सोमवार, 21 अप्रैल 2014

जुगाड़............मनीषा साधू










आज बुलाया है दोस्तों ने
"बैठेंगे मिल के चार यार.." स्टाईल में

सोच रहे हैं, क्या-क्या करेंगे तैयारियाँ
कोई बनायेगा बहानें घर में
’वर्कलोड’ के
कोई देगा और कारण ओवरटाईम का

लायेगा कोई ख़ास ब्रांड
विलायत से गिफ़्ट आया
और बड़ों का शरबत बताकर
बीवी के माध्यम से बच्चों से बचाया गया

किसी के खाली पड़े दफ़्तर में
पहले ही पहुँच चुके होंगे
दराज में काँच के गिलास
इसे करना है अब बाकी का ’जुगाड़’

ऑफ़िस खतम होने के इंतज़ार में
ये जिये जा रहा है बाद वाले पल
शर्ट की तरह
यह भी अस्त-व्यस्त हो गया है,
इन दिनों कि तरह
सोच रहा है, थोड़ा समय निकाल कर
टी-शर्ट डाल लेता, या डिओ ही मार आता थोड़ा
पर घर जा कर आने की कल्पना ही
उसका उत्साह खतम करती
वही बीवी, वही घर, वही बच्चें, वही माँगें,
और वही ’वह’.. खुशनसीब पापा बना हुआ
प्यारी सी बीवी का प्यारा सा पति..

वो हाथ से ही बाल ठीक करता है
टेबल पर रखे काँच में देखकर
हाथों से कमीज की सिलवटें साफ़ करता
जैसे मन की ही कर रहा हो

तसल्ली देता अपने आपको
कि आज भी वह
कॉलेज के दिन खतम करता
नौजवान ही तो है
तुलना करता है दोस्तों के ज़रा
ज़्यादा दिखाई देते गंजेपन से
अपने बढ़ते हुये माथे की

कल्पना से ही नाप लेता है
सब के पेट के घेरे इंचों में
और फिर
खुशनसीब दोस्त बना फिरने का
उत्साह बटोरता है मन में
एक-दूसरे को चिढ़ाने के
लिये वही पुराने नाम लडकियों के
दोहराता है मन में,
और वही एक-दूसरे को लजाते किस्से

और धीमे पड़ते ठहाके, शादी की बातें आते-आते
आज का दिन तो बातों में भी
दुबारा जीना नहीं चाहता कोई..
सब ठीक-ठाक कर
बस निकलने को उठता है
समय की इस जेल से

तो फोन बज उठता है

’सुनों पप्पू के पापा...
आज जल्दी घर आना होगा,
माँ-बापू आये है गाँव सें अचानक..’
अचानक ही तो हमेशा उसके अरमानों पर..
सोचते सोचते झटक देता है सर
कुर्सी में सुन्न सा बैठ
हाथ मुँह के सामने धर;
साँस छोड़कर देखता है..

नहीं छुपा सकेगा...
बापू की नाक
आज भी बड़ी तेज़ है!
बड़े यत्न से किया आज के दिन का ’जुगाड़’
वही दराज में बंद कर देता है

और खुशनसीब बापू का बेटा
एक बार फिर
घर की ही ओर मुड़ता है
-मनीषा साधू
स्रोतः साहित्य कुंज 
http://www.sahityakunj.net/ 

5 टिप्‍पणियां:

  1. कल्पना से ही नाप लेता हैसब के पेट के घेरे इंचों में
    Bahut sundar

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  2. इस कविता ने तो ऑफिस की दिनचर्या और उस बीच छुपी हल्की-सी बग़ावत को इतने असली अंदाज़ में पकड़ लिया है कि पढ़ते-पढ़ते लगा जैसे सामने ही कोई दोस्त तैयार हो रहा हो पार्टी के लिए। दोस्तों से मिलने का जोश, पुराने कॉलेज वाले किस्सों का मज़ा, और फिर अचानक शादी-बच्चों की जिम्मेदारियों का बोझ—पूरा कॉन्ट्रास्ट बहुत ही ईमानदारी से सामने आया है।

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