रविवार, 5 जनवरी 2025

02 ..बावरी कोयलिया




मद भरी मादक
सुगंध से 
आम्र मंजरी की
पथ-पथ में....

कूक कूक कर
इतराती फिरे
बावरी
कोयलिया....

है जाती
जहाँ तक नजर
लगे मनोहारी
सृष्टि सकल
छा गया
उल्लास....चारों 
दिशाओं में
री सखि देखो
बसन्त आ गया

-दिग्विजय 




2 टिप्‍पणियां:

  1. क्या बात है भाईसाब आपकी पंक्तियों ने तो सच में बसन्त को जगा दिया। सबसे अच्छा लगा कि आपने सब कुछ इतने हल्के लेकिन खूबसूरत तरीके से लिखा, ना ज़्यादा शब्दों का बोझ, ना किसी भारी भाषा का दिखावा। बस जैसे दिल ने देखा और सीधा कागज़ पे उतार दिया।

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