शनिवार, 21 सितंबर 2024

एक प्लेट हलवे की कीमत

 एक प्लेट हलवे की कीमत




जगदीश प्रसादजी चुपचाप बैठे हुए बड़ी बहू गीता की बातों को सुनते जा रहे थे !
लग रहा था कि किसी भी समय वो अपना धीरज खो बैठेंगे, पर किसी तरह उन्होंने अपने-आप को काबू में रखा हुआ था !
गीता थी कि अनवरत बोलती जा रही थी !
बात बस इतनी सी थी कि पिछले 3-4 दिन से जगदीश प्रसादजी के दांतों में कष्ट हो रहा था, वे दर्द से बेहाल थे!
डॉक्टर को दिखाया था, उसने दांत को निकलवाने की सलाह दी थी, पर दर्द के कारण ये संभव न था, अतः डॉक्टर ने दर्द कम करने की दवा दी थी और कहा था कि दर्द खत्म हो जाए तभी दांत निकाला जाएगा !
दांत-दर्द की वजह से वे कुछ खा-पी नहीं पा रहे थे, इसीलिए बहू को खिचड़ी बनाने के लिए कहा था, पर उसने दो सूखी चपाती और सूखी सब्जी बेटे के हाथ भिजवा दी थी !
जगदीश प्रसादजी ने थाली को हाथ भी नहीं लगाया ! उधर बहू गीता जोर-जोर से चिल्ला-चिल्ला कर बोल रही थी कि जब खाना नहीं होता तो पहले से ही बता दिया करो, कितना भी करो इनके नखरे खत्म नहीं होते !
वो ये बात समझने के लिए तैयार ही नहीं थी कि दांत-दर्द की वजह से ससुरजी चपाती चबाने में असमर्थ हैं, और वह गुस्से में थाली उठाकर बाहर चली गयी !
जगदीश प्रसादजी ने एक गहरी सांस ली और अपनी छड़ी उठाकर अपने लंगोटिया दोस्त कैलाशनाथजी के घर की ओर चल दिए ! आज उनका दिल बहुत उदास था !
अपनी दिवंगत पत्नी की याद उन्हें आने लगी और सड़क के किनारे बनी एक बेंच पर वे बैठ गए ।
अतीत ने तीव्रता के साथ उनकी यादों में प्रवेश किया !
जगदीश प्रसादजी सरकारी कार्यालय में सेवारत थे ! उनके 3 बेटे थे अनिल, सुनील और राजेश ! तीनों ही पढ़ने में अच्छे थे !
उनकी पत्नी, कांता कम पढ़ी लिखी ज़रूर थी लेकिन वह एक मेहनती व स्वाभिमानी स्त्री थी,
जो कुशलता के साथ पूरे घर का संचालन करती थी !
मितव्यता क्या होती है - यह जगदीश प्रसादजी ने अपनी पत्नी से ही सीखा था! इसीलिए महीने के अंत में अपनी पूरी पगार वो पत्नी के हाथ में सौंप देते थे और खुद पूरी तरह निश्चिन्त हो जाते थे !
घर के मामलों में वे कभी भी नहीं बोलते थे, पर पत्नी को जब भी उनकी सलाह की ज़रुरत होती तो वे हरदम उसके साथ होते थे !
समय के साथ उनकी उन्नति होती गयी और बच्चे भी अच्छी शिक्षा प्राप्त कर चुके थे। अपने जीवनकाल में उनकी पत्नी ने एक जो सबसे अच्छा काम किया था वो था - मकान बनवाना !
शहर की एक अच्छी सी कालोनी में उसने अपने सपनो का संसार जो बसाया था !
जगदीश प्रसादजी ने ऑफिस से लोन लेकर व कुछ दोस्तों से मदद लेकर, पत्नी के इस सपने को पूरा किया था !
पहले मकान एक मंजिला था पर जब बच्चे बड़े हो गए तो जगदीश प्रसादजी ने हिम्मत करके मकान की दो मंजिलें और भी बनवा दी थीं ! उनके तीनों बेटों की शादी हो गयी थी और तीनों बेटों के दो-दो बच्चे भी हो गए थे !
जगदीश प्रसादजी अपने छोटे बेटे के साथ निचली मंजिल पर रहते थे !
शेष दोनों बड़े भाई अनिल व सुनील, दूसरी और तीसरी मंजिल पर रहते थे !
रसोई सबकी अलग-अलग थी बस त्यौहार वाले दिन सब एक जगह इकट्ठे होकर त्यौहार मनाते थे !
मुँह से तो कोई कुछ नहीं कहता था, पर छोटी बहू को बहुत तकलीफ होती थी कि सारा काम मुझे ही करना पड़ता है, दोनों भाभियाँ बस हाथ हिलाने के लिए आ जाती हैं ! उधर दोनों का कहना था कि भई, रसोई तो तुम्हारी है तो जिम्मेदारी भी तुम्हारी है !
पर ये बातें कभी भी झगड़े का रूप धारण नहीं कर पाती थीं, क्योंकि कांताजी खुद भी एक मेहनती महिला थी जो उम्र के इस दौर में भी चुस्त दुरुस्त थीं, सारा दिन कुछ न कुछ करते रहना उनकी आदत थी !
इसी कारण काम को लेकर तीनों बहुएँ ही उन पर निर्भर थीं !
जगदीश प्रसादजी जब भी अपनी पत्नी के साथ बैठते थे तो कहते थे के अब हमें किसी प्रकार की चिंता नहीं है ! पेंशन तो आएगी ही, हम दोनों का आराम से गुजारा हो जाएगा !
जवानी में जो सपने मैं तुम्हारे पूरे नहीं कर पाया- वो मैं अब करूँगा !
