रविवार, 26 अगस्त 2018

एक पिता का दर्द (कहानी )


आज पूनम लव मैरिज कर अपने पापा के पास आयी, और अपने 
पापा से कहने लगी "पापा मैंने अपनी पसंद के लड़के से शादी कर ली " उसके पापा बहुत गुस्सें में थे, पर वो बहुत सुलझें शख्स थे,
उन्होने बस अपनी बेटी से इतना कहा " मेरे घर से निकल जाओ " 
बेटी ने कहा -"अभी इनके पास कोई काम नही हैं, हमें रहने दीजिए 
हम बाद में चलें जायेंगे  " पर उसके पापा ने एक नही सुनी 
और उसे घर से बाहर कर दिया .........

        कुछ साल बीत गये... दुर्भाग्यवश जिस लड़के से पूनम ने शादी की थी वो उसे धोखा देकर भाग गया, पूनम की एक लड़की और एक लड़का था, पूनम खुद का एक रेस्टोरेंट चला रही थी, जिससे उसका जीवन यापन हो रहा था.........तभी पूनम के पापा चल बसे l

      पूनम को जब ये खबर हुई उसके पापा नही रहे, तो उसने मन में सोचा अच्छा हुआ, मुझे घर से निकाल दिया था, दर-दर की ठोकरें खाने छोड़ दिया, मेरे पति के छोड़ जाने के बाद भी मुझे  घर नही बुलाया, मैं तो नही जाऊंगी उनकी अंतिम यात्रा में, पर उसके ताऊ जी ने कहा -"पूनम हो आवो , जाने वाला शख्श तो चला गया अब उनसे दुश्मनी कैसी, पूनम ने पहले हाँ ना किया फिर सोचा चलो हो आती हूं, देखू तो जिन्होने मुझे ठुकराया वो मरने के बाद कैसे सुकून पाता है ............

       पूनम जब अपने पापा के घर आयी तो सब उनकी अंतिम यात्रा की तैयारी कर रहें थें, पर पूनम को उनके मरने का कोई दुख नही था, वो तो बस अपने ताऊजी के कहने पर आयी थी, अब पूनम के पापा की  अंतिमयात्रा शुरू हुई, सब रो रहे थे पर पूनम दूर खड़ी हुई थी, 
जैसे तैसे सब कार्यक्रम निपट गया, आज पूनम के पापा की 
तेरहवी थी, उसके ताऊ जी आए और पूनम के हाथ में 
एक खत देते हुये कहा, ये तुम्हारे पापा ने तुम्हें दिया है, 
हो सके तो इसे पढ़ लेना..........

      रात हो चुकी थी सारे  मेहमान जा चुके थे, पूनम ने वो खत निकाला और पढ़ने लगी,उसने सबसे पहले लिखा था, 
मेरी प्यारी गुड़िया मुझे  मालूम है, तुम मुझसे नराज हो, 
पर अपने पापा को माफ कर देना, मै जानता हूं, तुम्हें मैंने घर से निकाला था, तुम्हारे पास रहने की जगह नही थी, तुम दर-दर की ठोकरें खा रही थी, पर मैं भी उदास था, तुम्हें कैसे बताऊँ.....

"याद है तुम्हें जब तुम पाँच साल की थी, तब तुम्हारी माँ हमें 
छोड़ के चली गयी थी, तब तुम कितना रोती थी, डरती थी, 
मेरे बिना सोती नही थी, रातों को उठकर रोती थी, तब मैं भी 
सारी रात तुम्हारे साथ जागता था, तुम जब स्कूल जाने से 
डरती थी, तब मैं भी सारा वक्त तुम्हारे स्कूल के खिडकी पर 
खड़ा होता था, और जैसे ही तुम स्कूल से बाहर आती थी, तुम्हें 
सीने से लगा लेता था, वो कच्चा-पक्का खाना याद है, जो 
तुम्हें पसंद नही आता था, मैं उसे फेंक कर फिर से तुम्हारे 
लिए नया बनाता था, की तुम भूखी ना रहो, याद है तुम्हें जब 
तुम्हें बुखार आया था, तो मैं सारा दिन तुम्हारे पास बैठा 
रहता था, अंदर ही अंदर रोता था, पर तुम्हें हंसाता था, 
की तुम ना रोओ वरना मैं रो पड़ता था,
वो पहली बार हाईस्कूल की परीक्षा जब तुम रात भर पढ़ती थी, 
तो मैं सारी रात तुम्हें चाय बनाकर देता था,
याद है तुम्हें जब तुम पहली बार कालेज गयी थी, और तुम्हें लड़को ने छेड़ा था, तो मैं तुम्हारे साथ कालेज गया और उन बदतमीज 
लड़को से भिड़ गया, उम्र हो गयी थी, और मैं कमजोर भी, 
कुछ चोटे मुजे भी आयी थी, पर हर लड़की की नजर में पापा 
हीरो होते हैं, इसलिए अपना दर्द सह गया................

