नशे में धुत लड़खड़ाते मित्र को सहारा देकर घर छोड़ने आये सुनील ने याद दिलाया, "देखो जगपाल तुम्हें कितनी बार समझाया है, सराब पीना अच्छी आदत नहीं है इससे न केवल तुम्हारा स्वास्थ्य बिगड़ रहा है अपितु रिश्तेदारों, सगे संबंधियों और समाज में भी बदनामी हो रही है।"
"बदनामी! कैसी बदनामी अरे तुम क्या जानो समाज में हमारी कितनी इज़्ज़त होती है। लोग स्पेशल कमरे में बिठाते हैं, दारू, सलाद, नमकीन और अन्य ज़रूरी सामान इज़्ज़त के साथ वहीं छोड़ कर जाते हैं और हाँ खाना भी वहीं टेबल पर आता है शान से। तुम पीते नहीं हो न तुम क्या जानो कितनी इज़्ज़त करते हैं लोग। अरे तुम्हें तो कोई यह भी नहीं पूछता होगा कि खाना भी खाया है या नहीं," जगपाल ने लड़खडाती जुबान से जवाब दिया।
"तुम्हारी बात सोलह आने सच है, खाने पीने वालों का मेज़बान पूरा पूरा ध्यान रखते हैं, इतना ही नहीं गंदी नाली में गिरने पर उठाया भी जाता है। और लड़खड़ाने पर घर तक भी छोड़ा जाता है, जैसे मैं तुम्हें छोड़ने आया हूँ, लेकिन मित्र यह इज़्ज़त नहीं सहानुभूति है। ठीक उसी प्रकार जैसे एक मरीज़ के प्रति रखी जाती है, जिस प्रकार एक बीमार व्यक्ति की सुख सुविधा का ध्यान रखा जाता है। और रही बात खाने के लिए पूछने की तो वह इसलिए पूछा जाता क्योंकि नशा न करने वाला व्यक्ति अपना ध्यान स्वयं रख सकता है, उसे कब क्या चाहिए वह माँग लेता है," सुनील ने उतर दिया। सुनील का जवाब सुन जयपाल उसे देखता ही रह गया।
..............अनन्त आलोक
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (22-01-2018) को "आरती उतार लो, आ गया बसन्त है" (चर्चा अंक-2856) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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बसन्तपंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
nice lines, looking to convert your line in book format publish with HIndi Book Publisher India
जवाब देंहटाएंSahi
जवाब देंहटाएंnice article
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