नाम बड़े दर्शन छोटे......काका हाथरसी
नाम-रूप के भेद पर कभी किया है गौर?
नाम मिला कुछ और तो, शक्ल-अक्ल कुछ और।
शक्ल-अक्ल कुछ और, नैनसुख देखे काने,
बाबू सुंदरलाल बनाए ऐंचकताने।
कह ‘काका’ कवि, दयारामजी मारे मच्छर,
विद्याधर को भैंस बराबर काला अक्षर।
मुंशी चंदालाल का तारकोल-सा रूप,
श्यामलाल का रंग है, जैसे खिलती धूप।
जैसे खिलती धूप, सजे बुश्शर्ट हैण्ट में-
ज्ञानचंद छ्ह बार फेल हो गए टैंथ में।
कहं ‘काका’ ज्वालाप्रसादजी बिल्कुल ठंडे,
पंडित शांतिस्वरूप चलाते देखे डंडे।
देख, अशर्फीलाल के घर में टूटी खाट,
सेठ छदम्मीलाल के मील चल रहे आठ।
मील चल रहे आठ, कर्म के मिटें न लेखे,
धनीरामजी हमने प्राय: निर्धन देखे।
कह ‘काका’ कवि, दूल्हेराम मर गए कंवारे,
बिना प्रियतमा तड़पें प्रीतमसिंह बिचारे।
दीन श्रमिक भड़का दिए, करवा दी हड़ताल,
मिल-मालिक से खा गए रिश्वत दीनदयाल।
रिश्वत दीनदयाल, करम को ठोंक रहे हैं,
ठाकुर शेरसिंह पर कुत्ते भोंक रहे हैं।
‘काका’ छ्ह फिट लंबे छोटूराम बनाए,
नाम दिगम्बरसिंह वस्त्र ग्यारह लटकाए।
पेट न अपना भर सके जीवन-भर जगपाल,
बिना सूंड के सैकड़ों मिलें गणेशीलाल।
मिलें गणेशीलाल, पैंट की क्रीज सम्हारी-
बैग कुली को दिया चले मिस्टर गिरिधारी।
कह ‘काका’ कविराय, करें लाखों का सट्टा,
नाम हवेलीराम किराए का है अट्टा।
काका हाथरसी
........जारी अगले अंक में भी
दिनांक 25/07/2017 को...
जवाब देंहटाएंआप की रचना का लिंक होगा...
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी इस चर्चा में सादर आमंत्रित हैं...
आप की प्रतीक्षा रहेगी...
कविवर स्वर्गीय काका हाथरसी (मूलनाम स्व. श्री प्रभु लाल गर्ग ) को याद करते ही हास्य-व्यंग की फुलझड़ियाँ हमें गुदगुदाने लगती हैं। रेडियो पर जब श्रोता पत्रों द्वारा उनसे सवाल या आग्रह करते थे तब उनके तात्कालिक काव्यात्मक जवाब हमें अभिभूत कर देते थे। सच में वे विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उनके साथ क़माल का कुदरती संयोग हमें एक साथ हंसने-रोने की विकट स्थिति पैदा करता है ( जन्म 18 सितम्बर 1906 और मृत्यु 18 सितम्बर 1995 ) ..
जवाब देंहटाएंबहुत -बहुत आभार आदरणीय यशोदा बहन जी और भाई कुलदीप जी इस महान व्यक्तित्व के कृतित्व से नए पाठकों को परिचित कराने के लिए।
जीवन की विसंगतियों को इतनी सहजता से जन -जन तक काका हाथरसी ही पहुंचा सकते हैं।