रविवार, 19 अगस्त 2018

होनहार बच्चा.....वकील शर्मा

मैं एक घर के करीब से गुज़र रहा था की अचानक से मुझे उस घर के अंदर से एक बच्चे की रोने की आवाज़ आई। उस बच्चे की आवाज़ में इतना दर्द था कि अंदर जा कर वह बच्चा क्यों रो रहा है, यह मालूम करने से मैं खुद को रोक ना सका।

अंदर जा कर मैने देखा कि एक माँ अपने दस साल के बेटे को आहिस्ता से मारती और बच्चे के साथ खुद भी रोने लगती। मैने आगे हो कर पूछा बहनजी आप इस छोटे से बच्चे को क्यों मार रही हो? 
जब कि आप खुद भी रोती हो।

उस ने जवाब दिया भाई साहब इस के पिताजी भगवान को प्यारे हो गए हैं और हम लोग बहुत ही गरीब हैं, उन के जाने के बाद मैं लोगों के 
घरों में काम करके घर और इस की पढ़ाई का खर्च बामुश्किल 
उठाती हूँ और यह कमबख्त स्कूल रोज़ाना देर से जाता है और 
रोज़ाना घर देर से आता है।

जाते हुए रास्ते मे कहीं खेल कूद में लग जाता है और पढ़ाई की 
तरफ ज़रा भी ध्यान नहीं देता है जिस की वजह से रोज़ाना 
अपनी स्कूल की वर्दी गन्दी कर लेता है। मैने बच्चे और उसकी 
माँ को जैसे तैसे थोड़ा समझाया और चल दिया।

इस घटना को कुछ दिन ही बीते थे की एक दिन सुबह सुबह कुछ 
काम से मैं सब्जी मंडी गया। तो अचानक मेरी नज़र उसी दस 
साल के बच्चे पर पड़ी जो रोज़ाना घर से मार खाता था। 
मैं क्या देखता हूँ कि वह बच्चा मंडी में घूम रहा है और जो 
दुकानदार अपनी दुकानों के लिए सब्ज़ी खरीद कर अपनी 
बोरियों में डालते तो उन से कोई सब्ज़ी ज़मीन पर गिर जाती थी 
वह बच्चा उसे फौरन उठा कर अपनी झोली में डाल लेता। 

मैं यह नज़ारा देख कर परेशानी में सोच रहा था कि ये चक्कर क्या है, मैं उस बच्चे का चोरी चोरी पीछा करने लगा। जब उस की झोली 
सब्ज़ी से भर गई तो वह सड़क के किनारे बैठ कर उसे ऊंची ऊंची आवाज़ें लगा कर वह सब्जी बेचने लगा। मुंह पर मिट्टी गन्दी वर्दी 
और आंखों में नमी, ऐसा महसूस हो रहा था कि ऐसा दुकानदार ज़िन्दगी में पहली बार देख रहा हूँ ।

अचानक एक आदमी अपनी दुकान से उठा जिस की दुकान के 
सामने उस बच्चे ने अपनी नन्ही सी दुकान लगाई थी, उसने आते 
ही एक जोरदार लात मार कर उस नन्ही दुकान को एक ही झटके 
में रोड पर बिखेर दिया और बाज़ुओं से पकड़ कर उस बच्चे को भी 
उठा कर धक्का दे दिया।

वह बच्चा आंखों में आंसू लिए चुप चाप दोबारा अपनी सब्ज़ी को 
इकठ्ठा करने लगा और थोड़ी देर बाद अपनी सब्ज़ी एक दूसरे दुकान 
के सामने डरते डरते लगा ली। भला हो उस शख्स का जिस की दुकान के सामने इस बार उसने अपनी नन्ही दुकान लगाई उस शख्स ने 
बच्चे को कुछ नहीं कहा। 

थोड़ी सी सब्ज़ी थी ऊपर से बाकी दुकानों से कम कीमत। जल्द ही बिक्री हो गयी, और वह बच्चा उठा और बाज़ार में एक कपड़े वाली दुकान में दाखिल हुआ और दुकानदार को वह पैसे देकर दुकान में पड़ा अपना स्कूल बैग उठाया और बिना कुछ कहे वापस स्कूल की और 
चल पड़ा। और मैं भी उस के पीछे पीछे चल रहा था। 

बच्चे ने रास्ते में अपना मुंह धो कर स्कूल चल दिया। मै भी उस के पीछे स्कूल चला गया। जब वह बच्चा स्कूल गया तो एक घंटा लेट हो चुका था। जिस पर उस के टीचर ने डंडे से उसे खूब मारा। मैने जल्दी से जा कर टीचर को मना किया कि मासूम बच्चा है इसे मत मारो। टीचर कहने लगे कि यह रोज़ाना एक डेढ़ घण्टे लेट से ही आता है और मै रोज़ाना इसे सज़ा देता हूँ कि डर से स्कूल वक़्त पर आए और कई 
बार मै इस के घर पर भी खबर दे चुका हूँ।

खैर बच्चा मार खाने के बाद क्लास में बैठ कर पढ़ने लगा। मैने उसके टीचर का मोबाइल नम्बर लिया और घर की तरफ चल दिया। घर 
पहुंच कर एहसास हुआ कि जिस काम के लिए सब्ज़ी मंडी गया था 
वह तो भूल ही गया। मासूम बच्चे ने घर आ कर माँ से एक बार 
फिर मार खाई। सारी रात मेरा सर चकराता रहा।

सुबह उठकर फौरन बच्चे के टीचर को कॉल की कि मंडी टाइम हर हालत में मंडी पहुंचें। और वो मान गए। सूरज निकला और बच्चे का स्कूल जाने का वक़्त हुआ और बच्चा घर से सीधा मंडी अपनी नन्ही दुकान का इंतेज़ाम करने निकला। मैने उसके घर जाकर उसकी माँ को कहा कि बहनजी आप मेरे साथ चलो मै आपको बताता हूँ, आप का बेटा स्कूल क्यों देर से जाता है।

वह फौरन मेरे साथ मुंह में यह कहते हुए चल पड़ीं कि आज इस लड़के की मेरे हाथों खैर नही। छोडूंगी नहीं उसे आज। मंडी में लड़के का टीचर भी आ चुका था। हम तीनों ने मंडी की तीन जगहों पर पोजीशन संभाल ली, और उस लड़के को छुप कर देखने लगे। आज भी उसे काफी लोगों से डांट फटकार और धक्के खाने पड़े, और आखिरकार वह लड़का अपनी सब्ज़ी बेच कर कपड़े वाली दुकान पर चल दिया।

अचानक मेरी नज़र उसकी माँ पर पड़ी तो क्या देखता हूँ कि वह  
बहुत ही दर्द भरी सिसकियां लेकर लगा तार रो रही थी, और मैने 
फौरन उस के टीचर की तरफ देखा तो बहुत शिद्दत से उसके आंसू 
बह रहे थे। दोनो के रोने में मुझे ऐसा लग रहा था जैसे उन्हों ने 
किसी मासूम पर बहुत ज़ुल्म किया हो और आज उन को अपनी 
गलती का एहसास हो रहा हो।

उसकी माँ रोते रोते घर चली गयी और टीचर भी सिसकियां लेते हुए स्कूल चला गया। बच्चे ने दुकानदार को पैसे दिए और आज उसको दुकानदार ने एक लेडी सूट देते हुए कहा कि बेटा आज सूट के सारे 
पैसे पूरे हो गए हैं। अपना सूट ले लो, बच्चे ने उस सूट को पकड़ 
कर स्कूल बैग में रखा और स्कूल चला गया। 

आज भी वह एक घंटा देर से था, वह सीधा टीचर के पास गया और 
बैग डेस्क पर रख कर मार खाने के लिए अपनी पोजीशन संभाल ली और हाथ आगे बढ़ा दिए कि टीचर डंडे से उसे मार ले। टीचर कुर्सी 
से उठा और फौरन बच्चे को गले लगा कर इस क़दर ज़ोर से रोया कि मैं भी देख कर अपने आंसुओं पर क़ाबू ना रख सका।