"याद है तुम्हें वो तुम्हारी पहली जीन्स वो छोटे कपड़े, वो गाड़ी, 
सारी कालोनी एकतरफ थी की ये सब नही चलेगा, लड़की 
छोटे कपड़े नही पहनेगी, पर मैं तुम्हारे साथ खड़ा था, किसी को तुम्हारी खुशी में बाधा बनने नही दिया, तुम्हारा वो रातों को देर से आना कभी-कभी शराब पीना, डिस्को जाना, लड़को के साथ घूमना, इन सब बातों को कभी मैंने गौर नही किया, क्यूकि जिस उम्र में थी उस उम्र मे ये सब थोड़ा बहुत होता हैं, ......................

       पर एक दिन तुम एक लड़के से शादी कर आयी, वो भी उस लड़के से जिसके बारे में तुम्हें कुछ भी पता नही था, तुम्हारा पापा हूं, मैंने उस लड़के के बारे मे सब पता किया, उसने ना जाने वासना 
और पैसे के लिए कितनी लड़कियों को धोखा दिया, पर तुम तो 
उस वक्त प्रेम में अंधी थी, तुमने एक बार भी मुझसे नही पूछा, 
और सीधा शादी कर के आ गयी, मेरे कितने अरमान थें, तुम्हें 
डोली में बिठाऊ, चाँद, तारों की तरह तुम्हें सजाऊ, ऐसी धूमधाम 
से शादी करूँ की लोग बोल पड़े वो देखों शर्माजी जिन्होने अपनी 
बच्ची को इतने नाजों से अकेले पाला हैं, पर तुमने मेरे सारे ख्वाब 
तोड़ दियें, "खैर" इन सब बातों का कोई मतलब नही हैं,मैंने तो 
तुम्हारें लिए खत इसलिए छोड़ा है की कुछ बात कर सकूं.......

     मेरी "गुड़िया" आलमारी में तुम्हारी माँ के गहने और मैंने जो तुम्हारी शादी के लिए गहने खरीदें तो वो सब रखें हैं, तीन चार घर 
और कुछ जमीनें है मैंने सब तुम्हारे और तुम्हारे बच्चों के नाम कर 
दी हैं, कुछ पैसें बैंक में है तुम बैंक जाकर उसे निकाल लेना,
"और आखिरी में बस इतना ही कहूंगा गुडिया काश तुमने मुझे  
समझा होता मैं तुम्हारा दुश्मन नही था, तुम्हारा पापा था, वो पापा जिसने तुम्हारी माँ के मरने के बाद भी, दूसरी शादी नही की लोगो 
के ताने सुने, गालियाँ सुनी, ना जाने कितने रिश्तें ठुकराए 
पर तुम्हें दूसरी माँ से कष्ट ना हो इसलिए खुद की ख्वाहिशें मार दी....

अंत में बस इतना ही कहूंगा मेरी गुड़िया, जिस दिन तुम शादी के 
जोड़े पर घर आयी थी ना, तुम्हारा बाप पहली बार टूटा था, तुम्हारे 
माँ के मरने के वक्त भी उतना नही रोया जितना उस वक्त 
और उस दिन से हर दिन रोया इसलिए नही की समाज,जात,परिवार,रिश्तेदार क्या कहेंगें....

        इसलिए वो जो मेरी नन्ही सी गुड़िया मुझे हर बात बताती थी , पर जिसने शादी का इतना बड़ा फैसला लिया पर मुझे  एक बार भी बताना सही नही समझा, गुड़िया अब तो तुम भी माँ हो औलाद का 
दर्द खुशी सब क्या होता हैं, वो जब दिल तोड़ते हैं तो कैसा लगता हैं, ईश्वर तुम्हें कभी ना ये दर्द की शक्ल दिखाए, एक खराब पिता ही समझ के मुजे माफ कर देना मेरी गुड़िया, तुम्हार पापा अच्छा नही था, जो तुमने उसे इतना बड़ा दर्द दिया, अब खत यही समाप्त कर रहा हूं, हो सकें तो माफ कर देना, और खत के साथ एक ड्राइंग लगी थी जो खुद कभी पूनम ने बचपन में बनाई थी, और उसमें लिखा था आई लव यू मेरे पापा मेरे हीरो मैं आपकी हर बात मानूंगी, ........