और पत्नी हल्के से मुस्करा कर अपनी सहमति प्रकट कर देती थी , पर जगदीश प्रसादजी का ये सपना पूरा नहीं हो पाया!
और एक दिन पत्नी अचानक उन्हें अकेला छोड़कर हमेशा के लिए चली गई !
पत्नी के जाने से, जगदीश प्रसादजी की तो जैसे दुनिया ही उजड़ गयी !
पर होनी को कौन टाल सकता था !
जिस पत्नी ने इतने यत्न से मकान की नींव बनाई थी उसमें अब दरारें पड़नी शुरू हो गईं थीं !
हालात अब इतने बदल गए थे कि त्यौहार के समय, घर के घर में, एक दूसरे को बधाई देने में भी सब को कष्ट होने लगा था !
कुल मिलाकर, सब अपनी-अपनी गृहस्थी में मस्त हो गए थे !
एक अकेले जगदीश प्रसादजी ही रह गए थे ,
जो सबकुछ समझ रहे थे, पर उम्र के इस दौर में पत्नी के जाने के बाद वे अपने आप को असहाय सा महसूस करने लगे थे !
दो दिन पहले ही वो जब अचानक घर में घुसे, तो उन्हें बेटों व बहुओं की आवाज़ सुनाई दी,
कौतूहलवश, वे चुपचाप खड़े हो गए !
उनके दुःख का ठिकाना न रहा, जब उन्होंने सुना कि तीनों बेटों ने उन्हें दो-दो महीने के लिए
बाँट लिया है !
छोटी बहू को शिकायत थी कि जब मकान में सबका बराबर का हिस्सा है, तो पिताजी की सेवा में भी सबका बराबर का हिस्सा होना चाहिए ! मैं भी थोड़ा आज़ाद रहना चाहती हूँ, जो पिताजी के कारण संभव नहीं हो पा रहा!
तकलीफ तो सब को हो गयी थी, पर कोई चारा ना था !
अब जगदीश प्रसादजी तीन हिस्सों में बँट गए थे !
ज़िन्दगी यूँ ही चलती जा रही थी, दो महीने एक बेटे के पास, दो महीने दूसरे बेटे के पास और फिर तीसरे के पास!
मुसीबत तो तब आती थी, जब कभी, महीने के अंत में यदि उनकी तबियत ख़राब हो जाती थी, तो उनका इलाज यह सोचकर नहीं कराया जाता था कि अब दो-चार दिन के बाद दूसरे बेटे के पास तो जाना ही है वो ही इलाज करा देगा !
आज जगदीश प्रसादजी के सब्र का बाँध टूट गया था !
दो दिन पहले ही उन्होंने दांत निकलवाया था ! उनका दिल कुछ मीठा कुछ गर्म कुछ नरम खाने का हो रहा था उन्होंने अपनी मँझली बहू को हलवा बनाने के लिए कहा, तो बहू का जवाब था कि मैं अभी खाली नहीं हूँ आपको और कुछ तो सूझता नहीं है, इस उम्र में भी खाने की पड़ी है !
दो दिन के बाद मोना (छोटी बहू) के पास जाएँगे वहीं खा लेना ! मैं किटी पार्टी के लिए लेट हो रही हूँ...
जगदीश प्रसादजी के सब्र का पैमाना छलक गया ! आज तक वो अपने बेटे बहुओं की सब ज्यादतियाँ बर्दाशत कर रहे थे ! पर आज तो हद हो गयी ! आँखें आँसुओं से भर गईं और वे कैलाशजी के घर चल दिए !
कैलाशजी उनके बचपन के मित्र थे ! शिक्षाप्राप्ति से लेकर सेवानिवृति तक दोनों साथ ही रहे ! कैलाशनाथ जी थोड़े व्यवहारिक बुद्धिवाले व्यक्ति थे ! वे दिल से नहीं दिमाग से सोचते थे ! उन्होंने अपने दोस्त को कई बार समझाया था कि थोड़ा रौब रखा करो ! तुम्हे किस बात की कमी है? मकान अभी तुम्हारे नाम है !
बेटे-बहू जब भी सिर पर बैठने की कोशिश करें, तो धमकी दे दिया करो, कि किसी को भी हिस्सा नहीं दूँगा !
पर जगदीश प्रसादजी को ये बात नामंजूर थी ! उनका कहना था कि जब मकान बनवाया ही बच्चों के लिए है तो ऐसा सोचना किसलिए ? लेकिन आज उन्हें लग रहा था कि अब कुछ करने का समय आ ही गया है !
कैलाश नाथजी से सलाह मशवरा करके, जगदीश प्रसादजी घर आए और अपनी पत्नी की तस्वीर के सामने आकर खड़े हो गए ! जैसे मन ही मन उनसे विचार विमर्श कर रहे हों !
एक दृढ निश्चय उनके चेहरे पर आया और वो भूखे पेट ही सो गए ! किसी ने भी उनसे खाने के लिए नहीं पूछा !
उन्हें पता था कि उनके तीनों बेटे पत्नियों के साथ गर्मी की छुट्टियों में बाहर जा रहे हैं !
किसी को भी यह ख्याल नहीं था कि पिताजी क्या खाएँगे ? कैसे रहेंगे ??
जगदीश प्रसादजी ने भी कुछ नहीं कहा !
उनका मानना था कि जब बेटे ही माँ-बाप को नहीं पूछते तो बहुओं से क्या उम्मीद रखना ! बहुएँ तो चाहती ही हैं कि किसी की सेवा न करनी पड़े ! वे तो सिर्फ़ अपने पति और अपने बच्चों में ही अपना परिवार देखती हैं !
सास-ससुर उन्हें बोझ लगने लगते हैं !
