदि ठीक है तो उसका राज्य हड़प करने का कौन सा
शुभ समय है। यह जानते हुए भी कि पड़ोसी राजा बहुत बलवान
है, श्याम मुरारी ने बिना सोचे समझे सलाह दी कि हे राजन! आप
जल्दी से जल्दी आक्रमण कर डालें। आप इस संग्राम में अवश्य
सफल होंगे। ज्योतिषी के कहने पर करमवीर सिंह ने धावा बोल
दिया। हुआ वही जिसका डर था। राजा को मुँह की खानी पड़ी।
बहुत पिटाई हुई और जैसे तैसे करके अपनी जान बचा कर भागा।
महल में आकर राजा ने सबसे पहले राज ज्योतिषी को
बुलाया। ज्योतिषी को तो सब बात का पता चल गया था और उसे
ये भी मालूम था कि उसको क्यों बुलाया जा रहा है। फिर भी वो
चेहरे पर मुस्कान लेकर दरबार में पहुँचा।
आसन ग्रहण करने के बाद राजा ने ज्योतिषी से पूछा कि
महाराज आप सब का भविष्य बताते हैं। क्या आपको अपना
भविष्य भी पता है? राजा के प्रश्न के पीछे जो रहस्य था उसे
जानने में पण्डित को ज़रा देर नहीं लगी। उसने हाथ जोड़कर
विनम्रता से कहा कि महाराज मैं ने सब नक्षत्रों का अध्ययन
किया है और मुझे अपने और आपके भविष्य के बारे में सब कुछ
पता है। राजा के यह पूछने पर कि आपकी मृत्यु कब होगी,
पंडितजी ने बड़ी नम्रता से कहा कि महाराज कुछ ग्रहों का चक्कर
ऐसा है कि मेरे और आपके नक्षत्रों का चोली दामन का साथ है।
गणित के अनुसार मेरी मृत्यु आपकी मृत्यु से ठीक दो घण्टे पहले
 होगी। कहने का मतलब ये है कि मेरे मरने के ठीक दो घण्टे बाद
आपकी मृत्यु हो जाएगी।
राज ज्योतिषी का जवाब सुनकर राजा भी चक्कर में आ गया
और जो उसने मन में सोचा था उस बात को वहीं पी गया। इधर
राज ज्योतिषी ने भी सोचा कि एक बार तो जैसे तैसे जान बच
 गई मगर आगे का कुछ पता नहीं है। कुछ दिन रहने के पश्चात
 उसने महाराज से आज्ञा ली और वन की ओर प्रस्थान कर दिया।
-विजय विक्रान्त


रविवार, 21 जनवरी 2018

इज़्ज़त....अनन्त आलोक


          नशे में धुत लड़खड़ाते मित्र को सहारा देकर घर छोड़ने आये सुनील ने याद दिलाया, "देखो जगपाल तुम्हें कितनी बार समझाया है, सराब पीना अच्छी आदत नहीं है इससे न केवल तुम्हारा स्वास्थ्य बिगड़ रहा है अपितु रिश्तेदारों, सगे संबंधियों और समाज में भी बदनामी हो रही है।"

                        "बदनामी! कैसी बदनामी अरे तुम क्या जानो समाज में हमारी कितनी इज़्ज़त होती है। लोग स्पेशल कमरे में बिठाते हैं, दारू, सलाद, नमकीन और अन्य ज़रूरी सामान इज़्ज़त के साथ वहीं छोड़ कर जाते हैं और हाँ खाना भी वहीं टेबल पर आता है शान से। तुम पीते नहीं हो न तुम क्या जानो कितनी इज़्ज़त करते हैं लोग। अरे तुम्हें तो कोई यह भी नहीं पूछता होगा कि खाना भी खाया है या नहीं," जगपाल ने लड़खडाती जुबान से जवाब दिया।

