रविवार, 20 मई 2018

दर्द...अति लघु कथा (अलक)....व्हाट्'अप


शाम से ही सीमा के सीने में बायीं तरफ़ हल्का दर्द था। पर इतने दर्द को तो औरतें चाय में ही घोलकर पी जाती हैं। सीमा ने भी यही सोचा कि शायद कोई झटका आया होगा और रात के खाने की तैयारी में लग गई।किचन निपटाकर सोने को आई तो विवेक को बताया। विवेक ने दर्द की दवा लेकर आराम करने को कहा।साथ ही ज़्यादा काम करने की बात बोलकर मीठी डाँट भी लगाई।
  
देर रात को अचानक सीमा का दर्द बढ़ गया था। सॉंस लेने में भी उसे तकलीफ़ सी होने लगी थी। “कहीं ये हार्ट अटैक तो नहीं ! ”ये विचार मन में आते ही वो पसीने से भर उठी।

       “हे भगवान! पालक-मेथी तो साफ़ ही नहीं किए,मटर भी छिलने बाक़ी थे।ऊपर से फ़्रीज़ में मलाई का भगोना भी पूरा भरा रखा हुआ है,आज मक्खन निकाल लेना चाहिए था। अगर मर गई तो लोग कहेंगे कि कितना गंदा फ़्रीज़ कर रखा था। कपड़े भी प्रेस को नहीं डाले।चावल भी ख़त्म हो रहे हैं, आज बाज़ार जाकर राशन भर लेना चाहिए था। 
मेरे जाने के बाद जो लोग बारह दिनों तक यहाँ रहेंगे, उनके पास तो मेरे मिस-मैनेजमेंट के कितने सारे क़िस्से होंगे।”

      अब सीमा सीने का दर्द भूलकर काल्पनिक अपमान के दर्द को महसूस करने लगी। “नहीं भगवान! प्लीज़ आज मत मारना। आज ना तो मैं प्रिपेयर हूँ और ना ही मेरा घर।” यही प्रार्थना करते-करते सीमा गहरी नींद में सो गई
-व्हाट्'अप

शनिवार, 19 मई 2018

कम्प्यूटर में वायरस..रहस्य कथा....पुष्पेन्द्र द्विवेदी

लोनावला का एक सूनसान बंगला जिसमे शायद ही कोई रहता हो,
अरसे गुज़र गए इस बंगले के इर्द गिर्द कोई परिंदा भी भटका हो , वैसे ये बंगला एक बहुत बड़े फिल्म प्रोड्यूसर मिस्टर केशवदास मूलचंदानी का है , जो की ९० के दशक के मशहूर प्रोड्यूसर हुआ करते थे , 
अब वो इस दुनिया में नहीं रहे ,

उनका एक बेटा है रोहित जो लंदन में पढ़ लिख कर सेटल हो गया है , इस बंगले की देखभाल करने वाला अब कोई नहीं है, सारी प्रॉपर्टी मिस्टर मूलचंदानी के मैनेजर देखते हैं , इस बंगले के रखरखाव के लिए एक नौकर और एक वॉचमैन रख छोड़ा है ।

रोहित अपनी गर्लफ्रेंड के साथ इंडिया आता है घूमने के लिए , 
वो मैनेजर के साथ प्रॉपर्टी का मुआयना करता है , तब उसे पता 
चलता है उसका एक बंगला लोनावला में भी है ,वो उस बंगले में 
अपनी छुट्टियां बिताने का प्लान बनाता और दूसरे दिन सुबह 
लोनावला पहुंच जाता , बांग्ला सजा हुआ है नौकर ने बंगले 
को अच्छी तरह से साफ़ सुथरा कर रखा था ,
वो बंगले का मुआयना करता है , बंगले में एक कमरा है जिसमें एक पुराना कंप्यूटर रखा हुआ था , रोहित ने नौकर को बोला ये कंप्यूटर यहां क्यों रखा है , नौकर जवाब देता है साहेब ये कमरा आपके आने पर ही खुला है , इसके अन्दर जाने को किसी को इजाज़त नहीं थी , खैर, रोहित इस बात को नज़र अंदाज़ करता हुआ आगे बढ़ जाता है , रात होती है डिनर के बाद रोहित अपने लैपटॉप पर अपना काम करता है , वो थका हुआ रहता है काम की फाइल को डेस्कटॉप 
पर ही सेव करके सो जाता है ।

सुबह जब वो सो कर उठता है बेड टी पीते हुए लैपटॉप ऑन करता है , सेव की हुई फाइल खोलता है उसमे काम की जगह कुछ पोएट्री लिखी हुयी मिलती है , वो अपनी गर्लफ्रेंड से बोलता है नीस पोएट्री 
तुमने कब से पोएट्री लिखनी शुरु कर दी