        पूनम रो ही रही थी, उतने में उसके ताऊजी आ गयें, पूनम ने उन्हें रोते-रोते सब बताया, पर एक बात उसके ताऊजी ने बताई, उसके ताऊजी ने कहा-" पूनम वो जो तुम्हें रेस्टोरेंट खोलने और घर खरीदने के पैसे मैंने नही दिये थे, वो पैसे तुम्हारे पिताजी ने मुझसे दिलवाए थे, क्यूकि औलाद चाहे कितनी भी बुरी हो , माँ-बाप कभी बुरे नही होते, औलाद चाहे माँ-बाप को छोड़ दे माँ-बाप मरने के बाद भी अपने बच्चों को दुआ देते हैं, 
दोस्तों पूनम के पापा को सुकून मिलेगा या नही मुजे नही पता, 
पर उस खत को पढ़ने के बाद, शायद सारी जिंदगी, पूनम को 
सुकून नही मिलेंगा ...........

      बस इतना ही कहूंगा, आखिर में दोस्तों, लव मैरिज शादी करना कोई गलत बात नही, पर यही अपने माँ-पिताजी की मर्जी शामिल 
कर लें, पत्थर से पानी निकल जाता हैं, वो तो माँ-बाप है ना कब 
तक नही टूटेंगें अपने बच्चों की खुशी के लिए, हर बाप की एक 
इच्छा होती हैं अपनी बेटी को अपने हाथों से डोली में विदा करने की 
हो सकें तो उसे एक सपना मत रहने दीजिए l

रविवार, 19 अगस्त 2018

होनहार बच्चा.....वकील शर्मा

मैं एक घर के करीब से गुज़र रहा था की अचानक से मुझे उस घर के अंदर से एक बच्चे की रोने की आवाज़ आई। उस बच्चे की आवाज़ में इतना दर्द था कि अंदर जा कर वह बच्चा क्यों रो रहा है, यह मालूम करने से मैं खुद को रोक ना सका।

अंदर जा कर मैने देखा कि एक माँ अपने दस साल के बेटे को आहिस्ता से मारती और बच्चे के साथ खुद भी रोने लगती। मैने आगे हो कर पूछा बहनजी आप इस छोटे से बच्चे को क्यों मार रही हो? 
जब कि आप खुद भी रोती हो।

उस ने जवाब दिया भाई साहब इस के पिताजी भगवान को प्यारे हो गए हैं और हम लोग बहुत ही गरीब हैं, उन के जाने के बाद मैं लोगों के 
घरों में काम करके घर और इस की पढ़ाई का खर्च बामुश्किल 
उठाती हूँ और यह कमबख्त स्कूल रोज़ाना देर से जाता है और 
रोज़ाना घर देर से आता है।

जाते हुए रास्ते मे कहीं खेल कूद में लग जाता है और पढ़ाई की 
तरफ ज़रा भी ध्यान नहीं देता है जिस की वजह से रोज़ाना 
अपनी स्कूल की वर्दी गन्दी कर लेता है। मैने बच्चे और उसकी 
माँ को जैसे तैसे थोड़ा समझाया और चल दिया।

इस घटना को कुछ दिन ही बीते थे की एक दिन सुबह सुबह कुछ 
काम से मैं सब्जी मंडी गया। तो अचानक मेरी नज़र उसी दस 
साल के बच्चे पर पड़ी जो रोज़ाना घर से मार खाता था। 
मैं क्या देखता हूँ कि वह बच्चा मंडी में घूम रहा है और जो 
दुकानदार अपनी दुकानों के लिए सब्ज़ी खरीद कर अपनी 
बोरियों में डालते तो उन से कोई सब्ज़ी ज़मीन पर गिर जाती थी 
वह बच्चा उसे फौरन उठा कर अपनी झोली में डाल लेता। 

मैं यह नज़ारा देख कर परेशानी में सोच रहा था कि ये चक्कर क्या है, मैं उस बच्चे का चोरी चोरी पीछा करने लगा। जब उस की झोली 
सब्ज़ी से भर गई तो वह सड़क के किनारे बैठ कर उसे ऊंची ऊंची आवाज़ें लगा कर वह सब्जी बेचने लगा। मुंह पर मिट्टी गन्दी वर्दी 
और आंखों में नमी, ऐसा महसूस हो रहा था कि ऐसा दुकानदार ज़िन्दगी में पहली बार देख रहा हूँ ।

अचानक एक आदमी अपनी दुकान से उठा जिस की दुकान के 
सामने उस बच्चे ने अपनी नन्ही सी दुकान लगाई थी, उसने आते 
ही एक जोरदार लात मार कर उस नन्ही दुकान को एक ही झटके 
में रोड पर बिखेर दिया और बाज़ुओं से पकड़ कर उस बच्चे को भी 
उठा कर धक्का दे दिया।

वह बच्चा आंखों में आंसू लिए चुप चाप दोबारा अपनी सब्ज़ी को 
इकठ्ठा करने लगा और थोड़ी देर बाद अपनी सब्ज़ी एक दूसरे दुकान 
के सामने डरते डरते लगा ली। भला हो उस शख्स का जिस की दुकान के सामने इस बार उसने अपनी नन्ही दुकान लगाई उस शख्स ने 
बच्चे को कुछ नहीं कहा। 

