आपने कछुए और खरगोश की कहानी ज़रूर सुनी होगी,
उसे फिर से दोहराता हूँ
एक बार खरगोश को अपनी तेज चाल पर घमंड हो गया और
वो जो मिलता उसे रेस लगाने के लिए चुनौती देता रहता।
कछुए ने उसकी चुनौती स्वीकार कर ली।
रेस हुई। खरगोश तेजी से भागा और काफी आगे जाने पर
पीछे मुड़ कर देखा, कछुआ कहीं आता नज़र नहीं आया, उसने
मन ही मन सोचा कछुए को तो यहाँ तक आने में बहुत समय
लगेगा, चलो थोड़ी देर आराम कर लेते हैं, और वह एक पेड़ के
नीचे लेट गया। लेटे-लेटे कब उसकी आँख लग गयी पता ही नहीं चला।
उधर कछुआ धीरे-धीरे मगर लगातार चलता रहा। बहुत देर
बाद जब खरगोश की आँख खुली तो कछुआ फिनिशिंग
लाइन तक पहुँचने वाला था। खरगोश तेजी से भागा,
लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी और कछुआ रेस जीत गया।
_धीमा और लगातार चलने वाला रेस जीतता है_
ये कहानी तो हम सब जानते हैं, अब आगे की कहानी देखते हैं:
रेस हारने के बाद खरगोश निराश हो जाता है, वो अपनी
हार पर चिंतन करता है और उसे समझ आता है कि
वो अधिक विश्वाश होने के कारण ये रेस हार गया…उसे अपनी
मंजिल तक पहुँच कर ही रुकना चाहिए था।
अगले दिन वो फिर से कछुए को दौड़ की चुनौती देता है।
कछुआ पहली रेस जीत कर आत्मविश्वाश से भरा होता है
और तुरंत मान जाता है।
रेस होती है, इस बार खरगोश बिना रुके अंत तक दौड़ता
जाता है, और कछुए को एक बहुत बड़े अंतर से हराता है।
_तेज और लगातार चलने वाला
धीमे और लगातार चलने वाले से हमेशा जीत जाता है।_
कहानी अभी बाकी है जी….
इस बार कछुआ कुछ सोच-विचार करता है और उसे ये बात
समझ आती है कि जिस तरह से अभी रेस हो रही है वो
कभी-भी इसे जीत नहीं सकता।
वो एक बार फिर खरगोश को एक नयी रेस के लिए चैलेंज
करता है, पर इस बार वो रेस का रूट अपने मुताबिक रखने
को कहता है। खरगोश तैयार हो जाता है।
रेस शुरू होती है। खरगोश तेजी से तय स्थान की और
भागता है, पर उस रास्ते में एक तेज धार नदी बह रही होती
है, बेचारे खरगोश को वहीँ रुकना पड़ता है। कछुआ धीरे-
धीरे चलता हुआ वहां पहुँचता है, आराम से नदी पार करता
है और लक्ष्य तक पहुँच कर रेस जीत जाता है।
_पहले अपनी ताकत को जानो और
उसके मुताबिक काम करो जीत ज़रुर मिलेगी_
कहानी अभी भी बाकी है जी …..
इतनी रेस करने के बाद अब कछुआ और खरगोश अच्छे दोस्त
बन गए थे और एक दुसरे की ताकत और कमजोरी समझने लगे
थे। दोनों ने मिलकर विचार किया कि अगर हम एक दुसरे
का साथ दें तो कोई भी रेस आसानी से जीत सकते हैं।
इसलिए दोनों ने आखिरी रेस एक बार फिर से मिलकर
दौड़ने का फैसला किया, पर इस बार एक प्रतियोगी के रूप में
नहीं बल्कि संघठित होकर काम करने का निश्चय लिया।
दोनों स्टार्टिंग लाइन पे खड़े हो गए….आओ चलें…. और
तुरंत ही खरगोश ने कछुए को ऊपर उठा लिया और तेजी से
दौड़ने लगा। दोनों जल्द ही नहीं के किनारे पहुँच गए। अब
कछुए की बारी थी, कछुए ने खरगोश को अपनी पीठ
बैठाया और दोनों आराम से नदी पार कर गए। अब एक
बार फिर खरगोश कछुए को उठा फिनिशिंग लाइन की
ओर दौड़ पड़ा और दोनों ने साथ मिलकर रिकॉर्ड टाइम
में रेस पूरी कर ली। दोनों बहुत ही खुश और संतुष्ट थे, आज से
पहले कोई रेस जीत कर उन्हें इतनी ख़ुशी नहीं मिली थी।
-संगठित कार्य हमेशा व्यक्तिगत प्रदर्शन से बेहतर होता है-
*व्यक्तिगत रूप से चाहे आप जितने बड़े खिलाड़ी हों लेकिन अकेले दम पर हर मैच नहीं जीता सकते अगर लगातार जीतना है तो आपको संघठन में काम करना सीखना होगा, आपको अपनी काबिलियत के आलावा दूसरों की ताकत को भी समझना होगा। और जब जैसी परिस्थिति हो, उसके हिसाब से संगठन की ताकत का उपयोग करना होगा*