नग्न काया
परवत का
बजा रहा
संगीत
पतझड़ का
कुछ विरहगान
गुनगुनाती
पहाड़ी लड़कियाँ
गीत में...है
समाया हुआ
दुःख पहाड़ का
सिकुड़कर
लाज से
सिसकते सिकुड़ी सी
नदी 'औ'
जंगल तोड़ रहे
मौन...पहाड़ का
और नदी के
छलछलाने की
आवाज़ भी
भंग करती है
मौन ... पहाड़ का
- दिग्विजय
बहुत मार्मिक कविता !
जवाब देंहटाएंवाकई पहाड़ सिसक रहा है क्योंकि उसका सब कुछ धीरे-धीरे उजड़ रहा है.
आभार
जवाब देंहटाएंवंदन
सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंवाह
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूबसूरत सृजन...सही कहा आपनें पहाड़ सिसक रहे हैं ...
जवाब देंहटाएंऐसा लगा जैसे पहाड़ खुद अपने दुख सुना रहे हों, पतझड़ का संगीत, पहाड़ी लड़कियों के विरहगान, और नदी की सिसकती आवाज़, हर लाइन ने कुछ न कुछ महसूस करवाया। मुझे वो हिस्सा बहुत पसंद आया जहाँ नदी और जंगल भी पहाड़ के मौन को तोड़ते हैं, वाकई में क्या गज़ब की कल्पना है!
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