थोड़ी सी सब्ज़ी थी ऊपर से बाकी दुकानों से कम कीमत। जल्द ही बिक्री हो गयी, और वह बच्चा उठा और बाज़ार में एक कपड़े वाली दुकान में दाखिल हुआ और दुकानदार को वह पैसे देकर दुकान में पड़ा अपना स्कूल बैग उठाया और बिना कुछ कहे वापस स्कूल की और 
चल पड़ा। और मैं भी उस के पीछे पीछे चल रहा था। 

बच्चे ने रास्ते में अपना मुंह धो कर स्कूल चल दिया। मै भी उस के पीछे स्कूल चला गया। जब वह बच्चा स्कूल गया तो एक घंटा लेट हो चुका था। जिस पर उस के टीचर ने डंडे से उसे खूब मारा। मैने जल्दी से जा कर टीचर को मना किया कि मासूम बच्चा है इसे मत मारो। टीचर कहने लगे कि यह रोज़ाना एक डेढ़ घण्टे लेट से ही आता है और मै रोज़ाना इसे सज़ा देता हूँ कि डर से स्कूल वक़्त पर आए और कई 
बार मै इस के घर पर भी खबर दे चुका हूँ।

खैर बच्चा मार खाने के बाद क्लास में बैठ कर पढ़ने लगा। मैने उसके टीचर का मोबाइल नम्बर लिया और घर की तरफ चल दिया। घर 
पहुंच कर एहसास हुआ कि जिस काम के लिए सब्ज़ी मंडी गया था 
वह तो भूल ही गया। मासूम बच्चे ने घर आ कर माँ से एक बार 
फिर मार खाई। सारी रात मेरा सर चकराता रहा।

सुबह उठकर फौरन बच्चे के टीचर को कॉल की कि मंडी टाइम हर हालत में मंडी पहुंचें। और वो मान गए। सूरज निकला और बच्चे का स्कूल जाने का वक़्त हुआ और बच्चा घर से सीधा मंडी अपनी नन्ही दुकान का इंतेज़ाम करने निकला। मैने उसके घर जाकर उसकी माँ को कहा कि बहनजी आप मेरे साथ चलो मै आपको बताता हूँ, आप का बेटा स्कूल क्यों देर से जाता है।

वह फौरन मेरे साथ मुंह में यह कहते हुए चल पड़ीं कि आज इस लड़के की मेरे हाथों खैर नही। छोडूंगी नहीं उसे आज। मंडी में लड़के का टीचर भी आ चुका था। हम तीनों ने मंडी की तीन जगहों पर पोजीशन संभाल ली, और उस लड़के को छुप कर देखने लगे। आज भी उसे काफी लोगों से डांट फटकार और धक्के खाने पड़े, और आखिरकार वह लड़का अपनी सब्ज़ी बेच कर कपड़े वाली दुकान पर चल दिया।

अचानक मेरी नज़र उसकी माँ पर पड़ी तो क्या देखता हूँ कि वह  
बहुत ही दर्द भरी सिसकियां लेकर लगा तार रो रही थी, और मैने 
फौरन उस के टीचर की तरफ देखा तो बहुत शिद्दत से उसके आंसू 
बह रहे थे। दोनो के रोने में मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उन्हों ने 
किसी मासूम पर बहुत ज़ुल्म किया हो और आज उन को अपनी 
गलती का एहसास हो रहा हो।

उसकी माँ रोते रोते घर चली गयी और टीचर भी सिसकियां लेते हुए स्कूल चला गया। बच्चे ने दुकानदार को पैसे दिए और आज उसको दुकानदार ने एक लेडी सूट देते हुए कहा कि बेटा आज सूट के सारे 
पैसे पूरे हो गए हैं। अपना सूट ले लो, बच्चे ने उस सूट को पकड़ 
कर स्कूल बैग में रखा और स्कूल चला गया। 

आज भी वह एक घंटा देर से था, वह सीधा टीचर के पास गया और 
बैग डेस्क पर रख कर मार खाने के लिए अपनी पोजीशन संभाल ली और हाथ आगे बढ़ा दिए कि टीचर डंडे से उसे मार ले। टीचर कुर्सी 
से उठा और फौरन बच्चे को गले लगा कर इस क़दर ज़ोर से रोया कि मैं भी देख कर अपने आंसुओं पर क़ाबू ना रख सका।

मैने अपने आप को संभाला और आगे बढ़कर टीचर को चुप कराया 
और बच्चे से पूछा कि यह जो बैग में सूट है वह किस के लिए है। 
बच्चे ने रोते हुए जवाब दिया कि मेरी माँ अमीर लोगों के घरों में मजदूरी करने जाती है और उसके कपड़े फटे हुए होते हैं कोई जिस्म 
को पूरी तरह से ढांपने वाला सूट नहीं और और मेरी माँ के पास पैसे नही हैं इस लिये अपने माँ के लिए यह सूट खरीदा है।