वे अपने अधिकारों के प्रति तो सचेत रहती हैं,
पर अपने कर्तव्यों की तरफ से आँख मूँद लेती हैं !
तीनों बेटों के, उन्हें इस तरह तन्हां छोड़ कर घूमने चले जाने के बाद, जगदीश प्रसादजी अपने  मित्र के साथ प्रॉपर्टी डीलर के पास गए !
प्रॉपर्टी डीलर कैलाश नाथजी के पुत्र का ख़ास दोस्त था उनसे मिलकर अपनी व्यथा बताई कुछ सलाह मशवरा किया व वापस आ गए !
20 दिन के बाद जब तीनों बेटे बहु प्रसन्नचित घर लौटे तो मकान पर ताला देखकर सबकी त्योरियाँ चढ़ गईं !
छोटी बहू मोना बोलने लगी- हद हो गई लापरवाही की,
पता था कि हम आज आ रहे हैं तो घर नहीं बैठ सकते थे !
उसके गुस्से का कारण भी था ! क्योंकि ये दो महीने पिताजी को उसके पास रहना था !
काफी देर इंतज़ार करने के बाद अनिल व सुनील कैलाश नाथजी के घर पहुँचे तो उनके पैरों तले की ज़मीन खिसक गयी, जब उन्हें पता चला कि पिताजी ने मकान डेढ़ करोड़ में बेच दिया है और अब वे कहाँ हैं किसी को कुछ पता नहीं !
तीनों बेटे-बहुओं को समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो गया है !
उन्हें लग रहा था कि यह एक भद्दा मजाक है जो पिताजी ने उनके साथ किया है ! दूर से देखने पर तो दुनिया वालों को भी यही लगता !
गुस्से में तीनों भाई उबल रहे थे !
पिताजी ऐसा कैसे कर सकते हैं ? ये उन सबकी समझ से बाहर था !
कोई चारा न देखकर, तीनों बेटे अपनी-अपनी ससुराल चले गए !
अगले दिन बड़े बेटे के पास कैलाश नाथजी का फ़ोन आया और उन्होंने तीनों पुत्रों को अपने पास आने के लिए कहा कि कुछ आवश्यक सूचना देनी है !
शाम तक का भी इंतज़ार सबको भारी पड़ रहा था !
कैलाश नाथजी के पास से जो सूचना उन्हें मिली, उससे तीनों की जुबान पर ताला लग गया ! दिमाग जैसे कुंद हो गया ! सोचने-समझने की शक्ति ने, जैसे साथ ही छोड़ दिया !
कैलाश नाथजी के अनुसार जगदीश प्रसादजी हरिद्वार चले गए हैं और उन्होंने वहाँ पर एक सुंदर छोटा सा घर ले लिया है तथा अब वे वहीं रहेंगे !
ये समाचार पूरे परिवार पर एक भारी प्रहार था ! बहुत अनुनय-विनय करने पर कैलाश नाथजी से वे पिताजी का पता प्राप्त कर सके और हरिद्वार की ओर उड़ चले !
पिताजी का यह कदम उनकी समझ से बाहर था !
हरिद्वार पहुँचकर, पिताजी को देखकर एक और झटका लगा कि पिताजी तो एकदम प्रसन्नचित और स्वस्थ लग रहे थे !
बेटे-बहुओं को देखकर उनके होंठो पर मुस्कान आ गई !
प्रसन्नता पूर्वक उनका स्वागत किया और 'दीपक'    कहकर किसी को आवाज़ दी !
आवाज़ सुनते ही 10-11 साल का एक लड़का सामने आकर खड़ा हो गया !
सबने कोतूहल से उसे देखा ! जगदीश प्रसादजी ने सबकी नजरों को नज़रअंदाज़ किया और दीपक को 6 प्लेट गरम-गरम हलवा लाने के लिए कहा !
इसी बीच जगदीश प्रसादजी सबसे बच्चों की कुशलता के बारे में जानते रहे !
तीनों बेटे एक-दूसरे की तरफ देख रहे थे कि कौन पहल करे ? पर किसी कि हिम्मत नहीं हो पा रही थी कुछ पूछने की !
इतने में दीपक एक ट्रे में गर्मागर्म हलवे की 6 प्लेट लेकर आ गया और सबको एक-एक प्लेट पकड़ा दी ! मगर किसी ने भी प्लेट को हाथ नहीं लगाया !
किसी को बोलते न देखकर, जगदीश प्रसादजी ने कमान अपने हाथ में ली और बोलने लगे...
तुम सबको हैरानी हो रही होगी और गुस्सा भी आ रहा होगा कि पिताजी को ये क्या सनक सवार हो गयी है?
लेकिन कारण भी तुम लोग जानते हो !
मैंने और तुम्हारी माँ ने, तुम लोगों को कभी भी किसी प्रकार की कमी नहीं आने दी !
तुम्हारी माँ ने मेरी, एक अकेली तनख़्वाह से, जीवनभर कितनी कुशलता से घर को चलाया...
ये मुझे, तुम सब को बताने की जरूरत नहीं है !
और आज मुझे ये कहने में कोई भी शर्म नहीं है कि उसने अकेले तुम सभी को अपने प्यार से बाँध रखा था !
पर तुम 6 लोगों ने अपने एक बाप को ही किस्तों में बाँट लिया...
चलो कोई बात नहीं... कम से कम दो वक़्त की रोटी तो शांति से दे सकते पर तुम सबसे वो भी नहीं हो पाया !
पार्लर और किट्टी पार्टी में जाने के लिए सभी के पास वक़्त था पर मेरी दो रोटियाँ सब को भारी पड़ रही थीं !


