आत्मविश्वास का एक उदाहरण क्या है?
किसी के इतने पास न जा
शनिवार, 21 दिसंबर 2024
आत्मविश्वास का एक उदाहरण
शनिवार, 21 सितंबर 2024
एक प्लेट हलवे की कीमत
एक प्लेट हलवे की कीमत
जगदीश प्रसादजी चुपचाप बैठे हुए बड़ी बहू गीता की बातों को सुनते जा रहे थे !
लग रहा था कि किसी भी समय वो अपना धीरज खो बैठेंगे, पर किसी तरह उन्होंने अपने-आप को काबू में रखा हुआ था !
गीता थी कि अनवरत बोलती जा रही थी !
बात बस इतनी सी थी कि पिछले 3-4 दिन से जगदीश प्रसादजी के दांतों में कष्ट हो रहा था, वे दर्द से बेहाल थे!
डॉक्टर को दिखाया था, उसने दांत को निकलवाने की सलाह दी थी, पर दर्द के कारण ये संभव न था, अतः डॉक्टर ने दर्द कम करने की दवा दी थी और कहा था कि दर्द खत्म हो जाए तभी दांत निकाला जाएगा !
दांत-दर्द की वजह से वे कुछ खा-पी नहीं पा रहे थे, इसीलिए बहू को खिचड़ी बनाने के लिए कहा था, पर उसने दो सूखी चपाती और सूखी सब्जी बेटे के हाथ भिजवा दी थी !
जगदीश प्रसादजी ने थाली को हाथ भी नहीं लगाया ! उधर बहू गीता जोर-जोर से चिल्ला-चिल्ला कर बोल रही थी कि जब खाना नहीं होता तो पहले से ही बता दिया करो, कितना भी करो इनके नखरे खत्म नहीं होते !
वो ये बात समझने के लिए तैयार ही नहीं थी कि दांत-दर्द की वजह से ससुरजी चपाती चबाने में असमर्थ हैं, और वह गुस्से में थाली उठाकर बाहर चली गयी !
जगदीश प्रसादजी ने एक गहरी सांस ली और अपनी छड़ी उठाकर अपने लंगोटिया दोस्त कैलाशनाथजी के घर की ओर चल दिए ! आज उनका दिल बहुत उदास था !
अपनी दिवंगत पत्नी की याद उन्हें आने लगी और सड़क के किनारे बनी एक बेंच पर वे बैठ गए ।
अतीत ने तीव्रता के साथ उनकी यादों में प्रवेश किया !
जगदीश प्रसादजी सरकारी कार्यालय में सेवारत थे ! उनके 3 बेटे थे अनिल, सुनील और राजेश ! तीनों ही पढ़ने में अच्छे थे !
उनकी पत्नी, कांता कम पढ़ी लिखी ज़रूर थी लेकिन वह एक मेहनती व स्वाभिमानी स्त्री थी,
जो कुशलता के साथ पूरे घर का संचालन करती थी !
मितव्यता क्या होती है - यह जगदीश प्रसादजी ने अपनी पत्नी से ही सीखा था! इसीलिए महीने के अंत में अपनी पूरी पगार वो पत्नी के हाथ में सौंप देते थे और खुद पूरी तरह निश्चिन्त हो जाते थे !
घर के मामलों में वे कभी भी नहीं बोलते थे, पर पत्नी को जब भी उनकी सलाह की ज़रुरत होती तो वे हरदम उसके साथ होते थे !
समय के साथ उनकी उन्नति होती गयी और बच्चे भी अच्छी शिक्षा प्राप्त कर चुके थे। अपने जीवनकाल में उनकी पत्नी ने एक जो सबसे अच्छा काम किया था वो था - मकान बनवाना !
शहर की एक अच्छी सी कालोनी में उसने अपने सपनो का संसार जो बसाया था !
जगदीश प्रसादजी ने ऑफिस से लोन लेकर व कुछ दोस्तों से मदद लेकर, पत्नी के इस सपने को पूरा किया था !
पहले मकान एक मंजिला था पर जब बच्चे बड़े हो गए तो जगदीश प्रसादजी ने हिम्मत करके मकान की दो मंजिलें और भी बनवा दी थीं ! उनके तीनों बेटों की शादी हो गयी थी और तीनों बेटों के दो-दो बच्चे भी हो गए थे !
जगदीश प्रसादजी अपने छोटे बेटे के साथ निचली मंजिल पर रहते थे !
शेष दोनों बड़े भाई अनिल व सुनील, दूसरी और तीसरी मंजिल पर रहते थे !
रसोई सबकी अलग-अलग थी बस त्यौहार वाले दिन सब एक जगह इकट्ठे होकर त्यौहार मनाते थे !
मुँह से तो कोई कुछ नहीं कहता था, पर छोटी बहू को बहुत तकलीफ होती थी कि सारा काम मुझे ही करना पड़ता है, दोनों भाभियाँ बस हाथ हिलाने के लिए आ जाती हैं ! उधर दोनों का कहना था कि भई, रसोई तो तुम्हारी है तो जिम्मेदारी भी तुम्हारी है !
पर ये बातें कभी भी झगड़े का रूप धारण नहीं कर पाती थीं, क्योंकि कांताजी खुद भी एक मेहनती महिला थी जो उम्र के इस दौर में भी चुस्त दुरुस्त थीं, सारा दिन कुछ न कुछ करते रहना उनकी आदत थी !
इसी कारण काम को लेकर तीनों बहुएँ ही उन पर निर्भर थीं !
जगदीश प्रसादजी जब भी अपनी पत्नी के साथ बैठते थे तो कहते थे के अब हमें किसी प्रकार की चिंता नहीं है ! पेंशन तो आएगी ही, हम दोनों का आराम से गुजारा हो जाएगा !
जवानी में जो सपने मैं तुम्हारे पूरे नहीं कर पाया- वो मैं अब करूँगा !
और पत्नी हल्के से मुस्करा कर अपनी सहमति प्रकट कर देती थी , पर जगदीश प्रसादजी का ये सपना पूरा नहीं हो पाया!
और एक दिन पत्नी अचानक उन्हें अकेला छोड़कर हमेशा के लिए चली गई !
पत्नी के जाने से, जगदीश प्रसादजी की तो जैसे दुनिया ही उजड़ गयी !
पर होनी को कौन टाल सकता था !
जिस पत्नी ने इतने यत्न से मकान की नींव बनाई थी उसमें अब दरारें पड़नी शुरू हो गईं थीं !
हालात अब इतने बदल गए थे कि त्यौहार के समय, घर के घर में, एक दूसरे को बधाई देने में भी सब को कष्ट होने लगा था !
कुल मिलाकर, सब अपनी-अपनी गृहस्थी में मस्त हो गए थे !
एक अकेले जगदीश प्रसादजी ही रह गए थे ,
जो सबकुछ समझ रहे थे, पर उम्र के इस दौर में पत्नी के जाने के बाद वे अपने आप को असहाय सा महसूस करने लगे थे !
दो दिन पहले ही वो जब अचानक घर में घुसे, तो उन्हें बेटों व बहुओं की आवाज़ सुनाई दी,
कौतूहलवश, वे चुपचाप खड़े हो गए !
