" एक चोर "
यह कहानी 1950 के लगभग की है जब हमारा देश नया नया आज़ाद हुआ था और नौकरी मिलना तब थोड़ा कठिन कार्य था और लगातार बढ़ती बेरोज़गारी की वजह से , देश में जेबकतरों और चोरों की तादाद थोड़ी बढ़ चुकी थी
और उसी बेरोज़गारी की वजह से एक दिन एक घटना घटी , जब एक मालदार सेठ अपनी शानदार गाड़ी से उतरकर बैंक में प्रवेश कर रहा था , तब एक चोर चुपके से उसके पीछे हो लिया था और वह चोर चाल ढाल से बहुत चुस्त और चालाक लग रहा था। जब सेठ बैंक अधिकारी से बातचीत करके अपने पैसे निकलवा रहा था , तब वह चोर उस सेठ की तरफ अपनी पीठ करके खड़ा हुआ था , पर उसके कान पीछे ही लगे हुए थे। उस चोर ने बैंक अधिकारी और उस सेठ की बातचीत से इतना तो समझ ही लिया था कि वह सेठ बैंक से बहुत बड़ी रकम निकालने के लिए आया था। कुछ समय बाद जब वह सेठ अपने बैग में पैसे लेकर , उस बैंक से बाहर निकला , तो उस चोर ने उस सेठ के कार में बैठने से पहले ही , एक झपट्टा मारा और उस सेठ का पैसों से भरा बैग छीन कर , ये जा और वो जा , वो चोर बहुत फुर्ती से वहां से भागा , पर इतने में बैंक के बाहर तैनात गार्ड भी उस चोर के पीछे भागा , पर वह चोर , चोरी करने से पहले ही अपने भागने का रेखा चित्र खींच चुका था और अपने नपे तुले कदमों से और गज़ब की फुर्ती से , उसने जल्दी ही उस गार्ड से अपना पीछा छुड़ा लिया था।
तब तक बैंक में शोर मच चुका था और बैंक मैनेजर ने जल्दी से पुलिस को इस घटना की जानकारी दे दी थी।
पर इस बीच वह चोर भागते भागते झोपड़ी नुमा घरों की छोटी छोटी गलियों में घुस गया था और एक अंधेरे से कोने में क्षण भर के लिए रुककर उसने वह चोरी किया हुआ बैग खोलकर देखा , तब उस चोर का , बैग में लाखों रुपए देख कर , मुंह खुला का खुला रह गया था। वह चोर थोड़ा मनमौजी किस्म का था और उन पैसों को देख कर वो मुस्कराया और उसने मन ही मन में कहा " वाह सेठ गरीबों का खून चूस चूस कर बहुत पैसा इकट्ठा किया हुआ है " और यह सोचते सोचते उसके चेहरे पर एक शरारत भरी मुस्कान आ चुकी थी।
वह चोर अभी भी उस झोपड़ी नुमा घर की दीवार के साथ सट कर खड़ा था कि उस चोर को , उस घर के भीतर से कुछ आवाज़ें सुनाई दी और उस बातचीत से उस चोर ने अंदाज़ा लगाया कि एक बूढ़ा बाप अपने जवान बेटी के दहेज की वजह से बहुत परेशान है और उसे भय लग रहा था कि कहीं दहेज का इंतज़ाम न होने से , लड़के वाले बारात वापिस न ले जाएं , और उसकी बेटी अपने पिता से कह रही थी कि अगर उन्होंने ऐसा किया तो मैं यह शादी खुद ही तोड़ दूंगी। पर उसके पिता उसे समझा रहे थे कि तुम्हारे ऐसा करने से , हमारा नाम बिरादरी में खराब हो जायेगा फिर तुमसे कौन विवाह करेगा। अभी उनकी यह बातचीत चल ही रही थी कि उस चोर ने सोचा कि मुझ से अधिक पैसों की जरूरत तो इन्हें है और यही सोच कर उसने अपने पैसों से भरा बैग निकाला और चुपके से उनके घर में उनकी जरूरत के मुताबिक पैसे रख दिए और वो चोर मुस्करा कर आगे बढ़ गया , पर तब तक पुलिस उसको ढूंढती हुई , वहां पर आ पहुंची थी , वह चोर फिर अपनी जान बचाकर वहां से उन गलियों में भागा और वो उन रास्तों से इतना अच्छी तरह से परिचित था कि कुछ मिनटों में ही , वो पुलिस की नजरों से ओझल हो गया। अब तक वो चोर , इस भागा दौड़ी से बहुत थक चुका था , और वो एक छोटी सी झोपड़ी के , पीछे की दीवार के पास सुस्ताने के लिए , वहां पर बैठ गया था। पर तभी उसे उस झोंपड़ी के भीतर से आवाज़ें सुनाई दी और वो चोर कान लगा कर अन्दर की बातचीत को सुनने की कोशिश करने लगा।