                           "तुम्हारी बात सोलह आने सच है, खाने पीने वालों का मेज़बान पूरा पूरा ध्यान रखते हैं, इतना ही नहीं गंदी नाली में गिरने पर उठाया भी जाता है। और लड़खड़ाने पर घर तक भी छोड़ा जाता है, जैसे मैं तुम्हें छोड़ने आया हूँ, लेकिन मित्र यह इज़्ज़त नहीं सहानुभूति है। ठीक उसी प्रकार जैसे एक मरीज़ के प्रति रखी जाती है, जिस प्रकार एक बीमार व्यक्ति की सुख सुविधा का ध्यान रखा जाता है। और रही बात खाने के लिए पूछने की तो वह इसलिए पूछा जाता क्योंकि नशा न करने वाला व्यक्ति अपना ध्यान स्वयं रख सकता है, उसे कब क्या चाहिए वह माँग लेता है," सुनील ने उतर दिया। सुनील का जवाब सुन जयपाल उसे देखता ही रह गया।
..............अनन्त आलोक

रविवार, 7 जनवरी 2018

अहसास....मनोज चौहान

                   सुधीर की पत्नी मालती की डिलीवरी हुए आज पाँच दिन हो गए थे। उसने एक बच्ची को जन्म दिया था और वह शहर के सिविल हॉस्पिटल में एडमिट थी। सुधीर और उसके घर वालों ने बहुत आस लगा रखी थी कि उनके यहाँ लड़का ही पैदा होगा। सुधीर की माँ मालती का गर्भ ठहरने के बाद अब तक कितनी सेवा और देखभाल करती आई थी। मगर नियति के आगे किसका वश चलता है। आखिर लड़की पैदा हुयी और उनके खिले हुए चेहरे मायूस हो गए। सुधीर तो इतना निराश हो गया था कि डिलीवरी के दिन के बाद, वो दोबारा कभी अपनी पत्नी और बच्ची से मिलने हॉस्पिटल नहीं गया था।

                   सुधीर आई.पी.एच. विभाग में सहायक अभियन्ता के पद पर कार्यरत था। उस रोज़ वह दफ़्तर में बैठा था। उसके ऑफ़िस में काम करने वाला चपरासी रामदीन छुट्टी की अर्जी लेकर आया। कारण पढ़ा तो देखा की पत्नी बीमार है और देखभाल करने वाला कोई नहीं है। डॉक्टरों ने भी जवाब दे दिया था। इसीलिए रामदीन 15 दिन की छुट्टी ले रहा था। सुधीर ने पूछा कि तुम्हारा बेटा और बहू तुम्हारी पत्नी की देखभाल नहीं करते। यह सुनकर रामदीन ख़ुद को रोक ना सका और फफक- फफक कर रोने लग गया। सुधीर ने उसकी दुखती रग पर हाथ रख दिया था। उसकी आँखों से निकलने वाली अश्रुधारा ने सुधीर को एक पल के लिए विचलित कर दिया।

                     रामदीन बोला, "साहब,अपने जीवन की सारी जमा पूँजी मैंने बेटे की पढ़ाई पर ख़र्च कर दी।" सोचा था कि पढ़–लिख कर कुछ बन जाएगा तो बुढ़ापे की लाठी बनेगा। मगर शादी के छः महीने बाद ही वह अलग रहता है। उसे तो यह भी नहीं मालूम की हम लोग ज़िन्दा हैं या मर गए। ऐसा तो कोई बेगाना भी नहीं करता, साहब। काश! मेरी लड़की पैदा हुई होती तो आज हमारे बुढ़ापे का सहारा तो बनती।" इतना कहकर रामदीन चला गया। सुधीर ने उसकी अर्जी तो मंजूर कर ली मगर उसके ये शब्द कि "काश! मेरी लड़की पैदा हुई होती," उसे अन्दर तक झकझोरते चले गए। एक वो था जो लड़की के पैदा होने पर ख़ुश नहीं था और दूसरी ओर रामदीन लड़की के ना होने पर पछता रहा था।

