मंगलवार, 19 जनवरी 2021

टॉप स्टोरी ....पक्षियों सी बोली, घोंसलों से घर

 अफ्रीकी देश तंजानिया अनोखी आदिम जनजातियों की मातृभूमि रही है और उन्हीं में से एक है पाषाण कालीन शिकारी जनजाति- हडजा।   

 हडजा समुदाय की जिसका सिर्फ इतिहास पाषाण युग से नहीं चला आ रहा बल्कि यहां की परंपराएं आज भी उतनी ही प्राचीन हैं। हडजा लोग अपना घर गुफाओं और पठारी इलाकों में ठीक उसी तरह बनाते हैं जैसे कोई पक्षी अपना घोंसला बनाता है। ये लोग लाठी और टहनियों को एक-दूसरे से बुनकर अपने झोपड़े का निर्माण करते हैं जो दूर से देखने पर जमीन पर पड़े किसी विशालकाय घोंसले के जैसे ही लगते हैं। 

पक्षियों सी बोली, घोंसलों से घर...

कालीन परिस्थितियों में ही अपने आप को समेटे हुए निवास कर रहे हैं। पुरातत्वविदों का मानना है कि हडजा लोग पाषाण युग के समय से ही अपने उसी परिवेश में आज तक रह रहे हैं और वैसा ही व्यवहार भी कर रहे हैं। यहां तक कि ये लोग एक-दूसरे से बातचीत के लिए किसी भाषा का नहीं बल्कि मुंह में अपनी जीभ से स्मैकिंग या पॉपिंग जैसी ध्वनि के जरिए सिटी जैसी आवाज निकालते हैं। होठों से निकली इसी तरह की आवाज के जरिए ये अपने समुदाय के सदस्यो से संवाद स्थापित करते हैं। ये लोग न तो बोलना जानते हैं, न पढ़ना-लिखना। मुंह से निकली सीटी जैसी आवाज की विविधता से ही ये लोग अपने मनोभावों को एक-दूसरे को जाहिर करते हैं।


ऐसे ही चली आ रही परंपरा.....

भाषा के अभाव में हडजा लोगों का कोई लिखित इतिहास मौजूद नहीं है। वे एक पीढ़ी से अपनी दूसरी पीढ़ी तक अपने इतिहास को अपनी खुद की सीटी बजाने वाली भाषा 'क्लिकिंग' के जरिए ही पहुंचाते हैं। क्लिकिंग भाषा दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है जो सिर्फ इस समुदाय में सीमित है। हडजा लोग ना किसी कैलेंडर का उपयोग करते हैं और ना ही किसी घड़ी का। ये लोग आज भी सूर्य और चन्द्रमा की गतिविधियों से अपने समय का निर्धारण करते हैं।



हडजा 10 हजार साल पुरानी सभ्यता के साथ ही जी रहे हैं। ये धनुष और तीर से बंदर, लंगूर, पक्षी, हिरण, मृग और भैंसों का शिकार करते हैं और समूह में रहते हैं। हडजा धरती पर सबसे ज्यादा समय तक शिकार पर जीवित रहने वाली बची हुई जनजातियों में से एक है। हडजा लोगों के हर दिन के पांच घंटे शिकार में ही बीतते हैं। इसके बाद समुदाय के वयस्क पुरुष नशे में अपना समय व्यतीत करते हैं। हडजा जनजाति के लोग अपने पछियों के घोंसले जैसे झोपड़े में नौ-दस घंटे तक एक ही मुद्रा में आराम करते हैं।

कच्चा मांस खाता है ये शिकारी समुदाय

पिछले हजारों सालों में उनके जीवन के तरीके में कोई भी बदलाव नहीं आया है। वे अपने दिन की शुरुआत शिकार करने से शुरू करते हैं और शिकार के लिए एक जगह पर कुछ हफ्तों के लिए अपना शिविर बनाते हैं और फिर आगे बढ़ जाते हैं। हडजा लोग 5 या 6 साल पहले तक कच्चा मांस ही खाया करते थे। हालांकि, अब जाकर ये लोग एक या दो मिनट के लिए मांस को आग में भूनने लगे हैं। हडजा जनजाति के पुरुष शिकारी होते हैं। वे एडेनियम नामक झाड़ी के पत्तों से जहर प्राप्त करते है और उस जहर को अपने तीर और धनुष में लगाकर जानवरों का शिकार करते हैं जबकि हडजा महिलाएं और बच्चे जामुन, बाओबाब फल, कन्द , मूल जैसे खाद्य पदार्थो को इकट्ठा करती हैं।

शादी का बंधन नहीं ...

हडजा जनजाति के भीतर कोई नेता नहीं होता है। यहां सभी लोग समान होते हैं, न कि बड़े-छोटे। ये खानाबदोश लोग भोजन और पानी की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पैदल चलते रहते हैं। हडजा लोगो में शादी नाम की कोई प्रथा या परंपरा नहीं होती है, ये एक उन्मुक्त समाज है। ये रात में आग जलाकर कैंप फायर बनाते हैं और आग के चारों तरफ समुदाय की सभी औरतें और पुरुष सदस्य एक-दूसरे के आसपास बैठते हैं। वे एक-दूसरे को अपनी 'क्लिकिंग' भाषा में कहानी सुनाते हैं और बातचीत और नाच-गाना करते हैं।


मध्य रात्रि को जब ये कार्यक्रम खत्म हो जाता है, तो उसके बाद ये लोग उसी आग के चारों तरफ युगल जोड़े में सोते हैं और एक-दूसरे के साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं। अगर किसी किसी जोड़े का संबंध लंबे समय के लिए हो जाता है तो वे अपनी इच्छा से पति-पत्नी के रूप में रहते हैं, लेकिन इसे किसी शादी नाम की परंपरा से नहीं जोड़ा जाता। इस समाज में चाहे पुरुष हो या कि औरत ये सभी अपनी अपनी पसंद से अपनी जोड़ियां हमेशा बदलते रहते हैं और हर रात आग के चारों तरफ बदल-बदल कर एक-दूसरे के साथ शारीरिक संबंध बनाते हैं।

पूर्णिमा पर होता है खास उत्सव....

हडजा जनजाति में पूर्णिमा की रात का बहुत धार्मिक महत्व होता है। पूर्णिमा की रात्रि को हडजा लोग एक विशेष धार्मिक आयोजन करते है जिसे 'एपेम' कहते हैं। इस आयोजन के दौरान पुरुष अपने पूर्वजों की तरह कपड़े पहनते हैं और अपने समुदाय कि महिलाओं और बच्चों के लिए नृत्य करते हैं। इसी एपेम कि धार्मिक प्रदर्शनी के दौरान इस समुदाय कि वे लड़कियां जिन्हें पहली बार महावारी हुई होती है, वे इस समुदाय के उस लड़के के साथ शारीरिक संबंध बनाती हैं जिसने पहले किसी औरत के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाया हो। इस समारोह में जंगली जानवरों का शिकार करने वाले पुरुषों को सम्मानित भी करते हैं। उन्हें अपनी पसंद की महिला से शारीरिक संबंध बनाने की आजादी भी होती है।
साभार....
https://navbharattimes.indiatimes.com/world/other-countries/all-you-need-to-know-about-hadza-tribe-of-africa-which-talks-in-whistling-and-lives-in-nest-like-houses/articleshow/80315866.cms?story=5


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