मुझे अब तक बताया क्यों नहीं , गर्लफ्रेंड बोलती है क्या बकवास कर रहे हो मुझे पोएट्री में कोई इंटरेस्ट नहीं है , तब रोहित को लगता है 
हो सकता है , कल रात थकान ज़्यादा थी दो पैग व्हिस्की के मार भी लिया था , हो सकता है फाइल किसी और फोल्डर में सेव कर दिया 
हो , खैर इस बात को नज़र अंदाज़ कर देता है, और अपनी गर्लफ्रेंड के साथ बाहर घूमने निकल जाता है, फिर रात होती है वो आज डिनर बाहर से कर के लौटा है , वो सीढ़ियां चढ़ता हुआ सीधा अपने रूम में जाता है , उसकी गर्लफ्रेंड थक कर सो जाती है, 
वो आज फिर लैपटॉप पर काम करता है ।

तुम्हारे लैपटॉप में वायरस आ गया होगा एक बार स्केन कर लो रोहित लैपटॉप स्केन करता है ,वायरस नॉट फाउंड बताता है
अब रोहित की शंका बढ़ जाती है ,कि आखिर लैपटॉप में पोएट्री और रात में प्यानो आखिर कौन बजाता है, वो बंगले के
नौकर से पूछ ताछ-करता है मगर वो भी कोई संतोषजनक जवाब रोहित को नहीं दे पाते हैं , रोहित बंगले के हर एक
कमरे में सी सी टी वी कैमरा लगवा देता है , और अगले दिन का इंतज़ार करता है , सी सी टी वी फुटेज जब वह देखता है तो भौचक्का रह जाता है , ग्राउंड फ्लोर के हाल में रखा प्यानो रात १२ के बाद कोई स्केलटन बजा रहा था, और जिस कमरे में पुराना कम्प्यूटर रखा था वो पुराना कम्प्यूटर अपने आप चालू हो गया, और एक 
स्केलटन का पंजा उस कम्प्यूटर के की बोर्ड पर कुछ टाइप कर
  
रहा था, रोहित हैरान था की आखिर ये सब क्या हो रहा है , 
वो फ़ौरन उस रूम में जाता है जहां पुराना कम्प्यूटर रखा हुआ था , 
वो उस पुराने कम्प्यूटर को चालू करता है , किसी तरह वो उस पुराने
कम्प्यूटर को चालू करता है , मगर उस कम्प्यूटर से उसे ऐसा कुछ नहीं लगता की उसका कनेक्शन किसी भूत प्रेत के साथ हो , 
वो निराश होता है ।

वो कम्प्यूटर की हर एक ड्राइव का हर एक फोल्डर और फाइल चेक कर डालता है, की कहीं कोई सुराग मिल जाए , मगर ऐसा कुछ होता नहीं है , अब रोहित खुद उस कम्प्यूटर की रात भर निगरानी करने का फैसला लेता हैं , रात भर वो अकेला उस कमरे में कम्प्यूटर के पास बैठता है, जैसे ही रात के १२ बजते हैं कम्प्यूटर अपने आप 
चालू हो जाता है ,

कम्प्यूटर की स्क्रीन पर टाइप होता है हाय रोहित ,तुम मुझे नहीं जानते मगर मैं तुम्हे जानता हूँ , मैं अरविन्द मजूमदार तुम्हारे पिता जी की फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिखता था, बात उन दिनों की है जब हम एक पोलिटिकल इशु पर फिल्म बना रहे थे , मैं यही इसी बंगले में उस समय नौकरों के साथ अकेला यहीं राइटिंग करता था, हम जिस फिल्म की स्क्रिप्ट पर काम कर रहे थे वो ख़त्म होने वाली ही थी उस फिल्म में उस समय के बहुत बड़े नेता के भ्रष्टाचार का
भंडाफोड़ होने वाला था, मुझ पर और केशवदास मूलचंदानी जी पर काफी प्रेशर था की मुँह मांगी कीमत लो और फिल्म
का काम रोक दो , मगर न प्रोडूसर साहेब रुके न मैं माना, आखिर कार एक रात मुझे और मेरे साथ के नौकर का इसी
बंगले में क़त्ल कर दिया , और स्क्रिप्ट की फाइल को कम्प्यूटर में से उड़ा दिया गया , मूलचंदानी जी ने पुलिस कंप्लेंट की सी बी आई 
जांच हुई , मगर मामला लीप पोत दिया गया, फिल्म बीच में ही रोकनी पड़ी , और तब से मेरी आत्मा इस बंगले में भटक रही है , रात काफी हो जाती है और रोहित वहीँ कुर्सी पर बैठा बैठा ही सो जाता है , सुबह जब उसकी नींद खुलती है उसे सब सपना सा लगता है ।

वो अब निश्चय कर चुका था की वो इस नेता की घिनौनी करतूत को जनता के सामने लेकर दम लेगा , और अरविन्द
मजूमदार जी की भटकती आत्मा को इन्साफ दिलाकर ही दम लेगा , रोहित को ये बात पता थी उसकी इस बात पर न
कानून न न्यायालय न भांड मीडिया कोई भरोसा नहीं करेगा , 
उसने नेट का सहारा लिया और सभी सोशल साइट्स पर
इस घटना का लाइव शो दिखाया , और आखिर कार सबको यकीन मानना पड़ा केस री-ओपन हुआ सबूत जुटाए गए नेता
जी की तो खैर उम्र हो चुकी थी , फिर भी उनकी करतूत का खामियाजा पार्टी और उनके आल-औलाद को भुगतना पड़ा ।