उनके दुःख का ठिकाना न रहा, जब उन्होंने सुना कि तीनों बेटों ने उन्हें दो-दो महीने के लिए
बाँट लिया है !
छोटी बहू को शिकायत थी कि जब मकान में सबका बराबर का हिस्सा है, तो पिताजी की सेवा में भी सबका बराबर का हिस्सा होना चाहिए ! मैं भी थोड़ा आज़ाद रहना चाहती हूँ, जो पिताजी के कारण संभव नहीं हो पा रहा!
तकलीफ तो सब को हो गयी थी, पर कोई चारा ना था !
अब जगदीश प्रसादजी तीन हिस्सों में बँट गए थे !
ज़िन्दगी यूँ ही चलती जा रही थी, दो महीने एक बेटे के पास, दो महीने दूसरे बेटे के पास और फिर तीसरे के पास!
मुसीबत तो तब आती थी, जब कभी, महीने के अंत में यदि उनकी तबियत ख़राब हो जाती थी, तो उनका इलाज यह सोचकर नहीं कराया जाता था कि अब दो-चार दिन के बाद दूसरे बेटे के पास तो जाना ही है वो ही इलाज करा देगा !
आज जगदीश प्रसादजी के सब्र का बाँध टूट गया था !
दो दिन पहले ही उन्होंने दांत निकलवाया था ! उनका दिल कुछ मीठा कुछ गर्म कुछ नरम खाने का हो रहा था उन्होंने अपनी मँझली बहू को हलवा बनाने के लिए कहा, तो बहू का जवाब था कि मैं अभी खाली नहीं हूँ आपको और कुछ तो सूझता नहीं है, इस उम्र में भी खाने की पड़ी है !
दो दिन के बाद मोना (छोटी बहू) के पास जाएँगे वहीं खा लेना ! मैं किटी पार्टी के लिए लेट हो रही हूँ...
जगदीश प्रसादजी के सब्र का पैमाना छलक गया ! आज तक वो अपने बेटे बहुओं की सब ज्यादतियाँ बर्दाशत कर रहे थे ! पर आज तो हद हो गयी ! आँखें आँसुओं से भर गईं और वे कैलाशजी के घर चल दिए !
कैलाशजी उनके बचपन के मित्र थे ! शिक्षाप्राप्ति से लेकर सेवानिवृति तक दोनों साथ ही रहे ! कैलाशनाथ जी थोड़े व्यवहारिक बुद्धिवाले व्यक्ति थे ! वे दिल से नहीं दिमाग से सोचते थे ! उन्होंने अपने दोस्त को कई बार समझाया था कि थोड़ा रौब रखा करो ! तुम्हे किस बात की कमी है? मकान अभी तुम्हारे नाम है !
बेटे-बहू जब भी सिर पर बैठने की कोशिश करें, तो धमकी दे दिया करो, कि किसी को भी हिस्सा नहीं दूँगा !
पर जगदीश प्रसादजी को ये बात नामंजूर थी ! उनका कहना था कि जब मकान बनवाया ही बच्चों के लिए है तो ऐसा सोचना किसलिए ? लेकिन आज उन्हें लग रहा था कि अब कुछ करने का समय आ ही गया है !
कैलाश नाथजी से सलाह मशवरा करके, जगदीश प्रसादजी घर आए और अपनी पत्नी की तस्वीर के सामने आकर खड़े हो गए ! जैसे मन ही मन उनसे विचार विमर्श कर रहे हों !
एक दृढ निश्चय उनके चेहरे पर आया और वो भूखे पेट ही सो गए ! किसी ने भी उनसे खाने के लिए नहीं पूछा !
उन्हें पता था कि उनके तीनों बेटे पत्नियों के साथ गर्मी की छुट्टियों में बाहर जा रहे हैं !
किसी को भी यह ख्याल नहीं था कि पिताजी क्या खाएँगे ? कैसे रहेंगे ??
जगदीश प्रसादजी ने भी कुछ नहीं कहा !
उनका मानना था कि जब बेटे ही माँ-बाप को नहीं पूछते तो बहुओं से क्या उम्मीद रखना ! बहुएँ तो चाहती ही हैं कि किसी की सेवा न करनी पड़े ! वे तो सिर्फ़ अपने पति और अपने बच्चों में ही अपना परिवार देखती हैं !
सास-ससुर उन्हें बोझ लगने लगते हैं !
वे अपने अधिकारों के प्रति तो सचेत रहती हैं,
पर अपने कर्तव्यों की तरफ से आँख मूँद लेती हैं !
तीनों बेटों के, उन्हें इस तरह तन्हां छोड़ कर घूमने चले जाने के बाद, जगदीश प्रसादजी अपने मित्र के साथ प्रॉपर्टी डीलर के पास गए !
प्रॉपर्टी डीलर कैलाश नाथजी के पुत्र का ख़ास दोस्त था उनसे मिलकर अपनी व्यथा बताई कुछ सलाह मशवरा किया व वापस आ गए !
20 दिन के बाद जब तीनों बेटे बहु प्रसन्नचित घर लौटे तो मकान पर ताला देखकर सबकी त्योरियाँ चढ़ गईं !
छोटी बहू मोना बोलने लगी- हद हो गई लापरवाही की,
पता था कि हम आज आ रहे हैं तो घर नहीं बैठ सकते थे !
उसके गुस्से का कारण भी था ! क्योंकि ये दो महीने पिताजी को उसके पास रहना था !
काफी देर इंतज़ार करने के बाद अनिल व सुनील कैलाश नाथजी के घर पहुँचे तो उनके पैरों तले की ज़मीन खिसक गयी, जब उन्हें पता चला कि पिताजी ने मकान डेढ़ करोड़ में बेच दिया है और अब वे कहाँ हैं किसी को कुछ पता नहीं !
तीनों बेटे-बहुओं को समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या हो गया है !
उन्हें लग रहा था कि यह एक भद्दा मजाक है जो पिताजी ने उनके साथ किया है ! दूर से देखने पर तो दुनिया वालों को भी यही लगता !
गुस्से में तीनों भाई उबल रहे थे !
पिताजी ऐसा कैसे कर सकते हैं ? ये उन सबकी समझ से बाहर था !
कोई चारा न देखकर, तीनों बेटे अपनी-अपनी ससुराल चले गए !
अगले दिन बड़े बेटे के पास कैलाश नाथजी का फ़ोन आया और उन्होंने तीनों पुत्रों को अपने पास आने के लिए कहा कि कुछ आवश्यक सूचना देनी है !
शाम तक का भी इंतज़ार सबको भारी पड़ रहा था !
कैलाश नाथजी के पास से जो सूचना उन्हें मिली, उससे तीनों की जुबान पर ताला लग गया ! दिमाग जैसे कुंद हो गया ! सोचने-समझने की शक्ति ने, जैसे साथ ही छोड़ दिया !
कैलाश नाथजी के अनुसार जगदीश प्रसादजी हरिद्वार चले गए हैं और उन्होंने वहाँ पर एक सुंदर छोटा सा घर ले लिया है तथा अब वे वहीं रहेंगे !
