रविवार, 9 फ़रवरी 2014

धीरे से उसको गुन-गुना लूँ तो चले जाना........राहुल भारद्वाज



हाल-ऐ-दिल अपना सुना लूँ तो चले जाना
तुमको हमराज़ बना लूँ तो चले जाना

कब तलक छुपाउंगा अपनी उल्फत तुमसे
इकरार- ऐ-मोहब्बत जो कर लूँ तो चले जाना

शर्म-ओ-हया से रुख पर जैसे बिखरी ज़ुल्फ़े
उनको रुख पर मैं सजा लूँ तो चले जाना

तेरे हुस्न पर फ़िदा है यहाँ दीवाने कई
तुम को नज़रो में छुपा लूँ तो चले जाना

जाम बहोत पिये तेरी कातिल नज़रो से मैंनें
एक जाम तुझे होठों से पिला लूँ तो चले जाना

एक मुद्दत से प्यासा हूँ में तेरी चाहत का
तुझ को एक बार सीने से लगा लूँ तो चले जाना

तुम मुझ को ही चाहो और दुनिया भुला दो
जादू ये इश्क का चला लूँ तो चले जाना

तुम को दिल में बसा कर लिखी है यह “ग़ज़ल”
धीरे से उसको गुन-गुना लूँ तो चले जाना
- राहुल भारद्वाज

5 टिप्‍पणियां:

  1. कब तलक छुपाउंगा अपनी उल्फत तुमसे
    इकरार- ऐ-मोहब्बत जो कर लूँ तो चले जाना

    अगर वो मान जाएँ तो पूरी उमे गुज़ार दूं इस इकरार में ही ...
    लाजवाब शेर है ...

    जवाब देंहटाएं
  2. तुम मुझ को ही चाहो और दुनिया भुला दो
    जादू ये इश्क का चला लूँ तो चले जाना

    waah bahut hi pyari rachna

    shubhkamnayen

    जवाब देंहटाएं
  3. वाह, कितनी प्यारी ग़ज़ल है! हर शेर में सच्ची मोहब्बत और दिल की बात झलकती है। इसमें प्यार, इंतज़ार और चाहत सब कुछ है, बहुत सादे लेकिन असरदार शब्दों में। ऐसी ग़ज़लें दिल को छू जाती हैं, लगता है जैसे कोई अपने दर्द और प्यार को सच्चाई से बयां कर रहा हो।

    जवाब देंहटाएं