                           सुधीर सारा दिन इसी कशमकश में रहा। कब पाँच बज गए उसे पता ही नहीं चला। छुट्टी होते ही वह ऑफ़िस से बाहर निकला और उसके क़दम अपनेआप ही सिविल हॉस्पिटल की तरफ बढ़ने लगे।

                    "मैटरनिटी वार्ड" में दाख़िल होते ही उसने अपनी पाँच दिन की नन्ही बच्ची को प्यार से पुचकारना और सहलाना शुरू कर दिया। मालती सुधीर में आये इस अचानक परिवर्तन से हैरान थी। अपनी बच्ची के लिए सुधीर के दिल में प्यार उमड़ आया था। वह आत्ममंथित हो चुका था और उसे अहसास हो गया था की एक लड़की जो माँ-बाप के लिए कर सकती है, एक लड़का वो कभी नहीं कर सकता। उसे रामदीन के वो शब्द अब भी याद आ रहे थे कि काश! मेरी लड़की ......l
.................मनोज चौहान

रविवार, 10 दिसंबर 2017

इज़्ज़त का सवाल....गोवर्धन यादव


                              शादी से पूर्व सरला ने अपना निर्णय कह सुनाया था कि अभी वह और आगे पढ़ना चाहती है। जब उसके होने वाले भावी पति ने अपनी सहमती जतलाते हुए उससे वादा किया था कि शादी के बाद वह आगे पढ़ सकती है और समय आने पर कोई अच्छी सी नौकरी भी कर सकती है। इसी आश्वासन के बाद वह शादी करने के लिए राज़ी हो पायी थी।

                  ससुराल में रहते हुए वह घर के सारे काम निपटाती और समय बचाकर अपनी पढ़ाई में जुट जाती। बीए तो वह पहले ही कर चुकी थी। उसने अब एम.ए. करने के फ़ार्म आदि भर दिए थे। एक समय आया कि उसने पूरे संभाग में प्रथम स्थान बनाया था। घर का हर सदस्य उसकी तारीफ़ करते नहीं अघाता था।

                   एम.ए. में प्रथम स्थान बना चुकने के बाद उसने पी.एस.सी. की परीक्षाएँ देने का मानस बनाया। कड़ी मेहनत और लगन ने वह सब कर दिखाया जिसकी उसने कभी कल्पना की थी। उसे तो अब पूरा विश्वास हो चला था कि यदि वह यू.पी.पी.एस.सी. की परीक्षा दे दे तो उसमे में सफलता हासिल कर सकती है।

                   पी.एस.सी. का रिज़ल्ट आने के कुछ समय बाद पर्सनल इंटरव्यू दिया और वह उसमें भी उत्तीर्ण हो गई। कुछ समय पश्चात उसकी पोस्टिंग तहसीलदार के पद पर हो गई। एक ओर उसे अपनी सफलता पर नाज़ हो रहा था तो दूसरी तरफ़ घर में हंगामा मचा हुआ था। घर के सारे लोग इस बात पर ख़ुश हो रहे थे जबकि उसका पति अवसाद में घिरा बैठा था। वह नहीं चाहता था कि जिस तहसील कार्यालय में वह एक मामूली बाबू की हैसियत से काम कर रहा है, उसकी बीवी उसी आफ़िस में उसकी बॉस बनकर काम करे।
...........गोवर्धन यादव

शुक्रवार, 8 सितंबर 2017

तन्हाई............गीता तिवारी

जब कभी किसी
तन्हा सी शाम
बैठ अकेले चुपचाप 
पलटोगे जीवन पृष्ठों को
सच कहना तुम
क्या रोक सकोगे
इतिहास हुए उन पन्नों पर
मुझको नज़र आने से
क्या ये कह पाओगे
भुला दिया है मुझको तुमने
कैसे समझाओगे ख़ुद को
बहते अश्कों में छिपकर
याद मेरी जब आयेगी
शाम की उस तन्हाई में

-गीता तिवारी
अध्यापक 
पूर्व माध्यमिक विद्यालय 
गोरखपुर ,उ.प्र.