तुम सभी को अच्छी तरह से मालूम था कि जिसके पास भी मैं रहता था, अपनी पेंशन वहीं खर्च करता था, लेकिन मेरी दवाई के लिए किसी के पास पैसे नहीं होते थे !
तुम सबको अपने अधिकार तो याद रहे, मगर अपने बूढ़े पिता के प्रति, तुम्हारे कुछ कर्त्तव्य भी हैं, यह तुम में से किसी को भी याद नहीं रहा !
और फिर जब मेरे बेटे ही ऐसे हैं तो बहुओं से मैं क्या उम्मीद रखूँ ?
कहते-कहते जगदीश प्रसादजी का गला रुँध गया !


तीनों बेटे-बहुएँ चुपचाप नज़रें झुकाकर बैठे रहे !
जगदीश प्रसादजी ने दोबारा बोलना शुरू किया- "मेरा ये फैसला तुम्हें पसंद नहीं आएगा, यह मैं जानता हूँ, पर इसके जिम्मेदार भी तुम लोग ही हो ! तुम्हें पता चल गया होगा कि मैंने मकान बेच दिया है !
10-10 लाख मैंने अपने पोते-पोतियों के नाम से फिक्स्ड डिपोसिट करा दिए हैं, जो उनके बड़े होने पर उन्हें ही मिलेंगे !
मैंने यह घर खरीद लिया है। दो कमरे, किचेन, बाथरूम, टॉयलेट सभी सुविधाएँ हैं ! उसमें जो कमी थी वो मैंने जुटा ली हैं। मैंने इसके लिए एक आश्रम को 15 लाख रुपये दे दिए हैं।
मेरे मरने के बाद यह घर आश्रम की सम्पति हो जाएगा !
अभी-अभी जिस लड़के को तुमने देखा है वो एक अनाथ लड़का है जो उस आश्रम में रहता था ! और अब वह मेरे साथ रहता है !
मैंने एक अच्छे स्कूल में उसका नाम लिखवा दिया है। वह पढ़ता भी है और मेरी सेवा भी करता है !
5 लाख रुपये मैंने इसके नाम से भी जमा करा दिए हैं !
बाकी जो बचा, उसे मैंने बैंक में जमा करा दिए हैं !
बैंक से जो ब्याज़ आएगा व साथ ही मेरी जो पेंशन आती है,
उससे, मेरा और इस बच्चे का खर्च आराम से चल जाएगा !
अब तुम लोगों को मेरी तरफ से पूरी आज़ादी है जैसे चाहो वैसे रहो!
ये सब कहकर जगदीश प्रसादजी चुप हो गए, और आरामकुर्सी पर बैठकर अपनी आँखें बंद कर लीं !
तीनों बेटे-बहुओं को समझ नहीं आ रहा था कि पिताजी की इन बातों पर वे अपनी क्या प्रतिक्रिया प्रकट करें?
और सामने पड़ी हलवे की प्लेट को देखकर अलका बहू सोच रही थी कि- एक प्लेट हलवे की कितनी बड़ी कीमत सबको चुकानी पड़ गयी है...
 

शनिवार, 10 अगस्त 2024

ईश्वर महान है और वो कुछ भी कर सकता है।

 " एक चोर "



शनिवार, 3 अगस्त 2024

क्या आपको नहीं लगता कि प्राचीन लोगों के पास उन्नत उपकरण और प्रौद्योगिकियां थीं

 प्राचीन धरोहर

आप दुनिया के सबसे महान पुरातात्विक स्थलों में से एक को देख रहे हैं जिसे सिगिरिया कहा जाता है जिसे रावण के महलों में से एक माना जाता है। श्रीलंका में स्थित यह अद्भुत स्थल दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है, इसीलिए इसे दुनिया का 8वां अजूबा भी कहा जाता है। अब आप सोच रहे होंगे कि इस साइट में ऐसा क्या खास है। यह वास्तव में एक विशाल अखंड चट्टान है, लगभग 660 फीट लंबा, और आप देख सकते हैं कि इसका एक सपाट शीर्ष है, जैसे किसी ने इसे एक विशाल चाकू से काटा। शीर्ष पर अविश्वसनीय खंडहर हैं जो बेहद रहस्यमय हैं।

जैसा कि आप देख सकते हैं कि यहां और वहां बहुत सी अजीबोगरीब ईंट संरचनाएं हैं और यह न केवल आगंतुकों के लिए भ्रमित करने वाली है, बल्कि पुरातत्वविद भी पूरी तरह से यह नहीं समझ पा रहे हैं कि इन संरचनाओं का उपयोग किस लिए किया गया था। वे पुष्टि करते हैं कि आप जो कुछ भी देखते हैं वह कम से कम 1500 वर्ष पुराना है। लेकिन रहस्य यह नहीं है कि ये संरचनाएं क्या हैं, यह है कि इन संरचनाओं का निर्माण कैसे हुआ। प्राचीन बिल्डरों ने इन सभी ईंटों को चट्टान के शीर्ष पर ले जाने का प्रबंधन कैसे किया? बताया जाता है कि यहां कम से कम 30 लाख ईंटें मिलती हैं, लेकिन इन ईंटों को चट्टान के ऊपर बनाना असंभव होगा, यहां पर्याप्त मिट्टी उपलब्ध नहीं है। उन्हें इन ईंटों को जमीन से ले जाना होगा।