उस घर में बहुत बूढ़े पति पत्नी रहते थे और वो कल की चिंता कर रहे थे , वो बूढ़ा इंसान जो थोड़ा चलने से भी लाचार सा था , वो अपनी पत्नी से कह रहा था कि हमारी कोई औलाद नहीं है और अनाज के डिब्बे भी खाली हो गए हैं , तो तू क्यों इस बात की चिंता करती है , यह कह कर वो बूढ़ा इंसान अपनी पत्नी को दिलासा देने की कोशिश कर रहा था , फिर कुछ सोचते हुए उसने अपनी पत्नी से कहा था " सबको देने वाला ईश्वर है और वक्त आने पर वो हमारी भी मदद जरूर करेगा " उनकी बातचीत सुनकर चोर सोच में पड़ गया था , तब उस चोर ने झोपड़ी के भीतर झाँक कर देखा और उसने देखा कि दो बूढ़े पति पत्नी आपस में बातें कर रहे थे और वो दोनो थोड़े लाचार से दिखाई दे रहे थे और शायद उन्हें दिखाई भी थोड़ा कम देता था , यह देख कर उस चोर का दिल भर आया था और जब वह बूढ़े पति पत्नी गहरी नींद में सो गए , तब उस चोर ने बहुत चुपके से उनके झोंपड़े में प्रवेश किया था और उसने अपने बैग में से कुछ पैसे निकाल कर , उनके बिस्तर के निकट रख दिए थे और फिर वो चोर वहां से आगे बढ़ गया था। वह चोर अभी चैन की सांस ही ले रहा था कि तभी कुछ पुलिस अधिकारियों ने उसे फिर से देख लिया और वो उसको पकड़ने के लिए उसके पीछे भागे , वह चोर एक बार फिर जान बचाकर तेज़ी से भागा और बिजली की सी फुर्ती से , एक बार फिर , उन पुलिस वालों की नज़र से ओझल हो गया। अब तक वह चोर बहुत थक चुका था , पर साथ ही , उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कुराहट भी थी।
पुलिस को यूं चकमा देना , उस चोर का बाएं हाथ का खेल था और उस चोर को अपनी चुस्ती और फुर्ती पर बहुत भरोसा था। अब तक उस चोर का चोरी किया हुआ बैग बहुत हल्का हो चुका था , पर यह देख कर भी उस चोर को कुछ खास अंतर नहीं पड़ा था। वह चोर पुलिस से बचने के लिए अभी भी उन्हीं गलियों में छुपता फिर रहा था। इसी भाग दौड़ के दौरान वो चोर , एक छोटी सी झोपड़ी के पिछवाड़े में , अंधेरी सी जगह को देख कर , सुस्ताने के लिए वहीं पर छुप कर बैठ गया था। उस समय वो बहुत थक चुका था और अपनी सांसें ठीक कर रहा था कि तभी उसे उस छोटे से टूटे फूटे झोंपड़े की भीतर से , किसी छोटी लड़की की आवाज सुनाई दी , और वो चोर दीवार से कान लगाकर भीतर की बातें सुनने की कोशिश करने लगा। उस चोर को , उस झोपड़े में से , दो छोटे बच्चों की बातचीत सुनाई दे रही थी और उसने सुना कि एक लड़की अपने छोटे भाई को दिलासा देते हुए कह रही थी " तुम चिंता मत करो छोटे , मैं तुम्हारी टांगों का इलाज बड़े से बड़े डॉक्टर से करवाऊंगी और तुम एक दम ठीक हो जाओगे " और वो छोटा बच्चा अपनी बहन से कह रहा था " अब तो हमारे माता पिता भी नहीं रहे , फिर तुम अकेली इतने सारे पैसे कहां से लेकर आओगी " लगता है जैसे मैं अब जीवन भर अपाहिज ही रहूंगा "