ये समाचार पूरे परिवार पर एक भारी प्रहार था ! बहुत अनुनय-विनय करने पर कैलाश नाथजी से वे पिताजी का पता प्राप्त कर सके और हरिद्वार की ओर उड़ चले !
पिताजी का यह कदम उनकी समझ से बाहर था !
हरिद्वार पहुँचकर, पिताजी को देखकर एक और झटका लगा कि पिताजी तो एकदम प्रसन्नचित और स्वस्थ लग रहे थे !
बेटे-बहुओं को देखकर उनके होंठो पर मुस्कान आ गई !
प्रसन्नता पूर्वक उनका स्वागत किया और 'दीपक' कहकर किसी को आवाज़ दी !
आवाज़ सुनते ही 10-11 साल का एक लड़का सामने आकर खड़ा हो गया !
सबने कोतूहल से उसे देखा ! जगदीश प्रसादजी ने सबकी नजरों को नज़रअंदाज़ किया और दीपक को 6 प्लेट गरम-गरम हलवा लाने के लिए कहा !
इसी बीच जगदीश प्रसादजी सबसे बच्चों की कुशलता के बारे में जानते रहे !
तीनों बेटे एक-दूसरे की तरफ देख रहे थे कि कौन पहल करे ? पर किसी कि हिम्मत नहीं हो पा रही थी कुछ पूछने की !
इतने में दीपक एक ट्रे में गर्मागर्म हलवे की 6 प्लेट लेकर आ गया और सबको एक-एक प्लेट पकड़ा दी ! मगर किसी ने भी प्लेट को हाथ नहीं लगाया !
किसी को बोलते न देखकर, जगदीश प्रसादजी ने कमान अपने हाथ में ली और बोलने लगे...
तुम सबको हैरानी हो रही होगी और गुस्सा भी आ रहा होगा कि पिताजी को ये क्या सनक सवार हो गयी है?
लेकिन कारण भी तुम लोग जानते हो !
मैंने और तुम्हारी माँ ने, तुम लोगों को कभी भी किसी प्रकार की कमी नहीं आने दी !
तुम्हारी माँ ने मेरी, एक अकेली तनख़्वाह से, जीवनभर कितनी कुशलता से घर को चलाया...
ये मुझे, तुम सब को बताने की जरूरत नहीं है !
और आज मुझे ये कहने में कोई भी शर्म नहीं है कि उसने अकेले तुम सभी को अपने प्यार से बाँध रखा था !
पर तुम 6 लोगों ने अपने एक बाप को ही किस्तों में बाँट लिया...
चलो कोई बात नहीं... कम से कम दो वक़्त की रोटी तो शांति से दे सकते पर तुम सबसे वो भी नहीं हो पाया !
पार्लर और किट्टी पार्टी में जाने के लिए सभी के पास वक़्त था पर मेरी दो रोटियाँ सब को भारी पड़ रही थीं !
तुम सभी को अच्छी तरह से मालूम था कि जिसके पास भी मैं रहता था, अपनी पेंशन वहीं खर्च करता था, लेकिन मेरी दवाई के लिए किसी के पास पैसे नहीं होते थे !
तुम सबको अपने अधिकार तो याद रहे, मगर अपने बूढ़े पिता के प्रति, तुम्हारे कुछ कर्त्तव्य भी हैं, यह तुम में से किसी को भी याद नहीं रहा !
और फिर जब मेरे बेटे ही ऐसे हैं तो बहुओं से मैं क्या उम्मीद रखूँ ?
कहते-कहते जगदीश प्रसादजी का गला रुँध गया !
तीनों बेटे-बहुएँ चुपचाप नज़रें झुकाकर बैठे रहे !
जगदीश प्रसादजी ने दोबारा बोलना शुरू किया- "मेरा ये फैसला तुम्हें पसंद नहीं आएगा, यह मैं जानता हूँ, पर इसके जिम्मेदार भी तुम लोग ही हो ! तुम्हें पता चल गया होगा कि मैंने मकान बेच दिया है !
10-10 लाख मैंने अपने पोते-पोतियों के नाम से फिक्स्ड डिपोसिट करा दिए हैं, जो उनके बड़े होने पर उन्हें ही मिलेंगे !
मैंने यह घर खरीद लिया है। दो कमरे, किचेन, बाथरूम, टॉयलेट सभी सुविधाएँ हैं ! उसमें जो कमी थी वो मैंने जुटा ली हैं। मैंने इसके लिए एक आश्रम को 15 लाख रुपये दे दिए हैं।
मेरे मरने के बाद यह घर आश्रम की सम्पति हो जाएगा !
अभी-अभी जिस लड़के को तुमने देखा है वो एक अनाथ लड़का है जो उस आश्रम में रहता था ! और अब वह मेरे साथ रहता है !
मैंने एक अच्छे स्कूल में उसका नाम लिखवा दिया है। वह पढ़ता भी है और मेरी सेवा भी करता है !
5 लाख रुपये मैंने इसके नाम से भी जमा करा दिए हैं !
बाकी जो बचा, उसे मैंने बैंक में जमा करा दिए हैं !
बैंक से जो ब्याज़ आएगा व साथ ही मेरी जो पेंशन आती है,
उससे, मेरा और इस बच्चे का खर्च आराम से चल जाएगा !
अब तुम लोगों को मेरी तरफ से पूरी आज़ादी है जैसे चाहो वैसे रहो!
ये सब कहकर जगदीश प्रसादजी चुप हो गए, और आरामकुर्सी पर बैठकर अपनी आँखें बंद कर लीं !
तीनों बेटे-बहुओं को समझ नहीं आ रहा था कि पिताजी की इन बातों पर वे अपनी क्या प्रतिक्रिया प्रकट करें?
और सामने पड़ी हलवे की प्लेट को देखकर अलका बहू सोच रही थी कि- एक प्लेट हलवे की कितनी बड़ी कीमत सबको चुकानी पड़ गयी है...
