बेटे दिव्यम के जन्मदिन पर गिफ्ट में आए ढेर से नई तकनीक के इलेक्ट्रॉनिक खिलौनों में कुछ को दिव्यम चला ही नहीं पा रहा था। घर के अन्य सदस्यों ने भी हाथ आजमाइश की लेकिन किसी को भी सफलता नहीं मिली। तभी काम वाली बाई सन्नो का दस वर्षीय लड़का किसी काम से घर आया सभी को खिलौने के लिए बेवजह मेहनत करता देख वह बड़े ही धीमे व संकोची लहजे में बोला-‘‘आँटी जी! आप कहें तो खिलौनों को चलाकर बता दूँ?’
पहले तो मालती उसका चेहरा देखती रही फिर मन ही मन सोच रही थी कि इसे दिया तो निश्चित ही तोड़ देगा, फिर भी सन्नो का लिहाज कर बेमन से हाँ कर दिया और देखते ही देखते मुश्किल खिलौने को उसने एक बार में ही स्टार्ट कर दिया। सभी आश्चर्यचकित मालती ने सन्नों को हँसते हुए ताना मारा-‘वाह री सन्नो! यूँ तो कहेगी पगार कम पड़ती है, और इतने महँगे खिलौने छोरे को दिलाती है जो मैंने आज तक नहीं खरीदे?’
इतना सुनते ही सन्नो की आँखें नम हो गई । उसने रुँधे गले से कहा-‘‘बाई जी! यह खिलौनों से खेलता नहीं; बल्कि खिलौनों की दुकान पर काम करता है।’’ जवाब सुन मालती स्वयं को लज्जित महसूस कर सोचने लगी दोनों के बचपन में कितना अंतर है।
-मीरा जैन
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मीरा जैन 516,
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