सोमवार, 27 जनवरी 2025

05 ..जलियाँवाला बाग में बसंत


जलियाँवाला बाग में बसंत



(जलियाँवाला बाग की घटना बैसाखी को घटी थी,
बैसाखी वसंत से सम्बंधित महीनों (फाल्गुन और चैत्र)
के अगले दिन ही आती है)

यहाँ कोकिला नहीं, काग हैं, शोर मचाते,
काले काले कीट, भ्रमर का भ्रम उपजाते।

कलियाँ भी अधखिली, मिली हैं कंटक-कुल से,
वे पौधे, व पुष्प शुष्क हैं अथवा झुलसे।

परिमल-हीन पराग दाग सा बना पड़ा है,
हा! यह प्यारा बाग खून से सना पड़ा है।

ओ, प्रिय ऋतुराज! किन्तु धीरे से आना,
यह है शोक-स्थान यहाँ मत शोर मचाना।


वायु चले, पर मंद चाल से उसे चलाना,
दुःख की आहें संग उड़ा कर मत ले जाना।

कोकिल गावें, किन्तु राग रोने का गाएं,
भ्रमर करें गुंजार कष्ट की कथा सुनावें।

लाना संग में पुष्प, न हों वे अधिक सजीले,
तो सुगंध भी मंद, ओस से कुछ कुछ गीले।

किन्तु न तुम उपहार भाव आ कर दिखलाना,
स्मृति में पूजा हेतु यहाँ थोड़े बिखराना।

कोमल बालक मरे यहाँ गोली खा कर,
कलियाँ उनके लिये गिराना थोड़ी ला कर।

आशाओं से भरे हृदय भी छिन्न हुए हैं,
अपने प्रिय परिवार देश से भिन्न हुए हैं।

कुछ कलियाँ अधखिली यहाँ इसलिए चढ़ाना,
कर के उनकी याद अश्रु के ओस बहाना।

तड़प तड़प कर वृद्ध मरे हैं गोली खा कर,
शुष्क पुष्प कुछ वहाँ गिरा देना तुम जा कर।

यह सब करना, किन्तु यहाँ मत शोर मचाना,
यह है शोक-स्थान बहुत धीरे से आना।



-सुभद्रा कुमारी चौहान


शनिवार, 25 जनवरी 2025

04 ..मैं हैरान हूँ ... महादेवी वर्मा


(इतिहास में छिपाई गई एक कविता) 

' मैं हैरान हूं,
 यह सोचकर ,
किसी औरत ने क्यों नहीं उठाई उंगली ..??
तुलसी दास पर ,जिसने कहा ,
"ढोल ,गंवार ,शूद्र, पशु, नारी,
ये सब ताड़न के अधिकारी।"

मैं हैरान हूं ,
किसी औरत ने
क्यों नहीं जलाई "मनुस्मृति"
जिसने पहनाई उन्हें
गुलामी की बेड़ियां .??

मैं हैरान हूं ,
किसी औरत ने क्यों नहीं धिक्कारा ..??
उस "राम" को
जिसने गर्भवती पत्नी सीता को ,
परीक्षा के बाद भी
निकाल दिया घर से बाहर
धक्के मार कर
 मैं हैरान हूं ,
किसी औरत ने लानत नहीं भेजी
उन सब को, जिन्होंने
" औरत को वस्तु समझ कर "
लगा दिया था दाव पर
होता रहा "नपुंसक" योद्धाओं के बीच
समूची औरत जाति का चीरहरण ..??
महाभारत में ?

मै हैरान हूं ,
यह सोचकर ,
किसी औरत ने क्यों नहीं किया ..??
संयोगिता अंबा -अंबालिका के
दिन दहाड़े, अपहरण का विरोध
आज तक !

और मैं हैरान हूं ,
इतना कुछ होने के बाद भी
क्यों अपना "श्रद्धेय" मानकर
पूजती हैं मेरी मां - बहने
उन्हें देवता - भगवान मानकर..??
मैं हैरान हूं,
उनकी चुप्पी देखकर
इसे उनकी सहनशीलता कहूं या
अंध श्रद्धा , या फिर
मानसिक गुलामी की पराकाष्ठा .??

महादेवी वर्मा जी की यह कविता, 
किसी भी पाठ्य पुस्तक में नहीं रखी गई है,
क्यों कि यह भारतीय  संस्कृति पर गहरी चोट करती है..

#नारी #नारीशक्ति #औरत #संस्कृति #भारतीय

बुधवार, 8 जनवरी 2025

03 ... ऐ बसन्ती पात पीले

 गीतिका छन्द (एक बंद ब्लॉग से)



ऐ बसन्ती पात पीले, हाथ पीले मैं चली,
बिछ गई रौनक सजीली, है छबीली हर कली ।

आम पर नव बौर आई, ठौर पाई रीत की,
रात कोयल गुनगुनाई, राग डोली प्रीत की ।

आ गए राजा बसन्ती, क्या छटा रस रूप की
मैं निराली संग हो ली, चिर सुहागिन भूप की ।

नाम मेरा सरस सरसों, बरस बीते मैं खिली,
देख निज राजा बसन्ती, पुलकती फूली फली ।

अब हवा में छैल भरती, गैल भरती नेह की,
ज्यों बढ़ाती धूप नन्दा, नव सुगन्धा देह की ।

रात भर चलती बयारें, टोह मारे बाज सी,
प्राण सेतू बह्म सींचें, आँख मींचे लाज सी ।

देस धानी प्रीत घोले, मीत बोले नैन में,
तन गुजरियाँ राह चलतीं, ढार मटकी चैन में ।

त्योंरियाँ छैला गुलाबी, यों चढ़ाता मान से,
धार से काँकर बजाता, मोह लेता गान से ।

करुणा सक्सेना
मूल रचना

रविवार, 5 जनवरी 2025

02 ..बावरी कोयलिया




मद भरी मादक
सुगंध से 
आम्र मंजरी की
पथ-पथ में....

कूक कूक कर
इतराती फिरे
बावरी
कोयलिया....

है जाती
जहाँ तक नजर
लगे मनोहारी
सृष्टि सकल
छा गया
उल्लास....चारों 
दिशाओं में
री सखि देखो
बसन्त आ गया

-दिग्विजय 




गुरुवार, 2 जनवरी 2025

01 मौन.. पहाड़ का


नग्न काया
परवत का
बजा रहा
संगीत 
पतझड़ का

कुछ विरहगान
गुनगुनाती
पहाड़ी लड़कियाँ
गीत में...है 
समाया हुआ
दुःख पहाड़ का

सिकुड़कर 
लाज से
सिसकते सिकुड़ी सी 
नदी 'औ'
जंगल तोड़ रहे
मौन...पहाड़ का

और नदी के
छलछलाने की
आवाज़ भी
भंग करती है
मौन ... पहाड़ का 
- दिग्विजय