शनिवार, 10 अगस्त 2024
ईश्वर महान है और वो कुछ भी कर सकता है।
" एक चोर "
यह कहानी 1950 के लगभग की है जब हमारा देश नया नया आज़ाद हुआ था और नौकरी मिलना तब थोड़ा कठिन कार्य था और लगातार बढ़ती बेरोज़गारी की वजह से , देश में जेबकतरों और चोरों की तादाद थोड़ी बढ़ चुकी थी
और उसी बेरोज़गारी की वजह से एक दिन एक घटना घटी , जब एक मालदार सेठ अपनी शानदार गाड़ी से उतरकर बैंक में प्रवेश कर रहा था , तब एक चोर चुपके से उसके पीछे हो लिया था और वह चोर चाल ढाल से बहुत चुस्त और चालाक लग रहा था। जब सेठ बैंक अधिकारी से बातचीत करके अपने पैसे निकलवा रहा था , तब वह चोर उस सेठ की तरफ अपनी पीठ करके खड़ा हुआ था , पर उसके कान पीछे ही लगे हुए थे। उस चोर ने बैंक अधिकारी और उस सेठ की बातचीत से इतना तो समझ ही लिया था कि वह सेठ बैंक से बहुत बड़ी रकम निकालने के लिए आया था। कुछ समय बाद जब वह सेठ अपने बैग में पैसे लेकर , उस बैंक से बाहर निकला , तो उस चोर ने उस सेठ के कार में बैठने से पहले ही , एक झपट्टा मारा और उस सेठ का पैसों से भरा बैग छीन कर , ये जा और वो जा , वो चोर बहुत फुर्ती से वहां से भागा , पर इतने में बैंक के बाहर तैनात गार्ड भी उस चोर के पीछे भागा , पर वह चोर , चोरी करने से पहले ही अपने भागने का रेखा चित्र खींच चुका था और अपने नपे तुले कदमों से और गज़ब की फुर्ती से , उसने जल्दी ही उस गार्ड से अपना पीछा छुड़ा लिया था।
तब तक बैंक में शोर मच चुका था और बैंक मैनेजर ने जल्दी से पुलिस को इस घटना की जानकारी दे दी थी।
पर इस बीच वह चोर भागते भागते झोपड़ी नुमा घरों की छोटी छोटी गलियों में घुस गया था और एक अंधेरे से कोने में क्षण भर के लिए रुककर उसने वह चोरी किया हुआ बैग खोलकर देखा , तब उस चोर का , बैग में लाखों रुपए देख कर , मुंह खुला का खुला रह गया था। वह चोर थोड़ा मनमौजी किस्म का था और उन पैसों को देख कर वो मुस्कराया और उसने मन ही मन में कहा " वाह सेठ गरीबों का खून चूस चूस कर बहुत पैसा इकट्ठा किया हुआ है " और यह सोचते सोचते उसके चेहरे पर एक शरारत भरी मुस्कान आ चुकी थी।
वह चोर अभी भी उस झोपड़ी नुमा घर की दीवार के साथ सट कर खड़ा था कि उस चोर को , उस घर के भीतर से कुछ आवाज़ें सुनाई दी और उस बातचीत से उस चोर ने अंदाज़ा लगाया कि एक बूढ़ा बाप अपने जवान बेटी के दहेज की वजह से बहुत परेशान है और उसे भय लग रहा था कि कहीं दहेज का इंतज़ाम न होने से , लड़के वाले बारात वापिस न ले जाएं , और उसकी बेटी अपने पिता से कह रही थी कि अगर उन्होंने ऐसा किया तो मैं यह शादी खुद ही तोड़ दूंगी। पर उसके पिता उसे समझा रहे थे कि तुम्हारे ऐसा करने से , हमारा नाम बिरादरी में खराब हो जायेगा फिर तुमसे कौन विवाह करेगा। अभी उनकी यह बातचीत चल ही रही थी कि उस चोर ने सोचा कि मुझ से अधिक पैसों की जरूरत तो इन्हें है और यही सोच कर उसने अपने पैसों से भरा बैग निकाला और चुपके से उनके घर में उनकी जरूरत के मुताबिक पैसे रख दिए और वो चोर मुस्करा कर आगे बढ़ गया , पर तब तक पुलिस उसको ढूंढती हुई , वहां पर आ पहुंची थी , वह चोर फिर अपनी जान बचाकर वहां से उन गलियों में भागा और वो उन रास्तों से इतना अच्छी तरह से परिचित था कि कुछ मिनटों में ही , वो पुलिस की नजरों से ओझल हो गया। अब तक वो चोर , इस भागा दौड़ी से बहुत थक चुका था , और वो एक छोटी सी झोपड़ी के , पीछे की दीवार के पास सुस्ताने के लिए , वहां पर बैठ गया था। पर तभी उसे उस झोंपड़ी के भीतर से आवाज़ें सुनाई दी और वो चोर कान लगा कर अन्दर की बातचीत को सुनने की कोशिश करने लगा।
उस घर में बहुत बूढ़े पति पत्नी रहते थे और वो कल की चिंता कर रहे थे , वो बूढ़ा इंसान जो थोड़ा चलने से भी लाचार सा था , वो अपनी पत्नी से कह रहा था कि हमारी कोई औलाद नहीं है और अनाज के डिब्बे भी खाली हो गए हैं , तो तू क्यों इस बात की चिंता करती है , यह कह कर वो बूढ़ा इंसान अपनी पत्नी को दिलासा देने की कोशिश कर रहा था , फिर कुछ सोचते हुए उसने अपनी पत्नी से कहा था " सबको देने वाला ईश्वर है और वक्त आने पर वो हमारी भी मदद जरूर करेगा " उनकी बातचीत सुनकर चोर सोच में पड़ गया था , तब उस चोर ने झोपड़ी के भीतर झाँक कर देखा और उसने देखा कि दो बूढ़े पति पत्नी आपस में बातें कर रहे थे और वो दोनो थोड़े लाचार से दिखाई दे रहे थे और शायद उन्हें दिखाई भी थोड़ा कम देता था , यह देख कर उस चोर का दिल भर आया था और जब वह बूढ़े पति पत्नी गहरी नींद में सो गए , तब उस चोर ने बहुत चुपके से उनके झोंपड़े में प्रवेश किया था और उसने अपने बैग में से कुछ पैसे निकाल कर , उनके बिस्तर के निकट रख दिए थे और फिर वो चोर वहां से आगे बढ़ गया था। वह चोर अभी चैन की सांस ही ले रहा था कि तभी कुछ पुलिस अधिकारियों ने उसे फिर से देख लिया और वो उसको पकड़ने के लिए उसके पीछे भागे , वह चोर एक बार फिर जान बचाकर तेज़ी से भागा और बिजली की सी फुर्ती से , एक बार फिर , उन पुलिस वालों की नज़र से ओझल हो गया। अब तक वह चोर बहुत थक चुका था , पर साथ ही , उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कुराहट भी थी।