मैने अपने आप को संभाला और आगे बढ़कर टीचर को चुप कराया 
और बच्चे से पूछा कि यह जो बैग में सूट है वह किस के लिए है। 
बच्चे ने रोते हुए जवाब दिया कि मेरी माँ अमीर लोगों के घरों में मजदूरी करने जाती है और उसके कपड़े फटे हुए होते हैं कोई जिस्म 
को पूरी तरह से ढांपने वाला सूट नहीं और और मेरी माँ के पास पैसे नही हैं इस लिये अपने माँ के लिए यह सूट खरीदा है।

तो यह सूट अब घर ले जाकर माँ को आज दोगे? मैने बच्चे से सवाल पूछा। जवाब ने मेरे और उस बच्चे के टीचर के पैरों के नीचे से ज़मीन ही निकाल दी। बच्चे ने जवाब दिया नहीं अंकल छुट्टी के बाद मैं इसे दर्जी को सिलाई के लिए दे दूँगा। रोज़ाना स्कूल से जाने के बाद काम करके थोड़े थोड़े पैसे सिलाई के लिए दर्जी के पास जमा किये हैं।

टीचर और मैं सोच कर रोते जा रहे थे कि आखिर कब तक हमारे समाज में गरीबों के साथ ऐसा होता रहेगा उन के बच्चे त्योहार की खुशियों में शामिल होने के लिए जलते रहेंगे आखिर कब तक।

क्या ऊपर वाले की खुशियों में इन जैसे गरीब का कोई हक नहीं ? 
क्या हम अपनी खुशियों के मौके पर अपनी ख्वाहिशों में से थोड़े 
पैसे निकाल कर अपने समाज मे मौजूद गरीब और बेसहारों 
की मदद नहीं कर सकते।

आप सब भी ठंडे दिमाग से एक बार जरूर सोचना ! ! ! !

अगर हो सके तो इस लेख को उन सभी सक्षम लोगो को बताना  
ताकि हमारी इस छोटी सी कोशिश से किसी भी सक्षम के दिल मे गरीबों के प्रति हमदर्दी का जज़्बा ही जाग जाये और यही लेख 
किसी भी गरीब के घर की खुशियों की वजह बन जाये।
-वकील शर्मा

सोमवार, 13 अगस्त 2018

थोड़ा सा समय ....प्रस्तुति नीतू ठाकुर

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हनीमून से लौटते समय टैक्सी में बैठी जूही के मन में कई तरह 
के विचार आ जा रहे थे. अजय ने उसे खयालों में डूबा देख 
उस की आंखों के आगे हाथ लहरा कर पूछा, ‘‘कहां खोई हो? घर जाने का मन नहीं कर रहा है?’’

जूही मुसकरा दी, लेकिन ससुराल में आने वाले समय को ले कर उस के मन में कुछ घबराहट सी थी. दोनों शादी के 1 हफ्ते बाद ही सिक्किम घूमने चले गए थे. उन का प्रेमविवाह था. दोनों सीए थे और नरीमन में एक ही कंपनी में  काम करते थे.

अजय ब्राह्मण परिवार का बड़ा बेटा था. पिता शिवमोहन एक प्राइवेट कंपनी में अच्छे पद पर थे. मम्मी शैलजा हाउसवाइफ थीं और छोटी बहन नेहा अभी कालेज में थी. अजय का घर मुलुंड में था.

पंजाबी परिवार की इकलौती बेटी जूही कांजुरमार्ग में रहती थी. जूही के पिता विकास डाक्टर थे और मां अंजना हाउसवाइफ थीं. दोनों परिवारों को इस विवाह पर कोई एतराज नहीं था. विवाह हंसीखुशी हो गया. जूही को जो बात परेशान कर रही थी वह यह थी कि उस के ऑफिस जानेआने का कोई टाइम नहीं था. अब तक तो घर की कोई जिम्मेदारी उस पर नहीं थी, नरीमन से आतेआते कभी 10 बजते, तो कभी 11. जिस क्लाइंट बेसिस पर काम करती, पूरी टीम के हिसाब से उठना पड़ता. मायके में तो घर पहुंचते ही कपड़े बदल हाथमुंह धो कर 
डिनर करती और फिर सीधे बैड पर.

शनिवार और रविवार पूरा आराम करती थी. मन होता तो दोस्तों 
के साथ मूवी देखती, डिनर करती. वैसे भी मुंबई में औफिस जाने 
वाली ज्यादातर कुंआरी अविवाहित लड़कियों का यही रूटीन 
रहता है, हफ्ते के 5 दिन काम में खूब बिजी और छुट्टी के दिन 
आराम. जूही के 2-3 घंटे तो रोज सफर में कट जाते थे. 
वह हमेशा वीकेंड के लिए उत्साहित रहती.

जैसे ही अंजना दरवाजा खोलतीं, जूही एक लंबी सांस लेते हुए कहती थी, ‘‘ओह मम्मी, आखिर वीकेंड आ ही गया.’’ अंजना को उस पर बहुत स्नेह आता कि बेचारी बच्ची, कितनी थकान होती है पूरा हफ्ता.

जूही को याद आ रहा था कि जब बिदाई के समय उस की मम्मी रोए जा रही थीं तब उस की सासू माँ ने उस की मम्मी के कंधे पर हाथ रख कर कहा था, ‘‘आप परेशान न हों. बेटी की तरह रहेगी हमारे घर. 
मैं बेटी बहू में कोई फर्क नहीं रखूंगी.’’

तब वहीं खड़ी जूही की चाची ने व्यंग्यपूर्वक धीरे से उस के कान में कहा, ‘‘सब कहने की बातें हैं. आसान नहीं होता बहू को बेटी समझना. शुरू शुरू में हर लड़के वाले ऐसी ही बड़ी बड़ी बातें करते हैं.’’

बहते आंसुओं के बीच में जूही को चाची की यह बात साफसाफ सुनाई दी थी. पहला हफ्ता तो बहुत मसरूफियत भर निकला. अब वे घूम 
कर लौट रहे थे, देखते हैं क्या होता है. परसों से औफिस भी जाना है. टैक्सी घर के पास रुकी तो जूही अजय के साथ घर की तरफ चल दी.
शिवमोहन, शैलजा और नेहा उन का इंतजार ही कर रहे थे. जूही ने सास-ससुर के पैर छू कर उन का आशीर्वाद लिया. नेहा को उस ने गले लगा लिया, सब एकदूसरे के हालचाल पूछते रहे.

शैलजा ने कहा, ‘‘तुम लोग  फ्रैश हो जाओ, मैं चाय लाती हूं.’’
जूही को थकान तो बहुत महसूस हो रही थी, फिर भी उस ने कहा, ‘‘नहीं मम्मीजी मैं बना लूंगी.’’
‘‘अरे थकी होगी बेटा, आराम करो और हां, यह मम्मीजी नहीं, अजय और नेहा मुझे मां ही कहते हैं, तुम भी बस मां ही कहो.’’

जूही ने झिझकते हुए सिर हिला दिया. अजय और जूही ने फ्रैश हो कर सब के साथ चाय पी. थोड़ी देर बाद शैलजा ने पूछा, ‘‘जूही, डिनर में क्या खाओगी?’’ ‘‘मां, जो बनाना है, बता दें, मैं हैल्प करती हूं.’’
‘‘मैं बना लूंगी.’’ ‘‘लेकिन मां, मेरे होते हुए…’’

हंस पड़ीं शैलजा, ‘‘तुम्हारे होते हुए क्या? अभी तक मैं ही बना रही हूँ और मुझे कोई परेशानी भी नहीं है,’’ कह कर शैलजा किचन में आ गई

 तो जूही भी मना करने के बावजूद उन का हाथ बंटाती रही.
अगले दिन की छुट्टी बाकी थी. शिवमोहन ऑफिस और नेहा कालेज चली गई. जूही अलमारी में अपना सामान लगाती रही. सब अपनेअपने काम में व्यस्त रहे. अगले दिन साथ ऑफिस जाने के लिए अजय और जूही उत्साहित थे. दोनों लोकल ट्रेन से ही जाते थे. हलकेफुलके माहौल में सब ने डिनर साथ किया.
रात को सोने के समय शिवमोहन ने कहा ‘‘कल से जूही भी लंच ले जाएगी न?’’ ‘‘हां, क्यों नहीं?’’
‘‘इस का मतलब कल से उस की किचन की ड्यूटी शुरू?’’

