रविवार, 22 अक्तूबर 2017

ओल्ड इज़ गोल्ड ....बुजुर्ग भी इंसान है...........डॉ. आलोक चान्टिया

 कितनी अजीब बात है कि हर मनुष्य का जन्मदिन अलग अलग होता है पर कुछ बाते ऐसी होती है कि सभी में सामान होती है और इसी लिए साडी दुनिया के बुजुर्गों के लिए एक दिन रख दिया गया | मैं उन मनीषियों को साधुवाद देता हूँ जिन्होंने १ तारीख को चुना क्योकि आज दुनिया में हर बुजुर्ग अकेला ( एक ) होकर रह गया है | न जाने कौन सा दर्शन है कि बच्चा पेट में भी होता है तो हर कोई उसके आने की प्रतीक्षा करता है और दुनिया में आने के बाद तो पूछिये ही मत | बच्चा रोया तो सब लपके | बच्चा श तो सब हसे , कौन ऐसा है जो बच्चे को चूमता न हो , गोद में ना उठा लेता हो , उसके लिए कुछ लता न हो और माँ के छटी से तो अमृत ही बरास्ता रहता है पर क्या हो जाता है जब वही बच्चा एक दिन बूढ़ा होता है , क्यों नहीं किसी के पास समय होता है तब उस बढे के लिए !!!!!!!!!!! क्या इसका मतलब मैं ये समझू कि दुनिया ही मोल भाव पर आधारित है जब बच्चा होता है तो लोग उसे कच्चे माल की तरह देखते है क्योकि उसमे कल की सम्भावनाये छिपी है इस लिए हर कोई बच्चे पर लूटना चाहता है पर जब बुजुर्ग की बारी आती है तो दुनिया को लगता है कि अब ये वेस्ट मटेरियल है \ दुनिया को कुछ देने से रहे और जो देना चाहते है उसके सहारे आज के समाज में कोई एक दिन चल नहीं सकता और ऊपर से दवा में पैसा खर्च अलग होगा |और हम लोग वैसे भी जुआ खेल सकते है , दारू पी सकते है पर उस बुजुर्ग पर पैसा क्यों खर्च करें जिससे कोई सुख ही नहीं मिल सकता | मैं महिला पर बनने वाले कानून का घोर समर्थक हूँ पर जिस तरह से घरेलु हिंसा के अधिनियम में महिला को अधिकार दिया गया है कि वो चाहे तो अलग रह सकती है उसके कारण आज बहु अपने सास ससुर को एक रोटी बना कर देना पसंद नहीं करती| जिस देश में खाना बनते समय गाये और कुत्ते के लिए रोज रोटी बनाने का रिवाज था उसी देश में हमारे बुजुर्ग एक रोटी को तरस जाते है | शायद हम इतने यथार्थ में जीने लगे है कि हम मान चुके है कि जिसके भाग्य में जो लिखा है वही मिलता है और जब बुजुर्गों  को ठोकर खाकर मारना लिखा है कलयुग में तो बेचारे भारतीय करें भी क्या ? और तो और अब उनको उम्र कहा रही जो परिवार के साथ रहे उनकी उम्र की बातें कौन करें | ये तो इस देश के मातृ पितृ भक्त बच्चो की सहृदयता है कि बूढ़े माता पिता को अकेला पन ना लगे तो उनको वृद्धाश्रम में रखवा देते है कम से कम वह उनको उम्र के लोगो के बीच उनका समय तो कट जाता है | अब बूढी अम्मा को कौन हाथ पकड़ कर घुमाए ? कहा इतनी फुर्सत किसी के पास वो क्या कम है कि वॉकर लाके दे दिया है कम से कम किसी से कहना तो नहीं पड़ता कि घुमा दो| पर उसी माँ ने गहनता अपने बच्चे के पैर बचपन में इस लिए दबाये होंगे क्योकि उसने खेल कर आने के बाद कहा होगा मम्मी पैर में बहुत दर्द है | पापा यानि अप्पकी नज़र में बुजुर्ग जो अब किसी काम के नहीं ऊपर से रात भर खासते रहते है , सबकी नींद हराम किये रहते है वो अलग | उनकी क्या मजाल जो अपने इलाज के पैसे पा जाये पर जब आपको पढ़ाई करने के लिए उनकी