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शुक्रवार, 14 मार्च 2014

होली के रंग.........अम्बरीश



 
भीनी भीनी मोरी चुनरिया
कान्हा की रंग गई चदरिया

चांदी की थाली अबीर-रोली सजाई
माथे पे बिंदिया, काजल नैना रचाई

राधा संग रसिया जी आओ
पान बताशा भोग लगाओ
कजरी गाओ धूम मचाओ
तन-मन उमंगपिय होली मनाओ

झांझ बजी खंजड़ी बजी खड़ताल
मन तरंग चंदन सजी,तबला झपताल

अंग-अनंग बसंती रची होली नूतन रंग
चुनरी अम्बरीश से सने छंदो की भंग

रंगरेजन की नांद में कैसे उआंसो जाय
ढोल-नंगाड़ो का हुड़दंग
मस्त-मलंग हुई जाय...

-अम्बरीश
बुधवार को प्रकाशित मधुरिमा की कविता

गुरुवार, 30 जनवरी 2014



Photo: मुझे तोहमत कोई देकर जुदा होता तो अच्छा था 
कि हममें से कोई एक बेवफा होता तो अच्छा था .....

तड़प नज़दीक आने की दिलों में उम्र भर रहती 
हमारे बीच थोडा फासला होता तो अच्छा था ........

बज़ाहिर शक़्ल पर मेरी बहुत से झूठ लिक्खे थे 
मेरे भीतर कोई आकर मिला होता तो अच्छा था ......

समझती सब थी तेरी बातों से,आँखों से,चेहरे से 
मगर ऐ काश तूने कह दिया होता तो अच्छा था.......

लतीफों का चलन,बदहाली से दम तोड़ते अशआर.....
मैं एक शायर न होकर मसखरा होता तो अच्छा था..........
(नए मरासिम में प्रकाशित)

                     सचिन अग्रवाल

मुझे तोहमत कोई देकर जुदा होता तो अच्छा था

कि हममें से कोई एक बेवफा होता तो अच्छा था  


तड़प नज़दीक आने की दिलों में उम्र भर रहती

हमारे बीच थोडा फासला होता तो अच्छा था 


बज़ाहिर शक़्ल पर मेरी बहुत से झूठ लिक्खे थे

मेरे भीतर कोई आकर मिला होता तो अच्छा था 


समझती सब थी तेरी बातों से,आँखों से,चेहरे से

मगर ऐ काश तूने कह दिया होता तो अच्छा था


लतीफों का चलन,बदहाली से दम तोड़ते अशआर

मैं एक शायर न होकर मसखरा होता तो अच्छा था


(नए मरासिम में प्रकाशित)


सचिन अग्रवाल

 


शनिवार, 18 जनवरी 2014

मैं हारा अपनी आदत से................प्रमोद त्रिवेदी

मैं हारा
मैं हारा अपनी आदत से।

कहते हैं लोग- "यह गुलाम, अपनी आदत का।
मजबूर, अपनी आदत से"।
यह मेरी कमजोरी।


कहते हैं सब- "पा सकता है कोई भी ।
चाहे तो इस टेव से मुक्ति।
असंभव नहीं कुछ भी"।

सोचता किन्तु मैं,
इस सोच से अलग
बचेगा ही क्या,
छूट गई यदि मुझसे
मेरी आदत,

क्या मतलब रह जाएगा तब
मेरे होने का।


फूल खिलते हैं आदतन।
जानते हैं,
तोड़ लिए जाएंगे खिलते ही
या बिखर जाएंगे
पंखुड़ी-पंखुड़ी खिलते ही
तब भी कहां छोड़ा खिलना।
छोड़ा नहीं नदी ने बहना
खारे होने के डर से।


सुना है अभी-अभी
आदत से मजबूर तो गिरे गड्‌ढे में।
मरे,

अपने जुनून में।

मैं हंसा फिर
अपनी आदत के मुताबिक।

-प्रमोद त्रिवेदी