मंगलवार, 29 अगस्त 2017

माँ की व्यथा....आभा नौलखा


आज यह कड़ा निर्णय लेते हुए निकुंज की आँखों के सामने उसकी पूरी जिंदगी एक चलचित्र की भाँति घूम गई। उसे आज भी याद है वह शाम जब मम्मी-पापा ने उसे उसकी ज़िन्दगी से परिचित कराया था कि वह एक हिजड़ा है। पर यह सब बताने से पहले ही उसे इतना सशक्त बना दिया था कि यह बात उसे अपने लक्ष्य से हिला न सकी। उसने कड़ा निर्णय लिया कि वह अपने माता-पिता को उनकी इस मेहनत का फल अपनी मेहनत से देगी। और एक प्रतिष्ठित कंपनी में नौकरी पाकर सपना पूरा किया। वहीं तो उसकी मुलाक़ात अभय से हुई थी और कब प्यार हो गया पता ही न चला और निकुंज के बारे में सब पता चलने के बाद भी अभय का फ़ैसला न बदला। दोनों का विवाह हो गया, कुछ समय पश्चात उन्होंने निलेश को गोद ले लिया। कितना अच्छा जीवन बीत रहा था कि... निलेश बारह साल का ही तो था कि अभय का अकस्मात निधन हो गया, पर निकुंज ने हिम्मत न हारी...।
....अब वह समय आ गया है कि निलेश को सब कुछ बता दिया जाए, क्योंकि अब वह अट्ठारह बरस का हो गया है।
....पर, निलेश यह सुनते ही चिल्ला पड़ा!
....मतलब मैं अनाथ हूँ और तुम एक हिजड़ा...!
....एक हिजड़े के हाथों मेरा पालन-पोषण...छी...!
-आभा नौलखा

