बुधवार, 8 जनवरी 2025

03 ... ऐ बसन्ती पात पीले

 गीतिका छन्द (एक बंद ब्लॉग से)



ऐ बसन्ती पात पीले, हाथ पीले मैं चली,
बिछ गई रौनक सजीली, है छबीली हर कली ।

आम पर नव बौर आई, ठौर पाई रीत की,
रात कोयल गुनगुनाई, राग डोली प्रीत की ।

आ गए राजा बसन्ती, क्या छटा रस रूप की
मैं निराली संग हो ली, चिर सुहागिन भूप की ।

नाम मेरा सरस सरसों, बरस बीते मैं खिली,
देख निज राजा बसन्ती, पुलकती फूली फली ।

अब हवा में छैल भरती, गैल भरती नेह की,
ज्यों बढ़ाती धूप नन्दा, नव सुगन्धा देह की ।

रात भर चलती बयारें, टोह मारे बाज सी,
प्राण सेतू बह्म सींचें, आँख मींचे लाज सी ।

देस धानी प्रीत घोले, मीत बोले नैन में,
तन गुजरियाँ राह चलतीं, ढार मटकी चैन में ।

त्योंरियाँ छैला गुलाबी, यों चढ़ाता मान से,
धार से काँकर बजाता, मोह लेता गान से ।

करुणा सक्सेना
मूल रचना

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