शुक्रवार, 14 मार्च 2014

होली के रंग.........अम्बरीश



 
भीनी भीनी मोरी चुनरिया
कान्हा की रंग गई चदरिया

चांदी की थाली अबीर-रोली सजाई
माथे पे बिंदिया, काजल नैना रचाई

राधा संग रसिया जी आओ
पान बताशा भोग लगाओ
कजरी गाओ धूम मचाओ
तन-मन उमंगपिय होली मनाओ

झांझ बजी खंजड़ी बजी खड़ताल
मन तरंग चंदन सजी,तबला झपताल

अंग-अनंग बसंती रची होली नूतन रंग
चुनरी अम्बरीश से सने छंदो की भंग

रंगरेजन की नांद में कैसे उआंसो जाय
ढोल-नंगाड़ो का हुड़दंग
मस्त-मलंग हुई जाय...

-अम्बरीश
बुधवार को प्रकाशित मधुरिमा की कविता

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर ..
    होली की शुभकामनायें!

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  2. रंगों से सराबोर पंक्तियाँ |
    होली कि बहुत-बहुत बधाई |

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  3. मुझे इसमें भक्ति, श्रृंगार और मस्ती तीनों का सुंदर मेल दिखता है। शब्द ऐसे बहते हैं जैसे ढोल और खड़ताल की ताल कानों में गूंज रही हो। राधा-कान्हा की छवि बहुत सहज और जीवंत लगती है। पान, बताशा, कजरी और अबीर सब मिलकर पूरा माहौल बना देते हैं।

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