‘‘ड्यूटी कैसी? जहां मैं अब तक 3 टिफिन पैक करती थी, 
अब 4 कर दूंगी, क्या फर्क पड़ता है?’’ शिवमोहन ने प्यार 
भरी नजरों से शैलजा को देखते हुए कहा, ‘‘ममतामयी सास 
बनोगी इस का कुछ अंदाजा तो था मुझे.’’

‘‘आप से कहा था न कि जूही बहू नहीं बेटी बन कर रहेगी इस घर में.’’
शिवमोहन ने उसे छेड़ते हुए कहा, ‘‘लेकिन तुम्हें तो 
बहुत कड़क सास मिली थीं.’’

शैलजा ने फीकी हंसी हंसते हुए कहा, ‘‘इसीलिए तो जूही को उन तकलीफों से बचाना है जो मैं ने खुद झेली हैं. छोड़ो, वह अम्मां का पुराना जमाना था, उन की सोच अलग थी, अब तो वे नहीं रहीं. अब उन बातों का क्या फायदा? अजय ने बताया था जूही को पनीर बहुत पसंद है. कल उस का पहला टिफिन तैयार करूंगी, 
पनीर ही बनाऊंगी, खुश हो जाएगी बच्ची.’’

शिवमोहन की आंखों में शैलजा के लिए तारीफ के भाव उभर आए. सुबह अलार्म बजा. जूही जब तक तैयार हो कर किचन में आई 
तो वहां 4 टिफिन पैक किए रखे थे. शैलजा डाइनिंग 
टेबल पर नाश्ता रख रही थीं.

जूही शर्मिंदा सी बोली. ‘‘मां, आप ने तो सब कर लिया.’’
‘‘हां बेटा, नेहा जल्दी निकलती है. सब काम साथ ही हो जाता है. आओ, नाश्ता कर लो.’’
‘‘कल से मैं और जल्दी उठ जाऊंगी.’’

‘‘सब हो जाएगा बेटा, इतना मत सोचो. अभी तो मैं कर ही लेती हूं. तबीयत कभी बिगड़ेगी तो करना ही होगा और आगेआगे तो 
जिम्मेदारी संभालनी ही है, अभी ये दिन आराम से बिताओ, खुश रहो.’’
अजय भी तैयार हो कर आ गया था. बोला, 
‘‘मां, लंच में क्या है?’’ ‘‘पनीर.’’
जूही तुरंत बोली, ‘‘मां यह मेरी पसंदीदा डिश है.’’
अजय ने कहा, ‘‘मैं ने ही बताया है मां को. मां, अब क्या अपनी बहू की पसंद का ही खाना बनाओगी?’’
जूही तुनकी, ‘‘मां ने कहा है न उन के लिए बहू नहीं, बेटी हूं.’’
नेहा ने घर से निकलते-निकलते हंसते हुए कहा, ‘‘मां, भाभी के 
सामने मुझे भूल मत जाना.’’
शिवमोहन ने भी बातों में हिस्सा लिया, ‘‘अरे भई, थोड़ा तो सास वाला रूप दिखाओ, थोड़ा टोको, थोड़ा गुस्सा हो, पता तो चले घर में 
सास-बहू हैं.’’ सब जोर से हंस पड़े.
शैलजा ने कहा, ‘‘सॉरी, यह तो किसी को पता नहीं चलेगा कि घर में सास-बहू हैं.’’ सब हंसतेबोलते घर से निकल गए.

थोड़ी देर बाद ही मेड श्यामाबाई आ गई. शैलजा घर की सफाई करवाने लगी. अजय के कमरे में जा कर श्यामा ने आवाज दी, ‘‘मैडम, देखो आप की बहू कैसे सामान फैला कर गई हैं.’’
शैलजा ने जा कर देखा, हर तरफ सामान बिखरा था, 
उन्हें हंसी आ गई.
श्यामा ने पूछा, ‘‘मैडम, आप हंस रही हैं?’’
शैलजा ने कहा, ‘‘आओ, मेरे साथ,’’ शैलजा उसे नेहा के कमरे में ले गई. वहां और भी बुरा हाल था.
शैलजा ने कहा, ‘‘यहां भी वही हाल है न? तो चलो अब हर 
जगह सफाई कर लो जल्दी.’’
श्यामा 8 सालों से यहां काम कर रही थी. अच्छी तरह समझती थी अपनी शांति-पसंद मैडम को, अत: मुसकराते हुए अपने 
काम में लग गई.

जूही फोन पर अपने मम्मीपापा से संपर्क में रहती ही थी. शादी के बाद आज ऑफिस का पहला दिन था. रास्ते में ही अंजना का फोन आ गया. हालचाल के बाद पूछा, ‘‘आज तो सुबह कुछ काम भी किए होंगे?’’
शैलजा की तारीफ के पुल बांध दिए जूही ने. तभी अचानक जूही को कुछ याद आया. बोली, ‘‘मम्मी, मैं बाद में फोन करती हूं,’’ फिर तुरंत सासू माँ को फोन मिलाया.
शैलजा के हैलो कहते ही तुरंत बोली, ‘‘सॉरी मां, मैं अपना रूम बहुत बुरी हालत में छोड़ आई हूं… याद ही नहीं रहा.’’
‘‘श्यामा ने ठीक कर दिया है.’’
‘‘सॉरी मां, कल से…’’
‘‘सब आ जाता है धीरे-धीरे. परेशान मत हो.’’
शैलजा के स्नेह भरे स्वर पर जूही का दिल भर आया. अजय और जूही दिन भर व्यस्त रहे. सहकर्मी बीचबीच में दोनों को छेड़ कर मजा लेते रहे. दोनों रात 8 बजे ऑफिस से निकले तो थकान हो चुकी थी. जूही का तो मन कर रहा था, सीधा जा कर बैड पर लेटे. लेकिन 
वह मायका था अब ससुराल है.

10 बजे तक दोनों घर पहुंचे. शिवमोहन, शैलजा और नेहा डिनर कर चुके थे. उन दोनों का टेबल पर रखा था. हाथ धो कर जूही खाने पर टूट पड़ी. खाने के बाद उस ने सारे बरतन समेट दिए.
शैलजा ने कहा, ‘‘तुम लोग अब आराम करो. हम भी सोने जा रहे हैं.’’
शैलजा लेटीं तो शिवमोहन ने कहा, ‘‘तुम भी थक गई होगी न?’’

‘‘हां, बस अब सोना ही है.’’
‘‘काम भी तो बढ़ गया होगा?’’
‘‘कौन सा काम?’’
‘‘अरे, एक और टिफिन…’’
‘‘6 की जगह 8 रोटियां बन गईं तो क्या फर्क पड़ा? सब की तो बनती ही हैं और आज तो मैं ने इन दोनों का टिफिन अलगअलग बना दिया. कल से एकसाथ ही पैक कर दूंगी. खाना बच्चे साथ ही तो खाएंगे, 
जूही का खाना बनाने से मुझ पर कोई अतिरिक्त काम 
आने वाली बात है ही नहीं.’’