तो यह सूट अब घर ले जाकर माँ को आज दोगे? मैने बच्चे से सवाल पूछा। जवाब ने मेरे और उस बच्चे के टीचर के पैरों के नीचे से ज़मीन ही निकाल दी। बच्चे ने जवाब दिया नहीं अंकल छुट्टी के बाद मैं इसे दर्जी को सिलाई के लिए दे दूँगा। रोज़ाना स्कूल से जाने के बाद काम करके थोड़े थोड़े पैसे सिलाई के लिए दर्जी के पास जमा किये हैं।

टीचर और मैं सोच कर रोते जा रहे थे कि आखिर कब तक हमारे समाज में गरीबों के साथ ऐसा होता रहेगा उन के बच्चे त्योहार की खुशियों में शामिल होने के लिए जलते रहेंगे आखिर कब तक।

क्या ऊपर वाले की खुशियों में इन जैसे गरीब का कोई हक नहीं ? 
क्या हम अपनी खुशियों के मौके पर अपनी ख्वाहिशों में से थोड़े 
पैसे निकाल कर अपने समाज मे मौजूद गरीब और बेसहारों 
की मदद नहीं कर सकते।

आप सब भी ठंडे दिमाग से एक बार जरूर सोचना ! ! ! !

अगर हो सके तो इस लेख को उन सभी सक्षम लोगो को बताना  
ताकि हमारी इस छोटी सी कोशिश से किसी भी सक्षम के दिल मे गरीबों के प्रति हमदर्दी का जज़्बा ही जाग जाये और यही लेख 
किसी भी गरीब के घर की खुशियों की वजह बन जाये।
-वकील शर्मा

सोमवार, 13 अगस्त 2018

थोड़ा सा समय ....प्रस्तुति नीतू ठाकुर

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हनीमून से लौटते समय टैक्सी में बैठी जूही के मन में कई तरह 
के विचार आ जा रहे थे. अजय ने उसे खयालों में डूबा देख 
उस की आंखों के आगे हाथ लहरा कर पूछा, ‘‘कहां खोई हो? घर जाने का मन नहीं कर रहा है?’’

जूही मुसकरा दी, लेकिन ससुराल में आने वाले समय को ले कर उस के मन में कुछ घबराहट सी थी. दोनों शादी के 1 हफ्ते बाद ही सिक्किम घूमने चले गए थे. उन का प्रेमविवाह था. दोनों सीए थे और नरीमन में एक ही कंपनी में  काम करते थे.

अजय ब्राह्मण परिवार का बड़ा बेटा था. पिता शिवमोहन एक प्राइवेट कंपनी में अच्छे पद पर थे. मम्मी शैलजा हाउसवाइफ थीं और छोटी बहन नेहा अभी कालेज में थी. अजय का घर मुलुंड में था.

पंजाबी परिवार की इकलौती बेटी जूही कांजुरमार्ग में रहती थी. जूही के पिता विकास डाक्टर थे और मां अंजना हाउसवाइफ थीं. दोनों परिवारों को इस विवाह पर कोई एतराज नहीं था. विवाह हंसीखुशी हो गया. जूही को जो बात परेशान कर रही थी वह यह थी कि उस के ऑफिस जानेआने का कोई टाइम नहीं था. अब तक तो घर की कोई जिम्मेदारी उस पर नहीं थी, नरीमन से आतेआते कभी 10 बजते, तो कभी 11. जिस क्लाइंट बेसिस पर काम करती, पूरी टीम के हिसाब से उठना पड़ता. मायके में तो घर पहुंचते ही कपड़े बदल हाथमुंह धो कर 
डिनर करती और फिर सीधे बैड पर.

शनिवार और रविवार पूरा आराम करती थी. मन होता तो दोस्तों 
के साथ मूवी देखती, डिनर करती. वैसे भी मुंबई में औफिस जाने 
वाली ज्यादातर कुंआरी अविवाहित लड़कियों का यही रूटीन 
रहता है, हफ्ते के 5 दिन काम में खूब बिजी और छुट्टी के दिन 
आराम. जूही के 2-3 घंटे तो रोज सफर में कट जाते थे. 
वह हमेशा वीकेंड के लिए उत्साहित रहती.

जैसे ही अंजना दरवाजा खोलतीं, जूही एक लंबी सांस लेते हुए कहती थी, ‘‘ओह मम्मी, आखिर वीकेंड आ ही गया.’’ अंजना को उस पर बहुत स्नेह आता कि बेचारी बच्ची, कितनी थकान होती है पूरा हफ्ता.