शनिवार, 21 जनवरी 2017

विश्व बैंक की रिपोर्ट व एक भिखारी से संवाद....सुदर्शन कुमार सोनी

एक लम्बी लघु कथा.......
भोपाल के बोर्ड ऑफ़िस चौराहे पर स्थित, "मोटल सिराज" से एक कार्यक्रम अटेंड कर मैं अपने ग़रीबखाने में वापिसी के लिये अपनी कार उठाने पैदल मुख्य सड़क के नीचे की सड़क पर जा रहा था कि थोड़ा आगे जाने पर मुझे मुख्य सड़क से लगी एक संकरी सीमेंट रोड पर दो शख़्स थोड़ी दूरी पर आमने-सामने बैठे दिखे। मैं रिश्तेदारी में एक जन्मदिन कार्यक्रम के लज़ीज़ खाने को उदरस्थ करने के उपरांत-की स्थिति में था। अतः मेरी नज़र दोनों भिखारियों पर चली गयी वह पालथी मारकर आमने-सामने बैठे थे और उनके सामने कई टिन फ़ॉयल रखी थी, कुछ खुल गयी थी कुछ बंद थी। बाजू में एक बाटली भी रखी दिख रही थी जिसमे पीले भूरे रंग का कोई द्रव भरा था। मेरी नज़रों ने तुरन्त पहचान लिया कि ये भाई दिनभर की कमाई के बाद अपना डिनर कर रहे हैं। साथ में बाटली से पैग भी मार लेते होंगे। क्योंकि बाटली कुछ खाली लग रही थी।
चूँकि हमारा पेट भरा हुआ था और आप तो जानते ही हैं कि जब पेट भरा हो तो समाजसेवा के लिये दिल बल्लियों उछलने लगता है। हम ठिठक गये भिखारी देखने नहीं उसके ठाठ का आकलन करने! और इसलिये भी हमें ज़्यादा कौतुक हो रहा था क्योंकि विश्व बैंक की ग़रीबी पर हालिया आयी रिपोर्ट हमें यहाँ प्रथम सही लग रही थी! ये भिखारी "हाथ कंगन को आरसी क्या" की उक्ति चरितार्थ कर रहे थे। "विश्व बैंक" ने अभी हाल में ही अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पूरे विश्व में ग़रीबी कम हो रही है, और इसकी कम होने की सबसे ज़्यादा दर भारत में रही है। बीस सौ पन्द्रह में भारत में ग़रीब कुल जनसंख्या का दस प्रतिशत से भी कम रहे थे। यह भारत जैसे देश के लिये एक अच्छी स्थिति कही जा सकती है, अब ये बात अलग है कि बहुत से लोग ग़रीबों की संख्या कम होने से दुखी हो रहे होंगे यह आप बेहतर जानते हो कि इसमें कौन-कौन हैं? और इसी का प्रत्यक्ष आकलन का मौक़ा सड़क किनारे बैठे भिखारियों के रूप में आ खड़ा होने से हमारे क़दम अपने आप ही रुक गये थे।
हम भिखारी से सवाल-जबाब के मूड में आ गये थे। इन दो भिखारियों को पहले वैसे हम कोई मज़दूर समझ रहे थे जो कि सड़क के किसी गड्ढे को पूरने का काम कर रहे होंगे या कि नये गड्ढे करने का काम कर रहे होंगे! और हम आप सब जानते ही हैं कि हमारे यहाँ नयी सड़क नगरनिगम या लोक-निर्माण विभाग के बनाने के बाद ही बीएसएनल या अन्य किसी मोबाईल कंपनी को केबल के लिये सड़क खोदने की याद आती है तो या तो हमने सोचा कि गड्ढा करने या गड्ढा पूरने के काम में लगे मज़दूर होंगे ये।
लेकिन हमारे इस सवाल पर भिखारी ने अजीब सा मुँह बनाया! बोला साहब मज़दूरी-वज़दूरी के काम में कुछ नहीं रखा ये सब हम कर के छोड़ चुके हैं घाटे का धंधा है?
मैंने आश्चर्य से कहा, कुछ नहीं रखा, आजकल तो भोपाल में मज़दूर को चार सौ रुपये से अधिक हर दिन मिलता है?
वह बोला तो इसमें कौन सी ख़ास बात है इससे अधिक ही हम रोज़ अपने इस नये काम में कमा लेते हैं! और उसने सामने बैठे अपने साथी भिखारी की ओर पुकार कर कहा क्यों भीखू ग़लत कह रहा हूँ क्या?