‘‘तुम हर बात को इतनी आसानी से कैसे ले लेती हो, शैल?’’
‘‘शांति से जीना कोई बहुत मुश्किल काम नहीं है, बस हम औरतें ही अपने अहं, अपनी जिद में आ कर अकसर घर में अशांति का कारण बन जाती हैं. जैसे नेहा को भी अभी कोई काम करने की ज्यादा आदत नहीं है वैसे ही वह बच्ची भी तो अभी आई है. आजकल की लड़कियां पहले पढ़ाई, फिर कैरियर में व्यस्त रहती हैं. इतना तो मैं समझती हूं आसान नहीं है कामकाजी लड़कियों का जीवन. अरे मैं तो घर में रहती हूँ, थक भी गई तो दिन में थोड़ा आराम कर लूंगी. कभी नहीं कर पाऊंगी तो श्यामा है ही, किचन में हैल्प कर दिया करेगी, जूही पर घर के भी कामों का क्या दबाव डालना. नेहा को ही देख लो, कालेज और कोचिंग के बाद कहां हिम्मत होती है कुछ करने की, ये लड़कियां घर के काम तो समय के साथसाथ खुद ही सीखती चली जाती हैं. 
बस, थोड़ा सा समय लगता है.’’

शैलजा अपने दिल की बातें शेयर कर रही थीं, ‘‘अभी नई-नई आई है, आते ही किसी बात पर मन दुखी हो गया तो वह बात दिल में एक कांटा बन कर रह जाएगी जो हमेशा चुभती रहेगी. मैं नहीं चाहती उसे किसी बात की चुभन हो,’’ कह कर वे सोने की तैयारी करने लगीं, बोलीं, ‘‘चलो, अब सो जाते हैं.’’
उधर अजय की बांहों का तकिया बना कर लेटी जूही मन ही मन सोच रही थी, आज शादी के बाद ऑफिस का पहला दिन था. मां के व्यवहार और स्वभाव में कितना स्नेह है. अगर उन्होंने मुझे बेटी माना है तो मैं भी उन्हें मां की तरह ही प्यार और सम्मान दूंगी. पिछले 15 दिनों से चाची की बात दिल पर बोझ की तरह रखी थी, लेकिन इस समय उसे अपना दिल फूल सा हलका लगा, बेफिक्री से आंखें मूंद कर उस ने अपना सिर अजय के सीने पर रख दिया
-नीतू ठाकुर

रविवार, 5 अगस्त 2018

जाति औरत की.....प्रस्तुति नीतू ठाकुर

Photo
एक आदमी ने महिला से पूछा ... तेरी जाति क्या है? 

महिला ने पूछा ... एक मां की या एक महिला की ..?

उसने कहा .... चल दोनों की बता .. और मुस्कान बिखेरी ।

महिला ने भी पूरे धैर्य से बताया.......
एक महिला जब माँ बनती  है तो वो जाति विहीन हो जाती है..
उसने फिर आश्चर्य चकित होकर पूछा ....वो कैसे..?

जबाब मिला कि .....
जब एक मां अपने बच्चे का लालन पालन करती है, 
अपने बच्चे की गंदगी साफ करती है , तो वो शूद्र हो जाती है..

वो ही बच्चा बड़ा होता है तो मां बाहरी नकारात्मक ताकतों से उसकी रक्षा करती है, तो वो क्षत्रिय हो जाती है..

जब बच्चा और बड़ा होता है, तो मां उसे शिक्षित करती है, 
तब वो ब्राह्मण हो जाती है..

और अंत में जब बच्चा और बड़ा  होता है तो मां उसके आय और व्यय में उसका उचित मार्गदर्शन कर अपना वैश्य धर्म निभाती है ..
तो हुई ना एक महिला या मां जाति विहीन..

उत्तर सुनकर वो अवाक् रह गया । उसकी आँखों में महिलाओं या माताओं के लिए सम्मान व आदर का भाव था और महिला को 
अपने मां और महिला होने पर पर गर्व का अनुभव हो रहा था।
-प्रस्तुति नीतू ठाकुर

रविवार, 22 जुलाई 2018

मां बाप के फैसलों का सम्मान करे

एक लड़की की शादी उसकी मर्जी के खिलाफ एक सीधे - साधे लड़के से की जाती है जिसके घर मे एक मां के आलावा और कोई नहीं है। दहेज मे लड़के को बहुत सारे उपहार और पैसे मिले होते हैं ।

लड़की किसी और लड़के से बेहद प्यार करती थी और लड़का भी...

लड़की शादी हो के आ गयी अपने ससुराल...सुहागरात के वक्त लड़का दूध लेकर आता है तो दुल्हन सवाल पूछती है

अपने पति से...एक पत्नी की मर्जी के बिना पति उसको हाथ लगाये तो उसे बलात्कार कहते है या हक?
पति - आपको इतनी लम्बी और गहरी जाने की कोई जरूरत नहीं है..
बस दूध लाया हूँ पी लीजियेगा.. . हम सिर्फ आपको शुभ रात्रि कहने आये थे कहके कमरे से निकल जाता है। लड़की मन मारकर रह जाती है क्योंकि लड़की चाहती थी की झगड़ा हो ताकि मैं इस गंवार से पीछा छुड़ा सकूँ ।

है तो दुल्हन मगर घर का कोई भी काम नहीं करती। बस दिनभर ऑनलाईन रहती और न जाने किस किस से बातें करती मगर उधर लड़के की माँ बिना शिकायत के दिन भर चूल्हा चौका से लेकर घर का सारा काम करती मगर हर पल अपने होंठों पर मुस्कुराहट लेके फिरती। लड़का एक कम्पनी मे छोटा सा मुलाजिम है और बेहद ही मेहनती और
इमानदार। करीब महीने भर बीत गये मगर पति पत्नी अब तक साथ नहीं सोये... वैसे लड़का बहुत शांत स्वाभाव वाला था इसलिए वह ज्यादा बातें नहीं करता था, बस खाने के वक्त अपनी पत्नी से पूछ लेता था कि... .कहाँ खाओगी..अपने कमरे मे या हमारे साथ। और सोने से पहले डायरी लिखने की आदत थी जो वह हर रात को लिखता
था।

ऐसे लड़की के पास एक स्कूटी था वह हर रोज बाहर जाती थी पति के अफिस जाने के बाद और पति के वापस लौटते ही आ जाती थी। छुट्टी का दिन था लड़का भी घर पे ही था तो लड़की ने अच्छे भले खाने को भी गंदा कहके माँ को अपशब्द बोल के खाना फेंक देती है मगर वह
शांत रहने वाला उसका पति अपनी पत्नी पर हाथ उठा देता है मगर माँ अपने बेटे को बहुत डांटती है। इधर लड़की को बहाना चाहिए था झगड़े का जो उसे मिल गया था, 
वह पैर पटकती हुई स्कूटी लेके निकल पड़ती है। लड़की जो रोज घर से बाहर जाती थी वह अपने प्यार से मिलने जाती थी, लड़की भले टूटकर चाहती थी लड़के को मगर उसे पता था की हर लड़की की एक हद होती है जिसे इज्जत कहते है वह उसको बचाये रखी थी। इधर लड़की अपने प्यार के पास पहुँचकर कहती है। अब तो एक पल भी उस घर मे नहीं रहना है मुझे । आज गंवार ने मुझपर हाथ उठाके अच्छा नही किया ।

लड़का - अरे तुमसे तो मैं कब से कहता हूँ की भाग चलो मेरे साथ कहीं दूर मगर तुम हो की आज कल आज कल पे लगी रहती हो।

लड़की - शादी के दिन मैं आई थी तो तुम्हारे पास। तुम ही ने तो लौटाया था मुझे ।
लड़का - खाली हाथ कहा तक भागोगे तुम ही बोलो..मैंने तो कहा था कि कुछ पैसे और गहने साथ ले लो तुम तो खाली हाथ आई थी।
आखिर दूर एक नयी जगह मे जिंदगी नये सिरे से शुरू करने के
लिए पैसे तो चाहिए न?

