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शनिवार, 26 अगस्त 2017

आईना भी ख़फ़ा हो गया.....डॉ.यासमीन ख़ान

तू जो मुझसे जुदा हो गया
आईना भी ख़फ़ा हो गया।।

ढ़ूंढ़ती हूँ उसे दर- ब- दर।
जो हसीं पल हवा हो गया।।

पहले ऐसा नहीं था कभी 
वक्त क्यों बेवफ़ा हो गया।।

याद आने लगी है तेरी
ज़ख़्मे दिल फिर हरा हो गया।।

भूख वो ही,वही मुफ़लिसी।
साल कैसे नया हो गया।।

मंज़िलों के लिये आज तो।
जिस्म भी रास्ता हो गया।।

फ़िक़्र है हम सभी की यही।
क्या तवक़्क़ो थी क्या हो गया।।

"यास्मीं" अब तिरा ये बदन।
ख़्वाब का मक़बरा हो गया।।

-डॉ.यासमीन ख़ान