अब, वास्तव में विचित्र बात यह है कि जमीनी स्तर से कोई प्राचीन सीढ़ियां नहीं हैं जो चट्टान की चोटी तक जाती हैं। देखिए, ये सभी धातु सीढ़ियां पिछली शताब्दी में बनाई गई थीं। इन नई सीढ़ियों के बिना इस चट्टान पर चढ़ना काफी मुश्किल होगा। यह पूरी चट्टान अब विभिन्न प्रकार की सीढ़ियों से स्थापित है, यह एक अलग स्तर पर सर्पिल सीढ़ियाँ हैं। प्राचीन बिल्डरों ने बहुत सीमित सीढ़ियाँ बनाईं, लेकिन ये सीढ़ियाँ निश्चित रूप से ऊपर तक नहीं पहुँचीं। यही कारण है कि 200 साल पहले तक सिगिरिया के बारे में यहां तक कि स्थानीय लोगों को भी नहीं पता था क्योंकि ऊपर तक सीढ़ियां नहीं थीं। 1980 के दशक के दौरान श्रीलंकाई सरकार ने धातु के खंभों का उपयोग करके सीढ़ियों का निर्माण किया ताकि इसे एक पर्यटक स्थल के रूप में इस्तेमाल किया जा सके और मुर्गी ने इसे एक विरासत स्थल घोषित किया।

और यही कारण है कि जोनाथन फोर्ब्स के नाम से एक अंग्रेज ने 1831 में सिगिरिया के खंडहरों की "खोज" की। तो प्रारंभिक मानव सिगिरिया के शीर्ष पर कैसे पहुंचे? आइए मान लें कि इन बहुत खड़ी, जंगली इलाकों के माध्यम से चढ़ाई करना संभव है। लेकिन जमीनी स्तर से 30 लाख ईंटें लाने के लिए आपको उचित सीढ़ियों की जरूरत जरूर पड़ेगी। इसके बिना उन्हें शीर्ष पर पहुंचाना असंभव होगा। भले ही हम यह दावा करें कि ईंटों को चट्टान के ऊपर ही किसी चमत्कारी तरीके से बनाया गया था, यहां के निर्माण कार्य में सैकड़ों श्रमिकों की आवश्यकता होती। उन्हें अपना भोजन कैसे मिला? और टूल्स के बारे में क्या? उन्होंने अपने विशाल आदिम औजारों को कैसे ढोया? वे कहाँ आराम और सोते थे?

यहां केवल ईंटें ही नहीं हैं, आप संगमरमर के विशाल ब्लॉक भी पा सकते हैं। दूधिया सफेद संगमरमर के पत्थर इस क्षेत्र के मूल निवासी नहीं हैं। ये ब्लॉक वास्तव में बहुत भारी होते हैं, एक कदम बनाने वाले हर पत्थर का वजन लगभग 20-30 किलोग्राम होता है। और हम यहां हजारों संगमरमर के ब्लॉक पा सकते हैं। विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि संगमरमर प्राकृतिक रूप से आस-पास कहीं नहीं पाया जाता है, तो उन्हें 660 फीट की ऊंचाई तक कैसे ले जाया गया, खासकर बिना सीढ़ियों के? इसमें पानी की एक बड़ी टंकी भी है। यदि आप इसके चारों ओर ईंटों और संगमरमर के ब्लॉकों को नजरअंदाज करते हैं, तो आप समझते हैं कि यह ग्रेनाइट से बना दुनिया का सबसे बड़ा मोनोलिथिक टैंक है। यह पत्थर के ब्लॉकों को जोड़कर नहीं बनाया गया है, इसे ग्रेनाइट को हटाकर, सॉलिड रॉक से टन और टन ग्रेनाइट को निकालकर बनाया गया है।

यह पूरा टैंक 90 फीट लंबा और 68 फीट चौड़ा और करीब 7 फीट गहरा है। इसका मतलब है कि कम से कम 3,500 टन ग्रेनाइट को हटा दिया गया है। तो आप वास्तव में वापस बैठने के लिए एक मिनट ले सकते हैं और सोच सकते हैं कि मुख्यधारा के पुरातत्वविद सही हैं या नहीं। यदि मनुष्य ग्रेनाइट पर छेनी, हथौड़े और कुल्हाड़ी जैसे आदिम औजारों का उपयोग कर रहे होते, जो कि दुनिया की सबसे कठोर चट्टानों में से एक है, तो 3,500 टन को हटाने में वर्षों लग जाते। और इतने सालों में ये मजदूर अपना पेट कैसे पालते थे, जब उनके पास जमीनी स्तर तक जाने के लिए सीढ़ियां भी नहीं हैं? मुख्यधारा की इतिहास की किताबों में कुछ मौलिक रूप से गलत है जो प्राचीन लोगों को छेनी और हथौड़े से चट्टानों को काटने की बात करती है। लेकिन यह सिर्फ एक सिद्धांत नहीं है, हमारे आंखों के सामने वास्तविक सबूत हैं।
क्या यह अद्भुत नहीं है?

क्या आपको नहीं लगता कि प्राचीन लोगों के पास उन्नत उपकरण और प्रौद्योगिकियां थीं?