हैसियत से बड़े स्कूल में जाने के लिए इच्छा हुई होगी तो उन्होंने अपने दोस्त से या बैंक से या अपनी पेंशन बेच कर या फिर अपनी जमीन बेच कर आपको इस मुकाम तक पहुचाया होगा क्योकि उनके लिए आखिर किस दिन के लिए पैसा होता है जब बच्चे ही अपनी मर्जी का कुछ ना कर पाये तो क्या फायदा पर आपके पास उनके इस त्याग को सोचने का कहा वक्त ??? कौन सा कोई अनोखा काम कर दिया सभी माँ बाप करते है और आज वही पेंशन बेचने वाला बाप अपनी दवाई को तरसता है तो तरसे पिछले जन्म में जरूर कोई पाप किया होगा जो इस जन्म में ऐसा दिन देख रहे है | वो तो भला हो इस देश  कीसरकार का जिसने वृद्धो के भरण पोषण के लिए २००७ में कौन बना दिया और ये व्यवस्था कि जो कोई भी किसी माँ पिता या वृद्ध जन की संपत्ति और बच्चे होने का हक़ रखता है उसको अपने वृद्ध माता पिता को जीविकोपार्जन के लिए १०००० रुपये तक गुजारा भत्ता देना होगा | चलिए सरकार ने ही आपको याद तो दिलाया कि आप जिनके कारण इस दुनिया में है उनको आप यु ही नहीं छोड़ सकते | आप मंदिर में भगवन को प्रसाद चढ़ा सकते है | गरीबों को दान दे सकते है पर क्या मजाल जो इस दुनिया में लेन वाले को आप कुछ दे दें | मुझे नहीं मालूम कि आप मेरी बातों से कितना सहमत है पर दुनिया में औरतों को समानता का अधिकार दिलाने केलिए आप आंदोलन करते है | सभी के समान होने ई वकालत आप करते है | अमेरिका के गोर काले का भेद मिटाने केलिए आवाज आप उठाते है | पर सच सोच कर देखिये क्या आप अपने ही घर में अपने बूढो या माता पिता को अपने समान समझ पाये ???? उनको वही देने के लिए आप प्रयास कर पाये जो उन्होंने आपको देने के लिए किये   थे!!!!!!!! शायद नहीं इसी लिए वृद्धो के भरण पोषण पर कानून लाना पड़ा , वृद्धा आश्रम बनवाना पड़ा | वृद्ध दिवस मानना पड़ा | तो फिर इस देश में गणेश पूजा क्यों ????????जब आप गणेश के उस दर्शन को ही नहीं अपना पाये जिसमे वो सिर्फ अपने माँ पिता के चारों और चक्कर काट कर देवताओं में प्रथम देवता बन गया | आप राम क्यों पूजते है जब वही राम अपनी माँ और पिता की इच्छा के लिए वनवास चले गए आप तो कोई त्याग ही नहीं करना चाहते |आप औरंगजेब क्यों बनना चाहते है जिसने अपने बूढ़े बाप को जेल में डाल दिया | आप आलुद्दीन ख़िलजी क्यों बनना चाहते है जिसने सत्ता के लिए अपने बुजुर्ग चाचा जलालुद्दीन खिलजो को कड़ा में खंजर घोप कर मार डाला | ये सारे उदहारण है ना कि किसी धर्म का विश्लेषण पर आपको सोचना चाहिए कि क्या हम कभी बूढ़े नहीं होंगे !!!!!!!!! होंगे पर जरुरी नहीं कि बार बार यही कहानी दोहराइए जाये आइये एक बार उन बुड्ढे माँ पिता की सेवा करें जिनके कारण हम गणेश और दुर्गा को जानने के लिए दुनिया में आ पाये | 
-डॉ. आलोक चान्टिया , अखिल भारतीय अधिकार 

2 टिप्‍पणियां:

  1. ओल्ड इस गोल्ड ,बुजुर्ग भी इंसान हैं
    जीवन की साच्चई लिखी है ।
    ओल्ड इस गोल्ड बुजुर्ग सच मे खरा गोल्ड होते हैं।

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  2. बहुत कड़वी मगर गहरी सच्चाई को व्यक्त किया है आपने। बहुत सुंदर।

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