लड़की - तुम्हारे और मेरे प्यार के बारे मे जानकर मेरे घरवालो ने बैंक के पास बुक ए टी एम और मेरे गहने तक रख लिये थे। तो मैं क्या लाती अपने साथ । हम दोनों मेहनत करके कमा भी तो सकते थे।
लड़का - चालाक इंसान पहले सोचता है और फिर काम करता है। खाली हाथ भागते तो ये इश्क का भूत दो दिन में उतर जाता समझी?
और जब भी तुम्हें छूना चाहता हूँ बहुत नखरे है तुम्हारे। बस कहती हो शादी के बाद ।
लड़की - हाँ शादी के बाद ही अच्छा होता है ये सब और सब तुम्हारा तो है। मैं आज भी एक कुँवारी लड़की हूँ ।
शादी करके भी आज तक उस गंवार के साथ सो न सकी क्योंकि तुम्हें ही अपना पति मान चुकी हूँ बस तुम्हारे नाम का सिंदूर लगानी बाकी है। बस वह लगा दो सबकुछ तुम अपनी मर्जी से करना।

लड़का - ठीक है मैं तैयार हूँ । मगर इस बार कुछ पैसे जरूर साथ लेके आना, मत सोचना हम दौलत से प्यार करते हैं ।

हम सिर्फ तुमसे प्यार करते है बस कुछ छोटे-मोटे बिजनेस के लिए पैसे चाहिए ।
लड़की - उस गंवार के पास कहाँ होगा पैसा, मेरे बाप से 3 लाख रूपया उपर से मारूती कार लिए है। बस कुछ गहने है वह लेके आउगी आज।
लड़का लड़की को होटल का पता देकर चला जाता है ।

लड़की घर आकर फिर से लड़ाई करती है।
मगर अफसोस वह अकेली चिल्लाती रहती है उससे लड़ने वाला कोई नहीं था।
रात 8 बजे लड़के का मैसेज आता है वाटसप पे की कब आ रही हो?
लड़की जवाब देती है सब्र करो कोई सोया नहीं है। मैं 12 बजे से पहले पहुँच जाउगी क्योंकि यंहा तुम्हारे बिना मेरी सांसे घुटती है।
लड़का -ओके जल्दी आना। मैं होटल के बाहर खड़ा रहूंगा

...
लड़की अपने पति को बोल देती है की मुझे खाना नहीं चाहिए मैंने बाहर खा लिया है इसलिए मुझे कोई परेशान न करे इतना कहके दरवाजा बंद करके अंदर आती है ... तभी पति बोलता है कि...वह आलमारी से मेरी डायरी दे दो फिर बंद करना दरवाजा। हम परेशान नहीं करेंगे ।
लड़की दरवाजा खोले बिना कहती है की चाबियाँ दो अलमारी की,
लड़का - तुम्हारे बिस्तर के पैरों तले है चाबी । मगर लड़की दरवाजा नहीं खोलती बल्कि जोर जोर से गाना सुनने लगती है। बाहर पति कुछ देर दरवाजा पीटता है फिर हारकर लौट जाता है। लड़की ने बड़े जोर
से गाना बजा रखा था। फिर वह आलमारी खोलके देखती है जो उसने पहली बार खोला था, क्योंकि वह अपना समान अलग आलमारी मे रखती थी। आलमारी खोलते ही हैरान रह जाती है। आलमारी मे
उसके अपने पास बुक ए टी एम कार्ड थे जो उसके घरवालों ने छीन के रखे थे खोलके चेक किया तो उसमें वह पैसे भी एड थे जो दहेज में
लड़के को मिले थे। और बहुत सारे गहने भी जो एक पेपर के साथ थे और उसकी मिल्कीयत लड़की के नाम थी, लड़की बेहद हैरान और परेशान थी। फिर उसकी नजर डायरी पर पड़ती है और वह जल्दी से
वह डायरी निकालके पढ़ने लगती है।

लिखा था, तुम्हारे पापा ने एक दिन मेरी मां की जान बचाइ थी अपना खून देकर । मैं अपनी माँ से बेहद प्यार करता हूँ इसलिए मैंने झुककर आपके पापा को प्रणाम करके कहा की...आपका ये अनमोल एहसान कभी नही भूलूंगा, कुछ दिन बाद आपके पापा हमारे घर आये हमारे तुम्हारे रिश्ते की बात लेकर मगर उन्होंने आपकी हर बात बताई
हमें कि आप एक लड़के से बेहद प्यार करती हो। आपके पापा आपकी खुशी चाहते थे इसलिए वह पहले लड़के को जानना चाहते थे। आखिर आप अपने पापा की लाड़ली जो थी और हर बाप अपने लाड़ली के लिए एक अच्छा इमानदार पति चाहता है। आपके पापा ने खोजकर के
पता लगाया की वह लड़का बहुत सी लड़की को धोखा दे चुका है। और पहली शादी भी हो चुकी है पर आपको बता न सके क्योंकि उन्हें पता था की ये जो इश्क का नशा है वह हमेशा अपनों को गैर और गैर को अपना समझता है। एक बाप के मुँह से एक बेटी की कहानी सुनकर मैं अचम्भित हो गया। हर बाप यंहा तक शायद ही सोचे। मुझे यकीन हो गया था की एक अच्छा पति होने का सम्मान मिले न मिले मगर एक दामाद होने की इज्जत मैं हमेशा पा सकता हूँ।
मुझे दहेज में मिले सारे पैसे मैंने तुम्हारे एकाउण्ट में जमा कर दिए और तुम्हारे घर से मिली गाड़ी आज भी तुम्हारे घर पर है जो मैंने इसलिए भेजी ताकि जब तुम्हें मुझसे प्यार हो जाये तो साथ चलेंगे कही दूर घूमने। दहेज...इस नाम से नफरत है  तुम आजाद हो कहीं भी जा
सकती हो। 
डायरी के बीच पन्नों पर तलाक की पेपर है जहाँ मैंने पहले ही साईन कर दिया है । जब तुम्हें लगे की अब इस गंवार के साथ नही रखना है तो साईन करके कहीं भी अपनी सारी चीजे लेकर जा सकती हो।

लड़की ...हैरान थी परेशान थी...न चाहते हुए भी गंवार के शब्दों ने दिल को छुआ था। न चाहते हुए भी गंवार के अनदेखे प्यार को महसूस करके पलके नम हुई थी। आगे लिखा था, मैंने तुम्हें इसलिए मारा क्योंकि आपने माँ को गाली दी, और जो बेटा खुद के आगे माँ की बेइज्जती होते सहन कर जाये...फिर वह बेटा कैसा ।

कल आपके भी बच्चे होंगे । चाहे किसी के साथ भी हो, तब महसूस होगी तुम्हें माँ की महानता और प्यार।
आपको दुल्हन बनाकर हमसफर बनाने लाया हूँ जबरदस्ती करने नहीं।आपसे...आपके हर गुस्ताखी का बदला हम शिद्दत से लेंगे हम आपसे...गर आप मेरी हुई तो बेपनाह मोहब्बत करके किसी और की हुई तो आपके हक में दुआये माँग के लड़की का फोन बज रहा था जो वायब्रेशन मोड पे था, लड़की अब दुल्हन बन चुकी थी। पलकों से आँसू झर रहे थे ।

सिसकते हुए मोबाइल से पहले सिम निकाल के तोड़ा फिर सारा सामान जैसा था वैसे रख के न जाने कब सो गई पता नहीं चला। सुबह देर से जागी तब तक पतिदेव अफिस जा चुके था, पहले नहा धोकर साड़ी पहनी । लम्बी सी सिंदूर डाली अपनी माँग मे फिर मंगलसूत्र । जबकि पहले एक टिक्की जैसी साईड पे सिंदूर लगाती थी ताकि कोई लड़का ध्यान न दे मगर आज 10 किलोमीटर से भी दिखाई दे ऐसी लम्बी
और गाढ़ी सिंदूर लगाई थी दुल्हन ने। फिर किचन मे जाके सासु माँ को जबर्दस्ती कमरे मे लेके तैयार होने को कहती है। और अपने पति के लिए थोड़े नमकीन थोड़े हलुवे और चाय बनाके अपनी स्कूटी मे सासु माँ को जबर्दस्ती बिठाकर (जबकी कुछ पता ही नहीं है उनको की बहू आज मुझे कहा ले जा रही है बस बैठ जाती है) फिर रास्ते में सासु माँ को पति के ऑफिस का पता पूछकर ऑफिस पहुँच जाती है। पति हैरान रह जाता है पत्नी को इस हालत मे देखकर।
पति - सब ठीक तो है न मां?
मगर माँ बोलती इससे पहले पत्नी गले लगाकर कहती है कि..अब सब ठीक है...
ऑफिस के लोग सब खड़े हो जाते है तो दुल्हन कहती है
की..मै इनकी धर्मपत्नी हूँ । बनवास गई थी सुबह लौटी
हूँ अब एक महीने तक मेरे पतिदेव ऑफिस मे दिखाई नहीं देंगे
आप लोगों को
दुल्हन - क्योंकि हम लम्बी छुट्टी पे जा रहे साथ साथ।
पति- पागल...
दुल्हन - आपके सादगी और भोलेपन ने बनाया है।
सभी लोग तालिया बजाते हैं और दुल्हन फिर से लिपट
जाती है अपने गंवार से ... जहाँ से वह दोबारा कभी भी छूटना नहीं चाहती।