पुलिस को यूं चकमा देना , उस चोर का बाएं हाथ का खेल था और उस चोर को अपनी चुस्ती और फुर्ती पर बहुत भरोसा था। अब तक उस चोर का चोरी किया हुआ बैग बहुत हल्का हो चुका था , पर यह देख कर भी उस चोर को कुछ खास अंतर नहीं पड़ा था। वह चोर पुलिस से बचने के लिए अभी भी उन्हीं गलियों में छुपता फिर रहा था। इसी भाग दौड़ के दौरान वो चोर , एक छोटी सी झोपड़ी के पिछवाड़े में , अंधेरी सी जगह को देख कर , सुस्ताने के लिए वहीं पर छुप कर बैठ गया था। उस समय वो बहुत थक चुका था और अपनी सांसें ठीक कर रहा था कि तभी उसे उस छोटे से टूटे फूटे झोंपड़े की भीतर से , किसी छोटी लड़की की आवाज सुनाई दी , और वो चोर दीवार से कान लगाकर भीतर की बातें सुनने की कोशिश करने लगा। उस चोर को , उस झोपड़े में से , दो छोटे बच्चों की बातचीत सुनाई दे रही थी और उसने सुना कि एक लड़की अपने छोटे भाई को दिलासा देते हुए कह रही थी " तुम चिंता मत करो छोटे , मैं तुम्हारी टांगों का इलाज बड़े से बड़े डॉक्टर से करवाऊंगी और तुम एक दम ठीक हो जाओगे " और वो छोटा बच्चा अपनी बहन से कह रहा था " अब तो हमारे माता पिता भी नहीं रहे , फिर तुम अकेली इतने सारे पैसे कहां से लेकर आओगी " लगता है जैसे मैं अब जीवन भर अपाहिज ही रहूंगा "
यह कह कर वह छोटा बच्चा बिलखने लगा था। पर तभी उसकी बहन ने अपने भाई को चुप कराने का प्रयास करते हुए उससे कहा था " छोटे जिनका कोई नही होता उनकी रक्षा खुद भगवान करते है , तू क्यों चिंता करता है , मैं हूं न , और जब तक मैं हूं , तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है " उनकी बातों को वह चोर बहुत ध्यान से सुन रहा था और उन बच्चों की भोली बातें सुन कर , उसके दिल में , उन्हें देखने की जिज्ञासा जाग उठी और उसी जिज्ञासा के तहत , उसने उस टूटी फूटी झोपड़ी के एक झरोंखे से , भीतर झांक कर देखा और उसने देखा कि दो बहन भाई आपस में बातचीत कर रहे थे और जिसमें लड़के की उम्र अभी 7 वर्ष के लगभग की लग रही थी और वो छोटा बच्चा टांगों से अपाहिज था और उसकी 14 वर्षीय बहन उसकी हिम्मत बढ़ा रही थी। उस चोर ने देखा कि झोपड़े की एक दीवार पर , दो तस्वीर लगी हुई थी और उन तस्वीरों के सामने एक दीया जल रहा था। इसी बात से उस चोर ने अंदाज़ा लगाया कि हो न हो , ये उनके मृत माता पिता की तस्वीर ही होगी। दो छोटे बच्चों को इस अवस्था में देख कर ,
उस चोर का दिल भर आया था और उसी पल उसने अपना चोरी किया हुआ बैग खोला और उसमें जितने भी धनराशि बची हुई थी , वह सब उन बच्चों के पास रख कर , वो आगे बढ़ गया और उसने वो खाली बैग , कुछ दूर चलकर , एक बहते नाले में फेंक दिया और मुस्कराता हुआ आगे बढ़ गया। पर उसे पता नही चला कि पुलिस अभी भी उसकी उसकी तलाश कर रही थी और जैसे ही वह चोर पुलिस को फिर से दिखाई दिया , पुलिस ने उस चोर की चारों तरफ से घेराबंदी कर दी , चोर अपनी जान बचाकर पास ही की एक बहुत बड़ी हवेली में घुस गया और उस हवेली की छत से होते हुए , उसने एक परछत्ती पर उतरकर उस कमरे के रोशनदान से कमरे के भीतर झांक कर देखा , तो वो दंग रह गया , उस कमरे में इतनी धन संपत्ति पड़ी हुई थी कि जिसकी उस चोर ने कभी कल्पना भी नही की थी। वह कमरा बहुत सी अलमारियों से भरा हुआ था और उसकी हर अलमारी में ढेरों पैसे पड़े हुए थे।
उस कमरे की कुछ अलमारियों में बेशकीमती जेवर पड़े हुए थे। वह चोर इतनी धन संपत्ति देख कर हैरान रह गया था और उस पल उसके मुंह से निकल ही गया था " इस सेठ ने गरीबों का खून चूस चूस कर ही इतनी धन संपत्ति इकट्ठी की होगी " और अब उस चोर ने निश्चय कर लिया था कि उसका अगला निशाना यही घर होगा और अभी वह यह सोच ही रहा था कि उसे उस घर का वह सेठ भी नजर आया जो अपने ज़ेवर एक अलमारी में संभालकर रख रहा था और वो चोर यह देख कर हैरान रह गया था कि यह सेठ वो ही सेठ था ,
जिससे उसने बैंक के बाहर बैग छीना था। उस पल वह चोर मन ही मन बुदबुदाया था " अब तो इस घर में आना ही पड़ेगा " और यह कह कर वह खुद ही मुस्कराने लगा था। उस गुप्त कमरे की बनावट ऐसी थी कि अच्छे अच्छे चालाक लोग भी , शायद उस गुप्त कमरे को खोज न पाते , पर उस चोर के छत से उस घर में प्रवेश करने की वजह से , उसे दो दीवारों के बीच में बने उस कमरे का पता चला था। शायद उस सेठ ने अपनी धन संपत्ति की सुरक्षा के लिहाज से , ऐसा किया था , पर वो सेठ नही जानता था कि किसी चोर की निगाहों से किसी भी प्रकार की गुप्त जगह का छुपा रह जाना , असंभव था।
पर अब तक पुलिस ने उस हवेली और आसपास के इलाकों की घेरा बंदी कर दी थी और अब उस चोर का वहां से निकलना असंभव सा हो गया था , धीरे धीरे पुलिस का घेरा छोटा होता गया और वह चोर उस सेठ की हवेली से कुछ ही कदम की दूरी पर ही पकड़ा गया।
उस चोर को हथकड़ी लगा कर पुलिस स्टेशन लाया गया और शिनाख्त के लिए बैंक के गार्ड और उस सेठ को पुलिस स्टेशन बुलाया गया।
गार्ड ने चोर के चेहरे को ध्यान से देखते हुए पुलिस अधिकारी को बताया , मैंने चोर को पीछे से देखा था और बस मैं एक झलक उस चोर की देख पाया था और मुझे लगता है कि यह वो ही चोर है जिसने बैंक के बाहर सेठ जी का बैग चुराया था।
तब तक वह सेठ भी बैंक में पहुंच चुका था और वो चोर को पहचानने की कोशिश ही कर रहा था कि वह चोर उस सेठ के बहुत करीब आया और उसने सेठ के कान में बस इतना ही कहा था " सेठ जी क्या आपके घर में बने गुप्त कमरे के जानकारी में पुलिस को दे दूं " बस फिर क्या था , यह सुनकर उस सेठ के चेहरे का रंग उड़ गया।
पुलिस अधिकारी ने उस सेठ से पूछा कि " क्या यह वही चोर है जिसने बैंक के बाहर आपका बैग छीना था "
