शनिवार, 18 जनवरी 2014

मैं हारा अपनी आदत से................प्रमोद त्रिवेदी

मैं हारा
मैं हारा अपनी आदत से।

कहते हैं लोग- "यह गुलाम, अपनी आदत का।
मजबूर, अपनी आदत से"।
यह मेरी कमजोरी।


कहते हैं सब- "पा सकता है कोई भी ।
चाहे तो इस टेव से मुक्ति।
असंभव नहीं कुछ भी"।

सोचता किन्तु मैं,
इस सोच से अलग
बचेगा ही क्या,
छूट गई यदि मुझसे
मेरी आदत,

क्या मतलब रह जाएगा तब
मेरे होने का।


फूल खिलते हैं आदतन।
जानते हैं,
तोड़ लिए जाएंगे खिलते ही
या बिखर जाएंगे
पंखुड़ी-पंखुड़ी खिलते ही
तब भी कहां छोड़ा खिलना।
छोड़ा नहीं नदी ने बहना
खारे होने के डर से।


सुना है अभी-अभी
आदत से मजबूर तो गिरे गड्‌ढे में।
मरे,

अपने जुनून में।

मैं हंसा फिर
अपनी आदत के मुताबिक।

-प्रमोद त्रिवेदी

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