जूही को याद आ रहा था कि जब बिदाई के समय उस की मम्मी रोए जा रही थीं तब उस की सासू माँ ने उस की मम्मी के कंधे पर हाथ रख कर कहा था, ‘‘आप परेशान न हों. बेटी की तरह रहेगी हमारे घर. 
मैं बेटी बहू में कोई फर्क नहीं रखूंगी.’’

तब वहीं खड़ी जूही की चाची ने व्यंग्यपूर्वक धीरे से उस के कान में कहा, ‘‘सब कहने की बातें हैं. आसान नहीं होता बहू को बेटी समझना. शुरू शुरू में हर लड़के वाले ऐसी ही बड़ी बड़ी बातें करते हैं.’’

बहते आंसुओं के बीच में जूही को चाची की यह बात साफसाफ सुनाई दी थी. पहला हफ्ता तो बहुत मसरूफियत भर निकला. अब वे घूम 
कर लौट रहे थे, देखते हैं क्या होता है. परसों से औफिस भी जाना है. टैक्सी घर के पास रुकी तो जूही अजय के साथ घर की तरफ चल दी.
शिवमोहन, शैलजा और नेहा उन का इंतजार ही कर रहे थे. जूही ने सास-ससुर के पैर छू कर उन का आशीर्वाद लिया. नेहा को उस ने गले लगा लिया, सब एकदूसरे के हालचाल पूछते रहे.

शैलजा ने कहा, ‘‘तुम लोग  फ्रैश हो जाओ, मैं चाय लाती हूं.’’
जूही को थकान तो बहुत महसूस हो रही थी, फिर भी उस ने कहा, ‘‘नहीं मम्मीजी मैं बना लूंगी.’’
‘‘अरे थकी होगी बेटा, आराम करो और हां, यह मम्मीजी नहीं, अजय और नेहा मुझे मां ही कहते हैं, तुम भी बस मां ही कहो.’’

जूही ने झिझकते हुए सिर हिला दिया. अजय और जूही ने फ्रैश हो कर सब के साथ चाय पी. थोड़ी देर बाद शैलजा ने पूछा, ‘‘जूही, डिनर में क्या खाओगी?’’ ‘‘मां, जो बनाना है, बता दें, मैं हैल्प करती हूं.’’
‘‘मैं बना लूंगी.’’ ‘‘लेकिन मां, मेरे होते हुए…’’

हंस पड़ीं शैलजा, ‘‘तुम्हारे होते हुए क्या? अभी तक मैं ही बना रही हूँ और मुझे कोई परेशानी भी नहीं है,’’ कह कर शैलजा किचन में आ गई

 तो जूही भी मना करने के बावजूद उन का हाथ बंटाती रही.
अगले दिन की छुट्टी बाकी थी. शिवमोहन ऑफिस और नेहा कालेज चली गई. जूही अलमारी में अपना सामान लगाती रही. सब अपनेअपने काम में व्यस्त रहे. अगले दिन साथ ऑफिस जाने के लिए अजय और जूही उत्साहित थे. दोनों लोकल ट्रेन से ही जाते थे. हलकेफुलके माहौल में सब ने डिनर साथ किया.
रात को सोने के समय शिवमोहन ने कहा ‘‘कल से जूही भी लंच ले जाएगी न?’’ ‘‘हां, क्यों नहीं?’’
‘‘इस का मतलब कल से उस की किचन की ड्यूटी शुरू?’’

‘‘ड्यूटी कैसी? जहां मैं अब तक 3 टिफिन पैक करती थी, 
अब 4 कर दूंगी, क्या फर्क पड़ता है?’’ शिवमोहन ने प्यार 
भरी नजरों से शैलजा को देखते हुए कहा, ‘‘ममतामयी सास 
बनोगी इस का कुछ अंदाजा तो था मुझे.’’

‘‘आप से कहा था न कि जूही बहू नहीं बेटी बन कर रहेगी इस घर में.’’
शिवमोहन ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘लेकिन तुम्हें तो 
बहुत कड़क सास मिली थीं.’’

शैलजा ने फीकी हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘इसीलिए तो जूही को उन तकलीफों से बचाना है जो मैं ने खुद झेली हैं. छोड़ो, वह अम्मां का पुराना जमाना था, उन की सोच अलग थी, अब तो वे नहीं रहीं. अब उन बातों का क्या फायदा? अजय ने बताया था जूही को पनीर बहुत पसंद है. कल उस का पहला टिफिन तैयार करूंगी, 
पनीर ही बनाऊंगी, खुश हो जाएगी बच्ची.’’

शिवमोहन की आंखों में शैलजा के लिए तारीफ के भाव उभर आए. सुबह अलार्म बजा. जूही जब तक तैयार हो कर किचन में आई 
तो वहां 4 टिफिन पैक किए रखे थे. शैलजा डाइनिंग 
टेबल पर नाश्ता रख रही थीं.

