मंगलवार, 26 सितंबर 2017

एक हिंदी लेखक....सेवा सदन प्रसाद

आज एक अलक....एक हिंदी लेखक

मोबाइल की घंटी बजी। ऑन करने पे आवाज आई -- "हेलो,  सुधीर जी नमस्कार ।"
" नमस्कार भाई साहब ।"
" सुधीर जी, आपकी कहानी बहुत अच्छी लगी
"कैसी कहानी  ? " सुधीर जी ने थोड़ा आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा ।
" अरे वही ' त्रासदी ' कहानी जो इस माह के मैगजीन में छपी है ।"

सुधीर जी को तो पता भी नहीं फिर भी अपने सम्मान की सुरक्षा हेतु बोल पड़े -- " हाँ, अभी देखी नहीं है ।"
" बस आपको मुबारकबाद देने के लिए फोन किया ।"
फोन कटते ही सुधीर जी दौड़ पड़े बुक स्टाल की ओर ।पत्रिका को उलट पुलट कर देखा। कहानी तो छपी थी पर जेब में इतने पैसे नहीं थे कि पत्रिका खरीद सके। बस वापस लौट पड़े ।
फिर लेखकीय प्रति के लिए पोस्ट आॅफिस का चक्कर। जब एक सप्ताह तक पत्रिका नहीं मिली तो संपादक महोदय को फोन किया ।संपादक महोदय ने बिंदास उत्तर दिया -- " हमारे यहां जिनकी भी रचना छपती है, हम प्रति भेज देते हैं ।शायद डाक में गुम हो गईं होगी ।आप लेखक हैं इसीलिए दूसरी प्रति आधे दाम में मिल जायेगी।
सुधीर जी बुत बन गये ।


- सेवा सदन प्रसाद
इस अलक ने लेखक की आज की परिस्थियों का सही आंकनल किया है


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