यह कह कर वह छोटा बच्चा बिलखने लगा था। पर तभी उसकी बहन ने अपने भाई को चुप कराने का प्रयास करते हुए उससे कहा था " छोटे जिनका कोई नही होता उनकी रक्षा खुद भगवान करते है , तू क्यों चिंता करता है , मैं हूं न , और जब तक मैं हूं , तुम्हें चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है " उनकी बातों को वह चोर बहुत ध्यान से सुन रहा था और उन बच्चों की भोली बातें सुन कर , उसके दिल में , उन्हें देखने की जिज्ञासा जाग उठी और उसी जिज्ञासा के तहत , उसने उस टूटी फूटी झोपड़ी के एक झरोंखे से , भीतर झांक कर देखा और उसने देखा कि दो बहन भाई आपस में बातचीत कर रहे थे और जिसमें लड़के की उम्र अभी 7 वर्ष के लगभग की लग रही थी और वो छोटा बच्चा टांगों से अपाहिज था और उसकी 14 वर्षीय बहन उसकी हिम्मत बढ़ा रही थी। उस चोर ने देखा कि झोपड़े की एक दीवार पर , दो तस्वीर लगी हुई थी और उन तस्वीरों के सामने एक दीया जल रहा था। इसी बात से उस चोर ने अंदाज़ा लगाया कि हो न हो , ये उनके मृत माता पिता की तस्वीर ही होगी। दो छोटे बच्चों को इस अवस्था में देख कर ,
उस चोर का दिल भर आया था और उसी पल उसने अपना चोरी किया हुआ बैग खोला और उसमें जितने भी धनराशि बची हुई थी , वह सब उन बच्चों के पास रख कर , वो आगे बढ़ गया और उसने वो खाली बैग , कुछ दूर चलकर , एक बहते नाले में फेंक दिया और मुस्कराता हुआ आगे बढ़ गया। पर उसे पता नही चला कि पुलिस अभी भी उसकी उसकी तलाश कर रही थी और जैसे ही वह चोर पुलिस को फिर से दिखाई दिया , पुलिस ने उस चोर की चारों तरफ से घेराबंदी कर दी , चोर अपनी जान बचाकर पास ही की एक बहुत बड़ी हवेली में घुस गया और उस हवेली की छत से होते हुए , उसने एक परछत्ती पर उतरकर उस कमरे के रोशनदान से कमरे के भीतर झांक कर देखा , तो वो दंग रह गया , उस कमरे में इतनी धन संपत्ति पड़ी हुई थी कि जिसकी उस चोर ने कभी कल्पना भी नही की थी। वह कमरा बहुत सी अलमारियों से भरा हुआ था और उसकी हर अलमारी में ढेरों पैसे पड़े हुए थे।
उस कमरे की कुछ अलमारियों में बेशकीमती जेवर पड़े हुए थे। वह चोर इतनी धन संपत्ति देख कर हैरान रह गया था और उस पल उसके मुंह से निकल ही गया था " इस सेठ ने गरीबों का खून चूस चूस कर ही इतनी धन संपत्ति इकट्ठी की होगी " और अब उस चोर ने निश्चय कर लिया था कि उसका अगला निशाना यही घर होगा और अभी वह यह सोच ही रहा था कि उसे उस घर का वह सेठ भी नजर आया जो अपने ज़ेवर एक अलमारी में संभालकर रख रहा था और वो चोर यह देख कर हैरान रह गया था कि यह सेठ वो ही सेठ था ,
जिससे उसने बैंक के बाहर बैग छीना था। उस पल वह चोर मन ही मन बुदबुदाया था " अब तो इस घर में आना ही पड़ेगा " और यह कह कर वह खुद ही मुस्कराने लगा था। उस गुप्त कमरे की बनावट ऐसी थी कि अच्छे अच्छे चालाक लोग भी , शायद उस गुप्त कमरे को खोज न पाते , पर उस चोर के छत से उस घर में प्रवेश करने की वजह से , उसे दो दीवारों के बीच में बने उस कमरे का पता चला था। शायद उस सेठ ने अपनी धन संपत्ति की सुरक्षा के लिहाज से , ऐसा किया था , पर वो सेठ नही जानता था कि किसी चोर की निगाहों से किसी भी प्रकार की गुप्त जगह का छुपा रह जाना , असंभव था।
पर अब तक पुलिस ने उस हवेली और आसपास के इलाकों की घेरा बंदी कर दी थी और अब उस चोर का वहां से निकलना असंभव सा हो गया था , धीरे धीरे पुलिस का घेरा छोटा होता गया और वह चोर उस सेठ की हवेली से कुछ ही कदम की दूरी पर ही पकड़ा गया।
उस चोर को हथकड़ी लगा कर पुलिस स्टेशन लाया गया और शिनाख्त के लिए बैंक के गार्ड और उस सेठ को पुलिस स्टेशन बुलाया गया।
