"तब सब ठीक है?" हम अइसही पूछ लिए. गलती किये। माने कुसुमिया का पटर-पटर चालू।
"सब ठीके न है....कमाना, खाना है..... चलिए रहा है......भाभी लेकिन धुक-धुक भी हो रहा है....परीक्षा में पास हो जाएंगे न?"
"काहे नहीं...मेहनत की हो, निकल जाओगी,"
"हाँ.....आ जरूरी भी न है, आज कल कोइयो तो पढ़ले-लिखल न खोजता है?"
तभी हमको याद आया की काम छोड़ने से पहले कुसुमिया बोली थी उसका सादी होने वाला है.
उस समय तो हम यही सोचे थे की आदिवासी लोग है, गरीब हईये है.......माई-बाप जल्दी सादी करके काम निपटा देना चाह रहा होगा। छौ गो बच्चा में चार गो बेटिये है; आ ई सबसे बड़ी है.
अब हमरो मन कुलबुला रहा था.
पूछ लिए: "का हुआ तुम्हरा सादी का?"
"सादी? काहे ला सादी?"
"तुम्ही तो बोली थी छुट्टिया से पहले,"
"अरे! तो अभी घर में बोले नहीं हैं न....अइसे कइसे माँ से बोल दें.....अभी दू-तीन साल बाद देखेंगे,"
"दू-तीन साल बाद?"
"भाभी, सादी तो हम ही तय किये हैं....लेकिन लड़कवा का अभी कोई नौकरिये नहीं है.... एक्के बात है की खाता पीता नहीं है... ऊ भी पढ़ाइये न कर रहा है!"
"तुम्हरा माई-बाप? ऊ लोग भी तो खोज रहा होगा?"
"माँ को ढलैया के काम से फ़ुरसते नहीं है और बाप तो जानबे करते हैं.....ऊ कुछ करता तो हम लोग को काहे काम करना पड़ता?"
"अरे जो पूछ रहे हैं ऊ बता न.....सदिया करेगी की नहीं?”
"नहीं भाभी, अभिये ई सब पचड़ा में कौन पड़े...अभी कमा रहे हैं, खेला-मदारी चलिए रहा है........सादी कौन करेगा रे अभी? बक्क!"
जाने केतना और बकबकाने के बाद गयी तब हम, आ ई, खूब हँसे। ई हो घरे पर थे. उसका सब बात सुने थे.
"एतना साल सादी को हो गया, सोच सकते हैं की अपना चक्कर के बारे में कउनो लईकी अइसे बात करेगी?" हम इनसे पूछे. ई खाली हंस रहे थे.
उधर से अम्मा आईं. पूजा पर बइठे-बइठे उहो सब सुन लीं थीं. प्रसाद बाँटते हुए कहीं: "जाए दो! कम से कम इमनदारी से मान तो रही है. न तो इसी के लिए आज-काल केतना न करम हो जाता है."
-प्रशान्त पांडेय
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" में सोमवार 17 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंप्रेरक प्रभावी लघुकथा।
जवाब देंहटाएंआंचलिकता की महक मन को प्रफुल्लित कर देती है। सामाजिक परिवर्तन की झलक का सुन्दर प्रस्तुतीकरण।
जवाब देंहटाएंघर आँगन को मह मह महका दिया. का कहें! मुंह से बकारे नहीं निकल रहा है. शब्दातीत! अद्भुत!
जवाब देंहटाएंलोक रंग से सजी और माटी की सुगंध से भरी छोटी सी सुंदर सार्थक रचना ----------- बहुत शुभकामना
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