रविवार, 13 मई 2018

सत्रह हाथी...विजय विक्रान्त

सेठ घनश्याम दास बहुत बड़ी हवेली में रहता था। उसके तीन लड़के थे। पैसा, नौकर, चाकर, घोड़ा गाड़ी तो थी ही, मगर उसे अपने ख़ज़ाने में सबसे अधिक प्यार अपने 17 हाथियों से था। हाथियों की देखरेख में कोई कसर न रह जाए, इस बात का उसे बहुत ख़्याल था। उसे सदा यही फ़िक्र रहता था कि उसके मरने के बाद उसके हाथियों का क्या होगा। समय ऐसे ही बीतता चला गया और सेठ को महसूस हुआ कि उसका अंतिम समय अब अधिक दूर नहीं है।

उसने अपने तीनों बेटों को अपने पास बुलाया और कहा कि मेरा समय आ गया है। मेरे मरने के बाद मेरी सारी जायदाद को मेरी वसीयत के हिसाब से आपस में बाँट लेना। एक बात का ख़ास ख़्याल रखना कि मेरे हाथियों को किसी भी किस्म की कोई भी हानि न हो।

कुछ दिन बाद सेठ स्वर्ग सिधार गया। तीनों लड़कों ने जायदाद का बंटवारा पिता की इच्छा अनुसार किया, मगर हाथियों को लेकर सब परेशान हो गए। कारण था कि सेठ ने हाथियों के बंटवारे में पहले लड़के को आधा, दूसरे को एक तिहाई और तीसरे को नौवाँ हिस्सा दिया था। 17 हाथियों को इस तरह बाँटना एकदम असम्भव लगा। हताश होकर तीनों लड़के 17 हाथियों को लेकर अपने बाग में चले गए और सोचने लगे कि इस विकट समस्या का कैसे समाधान हो।

तभी तीनों ने देखा कि एक साधू अपने हाथी पर सवार, उनकी ही ओर आ रहा है। साधू के पास आने पर लड़कों ने प्रणाम किया और अपनी सारी कहानी सुनाई। साधू ने कहा कि अरे इस में परेशान होने की क्या बात है। लो मैं तुम्हें अपना हाथी दे देता हूँ। सुनकर तीनों लड़के बहुत खुश हुए। अब सामने 18 हाथी खड़े थे। साधू ने पहले लड़के को बुलाया और कहा कि तुम अपने पिता की इच्छा अनुसार आधे यानि नौ हाथी ले जाओ। दूसरे लड़के को बुलाकर उसने एक तिहाई यानि छ: हाथी दे दिए। छोटे लड़के को उसने बुलाकर कहा कि तुम भी अपना नौंवाँ हिस्सा यानि दो हाथी ले जाओ। नौ जमा छ: जमा दो मिलाकर 17 हाथी हो गए और एक हाथी फिर भी बचा गया। लड़कों की समझ में यह गणित बिलकुल नहीं आया और तीनों साधू महाराज की ओर देखते ही रहे। उन सब को इस हालत में देखकर साधू महाराज मुस्काए और आशीर्वाद देकर तीनों से विदा ले, अपने हाथी पर जिस दिशा से आए थे, उसी दिशा में चले गए। इधर यह तीनों सोच रहे थे कि साधू महाराज ने अपना हाथी देकर कितनी सरलता और भोलेपन से एक जटिल समस्या को सुलझा दिया।
-विजय विक्रान्त

रविवार, 6 मई 2018

रविवार की छुट्टी का काला सच

रविवार की छुट्टी का काला सच जिसे कोई नही जानता

हम सबको को सप्ताह में रविवार की छुट्टी का इंतजार रहता है 
लेकिन इस छुट्टी का इतिहास कोई नही जानता है। हम सब जानते हैं की हमे आजादी के लिए कितना संघर्ष करना पड़ा था।उसी प्रकार हमें रविवार की छुट्टी के लिए भी संघर्ष करना पड़ा था। जब भारत में 
अंग्रेजो का शासन था तो भारत के मजदूरों और कर्मचारियों को सप्ताह के सातों दिन कार्य करना पड़ता था।

तब यह सब देखकर मजदूरों के नेता श्री नारायण मेघा जी लोखंडे ने सप्ताह में एक दिन की छुट्टी का प्रस्ताव अंग्रेजो के सामने रखा था।उन्होंने ब्रिटिश सरकार से कहा कि हमारे मजदुरों और कर्मचारियों को सप्ताह में एक दिन की मिलना चाहिए जिससे वह एक दिन का समय आराम से उनके परिवार और मित्रों के साथ बिता सके।

इन सब के साथ श्री नारायण ने रविवार का दिन चुना क्योकि रविवार के दिन अंग्रेज चर्च जाते थे और यह हिन्दू मान्यताओं के अनुसार भगवान खण्डोभ का दिन था।लेकिन अंग्रेजों ने उनके इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।इसके बाद आठ सालों तक संघर्ष चला जिसके बाद अंग्रेजों ने रविवार की छुट्टी देने की घोषणा की थी।