शनिवार, 18 सितंबर 2021

अफगानिस्तान वैसे तो अब तक बड़े-बड़े साम्राज्यों की कब्रगाह साबित होता आया है- अंजू अग्निहोत्री

 


हरि सिंह नलवा ने दो सदी पहले अफगानों पर कसी थी नकेल



अफगानिस्तान वैसे तो अब तक बड़े-बड़े साम्राज्यों की कब्रगाह साबित होता आया है। अपनी ऊबड़ खाबड़ टीलानुमा जमीन और वहां के कबीलाई बाशिंदों की आक्रमणकारी प्रवृत्ति व उनके बीच अंदरूनी संघर्ष के चलते दुनियाभर की ताकतवर शक्तियां कभी इस देश पर पूरा नियंत्रण नहीं कर पाई। और यही वजह है कि उन्हें अपने लहूलुहान सैनिकों के साथ अफरा-तफरी में वहां से जान बचाकर भागना पड़ा।
हालिया दौर में सोवियत संघ ने भी वहां 1980 तक अपनी फौज जमाए रखी और अमेरिका ने भी 9/11 के हमले के उपरांत 20 साल पहले अफगानिस्तान में अपनी फौज भेजी थी लेकिन दशकों तक कोई नतीजा न निकलते देख आखिरकार उन्हें अपनी सेना वापस बुलानी पड़ी। लेकिन आज से करीब दो सदी पूर्व वहां हरि सिंह नलवा नामक एक सिख योद्धा पटल पर उभरे जिन्होंने वहां इन विद्रोही प्रवृत्ति के लोगों की नाक में नकेल डाल दी और अपने अद्भुत युद्ध कौशल की बदौलत उसने अफगानिस्तान में ऐसे सिख योद्धा की साख बनाई जिससे अफगानी आज भी खौफजदा रहते हैं।



हरि सिंह नलवा दरअसल, महाराजा रणजीत सिंह की सिख खालसा फोर्स की अग्रिम पंक्ति का सबसे विश्वसनीय कमांडर थे। उन्होेंने 1800 की शुरुआत में महाराजा रणजीत सिंह की सेना में कदम रखा था। वह कश्मीर, हजारा और पेशावर के गवर्नर रहे। उन्होंने न सिर्फ तमाम अफगानों को शिकस्त दी और वहां सीमा के भीतर तमाम धर्मों पर नियंत्रण रखा, बल्कि अफगानियों को खैबर के रास्ते पंजाब में घुसने से भी रोका जो 1000 ई. से 19वीं सदी के शुरू तक विदेशी आक्रमणकारियों के लिए भारत में घुसपैठ का मुख्य रास्ता था। जीएनडीयू- अमृतसर के पूर्व कुलपति एसपी सिंह ने बताया कि अफगानिस्तान की जमीन को अजेय माना जाता था और हरि सिंह नलवा, जिन्होंने अफगानिस्तानियों की नाक में नकेल डाली थी, ने ही वहां विख्यात सिख योद्धा का नाम अर्जित किया। उनके शब्दों में, ‘अफगान दंत कथाओं में इस बात का जिक्र आता है कि जब भी कोई उद्दंड बच्चा वहां अपनी मां को ज्यादा तंग किया करता तो वह उसे हरि सिंह नलवा का नाम लेकर डरा दिया करती थीं। वह उन्हें कहती थीं कि बैठ जा वरना नलवा आ जाएगा और बच्चा भी तमाम शरारतें छोड़ आराम से बैठ जाता।’

उन्होंने आगे कहा, जब अफगान बार-बार पंजाब और दिल्ली का रुख करते तो महाराजा रणजीत सिंह ने अपना साम्राज्य सुरक्षित करने का फैसला किया और उन्होंने दो किस्म की सेनाएं तैयार करार्इं- एक में फ्रांस, जर्मनी, इटली, रशिया आदि के सैनिक भर्ती कराए गए जो उस समय के तमाम आधुनिक हथियारों और गोला-बारूद आदि से लैस थे, जबकि दूसरी सेना हरि सिंह नलवा के ही नेतृत्व में बनाई गई थी जो असल में महाराजा रणजीत सिंह के सबसे बड़े योद्धा थे और जिन्होंने अफगानिस्तान की ही प्रजाति हजारा के 1000 लड़कों को को हराया था जो संख्या में सिख सेना से तीन गुना कम थी। यही वजह है कि वर्ष 2013 में भारत सरकार ने उनकी बहादुरी और युद्ध कला को समर्पित डाक टिकट भी जारी की थी।

नलवा का नाम अफगानों के दिलों में सबसे ज्यादा खौफ पैदा करने वाला नाम कैसे बना, इसके जवाब में विख्यात इतिहासविद् सतीश के. कपूर ने कहा, ‘हरि सिंह नलवा ने अफगानों के खिलाफ कई युद्धों में हिस्सा लिया था और यही वजह है कि उनके कब्जे वाले कई इलाके अफगानों के हाथों से निकलते गए। यह सभी युद्ध नलवा के ही नेतृत्व में लड़े गए। जैसे 1807 में उन्होंने कसूर की जंग लड़ी जब वह मात्र 16 साल के थे और उन्होंने ही कुतुबद्दीन खान को करारी शिकस्त दी। 1813 में अटोक की जंग में नलवा ने अन्य कमांडरों के साथ मिलकर अजीम खान और उसके भाई दोस्त महोम्मद खान को हराया।

इन्हीं जंगों ने अफगानों के दिल में नलवा का ऐसा खौफ भर दिया कि वहां माताएं अपने उद्दंड बच्चों को उनका नाम लेकर डराने लगीं।’ उन्होंने बताया कि अफगान-पंजाब सीमा पर नजर रखने के लिए ही नलवा पेशावर में डटे रहे। इतिहासकार बताते हैं कि जमरूद की जंग में, जहां हरि सिंह नलवा की जान चली गई थी, दोस्त मोहम्मद खान ने अपने पांच बेटों के साथ सिख सेना के खिलाफ जंग में हिस्सा लिया था और हथियारों आदि की सीमित आपूर्ति सहित उसमें करीब 600 लड़ाके शामिल थे। जब भी अफगान लड़ाकों को पता चलता कि नलवा आ गया है तो वह भौंचक्के रह जाते और जंग के मैदान से भाग खड़े होते। लेकिन अपनी मौत से पहले घायलावस्था में भी उन्होंने अपनी सेना से कह रखा था कि जब तक लाहौर से सेना नहीं आ जाती, तब तक उसकी मौत की खबर न बताई जाए। बताया जाता है कि एक हफ्ते तक सिख सेना नलवा का सिर ऊपर उठाकर दुश्मन को दिखाती रही और तब तक लाहौर से अतिरिक्त सेना पहुंच गई जिसके बाद अफगान वहां से मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए।

