बुधवार, 2 अगस्त 2017

टूटा पहिया....धर्मवीर भारती



मैं
रथ का टूटा पहिया हूँ
लेकिन मुझे फेंकों मत
क्या जाने कब
इस दुरूह चक्रव्यूह में
अक्षौहिणी सेनाओं को चुनौती देता हुआ
कोई दुस्साहसी अभिमन्यु घिर जाए?
अपने पक्ष को असत्य जानते हुए भी
बड़े- बड़े महारथी
अकेली निहत्थी आवाज को
अपने ब्रह्मास्त्रों से कुचल देना चाहें

तब मैं
रथ का टूटा पहिया
उसके हाथों में
ब्रह्मास्त्रों से लोहा ले सकता हूँ !
मैं रथ का टूटा पहिया हूँ
लेकिन मुझे फेंको मत
इतिहासों की सामूहिक गति
सहसा झूठी पड़ जाने पर
क्या जाने
सच्चाई टूटे हुए पहियों का आश्रय ले!


- धर्मवीर भारती

3 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते, आपकी यह प्रस्तुति गुरूवार 3 अगस्त 2017 को "पाँच लिंकों का आनंद "http://halchalwith5links.blogspot.in के 748 वें अंक में लिंक की गयी है। चर्चा में शामिल होने के लिए अवश्य आइयेगा ,आप सादर आमंत्रित हैं। सधन्यवाद।

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  2. मैं रथ का टूटा पहिया हूँ ... बहुत सुन्दर रचना

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