भीखू ने पहले तो एक घूँट हलक़ के अंदर किया फिर बोला लालू आज तो छैः सौ रही कमाई मेरी! तुम्हारी कितनी तो वह बोला छैः सौ तो नहीं पाँच सौ के लगभग रही।
मुझे यह सुन लगा कि जो कहते हैं कि अच्छे दिन नहीं आये हैं वे ग़लत हैं सबसे पहले तो इन्हीं के आये हैं! मैंने आगे कहा कि यह खाना वग़ैरह टिन फ़ॉयल में कहाँ से लाये हैं आप दोनों? ये पार्टी वाले दे गये होंगे? इस पर वह नाराज़ हो गया बोला साहब हम माँग कर नहीं खाते मेहनत की कमाई का खाते हैं! भीख माँगने का यह मतलब नहीं है कि हम खाना भी माँगें लोगों से! हमारे उसूल के ख़िलाफ़ है यह।
वह आगे बोला साहब लगता है अभी आपके पास टाईम ही टाईम है पेट भरा है न, ठीक है हम भी मस्ती में हैं तो बात कर लेते हैं! लेकिन धंधे के टाईम पर इस एमपीनगर में हमारे पास एक मिनट का भी समय नहीं रहता है! पूरे टाईम चौराहे में एक ओर की बत्ती लाल रहती है और हम बस यहीं पर कार वालों को लाचारी व विवशता की बत्ती देकर अपना काम करते हैं।
यह एमपीनगर है सामने देखो वो "अमित शुक्ला क्लासेस" फिर वो बोर्ड देखो "रिजवी सर" और न जाने कितने कोचिंग संस्थान है यहाँ अपने पूरे एमपी से आये कई हज़ार बच्चे फ़ास्ट फ़ूड खाकर ही ज़िंदा रहते हैं। इसमें कम से कम साफ़-सफ़ाई तो रहती है वैसे भी स्वच्छ भारत अभियान चल रहा है और सब हाथ में झाड़ू उठाकर फोटो खिंचवा चुके हैं! तो हमारा भी तो इस दिशा में कोई फ़र्ज़ बनता है!
मैं आश्चर्य चकित कि यह तो "उन्नत कृषक" की तरह "उन्नत भिखारी" है! वो आगे बोला कि साहब बनाने-खाने के लफड़े में कौन पड़े सौ रुपये से कम में खाना बढ़िया पैक आ जाता है। जो बुलाना है बुला लेते हैं और साथ एक बाटली ले आते हैं, तो दिन भर की थकान व ग़म दूर हो जाते हैं और उसने एक घूँट तुरन्त मार ली बाटली से, मैं देखता रह गया कि यह नये ज़माने के भिखारी हैं जो कि पैकड खाना खाते हैं। हम और आप बाहर का अवाईड करते हैं कि कौन पैसे ख़र्च करे लेकिन ये दिलेरी से ख़र्च करते हैं।
मेरे चुप रहने पर वह पिज़्ज़ा का एक टुकड़ा मुँह में अंदर ठूँसते हुये बोला, क्या सोच रहे हो साहब कि हम भिखारी होकर मिले खाने की जगह यह क्यों खा रहे है?
साहब ऐसा है अपने भी कुछ सिंद्धांत हैं हम कोई राजनैतिक दल या नेता नहीं हैं कि चाहे जब रंग बदल लें। हम भिक्षा में खाना नहीं लेते केवल नगदी लेते हैं।
मैंने कहा कि क्या रोज़ ही आप लोग "रेडी टू ईट" खाना खाते हो?" वह थोड़ा तल्ख़ होकर बोला क्या आप रोज़ खाना नहीं खाते हो जो ऐसा सवाल कर रहे हो? आज के ज़माने में कौन चिक-चिक करे हर चीज़ पैकड मिलती है और आप देख ही रहे हो कि कितना मोटर कारों का प्रदूषण है यहाँ यदि हम चूल्हा जला कर पकायेंगे तो एक बीमार हो जायेंगे दो कितना समय बरबाद होगा इतने में तो हम न जाने कितना कमा लेंगे भीख से? मैंने सोचा समय प्रबंधन की क्या सीख दी है इसने।
मैंने उत्सुकता से पूछा पानी कहाँ से लाते हो?
तो उसने मुस्कुराकर अपनी दाँयी ओर दबी एक दूसरी बाटली निकाल ली हम हैरान रह गये। यह मिनरल वाटर की बॉटल थी एक उसके बाँये ओर बाटली दूसरी दाँये ओर बाटली।