हरि सिंह नलवा को महाराजा रणजीत सिंह के पोते नव निहाल सिंह की शादी में लाहौर जाना था, लेकिन वह वहां नहीं जा पाए क्योंकि वह एक कुशल प्रशासक थे और उन्हें शक था कि यदि वह वहां से गए तो दोस्त मोहम्मद खां मौके का फायदा उठाकर जमरूद पर आक्रमण कर देगा। क्योंकि हालांकि उसे भी शादी में न्यौता दिया गया था लेकिन वह वहां गया नहीं था। इतिहासकारों का मानना है कि यदि महाराजा रणजीत सिंह और उनके कमांडर हरि सिंह नलवा ने पेशावर और नॉर्थ-वैस्ट फ्रंटियर नहीं जीता होता, जो अब पाकिस्तान में है तो यह इलाका अफगानिस्तान में होता और फिर अफगानों की पंजाब और दिल्ली में घुसपैठ रोकना भी असंभव था।

यूं पड़ा नलवा नाम
हरि सिंह का जन्म 1791 में गुजरांवाला में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। उनके नाम के साथ नलवा उपनाम तब जुड़ा जब उन्होंने युवावस्था में एक बाघ का शिकार कर दिया था। उन्हें बाघ-मार भी कहा जाता है। बाघ के पलक झपकते ही हमला कर दिए जाने से उन्हें तलवार निकालने का भी मौका नहीं मिला तो उन्होंने बाघ का जबड़ा पकड़ लिया और धक्का देकर पीछे गिरा दिया। और फिर अपनी तलवार निकाली और बाघ को मार गिराया। तब महाराजा रणजीत सिंह को इस वाकये का पता चला तो उन्होंने उसे बुलाया और कहा, ‘वाह, मेरे राजा नल वाह।’ नल दरअसल, महाभारतकाल में एक राजा हुए और वह भी अपनी बहादुरी के लिए ही जाने जाते हैं। उनके पिता गुरदयाल सिंह की 1798 में तब मृत्यु हो गई थी जब हरि मात्र 7 साल के थे और फिर उनके मामा ने ही उन्हें पाला।

बुधवार, 7 अप्रैल 2021

संस्कार...

कोई भी लड़की की सुदंरता उसके चेहरे से ज्यादा दिल की होती है।

अशोक भाई ने घर में पैर रखा.... ‘सुनते हो ?'

 आवाज सुनी अशोक भाई कि पत्नी हाथ में पानी का ग्लास लेकर बाहर आयी.

"अपनी सोनल का रिश्ता आया है,

अच्छा ला ईज्जतदार सुखी परिवार है,

लडके का नाम युवराज है.

बैंक  मे काम करता है.

 बस सोनल हाँ कह दे तो सगाई कर देते है."

 सोनल उनकी एका एक लडकी थी..

 घर में हमेशा आनंद का वातावरण रहता था.

 हाँ, कभी अशोक भाई सिगरेट

 पान मसाले के कारण

 उनकी पत्नी और सोनल के साथ बोल चाल हो जाती लेकिन

 अशोक भाई मजाक में  निकाल देते.

 सोनल खूब समझदार और संस्कारी थी.

 S.S.C पास करके टयूशन,सिलाई काम करके पापा की मदद करने की कोशिश करती,

 अब तो सोनल ग्रज्येएट हो गई थी

 और नौकरी भी करती थी

 लेकिन अशोक भाई उसकी पगार में से एक रुपिया भी नही लेते थे...

 और रोज कहते ‘बेटा यह पगार तेरे पास रख तेरे भविष्य में तेरे काम आयेगी.’

 दोनो घरो की सहमति से सोनल और

 युवराज की सगाई कर दी गई और शादी का मुर्हत भी निकलवा दिया.

 अब शादी के 15 दिन और बाकी थे.

 अशोक भाई ने सोनल को पास मेँ बिठाया और कहा

 'बेटा तेरे ससुर से मेरी बात हुई...उन्होने कहा दहेज में कुछ नही लेंगे, ना रुपये, ना गहने और ना ही कोई चीज.

 तो बेटा तेरे शादी के लिए मैंनें कुछ रुपये जमा किए..

 यह दो लाख रुपये में तुझे देता हु...तेरे भविष्य में काम आयेगे, तू अपने खाते में जमा करवा देना.'

 ‘ओ के पापा - सोनल ने छोटा सा जवाब देकर अपने रुम में चली गई.

 समय को जाते कहा देर लगती है ?

 शुभ दिन बारात आगंन आयी,

 पंडित ने चवरी में विवाह विधि शुरु की

 फेरे फिरने का समय आया....

 कोयल जैसे टुहुकी हो एसे सोनल दो शब्दो में बोली

 ‘रुको पडिण्त जी

 मुझे आप सब की मोजूदगी में मेरे पापा के साथ बात करनी है,’

 “पापा आप ने मुझे लाड़ प्यार से बड़ा किया,

 पढाया, लिखाया खूब प्रेम दिया इसका कर्ज तो चुका सकती नही...

