शनिवार, 21 जनवरी 2017

विश्व बैंक की रिपोर्ट व एक भिखारी से संवाद....सुदर्शन कुमार सोनी

एक लम्बी लघु कथा.......
भोपाल के बोर्ड ऑफ़िस चौराहे पर स्थित, "मोटल सिराज" से एक कार्यक्रम अटेंड कर मैं अपने ग़रीबखाने में वापिसी के लिये अपनी कार उठाने पैदल मुख्य सड़क के नीचे की सड़क पर जा रहा था कि थोड़ा आगे जाने पर मुझे मुख्य सड़क से लगी एक संकरी सीमेंट रोड पर दो शख़्स थोड़ी दूरी पर आमने-सामने बैठे दिखे। मैं रिश्तेदारी में एक जन्मदिन कार्यक्रम के लज़ीज़ खाने को उदरस्थ करने के उपरांत-की स्थिति में था। अतः मेरी नज़र दोनों भिखारियों पर चली गयी वह पालथी मारकर आमने-सामने बैठे थे और उनके सामने कई टिन फ़ॉयल रखी थी, कुछ खुल गयी थी कुछ बंद थी। बाजू में एक बाटली भी रखी दिख रही थी जिसमे पीले भूरे रंग का कोई द्रव भरा था। मेरी नज़रों ने तुरन्त पहचान लिया कि ये भाई दिनभर की कमाई के बाद अपना डिनर कर रहे हैं। साथ में बाटली से पैग भी मार लेते होंगे। क्योंकि बाटली कुछ खाली लग रही थी।
चूँकि हमारा पेट भरा हुआ था और आप तो जानते ही हैं कि जब पेट भरा हो तो समाजसेवा के लिये दिल बल्लियों उछलने लगता है। हम ठिठक गये भिखारी देखने नहीं उसके ठाठ का आकलन करने! और इसलिये भी हमें ज़्यादा कौतुक हो रहा था क्योंकि विश्व बैंक की ग़रीबी पर हालिया आयी रिपोर्ट हमें यहाँ प्रथम सही लग रही थी! ये भिखारी "हाथ कंगन को आरसी क्या" की उक्ति चरितार्थ कर रहे थे। "विश्व बैंक" ने अभी हाल में ही अपनी रिपोर्ट में कहा है कि पूरे विश्व में ग़रीबी कम हो रही है, और इसकी कम होने की सबसे ज़्यादा दर भारत में रही है। बीस सौ पन्द्रह में भारत में ग़रीब कुल जनसंख्या का दस प्रतिशत से भी कम रहे थे। यह भारत जैसे देश के लिये एक अच्छी स्थिति कही जा सकती है, अब ये बात अलग है कि बहुत से लोग ग़रीबों की संख्या कम होने से दुखी हो रहे होंगे यह आप बेहतर जानते हो कि इसमें कौन-कौन हैं? और इसी का प्रत्यक्ष आकलन का मौक़ा सड़क किनारे बैठे भिखारियों के रूप में आ खड़ा होने से हमारे क़दम अपने आप ही रुक गये थे।
हम भिखारी से सवाल-जबाब के मूड में आ गये थे। इन दो भिखारियों को पहले वैसे हम कोई मज़दूर समझ रहे थे जो कि सड़क के किसी गड्ढे को पूरने का काम कर रहे होंगे या कि नये गड्ढे करने का काम कर रहे होंगे! और हम आप सब जानते ही हैं कि हमारे यहाँ नयी सड़क नगरनिगम या लोक-निर्माण विभाग के बनाने के बाद ही बीएसएनल या अन्य किसी मोबाईल कंपनी को केबल के लिये सड़क खोदने की याद आती है तो या तो हमने सोचा कि गड्ढा करने या गड्ढा पूरने के काम में लगे मज़दूर होंगे ये।
लेकिन हमारे इस सवाल पर भिखारी ने अजीब सा मुँह बनाया! बोला साहब मज़दूरी-वज़दूरी के काम में कुछ नहीं रखा ये सब हम कर के छोड़ चुके हैं घाटे का धंधा है?
मैंने आश्चर्य से कहा, कुछ नहीं रखा, आजकल तो भोपाल में मज़दूर को चार सौ रुपये से अधिक हर दिन मिलता है?
वह बोला तो इसमें कौन सी ख़ास बात है इससे अधिक ही हम रोज़ अपने इस नये काम में कमा लेते हैं! और उसने सामने बैठे अपने साथी भिखारी की ओर पुकार कर कहा क्यों भीखू ग़लत कह रहा हूँ क्या?