अब सेठ जी उस चोर के चेहरे की ओर देख रहे थे जो उनकी ओर ही देख रहा था और वो मुस्करा रहा था , और वो चोर उस पल मन ही मन में सोच रहा था " अब बता मोटे सेठ , अब मैं तेरे काले धन का भांडा , सिर्फ पल भर में फोड़ दूंगा "
अब तक वह सेठ मौके की नजाकत को समझ चुका था और उसने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी थी और उस सेठ ने जल्दी से उस पुलिस अधिकारी से कहा था " नही , नही ये वो आदमी नही है , वो थोड़ा मोटा सा था और उसका रंग थोड़ा काला था , मैंने उसे बहुत ध्यान से देखा था "
उस सेठ की बातें सुनकर वह गार्ड बहुत हैरान हुआ था और वो बहुत आश्चर्य से सेठ की ओर देख रहा था। चोर को तो उसने भी देखा था , पर जो हुलिया वह सेठ बयान कर रहे थे , वो उस चोर से बिल्कुल उलटा लग रहा था। पर वह गार्ड चुपचाप एक कोने में खड़ा रहा और आश्चर्य से पुलिस की सारी कार्यवाही को होते देखता रहा।
सबूतों के अभाव से , पुलिस ने उस चोर को छोड़ दिया था , क्योंकि पुलिस को उस चोर के पास से चोरी का एक पैसा भी बरामद नहीं हुआ था।
जब वह चोर और सेठ , उसे पुलिस स्टेशन से बाहर निकले , तब सेठ ने चोर को हाथ जोड़ते हुए , विनती भरे अंदाज से उस चोर से कहा कि " कृपया तुम उस गुप्त कमरे की जानकारी किसी को मत देना " और यह कहते हुए उस सेठ ने अपनी जेब से 5 , 000 रुपए निकाले और उस चोर की तरफ बढ़ा दिए और चोर ने मुस्कराते हुए वह पैसे अपनी जेब में रख लिए थे और सेठ को हक्का बक्का वहीं पर छोड़ कर , वो चोर अपनी राह पर आगे बढ़ गया था। पर अब तक वह सेठ समझ चुका था कि उसके घर पर पड़ा गुप्त खजाना अब सुरक्षित नहीं रहा था और उस पल वह चोर , मन ही मन में यह फैसला कर चुका था कि उसका अगला निशाना उस सेठ का घर ही होगा।
अगली सुबह जब उन तीनो परिवार के लोगों की आंख खुली और इतने सारे पैसों एक साथ देख कर , वह सब बहुत हैरान हुए थे और उस पल उन सब ने , हाथ जोड़ कर ईश्वर का धन्यवाद किया था क्योंकि उन सब कुछ ऐसा अनुभव हुआ था कि ईश्वर ने अपने किसी बंदे के हाथों , उन्हें मदद भेजी थी। उन सब के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं था और यह बात सत्य प्रतीत होती है कि " ईश्वर की मर्ज़ी के बिना , कहीं पर एक पत्ता भी नहीं हिलता " ईश्वर महान है और वो कुछ भी कर सकता है।
शनिवार, 3 अगस्त 2024
क्या आपको नहीं लगता कि प्राचीन लोगों के पास उन्नत उपकरण और प्रौद्योगिकियां थीं
प्राचीन धरोहर
आप दुनिया के सबसे महान पुरातात्विक स्थलों में से एक को देख रहे हैं जिसे सिगिरिया कहा जाता है जिसे रावण के महलों में से एक माना जाता है। श्रीलंका में स्थित यह अद्भुत स्थल दुनिया में ऐसा कुछ भी नहीं है, इसीलिए इसे दुनिया का 8वां अजूबा भी कहा जाता है। अब आप सोच रहे होंगे कि इस साइट में ऐसा क्या खास है। यह वास्तव में एक विशाल अखंड चट्टान है, लगभग 660 फीट लंबा, और आप देख सकते हैं कि इसका एक सपाट शीर्ष है, जैसे किसी ने इसे एक विशाल चाकू से काटा। शीर्ष पर अविश्वसनीय खंडहर हैं जो बेहद रहस्यमय हैं।
जैसा कि आप देख सकते हैं कि यहां और वहां बहुत सी अजीबोगरीब ईंट संरचनाएं हैं और यह न केवल आगंतुकों के लिए भ्रमित करने वाली है, बल्कि पुरातत्वविद भी पूरी तरह से यह नहीं समझ पा रहे हैं कि इन संरचनाओं का उपयोग किस लिए किया गया था। वे पुष्टि करते हैं कि आप जो कुछ भी देखते हैं वह कम से कम 1500 वर्ष पुराना है। लेकिन रहस्य यह नहीं है कि ये संरचनाएं क्या हैं, यह है कि इन संरचनाओं का निर्माण कैसे हुआ। प्राचीन बिल्डरों ने इन सभी ईंटों को चट्टान के शीर्ष पर ले जाने का प्रबंधन कैसे किया? बताया जाता है कि यहां कम से कम 30 लाख ईंटें मिलती हैं, लेकिन इन ईंटों को चट्टान के ऊपर बनाना असंभव होगा, यहां पर्याप्त मिट्टी उपलब्ध नहीं है। उन्हें इन ईंटों को जमीन से ले जाना होगा।
अब, वास्तव में विचित्र बात यह है कि जमीनी स्तर से कोई प्राचीन सीढ़ियां नहीं हैं जो चट्टान की चोटी तक जाती हैं। देखिए, ये सभी धातु सीढ़ियां पिछली शताब्दी में बनाई गई थीं। इन नई सीढ़ियों के बिना इस चट्टान पर चढ़ना काफी मुश्किल होगा। यह पूरी चट्टान अब विभिन्न प्रकार की सीढ़ियों से स्थापित है, यह एक अलग स्तर पर सर्पिल सीढ़ियाँ हैं। प्राचीन बिल्डरों ने बहुत सीमित सीढ़ियाँ बनाईं, लेकिन ये सीढ़ियाँ निश्चित रूप से ऊपर तक नहीं पहुँचीं। यही कारण है कि 200 साल पहले तक सिगिरिया के बारे में यहां तक कि स्थानीय लोगों को भी नहीं पता था क्योंकि ऊपर तक सीढ़ियां नहीं थीं। 1980 के दशक के दौरान श्रीलंकाई सरकार ने धातु के खंभों का उपयोग करके सीढ़ियों का निर्माण किया ताकि इसे एक पर्यटक स्थल के रूप में इस्तेमाल किया जा सके और मुर्गी ने इसे एक विरासत स्थल घोषित किया।
और यही कारण है कि जोनाथन फोर्ब्स के नाम से एक अंग्रेज ने 1831 में सिगिरिया के खंडहरों की "खोज" की। तो प्रारंभिक मानव सिगिरिया के शीर्ष पर कैसे पहुंचे? आइए मान लें कि इन बहुत खड़ी, जंगली इलाकों के माध्यम से चढ़ाई करना संभव है। लेकिन जमीनी स्तर से 30 लाख ईंटें लाने के लिए आपको उचित सीढ़ियों की जरूरत जरूर पड़ेगी। इसके बिना उन्हें शीर्ष पर पहुंचाना असंभव होगा। भले ही हम यह दावा करें कि ईंटों को चट्टान के ऊपर ही किसी चमत्कारी तरीके से बनाया गया था, यहां के निर्माण कार्य में सैकड़ों श्रमिकों की आवश्यकता होती। उन्हें अपना भोजन कैसे मिला? और टूल्स के बारे में क्या? उन्होंने अपने विशाल आदिम औजारों को कैसे ढोया? वे कहाँ आराम और सोते थे?