लेकिन युवराज और मेरे ससुर जी की सहमति से आपने दिया दो लाख रुपये का चेक में वापस देती हूँ...

 इन रुपयो से मेरी शादी के लिए किये हुए उधार वापस दे देना

 और दूसरा चेक तीन लाख जो मैंने अपनी पगार में से बचत की है...

 जब आप रिटायर होगें तब आपके काम आयेगें,

 मैं नही चाहती कि आप को बुढ़ापे में आपको किसी के आगे हाथ फैलाना पडे !

 अगर में आपका लडका होता तो इतना तो करता ना ? !!! "

 वहा पर सभी की नजर सोनल पर थी...

 “पापा अब मे आपसे में जो दहेज में मांगू वो दोगे ?"

 अशोक भाई भारी आवाज में -"हाँ बेटा", इतना ही बोल सके.

 "तो पापा मुझे वचन दो

 आज के बाद सिगरेट के हाथ नही लगाओगे....

 तबांकू, पान-मसाले का व्यसन आज से छोड दोगे.

 सब की मोजुदगी में  दहेज में बस इतना ही मांगती हूँ"

 लड़की का बाप मना कैसे करता ?

 शादी मे लड़की की विदाई समय कन्या पक्ष को रोते देखा होगा लेकिन

 आज तो बारातियों कि आँखो में आँसुओ कि धारा निकल चुकी...

 मैं दूर से सोनल को लक्ष्मी रुप मे देख रहा था....

 501 रुपये का कवर में अपनी जेब से नही निकाल पा रहा था....

 साक्षात लक्ष्मी को मैं कैसे लक्ष्मी दूँ ?? 

शुक्रवार, 22 जनवरी 2021

आतंकी ...जितेन्द्र कुमार गुप्ता




"अंतर का दायरा "
“माँ, नींद नहीं आ रही। कहानी कहो न।" पांच  साल के सोनू ने बिस्तर पर लेटे -लेटे माँ,मधु से मनुहार की। आतँकियों से मुठभेड़ में शहीद हुए लेफ्टीनेंट अरूण की पत्नी थी मधु। पति की मृत्यु के बाद मिले रूपये घर बनवाने में खत्म हो गये। घर में बूढ़े सास-ससुर भी थे । बस, पेंशन पर  किसी तरह गुजारा हो रहा था। नन्हा सोनू हालात रोज देखता और जल्दी से जल्दी बड़ा होकर माँ के लिये , दादा-दादी के लिये कुछ करना चाहता था। बेटे को पढ़ा- लिखा कर फौजी बनाना ही सपना था इसलिये रोज पति की बहादुरी के किस्से सुनाती और रोज हंसकर पूछती,"मेरा राजा बेटा क्या बनेगा?" पहले तो  सोनू झट से ,कभी फौजी,कभी डॉक्टर,तो कभी-कभी पायलट कह देता था।
आज भी सुबह जब मधु ने हंसकर पूछा," मेरा राजा बेटा क्या बनेगा ?" 
"सोचूंगा।" सोनू का जवाब अचकचा गया था  मधु को। मन में कुछ खटक रहा था। 
अचानक सोनू उठकर बैठ गया।
"मैने सोच लिया माँ। क्या बनना है बड़े होकर।  खूब पैसे कमाऊंगा। 
फिर हम सब खूब आराम से रहेंगे।" सोनू की आँखों में चमक थी।
"अच्छा वो कैसे?" 
"आतंकी बनकर सरेन्डर कर दूंगा।"
मधु सन्न थी और सोनू की निगाह अटकी थी, अखबार में छपी न्यूज पर..
सीमा पर हुए शहीद की शहादत को दस लाख  और सरेन्डर करने वाले आतंकी को दो करोड़...। 
अंतर का दायरा बहुत बड़ा था।
-जितेन्द्र कुमार गुप्ता

गुरुवार, 21 जनवरी 2021

फ्राड

लघु कथा
फ्राड कौन


यह एक दिलचस्प वाकया है।
एक फाइनेंस कंपनी से फोन आता है कि 4 लाख का लोन आप ले सकते हैं। मैंने कहा घर आ जाओ बात करते हैं। अगले दिन सुबह 10 बजे दो युवक आ गए। सबकुछ ठीक था, लेकिन मामला मेरे पेशे पर अटक गया।
- उसने कहा की हम पत्रकार को लोन नहीं देते हैं।
- क्यों भाई? मैंने पूछा। 
- हम पुलिस और वकील को भी नहीं लोन नहीं देते हैं। उन्होंने कहा।
- ऐसा क्यों ? मैंने फिर पूछा।
- कंपनी की पॉलिसी है। दोनों एक साथ बोले। वे भी मुस्करा रहे थे और मैं भी।
- अच्छा है। फोन करने से पहले पेशा पूछ लिया करो भाई। या झांसा देने की फिराक में रहते हो। सूदखोरों के चंगुल में फंसना कौन चाहता है? मुझे तो यकीन नहीं था कि तुम लोग आओगे। आ भी गए तो बात नहीं बनेगी यह भी यकीन था। मैंने थोड़ा रोष में कहा।
- क्यों? अब उन्होंने सवाल किया।
- क्योंकि हमसे फ्राड करना आसान नहीं है प्यारे....। मैंने मुस्कुरा दिया।
- वो तो है...कहते हुए वे दोनों चले गए।
हालांकि इस बीच वह चाय पी चुके थे।
अच्छी चाय पिलाने के लिए श्रीमती जी की तारीफ भी की....।
--
- ओमप्रकाश तिवारी
अमर उजाला, रोहतक