भीखू ने पहले तो एक घूँट हलक़ के अंदर किया फिर बोला लालू आज तो छैः सौ रही कमाई मेरी! तुम्हारी कितनी तो वह बोला छैः सौ तो नहीं पाँच सौ के लगभग रही।
मुझे यह सुन लगा कि जो कहते हैं कि अच्छे दिन नहीं आये हैं वे ग़लत हैं सबसे पहले तो इन्हीं के आये हैं! मैंने आगे कहा कि यह खाना वग़ैरह टिन फ़ॉयल में कहाँ से लाये हैं आप दोनों? ये पार्टी वाले दे गये होंगे? इस पर वह नाराज़ हो गया बोला साहब हम माँग कर नहीं खाते मेहनत की कमाई का खाते हैं! भीख माँगने का यह मतलब नहीं है कि हम खाना भी माँगें लोगों से! हमारे उसूल के ख़िलाफ़ है यह।
वह आगे बोला साहब लगता है अभी आपके पास टाईम ही टाईम है पेट भरा है न, ठीक है हम भी मस्ती में हैं तो बात कर लेते हैं! लेकिन धंधे के टाईम पर इस एमपीनगर में हमारे पास एक मिनट का भी समय नहीं रहता है! पूरे टाईम चौराहे में एक ओर की बत्ती लाल रहती है और हम बस यहीं पर कार वालों को लाचारी व विवशता की बत्ती देकर अपना काम करते हैं।
यह एमपीनगर है सामने देखो वो "अमित शुक्ला क्लासेस" फिर वो बोर्ड देखो "रिजवी सर" और न जाने कितने कोचिंग संस्थान है यहाँ अपने पूरे एमपी से आये कई हज़ार बच्चे फ़ास्ट फ़ूड खाकर ही ज़िंदा रहते हैं। इसमें कम से कम साफ़-सफ़ाई तो रहती है वैसे भी स्वच्छ भारत अभियान चल रहा है और सब हाथ में झाड़ू उठाकर फोटो खिंचवा चुके हैं! तो हमारा भी तो इस दिशा में कोई फ़र्ज़ बनता है!
मैं आश्चर्य चकित कि यह तो "उन्नत कृषक" की तरह "उन्नत भिखारी" है! वो आगे बोला कि साहब बनाने-खाने के लफड़े में कौन पड़े सौ रुपये से कम में खाना बढ़िया पैक आ जाता है। जो बुलाना है बुला लेते हैं और साथ एक बाटली ले आते हैं, तो दिन भर की थकान व ग़म दूर हो जाते हैं और उसने एक घूँट तुरन्त मार ली बाटली से, मैं देखता रह गया कि यह नये ज़माने के भिखारी हैं जो कि पैकड खाना खाते हैं। हम और आप बाहर का अवाईड करते हैं कि कौन पैसे ख़र्च करे लेकिन ये दिलेरी से ख़र्च करते हैं।
मेरे चुप रहने पर वह पिज़्ज़ा का एक टुकड़ा मुँह में अंदर ठूँसते हुये बोला, क्या सोच रहे हो साहब कि हम भिखारी होकर मिले खाने की जगह यह क्यों खा रहे है?
साहब ऐसा है अपने भी कुछ सिंद्धांत हैं हम कोई राजनैतिक दल या नेता नहीं हैं कि चाहे जब रंग बदल लें। हम भिक्षा में खाना नहीं लेते केवल नगदी लेते हैं।
मैंने कहा कि क्या रोज़ ही आप लोग "रेडी टू ईट" खाना खाते हो?" वह थोड़ा तल्ख़ होकर बोला क्या आप रोज़ खाना नहीं खाते हो जो ऐसा सवाल कर रहे हो? आज के ज़माने में कौन चिक-चिक करे हर चीज़ पैकड मिलती है और आप देख ही रहे हो कि कितना मोटर कारों का प्रदूषण है यहाँ यदि हम चूल्हा जला कर पकायेंगे तो एक बीमार हो जायेंगे दो कितना समय बरबाद होगा इतने में तो हम न जाने कितना कमा लेंगे भीख से? मैंने सोचा समय प्रबंधन की क्या सीख दी है इसने।
मैंने उत्सुकता से पूछा पानी कहाँ से लाते हो?
