"अंतर का दायरा "
“माँ, नींद नहीं आ रही। कहानी कहो न।" पांच साल के सोनू ने बिस्तर पर लेटे -लेटे माँ,मधु से मनुहार की। आतँकियों से मुठभेड़ में शहीद हुए लेफ्टीनेंट अरूण की पत्नी थी मधु। पति की मृत्यु के बाद मिले रूपये घर बनवाने में खत्म हो गये। घर में बूढ़े सास-ससुर भी थे । बस, पेंशन पर किसी तरह गुजारा हो रहा था। नन्हा सोनू हालात रोज देखता और जल्दी से जल्दी बड़ा होकर माँ के लिये , दादा-दादी के लिये कुछ करना चाहता था। बेटे को पढ़ा- लिखा कर फौजी बनाना ही सपना था इसलिये रोज पति की बहादुरी के किस्से सुनाती और रोज हंसकर पूछती,"मेरा राजा बेटा क्या बनेगा?" पहले तो सोनू झट से ,कभी फौजी,कभी डॉक्टर,तो कभी-कभी पायलट कह देता था।
आज भी सुबह जब मधु ने हंसकर पूछा," मेरा राजा बेटा क्या बनेगा ?"
"सोचूंगा।" सोनू का जवाब अचकचा गया था मधु को। मन में कुछ खटक रहा था।
अचानक सोनू उठकर बैठ गया।
"मैने सोच लिया माँ। क्या बनना है बड़े होकर। खूब पैसे कमाऊंगा।
फिर हम सब खूब आराम से रहेंगे।" सोनू की आँखों में चमक थी।
"अच्छा वो कैसे?"
"आतंकी बनकर सरेन्डर कर दूंगा।"
मधु सन्न थी और सोनू की निगाह अटकी थी, अखबार में छपी न्यूज पर..
सीमा पर हुए शहीद की शहादत को दस लाख और सरेन्डर करने वाले आतंकी को दो करोड़...।
अंतर का दायरा बहुत बड़ा था।
-जितेन्द्र कुमार गुप्ता
कटु सत्य व्यक्त करती रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी कहानी कटु सत्य उजागर कर रही है..जिसका अवलोकन होना चाहिए..
जवाब देंहटाएंकैसी-कैसी विसंगतियों से भरा है सामाजिक जीवन -बहुत गहरी चोट की है आपने!
जवाब देंहटाएंआभार दीदी
हटाएंहृदय स्पर्शी रचना, महिला दिवस की बधाई हो आपको नमन, शुभ प्रभात
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