यहां केवल ईंटें ही नहीं हैं, आप संगमरमर के विशाल ब्लॉक भी पा सकते हैं। दूधिया सफेद संगमरमर के पत्थर इस क्षेत्र के मूल निवासी नहीं हैं। ये ब्लॉक वास्तव में बहुत भारी होते हैं, एक कदम बनाने वाले हर पत्थर का वजन लगभग 20-30 किलोग्राम होता है। और हम यहां हजारों संगमरमर के ब्लॉक पा सकते हैं। विशेषज्ञ इस बात से सहमत हैं कि संगमरमर प्राकृतिक रूप से आस-पास कहीं नहीं पाया जाता है, तो उन्हें 660 फीट की ऊंचाई तक कैसे ले जाया गया, खासकर बिना सीढ़ियों के? इसमें पानी की एक बड़ी टंकी भी है। यदि आप इसके चारों ओर ईंटों और संगमरमर के ब्लॉकों को नजरअंदाज करते हैं, तो आप समझते हैं कि यह ग्रेनाइट से बना दुनिया का सबसे बड़ा मोनोलिथिक टैंक है। यह पत्थर के ब्लॉकों को जोड़कर नहीं बनाया गया है, इसे ग्रेनाइट को हटाकर, सॉलिड रॉक से टन और टन ग्रेनाइट को निकालकर बनाया गया है।
यह पूरा टैंक 90 फीट लंबा और 68 फीट चौड़ा और करीब 7 फीट गहरा है। इसका मतलब है कि कम से कम 3,500 टन ग्रेनाइट को हटा दिया गया है। तो आप वास्तव में वापस बैठने के लिए एक मिनट ले सकते हैं और सोच सकते हैं कि मुख्यधारा के पुरातत्वविद सही हैं या नहीं। यदि मनुष्य ग्रेनाइट पर छेनी, हथौड़े और कुल्हाड़ी जैसे आदिम औजारों का उपयोग कर रहे होते, जो कि दुनिया की सबसे कठोर चट्टानों में से एक है, तो 3,500 टन को हटाने में वर्षों लग जाते। और इतने सालों में ये मजदूर अपना पेट कैसे पालते थे, जब उनके पास जमीनी स्तर तक जाने के लिए सीढ़ियां भी नहीं हैं? मुख्यधारा की इतिहास की किताबों में कुछ मौलिक रूप से गलत है जो प्राचीन लोगों को छेनी और हथौड़े से चट्टानों को काटने की बात करती है। लेकिन यह सिर्फ एक सिद्धांत नहीं है, हमारे आंखों के सामने वास्तविक सबूत हैं।
क्या यह अद्भुत नहीं है?
क्या आपको नहीं लगता कि प्राचीन लोगों के पास उन्नत उपकरण और प्रौद्योगिकियां थीं?
शनिवार, 18 सितंबर 2021
अफगानिस्तान वैसे तो अब तक बड़े-बड़े साम्राज्यों की कब्रगाह साबित होता आया है- अंजू अग्निहोत्री
हरि सिंह नलवा ने दो सदी पहले अफगानों पर कसी थी नकेल
अफगानिस्तान वैसे तो अब तक बड़े-बड़े साम्राज्यों की कब्रगाह साबित होता आया है। अपनी ऊबड़ खाबड़ टीलानुमा जमीन और वहां के कबीलाई बाशिंदों की आक्रमणकारी प्रवृत्ति व उनके बीच अंदरूनी संघर्ष के चलते दुनियाभर की ताकतवर शक्तियां कभी इस देश पर पूरा नियंत्रण नहीं कर पाई। और यही वजह है कि उन्हें अपने लहूलुहान सैनिकों के साथ अफरा-तफरी में वहां से जान बचाकर भागना पड़ा।
हालिया दौर में सोवियत संघ ने भी वहां 1980 तक अपनी फौज जमाए रखी और अमेरिका ने भी 9/11 के हमले के उपरांत 20 साल पहले अफगानिस्तान में अपनी फौज भेजी थी लेकिन दशकों तक कोई नतीजा न निकलते देख आखिरकार उन्हें अपनी सेना वापस बुलानी पड़ी। लेकिन आज से करीब दो सदी पूर्व वहां हरि सिंह नलवा नामक एक सिख योद्धा पटल पर उभरे जिन्होंने वहां इन विद्रोही प्रवृत्ति के लोगों की नाक में नकेल डाल दी और अपने अद्भुत युद्ध कौशल की बदौलत उसने अफगानिस्तान में ऐसे सिख योद्धा की साख बनाई जिससे अफगानी आज भी खौफजदा रहते हैं।
उन्होंने आगे कहा, जब अफगान बार-बार पंजाब और दिल्ली का रुख करते तो महाराजा रणजीत सिंह ने अपना साम्राज्य सुरक्षित करने का फैसला किया और उन्होंने दो किस्म की सेनाएं तैयार करार्इं- एक में फ्रांस, जर्मनी, इटली, रशिया आदि के सैनिक भर्ती कराए गए जो उस समय के तमाम आधुनिक हथियारों और गोला-बारूद आदि से लैस थे, जबकि दूसरी सेना हरि सिंह नलवा के ही नेतृत्व में बनाई गई थी जो असल में महाराजा रणजीत सिंह के सबसे बड़े योद्धा थे और जिन्होंने अफगानिस्तान की ही प्रजाति हजारा के 1000 लड़कों को को हराया था जो संख्या में सिख सेना से तीन गुना कम थी। यही वजह है कि वर्ष 2013 में भारत सरकार ने उनकी बहादुरी और युद्ध कला को समर्पित डाक टिकट भी जारी की थी।
नलवा का नाम अफगानों के दिलों में सबसे ज्यादा खौफ पैदा करने वाला नाम कैसे बना, इसके जवाब में विख्यात इतिहासविद् सतीश के. कपूर ने कहा, ‘हरि सिंह नलवा ने अफगानों के खिलाफ कई युद्धों में हिस्सा लिया था और यही वजह है कि उनके कब्जे वाले कई इलाके अफगानों के हाथों से निकलते गए। यह सभी युद्ध नलवा के ही नेतृत्व में लड़े गए। जैसे 1807 में उन्होंने कसूर की जंग लड़ी जब वह मात्र 16 साल के थे और उन्होंने ही कुतुबद्दीन खान को करारी शिकस्त दी। 1813 में अटोक की जंग में नलवा ने अन्य कमांडरों के साथ मिलकर अजीम खान और उसके भाई दोस्त महोम्मद खान को हराया।
इन्हीं जंगों ने अफगानों के दिल में नलवा का ऐसा खौफ भर दिया कि वहां माताएं अपने उद्दंड बच्चों को उनका नाम लेकर डराने लगीं।’ उन्होंने बताया कि अफगान-पंजाब सीमा पर नजर रखने के लिए ही नलवा पेशावर में डटे रहे। इतिहासकार बताते हैं कि जमरूद की जंग में, जहां हरि सिंह नलवा की जान चली गई थी, दोस्त मोहम्मद खान ने अपने पांच बेटों के साथ सिख सेना के खिलाफ जंग में हिस्सा लिया था और हथियारों आदि की सीमित आपूर्ति सहित उसमें करीब 600 लड़ाके शामिल थे। जब भी अफगान लड़ाकों को पता चलता कि नलवा आ गया है तो वह भौंचक्के रह जाते और जंग के मैदान से भाग खड़े होते। लेकिन अपनी मौत से पहले घायलावस्था में भी उन्होंने अपनी सेना से कह रखा था कि जब तक लाहौर से सेना नहीं आ जाती, तब तक उसकी मौत की खबर न बताई जाए। बताया जाता है कि एक हफ्ते तक सिख सेना नलवा का सिर ऊपर उठाकर दुश्मन को दिखाती रही और तब तक लाहौर से अतिरिक्त सेना पहुंच गई जिसके बाद अफगान वहां से मैदान छोड़कर भाग खड़े हुए।