गार्ड ने चोर के चेहरे को ध्यान से देखते हुए पुलिस अधिकारी को बताया , मैंने चोर को पीछे से देखा था और बस मैं एक झलक उस चोर की देख पाया था और मुझे लगता है कि यह वो ही चोर है जिसने बैंक के बाहर सेठ जी का बैग चुराया था।
तब तक वह सेठ भी बैंक में पहुंच चुका था और वो चोर को पहचानने की कोशिश ही कर रहा था कि वह चोर उस सेठ के बहुत करीब आया और उसने सेठ के कान में बस इतना ही कहा था " सेठ जी क्या आपके घर में बने गुप्त कमरे के जानकारी में पुलिस को दे दूं " बस फिर क्या था , यह सुनकर उस सेठ के चेहरे का रंग उड़ गया।
पुलिस अधिकारी ने उस सेठ से पूछा कि " क्या यह वही चोर है जिसने बैंक के बाहर आपका बैग छीना था "
अब सेठ जी उस चोर के चेहरे की ओर देख रहे थे जो उनकी ओर ही देख रहा था और वो मुस्करा रहा था , और वो चोर उस पल मन ही मन में सोच रहा था " अब बता मोटे सेठ , अब मैं तेरे काले धन का भांडा , सिर्फ पल भर में फोड़ दूंगा "
अब तक वह सेठ मौके की नजाकत को समझ चुका था और उसने चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी थी और उस सेठ ने जल्दी से उस पुलिस अधिकारी से कहा था " नही , नही ये वो आदमी नही है , वो थोड़ा मोटा सा था और उसका रंग थोड़ा काला था , मैंने उसे बहुत ध्यान से देखा था "
उस सेठ की बातें सुनकर वह गार्ड बहुत हैरान हुआ था और वो बहुत आश्चर्य से सेठ की ओर देख रहा था। चोर को तो उसने भी देखा था , पर जो हुलिया वह सेठ बयान कर रहे थे , वो उस चोर से बिल्कुल उलटा लग रहा था। पर वह गार्ड चुपचाप एक कोने में खड़ा रहा और आश्चर्य से पुलिस की सारी कार्यवाही को होते देखता रहा।
सबूतों के अभाव से , पुलिस ने उस चोर को छोड़ दिया था , क्योंकि पुलिस को उस चोर के पास से चोरी का एक पैसा भी बरामद नहीं हुआ था।
जब वह चोर और सेठ , उसे पुलिस स्टेशन से बाहर निकले , तब सेठ ने चोर को हाथ जोड़ते हुए , विनती भरे अंदाज से उस चोर से कहा कि " कृपया तुम उस गुप्त कमरे की जानकारी किसी को मत देना " और यह कहते हुए उस सेठ ने अपनी जेब से 5 , 000 रुपए निकाले और उस चोर की तरफ बढ़ा दिए और चोर ने मुस्कराते हुए वह पैसे अपनी जेब में रख लिए थे और सेठ को हक्का बक्का वहीं पर छोड़ कर , वो चोर अपनी राह पर आगे बढ़ गया था। पर अब तक वह सेठ समझ चुका था कि उसके घर पर पड़ा गुप्त खजाना अब सुरक्षित नहीं रहा था और उस पल वह चोर , मन ही मन में यह फैसला कर चुका था कि उसका अगला निशाना उस सेठ का घर ही होगा।
अगली सुबह जब उन तीनो परिवार के लोगों की आंख खुली और इतने सारे पैसों एक साथ देख कर , वह सब बहुत हैरान हुए थे और उस पल उन सब ने , हाथ जोड़ कर ईश्वर का धन्यवाद किया था क्योंकि उन सब कुछ ऐसा अनुभव हुआ था कि ईश्वर ने अपने किसी बंदे के हाथों , उन्हें मदद भेजी थी। उन सब के लिए यह किसी चमत्कार से कम नहीं था और यह बात सत्य प्रतीत होती है कि " ईश्वर की मर्ज़ी के बिना , कहीं पर एक पत्ता भी नहीं हिलता " ईश्वर महान है और वो कुछ भी कर सकता है।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" सोमवार 12 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कहानी।
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