बड़े कड़े फैसले होते है कभी कभी हमारे अपनों की मगर हम समझ नहीं पाते की...हमारे अपने हमारी फिकर खुद से ज्यादा क्यों करते हैं  मां बाप के फैसलों का सम्मान करे क्योंकि ये दो ऐसे शख्स है जो आपको हमेशा दुनियादारी से ज्यादा प्यार करते हैं ।
वकील शर्मा जी की प्रस्तुति
गूगल+ से

मंगलवार, 3 जुलाई 2018

भगवान शालिग्राम कथा...


एक संत के पास बड़े सुंदर शालिग्राम भगवान् थे । वे संत उन शालिग्राम जी को हमेशा साथ ही लिए रहते थे और बड़े प्रेम से उनकी पूजा अर्चना कर लाड लड़ाया करते थे । ट्रेन से यात्रा करते समय बाबा ने शालिग्राम जी को अपने बगल की सीट पर रख दिया और अन्य संतो के साथ हरी चर्चा में मग्न हो गए । जब ट्रेन रुकी और सब संत उतरे तब वे सत्संग में इतनें मग्न हो चुके थे कि झोला गाड़ी में ही रह गया उसमें रखे  शालिग्राम जी भी वहीं गाड़ी में रह गए । संत सत्संग की मस्ती में भावों मैं ऐसा बहे कि उन्हें साथ लेकर आना ही भूल गए । बहुत देर बाद जब उस संत के आश्रम पर सब संत पहुंछे और भोजन प्रसाद पाने का समय आया तो उन प्रेमी संत ने अपने ठाकुर जी को खोजा और देखा की हाय हमारे शालिग्राम जी तो हैं ही नहीं ।

संत बहुत व्याकुल हो गए , बहुत रोने लगे परंतु भगवान् मिले नहीं । उन्होंने भगवान् के वियोग अन्न जल लेना स्वीकार नहीं किया। संत बहुत व्याकुल होकर विरह में भगवान् को पुकारकर रोने लगे ।तब उनके एक पहचान के संत ने कहा - महाराज मै आपको बहुत सुंदर चिन्हों से अंकित नये शालिग्राम जी देता हूँ परंतु उन संत ने कहा की हमें अपने वही ठाकुर चाहिए जिनको हम अब तक लाड लड़ते आये है । उनके साथी ने पूछा - आपने उन्हें कहा रखा था ? मुझे तो लगता है गाडी में ही छूट गए होंगे। 
एक संत बोले - अब कई घंटे बीत गए है । गाड़ी से किसीने निकाल लिए होंगे और फिर  गाड़ी भी बहुत आगे निकल चुकी होगी ।
 इस पर वह संत बोले- मै स्टेशन मास्टर से बात करना 
चाहता हूँ वहाँ जाकर ।
सब संत उन महात्मा को लेकर स्टेशन पहुंचे । स्टेशन मास्टर से मिले और भगवान् के गुम होने की शिकायत करने लगे । उन्होंने पूछा की कौनसी गाड़ी में आप बैठ कर आये थे । संतो ने गाड़ी का नाम स्टेशन मास्टर को बताया तो वह कहने लगा - महाराज ! कई घंटे हो गए,यही वाली गाड़ी ही तो यहां खड़ी हो गई है , और किसी प्रकार भी आगे नहीं बढ़ रही है । न कोई खराबी है न अन्य कोई दिक्कत परंतु गाड़ी आगे ही नहीं बढ़ती । महात्मा जी बोले - अभी आगे बढ़ेगी ,मेरे बिना मेरे प्यारे कही अन्यत्र कैसे चले जायेंगे ?

वे महात्मा अंदर ट्रेन के डिब्बे के अंदर गए और ठाकुर जी वही रखे हुए थे जहां महात्मा ने उन्हें पधराया था । भगवान् को महात्मा ने गले लगाया और जैसे ही महात्मा जी उतरे गाड़ी आगे बढ़ने लग गयी । ट्रेन का चालाक , स्टेशन मास्टर सभी आश्चर्य में पड गए और बाद में उन्होंने जब यह पूरी लीला सुनी तो वे गद्गद् हो गए । उन्होंने अपना जीवंत संत और भगवान की सेवा में लगा दिया ।

मंगो नही मनो, मेरे नाल सिधि गल करो
जय गुरू जी जय गुरू जी जय गुरु जी

ऐसे करूणानिधान प्रभु की जय हो 

भक्त जहाँ मम पग धरे,, तहाँ धरूँ में हाथ।
सदा संग लाग्यो फिरूँ,, कबहू न छोडूँ साथ।।

भक्ति कथा

रविवार, 1 जुलाई 2018

भोलाराम का जीव...हरिशंकर परसाई


ऐसा कभी नहीं हुआ था. धर्मराज लाखों वर्षों से असंख्य आदमियों को कर्म और सिफ़ारिश के आधार पर स्वर्ग या नरक में निवास-स्थान 'अलॉट' करते आ रहे थे. पर ऐसा कभी नहीं हुआ था.

सामने बैठे चित्रगुप्त बार-बार चश्मा पोंछ, बार-बार थूक से पन्ने पलट, रजिस्टर पर रजिस्टर देख रहे थे. गलती पकड़ में ही नहीं आ रही थी. आखिर उन्होंने खीझ कर रजिस्टर इतने जोर से बन्द किया कि मक्खी चपेट में आ गई. उसे निकालते हुए वे बोले - "महाराज, रिकार्ड सब ठीक है. भोलाराम के जीव ने पाँच दिन पहले देह त्यागी
और यमदूत के साथ इस लोक के लिए रवाना भी हुआ, पर यहाँ अभी तक नहीं पहुँचा."

धर्मराज ने पूछा - "और वह दूत कहाँ है?"

"महाराज, वह भी लापता है."

इसी समय द्वार खुले और एक यमदूत बदहवास वहाँ आया. उसका मौलिक कुरूप चेहरा परिश्रम, परेशानी और भय के कारण और भी विकृत हो गया था. उसे देखते ही चित्रगुप्त चिल्ला उठे - "अरे, तू कहाँ रहा इतने दिन? भोलाराम का जीव कहाँ है?"

यमदूत हाथ जोड़ कर बोला - "दयानिधान, मैं कैसे बतलाऊं कि क्या हो गया. आज तक मैंने धोखा नहीं खाया था, पर भोलाराम का जीव मुझे चकमा दे गया. पाँच दिन पहले जब जीव ने भोलाराम का देह त्यागा, तब मैंने उसे पकड़ा और इस लोक की यात्रा आरम्भ की. नगर के बाहर ज्यों ही मैं उसे लेकर एक तीव्र वायु-तरंग पर सवार हुआ त्यों ही
वह मेरी चंगुल से छूट कर न जाने कहाँ गायब हो गया. इन पाँच दिनों में मैंने सारा ब्रह्माण्ड छान डाला, पर उसका कहीं पता नहीं चला."

धर्मराज क्रोध से बोला - "मूर्ख ! जीवों को लाते-लाते बूढ़ा हो गया फिर भी एक मामूली बूढ़े आदमी के जीव ने तुझे चकमा दे दिया."