हरि सिंह नलवा को महाराजा रणजीत सिंह के पोते नव निहाल सिंह की शादी में लाहौर जाना था, लेकिन वह वहां नहीं जा पाए क्योंकि वह एक कुशल प्रशासक थे और उन्हें शक था कि यदि वह वहां से गए तो दोस्त मोहम्मद खां मौके का फायदा उठाकर जमरूद पर आक्रमण कर देगा। क्योंकि हालांकि उसे भी शादी में न्यौता दिया गया था लेकिन वह वहां गया नहीं था। इतिहासकारों का मानना है कि यदि महाराजा रणजीत सिंह और उनके कमांडर हरि सिंह नलवा ने पेशावर और नॉर्थ-वैस्ट फ्रंटियर नहीं जीता होता, जो अब पाकिस्तान में है तो यह इलाका अफगानिस्तान में होता और फिर अफगानों की पंजाब और दिल्ली में घुसपैठ रोकना भी असंभव था।
यूं पड़ा नलवा नाम
हरि सिंह का जन्म 1791 में गुजरांवाला में हुआ था जो अब पाकिस्तान में है। उनके नाम के साथ नलवा उपनाम तब जुड़ा जब उन्होंने युवावस्था में एक बाघ का शिकार कर दिया था। उन्हें बाघ-मार भी कहा जाता है। बाघ के पलक झपकते ही हमला कर दिए जाने से उन्हें तलवार निकालने का भी मौका नहीं मिला तो उन्होंने बाघ का जबड़ा पकड़ लिया और धक्का देकर पीछे गिरा दिया। और फिर अपनी तलवार निकाली और बाघ को मार गिराया। तब महाराजा रणजीत सिंह को इस वाकये का पता चला तो उन्होंने उसे बुलाया और कहा, ‘वाह, मेरे राजा नल वाह।’ नल दरअसल, महाभारतकाल में एक राजा हुए और वह भी अपनी बहादुरी के लिए ही जाने जाते हैं। उनके पिता गुरदयाल सिंह की 1798 में तब मृत्यु हो गई थी जब हरि मात्र 7 साल के थे और फिर उनके मामा ने ही उन्हें पाला।
बुधवार, 7 अप्रैल 2021
संस्कार...
कोई भी लड़की की सुदंरता उसके चेहरे से ज्यादा दिल की होती है।
अशोक भाई ने घर में पैर रखा.... ‘सुनते हो ?'
आवाज सुनी अशोक भाई कि पत्नी हाथ में पानी का ग्लास लेकर बाहर आयी.
"अपनी सोनल का रिश्ता आया है,
अच्छा ला ईज्जतदार सुखी परिवार है,
लडके का नाम युवराज है.
बैंक मे काम करता है.
बस सोनल हाँ कह दे तो सगाई कर देते है."
सोनल उनकी एका एक लडकी थी..
घर में हमेशा आनंद का वातावरण रहता था.
हाँ, कभी अशोक भाई सिगरेट
पान मसाले के कारण
उनकी पत्नी और सोनल के साथ बोल चाल हो जाती लेकिन
अशोक भाई मजाक में निकाल देते.
सोनल खूब समझदार और संस्कारी थी.
S.S.C पास करके टयूशन,सिलाई काम करके पापा की मदद करने की कोशिश करती,
अब तो सोनल ग्रज्येएट हो गई थी
और नौकरी भी करती थी
लेकिन अशोक भाई उसकी पगार में से एक रुपिया भी नही लेते थे...
और रोज कहते ‘बेटा यह पगार तेरे पास रख तेरे भविष्य में तेरे काम आयेगी.’
दोनो घरो की सहमति से सोनल और
युवराज की सगाई कर दी गई और शादी का मुर्हत भी निकलवा दिया.
अब शादी के 15 दिन और बाकी थे.
अशोक भाई ने सोनल को पास मेँ बिठाया और कहा
'बेटा तेरे ससुर से मेरी बात हुई...उन्होने कहा दहेज में कुछ नही लेंगे, ना रुपये, ना गहने और ना ही कोई चीज.
तो बेटा तेरे शादी के लिए मैंनें कुछ रुपये जमा किए..
यह दो लाख रुपये में तुझे देता हु...तेरे भविष्य में काम आयेगे, तू अपने खाते में जमा करवा देना.'
‘ओ के पापा - सोनल ने छोटा सा जवाब देकर अपने रुम में चली गई.
समय को जाते कहा देर लगती है ?
शुभ दिन बारात आगंन आयी,
पंडित ने चवरी में विवाह विधि शुरु की
फेरे फिरने का समय आया....
कोयल जैसे टुहुकी हो एसे सोनल दो शब्दो में बोली
‘रुको पडिण्त जी
मुझे आप सब की मोजूदगी में मेरे पापा के साथ बात करनी है,’
“पापा आप ने मुझे लाड़ प्यार से बड़ा किया,
पढाया, लिखाया खूब प्रेम दिया इसका कर्ज तो चुका सकती नही...
लेकिन युवराज और मेरे ससुर जी की सहमति से आपने दिया दो लाख रुपये का चेक में वापस देती हूँ...
इन रुपयो से मेरी शादी के लिए किये हुए उधार वापस दे देना
और दूसरा चेक तीन लाख जो मैंने अपनी पगार में से बचत की है...
जब आप रिटायर होगें तब आपके काम आयेगें,
मैं नही चाहती कि आप को बुढ़ापे में आपको किसी के आगे हाथ फैलाना पडे !
अगर में आपका लडका होता तो इतना तो करता ना ? !!! "
वहा पर सभी की नजर सोनल पर थी...
“पापा अब मे आपसे में जो दहेज में मांगू वो दोगे ?"
अशोक भाई भारी आवाज में -"हाँ बेटा", इतना ही बोल सके.
"तो पापा मुझे वचन दो
आज के बाद सिगरेट के हाथ नही लगाओगे....
तबांकू, पान-मसाले का व्यसन आज से छोड दोगे.
सब की मोजुदगी में दहेज में बस इतना ही मांगती हूँ"
लड़की का बाप मना कैसे करता ?
शादी मे लड़की की विदाई समय कन्या पक्ष को रोते देखा होगा लेकिन
आज तो बारातियों कि आँखो में आँसुओ कि धारा निकल चुकी...
मैं दूर से सोनल को लक्ष्मी रुप मे देख रहा था....
501 रुपये का कवर में अपनी जेब से नही निकाल पा रहा था....
साक्षात लक्ष्मी को मैं कैसे लक्ष्मी दूँ ??