लघु कथा
यह एक दिलचस्प वाकया है।
एक फाइनेंस कंपनी से फोन आता है कि 4 लाख का लोन आप ले सकते हैं। मैंने कहा घर आ जाओ बात करते हैं। अगले दिन सुबह 10 बजे दो युवक आ गए। सबकुछ ठीक था, लेकिन मामला मेरे पेशे पर अटक गया।
- उसने कहा की हम पत्रकार को लोन नहीं देते हैं।
- क्यों भाई? मैंने पूछा।
- हम पुलिस और वकील को भी नहीं लोन नहीं देते हैं। उन्होंने कहा।
- ऐसा क्यों ? मैंने फिर पूछा।
- कंपनी की पॉलिसी है। दोनों एक साथ बोले। वे भी मुस्करा रहे थे और मैं भी।
- अच्छा है। फोन करने से पहले पेशा पूछ लिया करो भाई। या झांसा देने की फिराक में रहते हो। सूदखोरों के चंगुल में फंसना कौन चाहता है? मुझे तो यकीन नहीं था कि तुम लोग आओगे। आ भी गए तो बात नहीं बनेगी यह भी यकीन था। मैंने थोड़ा रोष में कहा।
- क्यों? अब उन्होंने सवाल किया।
- क्योंकि हमसे फ्राड करना आसान नहीं है प्यारे....। मैंने मुस्कुरा दिया।
- वो तो है...कहते हुए वे दोनों चले गए।
हालांकि इस बीच वह चाय पी चुके थे।
अच्छी चाय पिलाने के लिए श्रीमती जी की तारीफ भी की....।
हालांकि इस बीच वह चाय पी चुके थे।
अच्छी चाय पिलाने के लिए श्रीमती जी की तारीफ भी की....।
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- ओमप्रकाश तिवारी
अमर उजाला, रोहतक
सूदखोरों के चंगुल में फंसना कौन चाहता है?
जवाब देंहटाएंआज के समय में यही सब चल रहा है..समसामयिक कथा..
जवाब देंहटाएं:) सुन्दर
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