दूसरा भिखारी बोला, साहब बाहर का पानी पीना भी ख़तरे से खाली नहीं है? हम आश्चर्यचकित रह गये इनके यह ठाठ देखकर हम यहाँ से आगे ही नहीं बढ़ पा रहे थे। हमें लगा कि विश्व बैंक की रिपोर्ट कितनी सटीक रहती है! हम हमेशा से ही इसके पक्षधर रहे हैं! आज देखो इस देश का भिखारी भी मज़े कर रहा है! ग़रीबी कम हो रही है तभी तो यह स्थिति बनी है!
हम यह सोच ही रहे थे कि मोबाईल की रिंगटोन बजने की आवाज़ आयी हमें लगा कि हमारा मोबाईल बजा है। घर से बाहर हुये घंटा भर हो गया है अतः यह बीवी ने फोन पर घंटी का घंटा बजा दिया। जेब में हाथ डाला तो हमारा मोबाईल शांत था हमने पत्नी को मन ही मन धन्यवाद दिया। लेकिन साथ ही यह सोचा कि ज़रूर वह चैनल में कोई सास-बहु का अच्छा सीरियल देखने में व्यस्त हो गयी होगी नहीं तो ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि हर घंटे वह फोन पर हमारी क्लास न लें? हमने देखा कि भिखारी का मोबाईल बज रहा था जेब से उसने उसे निकाल कर बाहर कर दिया था।
मैंने कहा बात तो कर लो? कोई ख़ास बात होगी तो वह बोल उठा अरे साहब अपन रात को डिनर के समय फोन नहीं उठाते। और हमें मालूम है यह किसका होगा। इस समय हमारा अगले चौराहे पर बैठा दोस्त खा-पीकर मस्त हो गया होगा तो अब वह हमें इसी समय फोन करता है दिनभर की एक्सपीरिंयस शेयरिंग होती है। या बीट का सिपाही होगा स्साला आये दिन भीख माँगता है।
हम आश्चर्य-चकित थे कि ये तो पढ़ा-लिखा भिखारी जान पड़ता है! हमारी नज़र सामने हंटर बीयर के चमकते विज्ञापन पर गयी हमें लगा कि आज हमें इस भिखारी से साक्षात्कार होकर अंदर से हंटर की मार जैसा लग रहा है?
वह फिर बोल उठा साहब आपको कष्ट हो रहा है न कि हम जैसा भिखारी मिनरल वाटर व पैकड खाना व महँगी शराब पी रहा है? साहब सबकी अपनी-अपनी क़िस्मत है!
मैंने कहा लेकिन इस माँगने के काम में तुम्हे अपनी आत्मा कचोटती महसूस नहीं होती?
वह बोला इस देश में किसी की आत्मा किसी भी बात से कचोटती नहीं है। सब पहले की भाँति चलता रहता है चाहे विस्फोट में सौ लोग मर जायें, मिनी बस में गैंग रेप हो जाये, पुल टूटने पर दो लोग मर जायें, मंदिर में भगदड़ मचने से लोग मर जायएं बस उस पर थोड़ी सी तात्कालिक चर्चा होती है फिर सब पहले की ही तरह शांत हो जाता है! सब लोग फिर अपने अपने गुंताड़े (अपने अपने काम) में लग जाते हैं। यहाँ के नीच प्रकृति के लोग तो सर्जीकल स्ट्राईक पर भी सवाल उठाते हैं। वो जो चीन है वाल वाला वह भी कहता है सीमा पार कोई वाल या फेंसिग भारत लगायेगा तो गड़बड़ हो जायेगा!
मैंने सोचा कि इसे इतनी सब जानकारी कैसे है, तो वह भाँप गया बोला साहब यह भोपाल है। यहाँ अख़बारों की कमी नहीं है यहाँ हर हफ़्ते एक नया अख़बार निकलता है! जो बाल श्रम क़ानून के पालन की बात करते हैं वही अख़बार शाम तीन बजे से बच्चों के माध्यम से चौराहों पर बिकवाते हैं और हमारी यह स्थायी गद्दी है। हमें दो-तीन अख़बार मुफ़्त में मिलते हैं और फिर मुफ़्त के अख़बार को पढ़ने का अलग मज़ा है!
मैंने अब यहाँ से खिसक लेना ही उचित समझा। मैंने जाते-जाते देखा कि आखिरी घूँट लेने के बाद वे दोनों मस्ती में वही लुढ़क गये थे। मैंने सोचा कि दिलजले मानें या न मानें इस देश ने प्रगति न की होती तो क्या आज ये भिखारी पैकड खाना, मिनरल वाटर के साथ अच्छी शराब पी रहे होते और उसके बाद चैन की नींद!









-सुदर्शन कुमार सोनी