दूत ने सिर झुका कर कहा - "महाराज, मेरी सावधानी में बिलकुल कसर नहीं थी. मेरे इन अभ्यस्त हाथों से अच्छे-अच्छे वकील भी नहीं छूट सके. पर इस बार तो कोई इन्द्रजाल ही हो गया."

चित्रगुप्त ने कहा- "महाराज, आजकल पृथ्वी पर इस प्रकार का व्यापार बहुत चला है. लोग दोस्तों को कुछ चीज़ भेजते हैं और उसे रास्ते में ही रेलवे वाले उड़ा लेते हैं. होजरी के पार्सलों के मोजे रेलवे अफसर पहनते हैं. मालगाड़ी के डब्बे के डब्बे रास्ते में कट जाते हैं. एक बात और हो रही है. राजनैतिक दलों के नेता विरोधी नेता को उड़ाकर बन्द कर देते हैं. कहीं भोलाराम के जीव को भी तो किसी विरोधी ने मरने के बाद खराबी करने के लिए तो नहीं उड़ा दिया?"

धर्मराज ने व्यंग्य से चित्रगुप्त की ओर देखते हुए कहा - "तुम्हारी भी रिटायर होने की उमर आ गई. भला भोलाराम जैसे नगण्य, दीन आदमी से किसी को क्या लेना-देना?"

इसी समय कहीं से घूमते-घामते नारद मुनि यहाँ आ गए. धर्मराज को गुमसुम बैठे देख बोले - "क्यों धर्मराज, कैसे चिन्तित बैठे हैं? क्या नरक में निवास-स्थान की समस्या अभी हल नहीं हुई?"

धर्मराज ने कहा - "वह समस्या तो कब की हल हो गई. नरक में पिछले सालों में बड़े गुणी कारीगर आ गए हैं. कई इमारतों के ठेकेदार हैं जिन्होंने पूरे पैसे लेकर रद्दी इमारतें बनाईं. बड़े बड़े इंजीनियर भी आ गए हैं जिन्होंने ठेकेदारों से मिलकर पंचवर्षीय योजनाओं का पैसा खाया. ओवरसीयर हैं, जिन्होंने उन मजदूरों की हाजिरी भर कर पैसा हड़पा जो कभी काम पर गए ही नहीं. इन्होंने बहुत जल्दी नरक में कई इमारतें तान दी हैं. वह समस्या तो हल हो गई, पर एक बड़ी विकट उलझन आ गई है. भोलाराम नाम के एक आदमी की पाँच दिन पहले मृत्यु हुई. उसके जीव को यह दूत यहाँ ला रहा था, कि जीव इसे रास्ते में चकमा देकर भाग गया. इस ने सारा ब्रह्माण्ड छान डाला, पर वह कहीं नहीं मिला. अगर ऐसा होने लगा, तो पाप पुण्य का भेद ही मिट जाएगा."

नारद ने पूछा - "उस पर इनकमटैक्स तो बकाया नहीं था? हो सकता है, उन लोगों ने रोक लिया हो."

चित्रगुप्त ने कहा - "इनकम होती तो टैक्स होता. भुखमरा था."

नारद बोले - "मामला बड़ा दिलचस्प है. अच्छा मुझे उसका नाम पता तो बताओ. मैं पृथ्वी पर जाता हूँ."

चित्रगुप्त ने रजिस्टर देख कर बताया - "भोलाराम नाम था उसका. जबलपुर शहर में धमापुर मुहल्ले में नाले के किनारे एक डेढ़ कमरे टूटे-फूटे मकान में वह परिवार समेत रहता था. उसकी एक स्त्री थी, दो लड़के और एक लड़की. उम्र लगभग साठ साल. सरकारी नौकर था. पाँच साल पहले रिटायर हो गया था. मकान का किराया उसने एक साल से नहीं दिया, इस लिए मकान मालिक उसे निकालना चाहता था. इतने में भोलाराम ने संसार ही छोड़ दिया. आज पाँचवाँ दिन है. बहुत सम्भव है कि अगर मकान-मालिक वास्तविक मकान-मालिक
है तो उसने भोलाराम के मरते ही उसके परिवार को निकाल दिया होगा. इस लिए आप को परिवार की तलाश में काफी घूमना पड़ेगा."

मां-बेटी के सम्मिलित क्रन्दन से ही नारद भोलाराम का मकान पहचान गए.
द्वार पर जाकर उन्होंने आवाज लगाई - "नारायण! नारायण!" लड़की ने देखकर कहा- "आगे जाओ महाराज."

नारद ने कहा - "मुझे भिक्षा नहीं चाहिए, मुझे भोलाराम के बारे में कुछ पूछ-ताछ करनी है. अपनी मां को जरा बाहर भेजो, बेटी!"

भोलाराम की पत्नी बाहर आई. नारद ने कहा - "माता, भोलाराम को क्या बीमारी थी?"

"क्या बताऊँ? गरीबी की बीमारी थी. पाँच साल हो गए, पेंशन पर बैठे. पर पेंशन अभी तक नहीं मिली. हर दस-पन्द्रह दिन में एक दरख्वास्त देते थे, पर वहाँ से या तो जवाब आता ही नहीं था और आता तो यही कि तुम्हारी पेंशन के मामले में विचार हो रहा है. इन पाँच सालों में सब गहने बेच कर हम लोग खा गए. फिर बरतन बिके. अब कुछ नहीं बचा था. चिन्ता में घुलते-घुलते और भूखे मरते-मरते उन्होंने दम तोड़ दी."

नारद ने कहा - "क्या करोगी मां? उनकी इतनी ही उम्र थी."

"ऐसा तो मत कहो, महाराज ! उम्र तो बहुत थी. पचास साठ रुपया महीना पेंशन मिलती तो कुछ और काम कहीं कर के गुजारा हो जाता. पर क्या करें? पाँच साल नौकरी से बैठे हो गये और अभी तक एक कौड़ी नहीं मिली."

दुःख की कथा सुनने की फुरसत नारद को थी नहीं. वे अपने मुद्दे पर आए, "मां, यह तो बताओ कि यहाँ किसी से उन का विशेष प्रेम था, जिस में उन का जी लगा हो?"

पत्नी बोली - "लगाव तो महाराज, बाल बच्चों से ही होता है."

"नहीं, परिवार के बाहर भी हो सकता है. मेरा मतलब है, किसी स्त्री..."
स्त्री ने गुर्रा कर नारद की ओर देखा. बोली - "अब कुछ मत बको महाराज ! तुम साधु हो, उचक्के नहीं हो. जिंदगी भर उन्होंने किसी दूसरी स्त्री की ओर आँख उठाकर नहीं देखा."

नारद हँस कर बोले - "हाँ, तुम्हारा यह सोचना ठीक ही है. यही हर अच्छी गृहस्थी का आधार है. अच्छा, माता मैं चला."

स्त्री ने कहा - "महाराज, आप तो साधु हैं, सिद्ध पुरूष हैं. कुछ ऐसा नहीं कर सकते कि उन की रुकी हुई पेंशन मिल जाए. इन बच्चों का पेट कुछ दिन भर जाए."

नारद को दया आ गई थी. वे कहने लगे - "साधुओं की बात कौन मानता है? मेरा यहाँ कोई मठ तो है नहीं. फिर भी मैं सरकारी दफ्तर जाऊँगा और कोशिश करूंगा."

वहाँ से चल कर नारद सरकारी दफ़्तर पहुँचे. वहाँ पहले ही से कमरे में बैठे बाबू से उन्होंने भोलाराम के केस के बारे में बातें कीं. उस बाबू ने उन्हें ध्यानपूर्वक  देखा और बोला - "भोलाराम ने दरख्वास्तें तो भेजी थीं, पर उन पर वज़न नहीं रखा था, इसलिए कहीं उड़ गई होंगी."

नारद ने कहा - "भई, ये बहुत से 'पेपर-वेट' तो रखे हैं. इन्हें क्यों नहीं रख दिया?"