जूही शर्मिंदा सी बोली. ‘‘मां, आप ने तो सब कर लिया.’’
‘‘हां बेटा, नेहा जल्दी निकलती है. सब काम साथ ही हो जाता है. आओ, नाश्ता कर लो.’’
‘‘कल से मैं और जल्दी उठ जाऊंगी.’’

‘‘सब हो जाएगा बेटा, इतना मत सोचो. अभी तो मैं कर ही लेती हूं. तबीयत कभी बिगड़ेगी तो करना ही होगा और आगेआगे तो 
जिम्मेदारी संभालनी ही है, अभी ये दिन आराम से बिताओ, खुश रहो.’’
अजय भी तैयार हो कर आ गया था. बोला, 
‘‘मां, लंच में क्या है?’’ ‘‘पनीर.’’
जूही तुरंत बोली, ‘‘मां यह मेरी पसंदीदा डिश है.’’
अजय ने कहा, ‘‘मैं ने ही बताया है मां को. मां, अब क्या अपनी बहू की पसंद का ही खाना बनाओगी?’’
जूही तुनकी, ‘‘मां ने कहा है न उन के लिए बहू नहीं, बेटी हूं.’’
नेहा ने घर से निकलते-निकलते हंसते हुए कहा, ‘‘मां, भाभी के 
सामने मुझे भूल मत जाना.’’
शिवमोहन ने भी बातों में हिस्सा लिया, ‘‘अरे भई, थोड़ा तो सास वाला रूप दिखाओ, थोड़ा टोको, थोड़ा गुस्सा हो, पता तो चले घर में 
सास-बहू हैं.’’ सब जोर से हंस पड़े.
शैलजा ने कहा, ‘‘सॉरी, यह तो किसी को पता नहीं चलेगा कि घर में सास-बहू हैं.’’ सब हंसतेबोलते घर से निकल गए.

थोड़ी देर बाद ही मेड श्यामाबाई आ गई. शैलजा घर की सफाई करवाने लगी. अजय के कमरे में जा कर श्यामा ने आवाज दी, ‘‘मैडम, देखो आप की बहू कैसे सामान फैला कर गई हैं.’’
शैलजा ने जा कर देखा, हर तरफ सामान बिखरा था, 
उन्हें हंसी आ गई.
श्यामा ने पूछा, ‘‘मैडम, आप हंस रही हैं?’’
शैलजा ने कहा, ‘‘आओ, मेरे साथ,’’ शैलजा उसे नेहा के कमरे में ले गई. वहां और भी बुरा हाल था.
शैलजा ने कहा, ‘‘यहां भी वही हाल है न? तो चलो अब हर 
जगह सफाई कर लो जल्दी.’’
श्यामा 8 सालों से यहां काम कर रही थी. अच्छी तरह समझती थी अपनी शांति-पसंद मैडम को, अत: मुसकराते हुए अपने 
काम में लग गई.

जूही फोन पर अपने मम्मीपापा से संपर्क में रहती ही थी. शादी के बाद आज ऑफिस का पहला दिन था. रास्ते में ही अंजना का फोन आ गया. हालचाल के बाद पूछा, ‘‘आज तो सुबह कुछ काम भी किए होंगे?’’
शैलजा की तारीफ के पुल बांध दिए जूही ने. तभी अचानक जूही को कुछ याद आया. बोली, ‘‘मम्मी, मैं बाद में फोन करती हूं,’’ फिर तुरंत सासू माँ को फोन मिलाया.
शैलजा के हैलो कहते ही तुरंत बोली, ‘‘सॉरी मां, मैं अपना रूम बहुत बुरी हालत में छोड़ आई हूं… याद ही नहीं रहा.’’
‘‘श्यामा ने ठीक कर दिया है.’’
‘‘सॉरी मां, कल से…’’
‘‘सब आ जाता है धीरे-धीरे. परेशान मत हो.’’
शैलजा के स्नेह भरे स्वर पर जूही का दिल भर आया. अजय और जूही दिन भर व्यस्त रहे. सहकर्मी बीचबीच में दोनों को छेड़ कर मजा लेते रहे. दोनों रात 8 बजे ऑफिस से निकले तो थकान हो चुकी थी. जूही का तो मन कर रहा था, सीधा जा कर बैड पर लेटे. लेकिन 
वह मायका था अब ससुराल है.

10 बजे तक दोनों घर पहुंचे. शिवमोहन, शैलजा और नेहा डिनर कर चुके थे. उन दोनों का टेबल पर रखा था. हाथ धो कर जूही खाने पर टूट पड़ी. खाने के बाद उस ने सारे बरतन समेट दिए.
शैलजा ने कहा, ‘‘तुम लोग अब आराम करो. हम भी सोने जा रहे हैं.’’
शैलजा लेटीं तो शिवमोहन ने कहा, ‘‘तुम भी थक गई होगी न?’’

