विदेशी बच्चे घर आने पर माताजी का हाल देख बेहाल हो गये। पिता तो अपनी दुनिया में मग्न सूटबूट में बुढापा छिपाये जवानी की कुलांचें भर रहे थे। मां बेचारी योगन बनी जा रही थी। माता जी को स्मार्ट बनाने के लिए स्मार्टफ़ोन का सहारा लिया और सिखा दिया स्मार्टफोन उपयोग करना। धीरे-धीरे माताजी फ़ेसबुक की दुनिया में पदार्पण करने लगी।
फ़ेसबुक पर प्रोफ़ाइल खोला, बेचारी वृद्धा का कोई भी मित्र बनने को तैयार नहीं हुआ। पत्नी ने फ़ेक आई डी बनाई , ख़ूबसूरत-सी कन्या से सबको इश्क होने लगा। लाईक कमेंट्स आने लगे। इसी सिलसिले में बांके जवान का निमंत्रण स्वीकार कर दिल हार बैठी। चैटिंग का क्रम जारी हुआ तो होली पर साक्षात मिलने पर आ अटका। वृद्धा परेशान बगीचे में उस कमनीय काया को कहां से ले जाये।
ख़ैर, किसी तरह दिल कड़ा कर "सो-कॉल्ड" प्रियतम को सच बताने की ठानी। जी-जान से पार्लर से मेकअप करा चल पड़ी मायावी दुनिया के आशिक से मिलने। गाल गुलाल से भी ज़्यादा गुलाबी हो रहे थे।
अरररर....ये क्या? जिन्होनें पत्नी को कभी प्यार के दो बोल नहीं बोले, वो फ़ेसबुकिया प्रेमिका के लिए तारे तोड़ने का वादा किया करता था। राहों पर फूल बिछाने को तत्पर आशिक तो ख़ुद का पति निकला। दोनों की आँखें टकराती हैं, होंठ कांप रहे थे।
एक दूसरे को धोखा देते हुए नयी ज़िंदगी के सपने धराशायी हो रहे थे। हाथों के तोते उड़ गये, महंगे उपहार मुंह चिढ़ा रहे थे।
जीवन फिर उसी बिंदु पर आ अटका जहाँ से पति-पत्नी चले थे।
-किरण मानु बरनवाल 'अंशु'