तो उसने मुस्कुराकर अपनी दाँयी ओर दबी एक दूसरी बाटली निकाल ली हम हैरान रह गये। यह मिनरल वाटर की बॉटल थी एक उसके बाँये ओर बाटली दूसरी दाँये ओर बाटली।
दूसरा भिखारी बोला, साहब बाहर का पानी पीना भी ख़तरे से खाली नहीं है? हम आश्चर्यचकित रह गये इनके यह ठाठ देखकर हम यहाँ से आगे ही नहीं बढ़ पा रहे थे। हमें लगा कि विश्व बैंक की रिपोर्ट कितनी सटीक रहती है! हम हमेशा से ही इसके पक्षधर रहे हैं! आज देखो इस देश का भिखारी भी मज़े कर रहा है! ग़रीबी कम हो रही है तभी तो यह स्थिति बनी है!
हम यह सोच ही रहे थे कि मोबाईल की रिंगटोन बजने की आवाज़ आयी हमें लगा कि हमारा मोबाईल बजा है। घर से बाहर हुये घंटा भर हो गया है अतः यह बीवी ने फोन पर घंटी का घंटा बजा दिया। जेब में हाथ डाला तो हमारा मोबाईल शांत था हमने पत्नी को मन ही मन धन्यवाद दिया। लेकिन साथ ही यह सोचा कि ज़रूर वह चैनल में कोई सास-बहु का अच्छा सीरियल देखने में व्यस्त हो गयी होगी नहीं तो ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि हर घंटे वह फोन पर हमारी क्लास न लें? हमने देखा कि भिखारी का मोबाईल बज रहा था जेब से उसने उसे निकाल कर बाहर कर दिया था।
मैंने कहा बात तो कर लो? कोई ख़ास बात होगी तो वह बोल उठा अरे साहब अपन रात को डिनर के समय फोन नहीं उठाते। और हमें मालूम है यह किसका होगा। इस समय हमारा अगले चौराहे पर बैठा दोस्त खा-पीकर मस्त हो गया होगा तो अब वह हमें इसी समय फोन करता है दिनभर की एक्सपीरिंयस शेयरिंग होती है। या बीट का सिपाही होगा स्साला आये दिन भीख माँगता है।
हम आश्चर्य-चकित थे कि ये तो पढ़ा-लिखा भिखारी जान पड़ता है! हमारी नज़र सामने हंटर बीयर के चमकते विज्ञापन पर गयी हमें लगा कि आज हमें इस भिखारी से साक्षात्कार होकर अंदर से हंटर की मार जैसा लग रहा है?
वह फिर बोल उठा साहब आपको कष्ट हो रहा है न कि हम जैसा भिखारी मिनरल वाटर व पैकड खाना व महँगी शराब पी रहा है? साहब सबकी अपनी-अपनी क़िस्मत है!
मैंने कहा लेकिन इस माँगने के काम में तुम्हे अपनी आत्मा कचोटती महसूस नहीं होती?
वह बोला इस देश में किसी की आत्मा किसी भी बात से कचोटती नहीं है। सब पहले की भाँति चलता रहता है चाहे विस्फोट में सौ लोग मर जायें, मिनी बस में गैंग रेप हो जाये, पुल टूटने पर दो लोग मर जायें, मंदिर में भगदड़ मचने से लोग मर जायएं बस उस पर थोड़ी सी तात्कालिक चर्चा होती है फिर सब पहले की ही तरह शांत हो जाता है! सब लोग फिर अपने अपने गुंताड़े (अपने अपने काम) में लग जाते हैं। यहाँ के नीच प्रकृति के लोग तो सर्जीकल स्ट्राईक पर भी सवाल उठाते हैं। वो जो चीन है वाल वाला वह भी कहता है सीमा पार कोई वाल या फेंसिग भारत लगायेगा तो गड़बड़ हो जायेगा!
मैंने सोचा कि इसे इतनी सब जानकारी कैसे है, तो वह भाँप गया बोला साहब यह भोपाल है। यहाँ अख़बारों की कमी नहीं है यहाँ हर हफ़्ते एक नया अख़बार निकलता है! जो बाल श्रम क़ानून के पालन की बात करते हैं वही अख़बार शाम तीन बजे से बच्चों के माध्यम से चौराहों पर बिकवाते हैं और हमारी यह स्थायी गद्दी है। हमें दो-तीन अख़बार मुफ़्त में मिलते हैं और फिर मुफ़्त के अख़बार को पढ़ने का अलग मज़ा है!
मैंने अब यहाँ से खिसक लेना ही उचित समझा। मैंने जाते-जाते देखा कि आखिरी घूँट लेने के बाद वे दोनों मस्ती में वही लुढ़क गये थे। मैंने सोचा कि दिलजले मानें या न मानें इस देश ने प्रगति न की होती तो क्या आज ये भिखारी पैकड खाना, मिनरल वाटर के साथ अच्छी शराब पी रहे होते और उसके बाद चैन की नींद!









-सुदर्शन कुमार सोनी

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