‘‘हां, बस अब सोना ही है.’’
‘‘काम भी तो बढ़ गया होगा?’’
‘‘कौन सा काम?’’
‘‘अरे, एक और टिफिन…’’
‘‘6 की जगह 8 रोटियां बन गईं तो क्या फर्क पड़ा? सब की तो बनती ही हैं और आज तो मैं ने इन दोनों का टिफिन अलगअलग बना दिया. कल से एकसाथ ही पैक कर दूंगी. खाना बच्चे साथ ही तो खाएंगे, 
जूही का खाना बनाने से मुझ पर कोई अतिरिक्त काम 
आने वाली बात है ही नहीं.’’

‘‘तुम हर बात को इतनी आसानी से कैसे ले लेती हो, शैल?’’
‘‘शांति से जीना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है, बस हम औरतें ही अपने अहं, अपनी जिद में आ कर अकसर घर में अशांति का कारण बन जाती हैं. जैसे नेहा को भी अभी कोई काम करने की ज्यादा आदत नहीं है वैसे ही वह बच्ची भी तो अभी आई है. आजकल की लड़कियां पहले पढ़ाई, फिर कैरियर में व्यस्त रहती हैं. इतना तो मैं समझती हूं आसान नहीं है कामकाजी लड़कियों का जीवन. अरे मैं तो घर में रहती हूँ, थक भी गई तो दिन में थोड़ा आराम कर लूंगी. कभी नहीं कर पाऊंगी तो श्यामा है ही, किचन में हैल्प कर दिया करेगी, जूही पर घर के भी कामों का क्या दबाव डालना. नेहा को ही देख लो, कालेज और कोचिंग के बाद कहां हिम्मत होती है कुछ करने की, ये लड़कियां घर के काम तो समय के साथसाथ खुद ही सीखती चली जाती हैं. 
बस, थोड़ा सा समय लगता है.’’

शैलजा अपने दिल की बातें शेयर कर रही थीं, ‘‘अभी नई-नई आई है, आते ही किसी बात पर मन दुखी हो गया तो वह बात दिल में एक कांटा बन कर रह जाएगी जो हमेशा चुभती रहेगी. मैं नहीं चाहती उसे किसी बात की चुभन हो,’’ कह कर वे सोने की तैयारी करने लगीं, बोलीं, ‘‘चलो, अब सो जाते हैं.’’
उधर अजय की बांहों का तकिया बना कर लेटी जूही मन ही मन सोच रही थी, आज शादी के बाद ऑफिस का पहला दिन था. मां के व्यवहार और स्वभाव में कितना स्नेह है. अगर उन्होंने मुझे बेटी माना है तो मैं भी उन्हें मां की तरह ही प्यार और सम्मान दूंगी. पिछले 15 दिनों से चाची की बात दिल पर बोझ की तरह रखी थी, लेकिन इस समय उसे अपना दिल फूल सा हलका लगा, बेफिक्री से आंखें मूंद कर उस ने अपना सिर अजय के सीने पर रख दिया
-नीतू ठाकुर

रविवार, 5 अगस्त 2018

जाति औरत की.....प्रस्तुति नीतू ठाकुर

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एक आदमी ने महिला से पूछा ... तेरी जाति क्या है? 

महिला ने पूछा ... एक मां की या एक महिला की ..?

उसने कहा .... चल दोनों की बता .. और मुस्कान बिखेरी ।

महिला ने भी पूरे धैर्य से बताया.......
एक महिला जब माँ बनती  है तो वो जाति विहीन हो जाती है..
उसने फिर आश्चर्य चकित होकर पूछा ....वो कैसे..?

जबाब मिला कि .....
जब एक मां अपने बच्चे का लालन पालन करती है, 
अपने बच्चे की गंदगी साफ करती है , तो वो शूद्र हो जाती है..

वो ही बच्चा बड़ा होता है तो मां बाहरी नकारात्मक ताकतों से उसकी रक्षा करती है, तो वो क्षत्रिय हो जाती है..

जब बच्चा और बड़ा होता है, तो मां उसे शिक्षित करती है, 
तब वो ब्राह्मण हो जाती है..

और अंत में जब बच्चा और बड़ा  होता है तो मां उसके आय और व्यय में उसका उचित मार्गदर्शन कर अपना वैश्य धर्म निभाती है ..
तो हुई ना एक महिला या मां जाति विहीन..

उत्तर सुनकर वो अवाक् रह गया । उसकी आँखों में महिलाओं या माताओं के लिए सम्मान व आदर का भाव था और महिला को 
अपने मां और महिला होने पर पर गर्व का अनुभव हो रहा था।
-प्रस्तुति नीतू ठाकुर