बाबू हँसा - "आप साधु हैं, आपको दुनियादारी समझ में नहीं आती. दरख्वास्तें 'पेपरवेट' से नहीं दबतीं. खैर, आप उस कमरे में बैठे बाबू से मिलिए."

नारद उस बाबू के पास गए. उस ने तीसरे के पास भेजा, तीसरे ने चौथे के पास चौथे ने पांचवे के पास. जब नारद पच्चीस-तीस बाबुओं और अफ़सरों के पास घूम आए तब एक चपरासी ने कहा - "महाराज, आप क्यों इस झंझट में पड़ गए. अगर आप साल भर भी यहाँ चक्कर लगाते रहे, तो भी काम नहीं होगा. आप तो सीधे बड़े साहब से मिलिए. उन्हें खुश कर दिया तो अभी काम हो जाएगा."

नारद बड़े साहब के कमरे में पहुँचे. बाहर चपरासी ऊँघ रहा था. इसलिए उन्हें किसी ने छेड़ा नहीं. बिना 'विजिटिंग कार्ड' के आया देख साहब बड़े नाराज हुए. बोले - "इसे कोई मन्दिर वन्दिर समझ लिया है क्या? धड़धड़ाते चले आए! चिट क्यों नहीं भेजी?"

नारद ने कहा - "कैसे भेजता? चपरासी सो रहा है."

"क्या काम है?" साहब ने रौब से पूछा.

नारद ने भोलाराम का पेंशन केस बतलाया.

साहब बोले- "आप हैं बैरागी. दफ़्तरों के रीति-रिवाज नहीं जानते. असल में भोलाराम ने गलती की. भई, यह भी एक मन्दिर है. यहाँ भी दान पुण्य करना पड़ता है. आप भोलाराम के आत्मीय मालूम होते हैं. भोलाराम की दरख्वास्तें उड़ रही हैं. उन पर वज़न रखिए."

नारद ने सोचा कि फिर यहाँ वज़न की समस्या खड़ी हो गई. साहब 
बोले - "भई, सरकारी पैसे का मामला है. पेंशन का केस बीसों दफ्तरों में जाता है. देर लग ही जाती है.
बीसों बार एक ही बात को बीस जगह लिखना पड़ता है, तब पक्की होती है. जितनी पेंशन मिलती है उतने की स्टेशनरी लग जाती है. हाँ, जल्दी भी हो सकती है मगर..." साहब रुके.

नारद ने कहा - "मगर क्या?"

साहब ने कुटिल मुसकान के साथ कहा, "मगर वज़न चाहिए. आप समझे नहीं. जैसे आपकी यह सुन्दर वीणा है, इसका भी वज़न भोलाराम की दरख्वास्त पर रखा जा सकता है. मेरी लड़की गाना बजाना सीखती है. यह मैं उसे दे दूंगा. साधु-सन्तों की वीणा से तो और अच्छे स्वर निकलते हैं."

नारद अपनी वीणा छिनते देख जरा घबराए. पर फिर संभल कर उन्होंने वीणा टेबिल पर रख कर कहा - "यह लीजिए. अब जरा जल्दी उसकी पेंशन ऑर्डर निकाल दीजिए."

साहब ने प्रसन्न्ता से उन्हें कुर्सी दी, वीणा को एक कोने में रखा और घण्टी बजाई. चपरासी हाजिर हुआ.

साहब ने हुक्म दिया - बड़े बाबू से भोलाराम के केस की फ़ाइल लाओ.

थोड़ी देर बाद चपरासी भोलाराम की सौ-डेढ़-सौ दरख्वास्तों से भरी फ़ाइल ले कर आया. उसमें पेंशन के कागजात भी थे. साहब ने फ़ाइल पर नाम देखा और निश्चित करने के
लिए पूछा - "क्या नाम बताया साधु जी आपने?"

नारद समझे कि साहब कुछ ऊँचा सुनता है. इसलिए जोर से बोले - "भोलाराम!"
सहसा फ़ाइल में से आवाज आई - "कौन पुकार रहा है मुझे. पोस्टमैन है? क्या पेंशन का ऑर्डर आ गया?"
नारद चौंके. पर दूसरे ही क्षण बात समझ गए. बोले - "भोलाराम ! तुम क्या भोलाराम के जीव हो?"
"हाँ ! आवाज आई."
नारद ने कहा - "मैं नारद हूँ. तुम्हें लेने आया हूँ. चलो स्वर्ग में तुम्हारा इंतजार हो रहा है."
आवाज आई - "मुझे नहीं जाना. मैं तो पेंशन की दरख्वास्तों पर 
अटका हूँ. यहीं मेरा मन लगा है. मैं अपनी दरख्वास्तें छोड़कर नहीं 
जा सकता."

-हरिशंकर परसाई 

रविवार, 3 जून 2018

अमीर व्यक्ति से भी अमीर

किसी समय दुनिया के सबसे धनवान व्यक्ति बिल गेट्स से किसी न पूछा - 'क्या इस धरती पर आपसे भी अमीर कोई है ?
बिल गेट्स ने जवाब दिया - हां, एक व्यक्ति इस दुनिया में मुझसे भी अमीर है.
कौन ---!!!!!

बिल गेट्स ने बताया -

एक समय में जब मेरी प्रसिद्धि और अमीरी के दिन नहीं थे, न्यूयॉर्क एयरपोर्ट पर था.. वहां सुबह सुबह अखबार देख कर, मैंने एक अखबार खरीदना चाहा,पर मेरे पास खुदरा पैसे नहीं थे.. सो, मैंने अखबार लेने का विचार त्याग कर उसे वापस रख दिया.. अखबार बेचने वाले काले लड़के ने मुझे देखा, तो मैंने खुदरा पैसे/सिक्के न होने की बात कही.. लड़के ने अखबार देते हुए कहा - यह मैं आपको मुफ्त में देता हूँ.. बात आई-गई हो गई.. कोई तीन माह बाद संयोगवश उसी एयरपोर्ट पर मैं फिर उतरा और अखबार के लिए फिर मेरे पास सिक्के नहीं थे. उस लड़के ने मुझे फिर से अखबार दिया, तो मैंने मना कर दिया. मैं ये नहीं ले सकता.. उस लड़के ने कहा, आप इसे ले सकते हैं,मैं इसे अपने प्रॉफिट के हिस्से से दे रहा हूँ.. मुझे नुकसान नहीं होगा. मैंने अखबार ले लिया......

19 साल बाद अपने प्रसिद्ध हो जाने के बाद एक दिन मुझे उस लड़के की याद आयी और मैन उसे ढूंढना शुरू किया. कोई डेढ़ महीने खोजने के बाद आखिरकार वह मिल गया.

मैंने पूछा - क्या तुम मुझे पहचानते हो ?
लड़का - हां, आप मि. बिल गेट्स हैं.
गेट्स - तुम्हे याद है, कभी तुमने मुझे फ्री में अखबार दिए थे ?
लड़का - जी हां, बिल्कुल.. ऐसा दो बार हुआ था..
गेट्स- मैं तुम्हारे उस किये हुए की कीमत अदा करना चाहता हूँ.. तुम अपनी जिंदगी में जो कुछ चाहते हो, बताओ, मैं तुम्हारी हर जरूरत पूरी करूंगा..
लड़का - सर, लेकिन क्या आप को नहीं लगता कि, ऐसा कर के आप मेरे काम की कीमत अदा नहीं कर पाएंगे..
गेट्स - क्यूं ..!!!
लड़का - मैंने जब आपकी मदद की थी, मैं एक गरीब लड़का था, जो अखबार बेचता था..
आप मेरी मदद तब कर रहे हैं, जब आप इस दुनिया के सबसे अमीर और सामर्थ्य वाले व्यक्ति हैं.. फिर, आप मेरी मदद की बराबरी कैसे करेंगे...!!!

बिल गेट्स की नजर में, वह व्यक्ति दुनिया के सबसे 
अमीर व्यक्ति से भी अमीर था, 
क्योंकि-----
"किसी की मदद करने के लिए, उसने अमीर होने 
का इंतजार नहीं किया था "....